यह सूना संसार था
जीवन पथ पर निकल पड़ा जब, यह सूना संसार था।
राह नयी और अनजानी थी, न कोई आधार था।।
ऊँगली पकड़ी, हमें चलाया,दिशा दिखाई, मार्ग बताया।
दे पाथेय आश्वस्त कराया,साहस दे पुरुषार्थ जगाया।।
जहाँ जहाँ भी चलें हैं हम तो, संरक्षण
साकार था।
जीवन पथ पर निकल पड़ा जब,यह सूना संसार था।।
शूल बिछे थे मग
में तूने, पदत्रान दे हमें बचाया।
जब भी जख्म लगे थे तुमने,निज हाथों उपचार कराया।।
हमें लगा हम ही चलते
हैं, पर यह तेरा प्यार था।
जीवन पथ पर निकल पड़ा जब, यह सूना संसार था।।
निविड़ निशा में भटक गए थे,बीच राह में अटक गए थे।
सुरसा संकट मुंह बाए थी, जोश होश सब चटक गए थे।।
साँसें अटक रही थी तब भी, तू ही प्राणाधार था।
जीवन पथ पर निकल पड़ा जब, यह सूना संसार था।।
नाव भवंर में जब भी आई, खुद पतवार संभाले थे।
नैया डूब रही थी जब भी, तुम सबके रखवाले थे।।
कैसे कहूँ, क्या क्या थे मेरे, तू ही खेवनहार था।
जीवन पथ पर निकल पड़ा जब, यह सूना संसार था।।
हे गुरुवर हे मातु तुमने, अनगिन है
उपकार किया।
जीवन धन्य हुआ है अपना,तुमने ये जो प्यार दिया।।
शेष सांस और रुधिर तुम्हारा,यह अपना मनुहार था।
जीवन पथ पर निकल पड़ा जब,यह सूना संसार था।।
-उमेश यादव 22-2-21
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