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रविवार, 11 दिसंबर 2022

सेवा चिंतन ध्यान है@Umeshpdadav


सेवा चिंतन ध्यान है

*सेवा*

सेवा ही है पूजन अर्चन,सेवा चिंतन ध्यान है

सेवा धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है, सेवा से कल्याण है।।

 

धर्म और संस्कार हमारे, जीवन के आधार हैं

वसुधा पर आवास हमारा,हर प्राणी परिवार है।।

सेवा से मिलते हैं भगवन, सेवा गंग स्नान है

सेवा ही है पूजन अर्चन,सेवा चिंतन ध्यान है।।

 

परहित में जीना मरना ही सौभाग्य कहाता है

सद्विचार सद्कर्म हमारे सुख सौभाग्य जगाता है।।

सेवा से ही मोक्ष प्राप्ति है,सेवा से ब्रह्मज्ञान है

सेवा ही है पूजन अर्चन,सेवा चिंतन ध्यान है।।

 

मिल बाँट कर खाए रोटी, भूखा न कोई सो जाए

सुख को बाँटें,हँसे सभी जन, कोई भी न रो पाए।।

दया दान करुणा सेवा से,मिलते दिव्य वरदान है।।

सेवा ही है पूजन अर्चन,सेवा चिंतन ध्यान है।।

 

जरुरतमंदों की सेवा को,अपना सबकुछ अर्पित हो

देश धर्म की रक्षा खातिर, जीवन भी समर्पित हो।।

काम आ सके परहित में जो,वह जीवन महान है

सेवा ही है पूजन अर्चन,सेवा चिंतन ध्यान है।।

-उमेश यादव

पूज्य ऋतंभरा दीदी माँ @Umeshpdadav


*पूज्य ऋतंभरा दीदी माँ*

धर्म संस्कृति की रक्षा को,साध्वी ने अवतार लिया।

पूज्य ऋतंभरा दीदी माँ ने,जगती पर उपकार किया।।

 

मातु पिता ने बाल्यकाल से,परोपकार सिखलाया था।  

युगपुरुष परमानंद गुरु ने, जीवन पथ दिखलाया था।।

कठिन साधना कर दीदी ने,आत्मज्ञान साकार किया।

पूज्य ऋतंभरा दीदी माँ ने,जगती पर उपकार किया।।

 

अथाह सिन्धु करुणा की देवी,मातृ भाव विकसाती हैं।

भाव शून्य हो रहे मनुज पर, स्नेह सुधा बरसातीं हैं।।

दिव्य वाणी से मरू हृदय में, मानवता साकार किया। 

पूज्य ऋतंभरा दीदी माँ ने,जगती पर उपकार किया।।

 

हिंदुत्व हमारी जीवन शैली, दीदी माँ का पैगाम है।

वात्सल्य मूर्ति, करुणा की देवी, बहुमुखी आयाम हैं।।

प्रखर विचारों से माता ने, संस्कृति का प्रचार किया।

पूज्य ऋतंभरा दीदी माँ ने,जगती पर उपकार किया।।

-उमेश यादव


स्नेह प्रेम करुणा की देवी @Umeshpdadav

*साध्वी ऋतंभरा दीदी माँ*

 

स्नेह प्रेम करुणा की देवी,दिव्य कृपा की छांव है।

साध्वी ऋतंभरा दीदी माँ, शत शत तुम्हें प्रणाम है।।बारम्बार प्रणाम है।।

 

ममता की सागर दीदी माँ,सबपर प्यार लुटाती हैं।

हर अनाथ बच्चों को दीदी,स्नेहांचल सुलातीं हैं।।

असहायों की दुनिया अपनी,वात्सल्य शुभ ग्राम है।

साध्वी ऋतंभरा दीदी माँ, शत शत तुम्हें प्रणाम है ।।बारम्बार प्रणाम है।। 

 

कोई शरण में आये दुःख से, आंसू पोछ हंसाती हो।

बन बिछुडों की माता उसकी, दुनिया नयी बसाती हो ।।

हे करुणा की उदधि आपके ,कृपा जगत कल्याण है। 

साध्वी ऋतंभरा दीदी माँ, शत शत तुम्हें प्रणाम है।। बारम्बार प्रणाम है।। 

 

कृपा तुम्हारी पाकर माते,जीवन धन्य हो जाता है ।

नयी दृष्टि नवप्राण सुधारस,मन सुखमय हो जाता है।।

रोम रोम आनंदित होता, आशीष दिव्य ललाम है ।

साध्वी ऋतंभरा दीदी माँ, शत शत तुम्हें प्रणाम है।। बारम्बार प्रणाम है।। 

 

स्नेह प्रेम वात्सल्य की देवी ने भूपर अवतार लिया।

अपना प्यार लुटाकर माते, हम सबपर उपकार किया।।

मातृभाव विस्तार किया माँ,वात्सल्य सुखधाम है।  

साध्वी ऋतंभरा दीदी माँ, शत शत तुम्हें प्रणाम है।। बारम्बार प्रणाम है।। 

-उमेश यादव


शिवस्वरुप श्री नीलकंठ @Umeshpdadav


शिवस्वरुप श्री नीलकंठ

दिव्य मनोहर सुन्दर नभचर,शिव दर्शन मनभावन है।

शिवस्वरुप श्री नीलकंठ का, शुभदर्शन अति पावन है।।

 

रावण वध से पूर्व राम ने,शिवशंकर आह्वान किया।

नीलकंठ बन शिव शम्भू ने, दर्शन दे वरदान दिया।।

श्रीराम और शिवशंकर का, पुनः आज आवाहन है।

शिवस्वरुप श्री नीलकंठ का, शुभदर्शन अति पावन है।।

 

विजयादशमी पर्व मना था, दशकंधर तब हारा था।

अनीति अधर्म अहंकार को, श्रीराम ने  मारा था।।

रामराज्य के स्थापना का, दिवस आज सुहावन है।

शिवस्वरुप श्री नीलकंठ का, शुभदर्शन अति पावन है।।

 

मंगलकारी शिव दर्शन से, पाप ताप मिट जाते है।

विषपायी प्रभु नीलकंठ, जग के संताप मिटाते हैं।।

श्रीराम शिव के दर्शन से, मन बनता वृन्दावन है।

शिवस्वरुप श्री नीलकंठ का, शुभदर्शन अति पावन है।।

-उमेश यादव, हरिद्वार


प्रगति चक्र वाहक नारी @Umeshpdadav


प्रगति चक्र वाहक नारी

प्रगति चक्र वाहक हैं नारी, कीर्तिमान भी गढ़ सकती हैं।

मर्यादा में रहकर नारी, लक्ष्य शिखर पर चढ़ सकती हैं।।

 

अबला नहीं सबल हैं नारी, जगती की पोषक पालक हैं। 

अपनी शक्ति से विवेक से, अपने कुनबे की चालक हैं।।

सतत प्रयास करके नारी, सुसंस्कृत संतति गढ़ सकती हैं। 

मर्यादा में रहकर नारी, लक्ष्य शिखर पर चढ़ सकती हैं।।

 

तीन पहिये की बात है पीछे, फाइटर जेट उड़ाती हैं ये।

रण भूमि में नर से आगे, रणचंडी बन छाती हैं ये।।

दुश्मन भी थर्रा जाए वह, रण कौशल भी कर सकती हैं।

मर्यादा में रहकर नारी, लक्ष्य शिखर पर चढ़ सकती हैं।।

 

स्वयं शील में रहकर अपने, बच्चों को संस्कारित करती।

श्रमशीलता मंत्र अपना कर,अपनों में श्रम का गुण भरती।।

देश धर्म संस्कृति की खातिर, अहर्निश सेवा में रहती हैं।

मर्यादा में रहकर नारी, लक्ष्य शिखर पर चढ़ सकती हैं।।

 

मातृ रूप में जगजननी हैं, महाकाली  हैं शक्ति रूप में। 

बुद्धि विवेक गायत्री माता, मनुज मात्र में भक्ति रूप में।

राष्ट्र धर्म निभाना हो तो, राष्ट्राध्यक्ष भी बन सकती  हैं।

मर्यादा में रहकर नारी, लक्ष्य शिखर पर चढ़ सकती हैं।।

-उमेश यादव


राम रावणी दोष गुणों का @Umeshpdadav

*राम रावणी दोष गुणों का*

राम रावणी दोष गुणों का,मन में रहे निवास

छोड़ें दुर्गुण और गुणों का, करते रहें विकास।।

 

रामचरितमानस बतलाता,मन को श्रेष्ठ बनाएं

वध करना है अहंकार का, उर में राम बसायें।।

मन में जो रावण पलता है, उसका करें विनाश

छोड़ें दुर्गुण और गुणों का, करते रहें विकास।।

 

स्वार्थ लोभ मद मोह क्रोध सब रावणी दुर्गुण हैं

घृणा द्वेष भय मत्सर इर्ष्या, ये सारे अवगुण हैं।।

सेवाभाव सदाचारी मन, बिखराते दिव्य प्रकाश

छोड़ें दुर्गुण और गुणों का, करते रहें विकास।।

 

अहंकार के रावण ने, मन को ऐसा भड़काया

अपने भी हो गए वीराने,लेकिन समझ न आया।।

दम्भी खुद को ज्ञानी समझा,कुल का किया विनाश

छोड़ें दुर्गुण और गुणों का, करते रहें विकास।।

 

कर्मों का फल उसे पता था,पर कुकर्म ना छोड़ा

अधर्म अनीति अन्यायों से, उसने मुंह न मोड़ा।।

कर्मों का फल मिलता ही है, मिलता है भवपाश

छोड़ें दुर्गुण और गुणों का, करते रहें विकास।।

-उमेश यादव


मत हो निराश ओ मानव @Umeshpdadav


मत हो निराश ओ मानव

मत हो निराश ओ मानव तू संघर्षों से मत घबरा जाना

मत हो हताश ओ मानव तू, है शेष अभी मंजिल पाना।।

 

सीखो तुम उस खग से जो,तिनकों से नीड़ बनाता है

बीन बीन कर मेहनत से, सपनों का गेह सजाता है।।

बस एक तुफान के आने से हो जाता नष्ट आशियाना

मत हो हताश ओ मानव तू, है शेष अभी मंजिल पाना।।

 

कुछ पल होता है उदास फिर,मन में नव साहस भरता 

पता नहीं किसके कहने से दृढ़ निश्चय फिर से करता।।

संकल्प और इच्छाशक्ति से, नया नीड़ फिर बन जाना

मत हो हताश ओ मानव तू, है शेष अभी मंजिल पाना।।

 

मंजिल तुम्हें मिलेगी निश्चित,श्रम के आराधक बन जाओ

आसमान से ऊपर उठकर, मिले लक्ष्य साधक बन जाओ।।

साहस और उत्साह जगाकर, कठिन लक्ष्य तक है जाना

मत हो हताश ओ मानव तू, है शेष अभी मंजिल पाना।।

उमेश यादव 22-11-22

सोमवार, 5 दिसंबर 2022

पूज्य गुरुदेव चालीसा

 पूज्य गुरुदेव चालीसा 

हे युगऋषि हे तपोनिष्ठ,हे वेदमूर्ति  श्रीराम। 

युग के विश्वामित्र तुम्हें, कोटि कोटि प्रणाम।।  

श्री गुर मातु सहाय हो, कृपा करो प्रभु आज। 

शक्ति भक्ति सामर्थ्य दो, सफल करो सब काज।। 

जय श्रीराम जगत हितकारी। 

जय गुरुवर जग मंगलकारी।।1

आँवलखेड़ा जन्म तुम्हारा। 

हर्षित हुआ जगत यह सारा।।2 

रुपकिशोर दानकुंवरि के जाए।

युगद्रष्टा श्री राम कहाए।3 

तप:पूत अलौकिक ज्ञाना। 

वेदमूर्ति प्रभु कृपा निधाना।।4

गुरुवर ब्रह्मा विष्णु महेशा। 

गुरु पारस सुरतरु सर्वेशा।।5 

गुरु ईश् दोउ साथ हैं स्वामी। 

परम प्रतापी अंतरयामी।। 6

कर लेखनी सोहत छवि न्यारी।

ज्ञान यज्ञ कर दिशा संवारी ।।7

ले अवतार धरा पर आये। 

विचार क्रांति के दीप जलाये।।8

राष्ट्र के हित सैनिक बन धाये। 

देशभक्त गुरु  मत्त कहाए।।9 

निज गुरुवर से आज्ञा पाकर।

तपे स्वयं हिमालय जाकर।।10

ऋषियों मुनियों के काज सँवारे। 

दुर्विचार  जग से  संहारे।।11

सूक्ष्मीकरण गुरुवर ने साधा।

महाकाल भये काल को बांधा।।12

कुण्डलिनी से भवभूत हुए हैं।

ऋषि मुनियों के दूत बने हैं।।13

यज्ञ पिता गायत्री माता। 

जोड़ा इनसे जग का नाता।।14

युग निर्माण का विगुल बजाया।

विचारक्रान्ति अभियान चलाया।।15

संस्कारों से जीवन सींचा। 

कुरीति पंक से बाहर खींचा।।16

वेद पुराण उपनिषद सारे। 

नव स्वर में जग ने उच्चारे।।17

एक पिता के हैं सब जाए। 

आत्म भाव सबमें विकसाए।।18

मानव मात्र समान बताया।

जाति वंश का भेद मिटाया।।19 

जय श्रीराम सकल दुख हारी।

माँ भगवती सर्व सुख दातारी।।20

सहधर्मिणी  भगवती  माई।

सबकी माताजी कहलाई।।21

कोटि कोटि पुत्रों की माता।

वंदनीया माँ जग विख्याता।।22 

गायत्री परिवार बनाया।

प्राणी मात्र से स्नेह सिखाया।।23

स्वयं तपे तपना सिखलाया।

युग परिवर्तन कर दिखलाया।।24 

नारी जागृति शंख बजाया। 

नारी शक्ति का मान बढाया।।25

मानव में देवत्व जगाये। 

धरा धाम को स्वर्ग बनाये।।26

गुरुरूप ईश्वर अवतारी।

दिए ज्ञान मेटे अंधियारी।27 

गुरु के कृपा मुक्त संसारा।

गुरु श्रद्धा भवसिन्धु पारा।।28

घर घर अलख जगाये जग में।

ज्ञान दीप ज्योतित की मग में।29

यज्ञ योग परमार्थ सिखाये। 

जप तप ध्यान मर्म बताये।।30

सादगी पूर्ण संयमित जीवन।  

उच्च विचार श्रेष्ठ मनभावन।।31  

आर्ष ग्रन्थ परिभाषित कीन्हा।

मनुज हेतु सुगम कर दीन्हा।।32

दुष्ट ह्रदय सदय कर दीन्हा। 

दीन हीन शरण निज लीन्हा।।33

शरण तुम्हारे जो भी आया। 

स्नेह प्यार दे कष्ट मिटाया।।34

धर्म कर्म का मर्म बताया। 

परहित में जीना सिखलाया।।35

वैज्ञानिक अध्यात्म पढ़ाया।

समझदार इंसान बनाया।।36

राष्ट्र जागरण यज्ञ प्रचारा।

जन जागृति के हित हुंकारा।।37

संयम सेवा पाठ पढाये।

तपोमूर्ति तपना सिखलाये।।38

शांतिकुंज युग तीर्थ बनाया। 

ज्ञानामृत का पान कराया।।39

नमों नमो गुरुवर के चरना। 

नमो नमो दुःख संकट हरना।।40

बुद्धि विनय विवेक गुरु, ध्यान ज्ञान सत्संग।

शिष्य हृदय निवास करो, मातु भगवती संग।।

-उमेश यादव


वेद पुराण जन जन ने गाये।

अखंड ज्योति जग में फैलाए।।33

धर्म चेतना जागृत कीन्हा।

देव संस्कृति जग को दीन्हा।।40

विचार क्रान्ति का बिगुल बजाया।

युग द्रष्टा ने  अलख जगाया।।41

उजरियाव की जगरानी

 *उजरियाव की जगरानी*

याद करें इतिहास हम उनकी,जिन ने दी कुर्बानी थी।।

उजरियाव की उदा पासी, खूब लड़ी जगरानी थी।।


सन उन्नीस सौ सनतावन, फिरंगियों से समर हुआ

वीरांगनाओं का सैनिक संग, युद्ध बड़ा ही प्रखर हुआ।।

गरीब दलित भारत की बेटी, वीरांगना बलिदानी थी

उजरियाव की उदा पासी, खूब लड़ी जगरानी थी।।

 

ब्रिटिश हुकूमत रियासतों पर,अपना धौंस जमाती थी

अधीनस्थ कर राजाओं से, मालगुजारी पाती थी।।

तरह तरह के हथकंडे कर, कब्ज़ा उन्हें जमानी थी

उजरियाव की उदा पासी, खूब लड़ी जगरानी थी।।

 

लखनऊ के नवाब शाह ने,राष्ट्रहित आचरण किया

फिरंगियों से लोहा लेने, सिपाहियों को शरण दिया।।

ब्रिटिश हुकूमत की चालाकी, वाजिद ने पहचानी थी

उजरियाव की उदा पासी, खूब लड़ी जगरानी थी।।

 

वाजिद अली शाह महल में, उदा की तैनाती थी

मक्का पासी की देवी को युद्धकला भी आती थी।।

बेगम हजरत ने उदा की बुद्धि बल पहचानी थी

उजरियाव की उदा पासी, खूब लड़ी जगरानी थी।।

 

हेनरी लारेंस के नेतृत्व में अंग्रेजी फौजें हारी थी

शहीद हुए मक्का पासी,ब्रिटिश फौज हत्यारी थी।।

पति के लाश पर उदा ने, प्रतिशोध की ठानी थी

उजरियाव की उदा पासी, खूब लड़ी जगरानी थी।।

 

चिनहट वाला हार का बदला,फिरंगियों को लेनी था।।

सिकंदर बाग़ में शरण लिए,अपनी विद्रोही सेना थी

हमला किया सोये सैनिक पर,कायरों की निशानी थी

उजरियाव की उदा पासी, खूब लड़ी जगरानी थी।।

  

पुरुष वेश पहनी उदा ने, गोला बारूद साथ लिए

पीपल पेड़ चढ़ी थी देवी, बन्दुक गोली हाथ लिए।।

दुर्गा बनकर टूट पड़ी थी,अद्भुत वीर बलिदानी थी

उजरियाव की उदा पासी, खूब लड़ी जगरानी थी।।

 

चुन चुन कर लगी मारने,ज्यों चंडी अवतार हुआ

अंग्रेजी सेना समझ न पायी,था अदृश्य प्रहार हुआ।।

अंतिम गोली तक वो लड़ी थी,अंत में दी कुर्बानी थी

उजरियाव की उदा पासी, खूब लड़ी जगरानी थी।।

 

गोली खाकर हुई छलनी वो, बहादुर सेनानी थी

शौर्य और साहस की देवी,हुई शहीद मस्तानी थी।।     

कालिंग कैम्पल काँप गया उदा को दी सलामी थी

उजरियाव की उदा पासी, खूब लड़ी जगरानी थी।।

उमेश यादव

शनिवार, 3 दिसंबर 2022

दिव्य अलौकिक जीजी आपका बहुमुखी आयाम है :- श्रद्धेया जीजी | Geeta Jayanti...

प्रियदर्शिनी शैल जीजी  

 

दिव्य अलौकिक जीजी आपका, बहुमुखी आयाम है।

प्रियदर्शिनी शैलजीजी को, बारम्बार प्रणाम है।।  शत शत तुम्हें प्रणाम है।।

 

है व्यक्तित्व अनोखा जीजी, सबपर प्यार लुटातीं हैं।

भटक रही मनुजता को दी,चलना तुम्हीं सिखाती हैं।।

विचार क्रान्ति के संवाहक को,श्रद्धा सहित प्रणाम है।

प्रियदर्शिनी शैलजीजी को, बारम्बार प्रणाम है।।शत शत तुम्हें प्रणाम है।।

 

नयी पीढियां गढ़ने जीजी, अद्भुत क्रान्ति कर डाली हैं।

माँ बहने संस्कारित होकर, कोख दिव्यता पाली हैं।।

संस्कारी संतानों से बनता, चरित्रवान इंसान है।

प्रियदर्शिनी शैलजीजी को, बारम्बार प्रणाम है।।शत शत तुम्हें प्रणाम है।।

 

नारी जागृति अभियानों से, अबला भी बलवान हुईं।

व्यसन मुक्ति से स्वस्थ हुए तन,कुरीतियाँ निष्प्राण हुईं।।

सत्य सनातन संस्कारों से, जन जन का कल्याण है।

प्रियदर्शिनी शैलजीजी को, बारम्बार प्रणाम है।।शत शत तुम्हें प्रणाम है।।

 

शिक्षा स्वास्थ्य साधना से,  मानव मात्र निहाल हुआ।।

पर्यावरण रक्षण अभियान से,हर प्राणी खुशहाल हुआ।।

सप्त क्रान्ति को गतिमान कर, करती नव निर्माण है।

प्रियदर्शिनी शैलजीजी को, बारम्बार प्रणाम है।।शत शत तुम्हें प्रणाम है।।

 

अखंड ज्योति के स्नेहदीप से,युगप्रवाह जग में पहुंचाया।

अश्वमेध से दिग्दिगंत तक, देव संस्कृति बिगुल बजाया।।

धर्म संस्कृति ध्वजवाहक को कोटि कोटि प्रणाम है।

प्रियदर्शिनी शैलजीजी को, बारम्बार प्रणाम है।।शत शत तुम्हें प्रणाम है।।

 

कोटि कोटि गायत्री जन को,स्नेह सूत्र से जोड़ा है।

युवा वर्ग को नयी दिशा दे, सृजन राह में मोड़ा है।।

आधी आबादी को दीदी, दिया संजीवनी दान है।

प्रियदर्शिनी शैलजीजी को, बारम्बार प्रणाम है।। शत शत तुम्हें प्रणाम है।।

 

घर घर गंगाजल पहुंचाकर,घर को तीर्थ बनाया है।

हर चौके बलिवैश्व कराकर, यज्ञ भाव विकसाया है।।

नवयुग भू पर लाने वाली, शक्ति तुम्हें प्रणाम है।

प्रियदर्शिनी शैलजीजी को, बारम्बार प्रणाम है।। शत शत तुम्हें प्रणाम है।।

-उमेश यादव