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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023

कितनी और परीक्षा लोगे

 

कितनी और परीक्षा लोगे

कितनी और परीक्षा लोगे, देखो,अब मैं हार चुका हूँ

अपनी सारी इच्छाओं को, हे ईश्वर मैं मार चूका हूँ।।

 

मन का साहस तन का संबल,सारे चूक चुके हैं मेरे

खुशियाँ जीवन में जो मिलते, सारे रूठ चुके हैं मेरे।।

मेरा मुझमें बचा नहीं कुछ,अपने को बिसार चुका हूँ

कितनी और परीक्षा लोगे, देखो,अब मैं हार चुका हूँ।।

 

मान प्रतिष्टा इज्जत सारे,धुल धूसरित हो बिखर चुके हैं

सखा सहायक परिजन प्यारे, अपने सारे मुकर चुके हैं।।

अंधियारों से घिरा हूँ भगवन,कितनी बार पुकार चुका हूँ

कितनी और परीक्षा लोगे, देखो,अब मैं हार चुका हूँ।।

 

दुःख के सागर में गोते ले, सुख सागर से दूर हुआ हूँ

मृग तृष्णा में भटक भटक कर,रोने को मजबूर हुआ हूँ।।

कब तक कृपा करोगे भगवन,तुमसे सब इजहार चुका हूँ

कितनी और परीक्षा लोगे, देखो,अब मैं हार चुका हूँ।।

 -उमेश यादव, स्वरचित  

सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

Jio true 5g जिओ है

 

*Jio true 5g*

जिओ है, जिओ है जिओ है, जिओ है

आओ आओ जिओ ट्रू फाइव जी तले

आओ अब तो मजेदार लाइफ जी तू ले।।

जिओ है, जिओ है जिओ है, जिओ है।।

 

टू जी थ्री जी ने कैसे टाइम बिताई थी

के बी पी एस में सारी रात गंवाई थी।।  

अंखियो की नींदें कैसे फोर जी ने उड़ाई थी

गिन गिन एक एक बाईट उंगली थकाई थी।।

आओ आओ जिओ ट्रू फाइव जी तले

आओ आओ फायदे वाली सौदा तू करले।।

जिओ है, जिओ है जिओ है, जिओ है

 

आओ आओ जुड़ जाए जिओ से सभी

आओ आओ पोर्ट करें नम्बर बस अभी।।

जे एच डी से मिलेगा नम्बर होम डेलिवेरी

दो सौ उनचालीस है रिचार्जे किफायती।।

आओ आओ जिओ ट्रू फाइव जी तले

आओ अब तो मजेदार लाइफ जी तू ले।।

जिओ है, जिओ है जिओ है, जिओ है।।

 

ट्रू फाइव जी है तो अपने मुठ्ठी में जहाँ

दूर दूर तक कवरेज पाओ जिओ है जहाँ।।

वर्ल्ड वाइड स्टैंड अलोन फाइव जी और कहाँ

जिओ टीवी नौ सौ चैनल गाने व सिनेमा।।

आओ आओ जिओ ट्रू फाइव जी तले

आओ अब तो मजेदार लाइफ जी तू ले।।

जिओ है, जिओ है जिओ है, जिओ है।।

 

फिजिकल सिम के बदले आओ ई सिम ले ले

फ्री वाय फाय कालिंग है फीफा भी देख ले।।  

इन फ्लाइट फोन चलेगा आसमान उड़ ले

फायदे की बात है भैया जिओ से जुड़ ले।।

आओ आओ जिओ ट्रू फाइव जी तले

आओ अब तो मजेदार लाइफ जी तू ले।।

जिओ है, जिओ है जिओ है, जिओ है।।

-उमेश यादव   

सोमवार, 13 फ़रवरी 2023

हम कथा सुनाते शान्तिकुञ्ज युगधाम की | प्रज्ञा गीत २०२३ | pragya geet 2023



हम कथा सुनाते शातिकुन्ज युगधाम 
ॐ श्री महा गनाधिपतये नमः।
ॐ श्री उमामहेश्वराभ्याम नमः।।
परम पूज्य गुरुदेव के,पद  पंकज सिर नाय। 
सुमिरे मातु भगवती,हमपर होहिं सहाय।। 
माँ गायत्री वंदना, करते बारम्बार।
गुरुजन,परिजन,विज्ञजन नमन करो स्वीकार।।  
हम कथा सुनाते शांतिकुंज युग धाम की।
हम कथा सुनाते शांतिकुंज युग धाम की।।
ये कर्मभूमि है इस युग के श्री राम की।
जम्बुद्वीपे, भरत खंडे, आर्यावर्ते, भारतवर्षे।
एक नगरी है हरिद्वार शांतिकुंज नाम की।।
यही कर्मभूमि है परम पूज्य श्री राम की।
हम कथा सुनाते गुरुवर पूज्य ललाम की।। 
ये कर्मभूमि है इस युग के श्री राम की।
ये कर्मभूमि है  वेद मूर्ति श्री राम की।।
ईश्वर भक्त ब्राह्मण पुण्यात्मा।रूपकिशोर पण्डित धर्मात्मा।। 
भागवत कथा यज्ञ करवाये।धर्म कर्म का शुभ फल पाये।।
द्विज घर जन्मे राम हमारा।दानकुंवरी सूत जगत आधारा।।
ध्यान यज्ञ सेवा शुभ कामा।अछूत उद्धार दीनन को थामा।।  
गुरु मालवीय के गुरुकुल जाके।गुरु मंत्र दीक्षा तब पाके।।
पूरण हुई दीक्षा,गुरुवर पूज्य श्रीराम की।
हम कथा सुनाते,शांतिकुंज युग धाम की।
ये कर्मभूमि है इस युग के श्री राम की।।
ब्रह्म तेज प्रखर साधना,देशभक्ति के रंग।
स्वाधीनता संग्राम लडे,रण बांकुरों  संग।। 
सर्वेश्वरानंद ऋषि आये।बहु जन्मों के दृश्य दिखाए।।
तप कठिन ऋषि ने करवाए।तपोनिष्ठ श्रीराम कहाए।। 
ऋषि सर्वेश्वरानंद संग, हिमगिरी गए श्रीराम।
ऋषि मुनि से शुभ मिलन कर,गुरु पहुंचे गुरु धाम।। 
शांतिकुंज उत्सव है भारी,शांतिकुंज उत्सव है भारी।
नव युग का निर्माण करेंगे, गुरुवर अवतारी।।
शांतिकुंज उत्सव है भारी।
पूज्य गुरुवर का प्रण है,नवयुग के निर्माण की।
आओ जय जयकार करे युग ऋषि पूज्य श्रीराम की।।
सब ऋषियों की एक ही बात।नवयुग का अब हो शुरुआत।।
श्रीराम प्रज्ञा  के अवतार।निज गुरु की आज्ञा सिरधार।।
सहज भाव से प्रण गुरु कीन्हा।गुरु कार्य सर माथे लीन्हा।।
पर हित सबसे श्रेष्ठ धर्म है।दुःख बंटाना श्रेष्ट कर्म है।।
गुरुवरवर का प्रण,नवयुग के निर्माण की।।
हम कथा सुनाते, शांतिकुंज युग धाम की।।
ये कर्मभूमि है इस युग के श्री राम की।।
भ्रम व भय से मुक्त कराया।नारी को सम्मान दिलाया।।
धर्म संस्कृति की रक्षा को।घर घर में जा अलख जगाया।।
कल्प-साधना, नारी-जागृति, चान्द्रायण। 
सूक्ष्मी-करण राष्ट्र-जागरण,ब्रह्मवर्चस निर्माण।। 
ज्ञान ज्योति अखंड जलाया।विचार क्रांति का विगुल बजाया।।
बहु विस्तार मिशन ने पाया।सुख शांति घर घर पहुंचाया।।
काल चक्र के घटना क्रम में,ऐसा चक्र चलाया।
शांतिकुंज आश्रम में फिर,एक विपदा आया।।
कुञ्ज में ऐसा, ऐसा इक दिन आया।
एक दुष्ट पापी ने गुरु को,गहरा घात लगाया।।
कुञ्ज में ऐसा, ऐसा इक दिन आया।
चल पड़े मनुज जब छोड़ कर,धर्म नीति न्याय को।
पाषाण हो जाए ह्रदय,करने लगे अन्याय वो।। 
रुधिर पायी भाव से यह,मनुज करुणा हीन है। 
बुद्धि विवेक नीति त्यागे,मनुज भी अति दीन है।। 
आधि व्याधि से त्रसित विश्व हैरोग शोक से ग्रसित विश्व है।  
मानवता को खो बैठे हम,सभ्य समाज के वासी।
तभी ज्ञान का दीप दिखाया,गुरु गृहस्थ  सन्यासी।।
उन गुरु परम उदार का,श्री राम  शुभ नाम।
वेदमूर्ति गुरु  तपोनिष्ठ ने,कर दिए अद्भुत काम।। 
जग में ज्ञान क्रान्ति फैलाए।सबको मानवता सिखलाये।। 
मनुष्य में देवत्व का जागरण और धरती पर स्वर्ग जैसे वातावरण बनाने वाला समय अब बहुत ही निकट है।युग परिवर्तन में चिंतन आचरण और व्यवहार के सभी पक्षों का आमूलचूल परिवर्तन होगा।शान्तिकुञ्ज व्यक्तित्व गढ़ने की टकसाल है।जाति, संप्रदाय, धर्म, पंथ आदि संकीर्णताओं से ऊपर उठकर लोगों को यह जीवन जीने की कला सिखाता है।उन्हें आत्मवादी जीवन जीने की प्रेरणा देता है। हर धर्म-वर्ग के लोग यहाँ आकर साधना करते हैं, शिक्षण लेते हैं।यहाँ शरीर, मन व अंत:करण को स्वस्थ, समुन्नत बनाने के लिए अद्वितीय अनुकूल वातावरण, मार्गदर्शन एवं शक्ति-अनुदान मिलते हैं।शान्तिकुञ्ज व्यक्ति को अंध विश्वास, मूढ़मान्यता, भाग्यवाद आदि से उठकर कर्मवादी बनने की प्रेरणा देता है।शान्तिकुञ्ज प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुरुप सयुंक्त परिवारों के प्रचलन को प्रोत्साहित करने वाला आदर्श केन्द्र है। शान्तिकुञ्ज सेवा और परोपकार की भावना को प्रोत्साहित करता है।गायत्री चेतना (युगचेतना) का विश्वयापी विस्तार यहाँ से हो रहा है। यहाँ के शिक्षण में धर्म विज्ञान का समन्वय है। 
सजल श्रद्धा है जहाँ, प्रखर प्रज्ञा है जहाँ,गुरु के चरण में सहज सुख पाते है।
ऋषि मुनियों का वास,देवी देवता निवास,तीर्थ शांतिकुंज में, अनंत शांति पाते है।।
कष्टों में पड़े हैं जो भी, दुःख में अड़े हैं जो भी,दीप दर्शन कर, गहन शांति पाते हैं।
गंगा माता की शरण,माँ गायत्री के चरण,गुरुजी के ध्यान से अनंत शक्ति पाते हैं।।
नित्य यज्ञ होता यहाँ,नित्य जप होता यहाँ,साधकों के मन से कलुष मिट जाते हैं।
राष्ट्र के पुरोहित हैं हम,संस्कृति दूत हैं हम,घर घर जाकर हम तो संस्कृति बचाते है।।  
रोम रोम पुलकित हो जाता।सिद्ध तीर्थ में जो कोई आता।। 
कोटि कोटि के भाग्य सँवारे।हे श्री राम हम शिष्य तुम्हारे।। 
जन जन का पावन गुरुद्वारा।शांतिकुंज युग तीर्थ हमारा।। 
-उमेश यादव

holi

सखि संवर सँवर सब अईहें 
होरी खेलन सबहीं मिल जईहें  
मन श्याम रंग मतवारो  
तन मन सब रंग रंगईहें 

ऋतु फागुन के शुभ अईहें   
गोपियन संग रास रचईहें 
मन मस्त मस्त बौरईहें
सखीयन मिल धूम मचईहें
कृष्ण मुरली धरी लुकईहें
ब्रज बावरी प्रियतम पईहें 
होरी मधुर मधुर स्वर गईहें 
ब्रज गोपियन रंग लगईहें 

ब्रज ग्वालों के संग मुरारी हैं 
गोपियन की होरी की तैयारी है 
ग्वालन संग कृष्ण बिहारी हैं 
गोपियन की अजब तैयारी है 
रंग घोल खड़े हैं बिहारी जी
राधा हाथ कनक पिचकारी है
जो मिलिहें रंग लगी जईहें 
राधा प्रेम सरस भिंगी जईहें
ढोली ढोल बजावे ढम-ढम के 
कान्हा नाच नचावे छम छम के
उड़े रंग गुलाल शहर में 
मन डुबो  रंग भंवर में 
  
मन मधुर मधुर मुस्कईहें
तन गिरिधर रंग लगईहों  
राधा चुनर उड़ी शरमईहें
कृष्णा गालन रंग लगइहें
मनमोहन रंग लगईहें
घनश्याम रमा रम जईहें
राधा कृष्ण मिलन हो जइहें
सारी सृष्टि मधुर मुस्कइहें 
नेहिया जग पर बरसईहें
मधु बन में होरी मनईहें
सखियन सब रंग बरसईहें
तन श्याम रंग रंग जइहें 
 
सखी रंग गुलाल उड़इहें 
तन मन मा रंग लगइहें
होरी गान बजे जम जम के 
मन नाच उठे छम छम के
मनवां  मधुर मधुर मुस्काइहों 
तनमा गिरिधर रंग लगइहों  
सखीयन सब रंग बरसावे
मधुबन में होली मनावै 
मनवा इंद्रधनुष बन ज़ावे
तन सतरंगी मन को भावै 
राधा गिरिधर रंग लगावै  
कृष्ण राधा पे रंग बरसावै  
 
राधा रंग के मारे पिचकारी जी 
निकले बच कृष्ण मुरारी जी
चल भागे हैं बांके बिहारी जी 
पाछे पाछे राधा पिचकारी जी
राधा गाल गुलाल लगावै
श्यामा हो निहाल सुख पावै
मन झूमर झूमर के नाचे 
तन फगुवा के रंग में रांचे 
ब्रज में होली अति प्यारी जी
राधा हाथ में ले पिचकारी जी 
राधा रंग रंगे हैं चक्रपाणि जी
कान्हा रंग रंगे हैं ब्रजरानी जी 
 
खेली हैं कान्हा संग होरि 
खो बैठी हैं सुधबुध सारी      
मन श्याम रंग रंग जइहों 
तन गिरधर रंग लगइहों 
अंग फड़क फड़क कर बांचे
सखी थिरक थिरक सब नाचे
आपस के बैर मिटैईहों 
मनवाँ के मैल धुलईहो
कान्हा से रंग लगाइहों 
प्राणी मुक्ति सहज पा जईहों
मन सतरंगी बन जईहें 
जीव श्रेष्ठ परम पद पईहें   
सखि संवर सँवर सब अईहें  
होरी खेलन सबहीं मिल जईहें  
मन श्याम रंग मतवारो  
तन मन सब रंग रंगईहें
-उमेश यादव

रविवार, 5 फ़रवरी 2023

गिरिडीह अति प्यारा है

 गिरिडीह अति प्यारा है

स्वर्ग सी सुंदर धरती अपनी, गिरिडीह अति प्यारा है। 

गिरि शिखरों से शोभित प्यारा, पावन भूमि हमारा है।। 


है प्राचीन इतिहास जिले का, जैन धर्म का खास रहा। 

सम्मेत शिखर पारसनाथ का,मधुबन का इतिहास रहा।। 

चौबीस में से बीस तीर्थंकरों,  को निर्वाण से वारा है। 

स्वर्ग सी सुंदर धरती अपनी, गिरिडीह अति प्यारा है।। 


झारखंड धाम अति पावन, शिव की महिमा न्यारी है। 

पूरन करते मनोकामना, शिव  भोले भण्डारी हैं।। 

झारखंड शिव की महिमा से,समृद्ध राज्य हमारा है। 

स्वर्ग सी सुंदर धरती अपनी, गिरिडीह अति प्यारा है।। 


हरिहर धाम बगोदर में शिव, का स्वरूप मनभावन है। 

खरगडीहा के लँगटा बाबा, की समाधि अति पावन है।। 

दुखिया महादेव दुख हरते, दुखियों के वही सहारा हैं। 

स्वर्ग सी सुंदर धरती अपनी, गिरिडीह अति प्यारा है।।


खनिजों का भंडार यहाँ पर, कोयला अभ्रक माणिक है। 

झारखंड बाबा धाम यहाँ पर,जिनका महत्व पौराणिक है।। 

खंडौली,उसरी प्रयटन स्थल का,अद्भुत दिव्य नजारा है। 

स्वर्ग सी सुंदर धरती अपनी, गिरिडीह अति प्यारा है।।

  

वैज्ञानिक सर जे सी बोस का यहाँ से गहरा नाता था। 

शोध प्रबंध किए यहाँ से,विज्ञान भवन इन्हें भाता था।। 

वैज्ञानिक दुनिया में बोस से, जगमग राष्ट्र हमारा है।    

स्वर्ग सी सुंदर धरती अपनी, गिरिडीह अति प्यारा है।।


गायत्री की दिव्य चेतना, गिरिडीह में ज्योतित है। 

गायत्री मंदिर, प्रज्ञापीठ से,सम्पूर्ण क्षेत्र आलोकित है।। 

हर मन में सद्भाव जगाता,गायत्री परिवार हमारा है। 

स्वर्ग सी सुंदर धरती अपनी, गिरिडीह अति प्यारा है।। 


आओ सब मिल गिरिडीह को,सबसे श्रेष्ठ बनाएं हम।

भक्ति ज्ञान संस्कृति का आलोक सर्वत्र फैलाएं हम।। 

यही जन्मभूमि हम सबका, यह प्राणों से प्यारा है। 

स्वर्ग सी सुंदर धरती अपनी, गिरिडीह अति प्यारा है।।

  -उमेश यादव

छवि तेरी नैनों में रह गई

 छवि तेरी नैनों में रह गई

पलभर का वो मिलन हमारा, पलकें अनकह बात कह गई।

पता नहीं फिर से कब मिलिहैं, छवि तेरी नैनों में रह गई।।   

 

मंद मंद मुस्कान तुम्हारा, वो मधुर कोकिल सी वाणी।

नयनों के अंजन ने बोला, जन्म जन्म की राम कहानी।।

मुखमंडल की भाव भंगिमा,उर में फिर उपताप भर गई।   

पता नहीं फिर से कब मिलिहैं, छवि तेरी नैनों में रह गई।।    

 

चपल चितेरे हुलसित मनवाँ,स्मित हास्य अंतर्मन छूतीं।

अलक कान्ति को छूकर वायु, मानों मौन आमंत्रण देतीं।।  

स्पर्श मात्र क्षणांश को पाकर, मन के सारे गाद बह गई।

पता नहीं फिर से कब मिलिहैं, छवि तेरी नैनों में रह गई।।    

 

सहर सकार हुआ है अब तो, प्राची से दिनकर भी आया।

खग कलरव चहुं ओर अनाहद, जागृति का उन्नाद सुनाया।।

शबनम से सिंचित हिय गुलशन,सुप्त सृजन जग जागृत कर गई।

पता नहीं फिर से कब मिलिहैं, छवि तेरी नैनों में रह गई।

-उमेश यादव