*सेवा*
सेवा
ही है पूजन अर्चन,सेवा चिंतन ध्यान है।
सेवा
धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है, सेवा से कल्याण है।।
धर्म
और संस्कार हमारे, जीवन के आधार हैं।
वसुधा
पर आवास हमारा,हर प्राणी परिवार है।।
सेवा
से मिलते हैं भगवन, सेवा गंग स्नान है।
सेवा
ही है पूजन अर्चन,सेवा चिंतन ध्यान है।।
परहित
में जीना मरना ही सौभाग्य कहाता है।
सद्विचार
सद्कर्म हमारे सुख सौभाग्य जगाता है।।
सेवा
से ही मोक्ष प्राप्ति है,सेवा से ब्रह्मज्ञान है।
सेवा
ही है पूजन अर्चन,सेवा चिंतन ध्यान है।।
मिल
बाँट कर खाए रोटी, भूखा न कोई सो जाए।
सुख
को बाँटें,हँसे सभी जन, कोई भी न रो पाए।।
दया
दान करुणा सेवा से,मिलते दिव्य वरदान है।।
सेवा
ही है पूजन अर्चन,सेवा चिंतन ध्यान है।।
जरुरतमंदों
की सेवा को,अपना सबकुछ अर्पित हो।
देश
धर्म की रक्षा खातिर, जीवन भी समर्पित हो।।
काम
आ सके परहित में जो,वह जीवन महान है।
सेवा
ही है पूजन अर्चन,सेवा चिंतन ध्यान है।।
-उमेश
यादव
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