*कबीरवाणी
क्रोध*
1. गुस्से से
तन मन जरै, गुस्सा खून जराय।
बिन विचारे क्रोध(रोष)करै, वो पाछे पछताय।।.. कबीरा वो पाछे पछताय
2. पलभर
गुस्से से मिटै, भरा पूरा
परिवार।
गुस्सा कभी न कीजिये,ये है परम विकार।।.. कबीरा ये है परम विकार
3. रोष को
अंकुश डारिये,कहीं बहक
ना जाए।
क्रोध जहाँ पर भी भयो,चाबुक हाथ चलाय।।
4. क्रोध कभी
मन में उठै, बाहर घूमिके आयें।
ठंडा पानी पीजिये,
तनिक
मौन होई जाएँ।।
5. मन चाहा
नहीं होत जब, काहे खून
जराय।
मन को ही समझाइये,क्रोध कभी न आये।।
6. अपनों से न
गुस्साइये, सहें मौन अपनाय।।
रिश्तों में नरमी बढे, सुख
सम्पति मिल जाय।।
7. मति मरि
जाती क्रोध में,रहत नहीं
विवेक।
मुरख नर हैं वो ही जो,क्रोध में निर्णय लेत।।
8. जब कबहूँ
गुस्सा उठे,कर शीतल जल
पान।
पेट ठठाकर हंस लियो,करो नया कुछ गान।।
9. क्रोध के
फल जानिये,कबहूँ न
मीठा होय।
हानि लाभ विचारिये, गुस्सा करिहैं तोय।।
10. क्रोध
कबहूँ न कीजिये,क्रोध नीच
व्यवहार।
क्रोध से पहिले सोचिये, क्रोध नरक के द्वार।।
11. मनवा जब
गुस्सा करे,स्वयं अहित
होई जाय।
तन हो मन हो खोखली,
फिर
पाछे पछताय।।
12. सही गलत ना
समझ सके,जौं गुस्से
में होय।
गुस्सा पहिले थूकिये,सब
कुछ अच्छा होय।।
13. क्रोध जहां वहां काल है, क्रोध न कीजै आप।
सर्वनाश
का मूल है, असमय क्रोध का पाप।।
14. शीतल छांव मिले जहाँ, हो संतन के वास।
जहाँ
क्रोध की आग है,शांति नहीं है पास।।
15. सतसंगत में बैठिये, तजिये क्रोध विकार।
अहंकार
मत पालिए, खुद का हो उद्धार।।
16. क्रोध व आंधी एक है, करत बहुत नुक्सान।
समझै
जब पल बीतती, होवै कितनी हानि।।
17. आंधर समझो क्रोधी को, दीखे नाहीं सांच।
क्रोधीन
से अज्ञानी भले,चाहे गिनती पांच।।
18. क्रोध ध्वंस सामान है,यही व्याधि का द्वार।
पागलपन
है क्रोध ये,है घटिया कुविचार।।
19. बुद्धि ज्ञान के दीप को,क्रोध देत बुझाय।
माचिस
तिली जैसो ये,जले और जलाय।।
20. क्रोध कबहूँ ना कीजिये, क्रोध ठेस पहुंचाय।
दुःख
औरन को होत है,शर्म स्वयं को आये।।
21. क्रोध एक जलयान है, डूबै बीच उफान।
समझदार
इंसान भी,भँवर में देवत प्राण।।
22. आग सामान लपेट है,ज्वाला धधकत जाय।
अंत
भला न क्रोध का,बचे तो केवल छाय।।
23. गुस्से से गर मीत है,समझो दुश्मन जीत।
तजिये
तुरत क्रोध को,कबहूँ न क्रोध से प्रीत।।
24. अपनी गलती होये जब,बढ़के गलती मान।
सच
न खुद को बोलिए,बचल रहै सम्मान।।
25. गलती से गुस्सा बढे,रोष में गलती होय।
एक
दूजे से दोस्ती,वीर बचै इन दोय।।
26. घाटे का
सौदा सदा,कबहूँ न कीजै मोल।
बिना क्रोध के बोलिए,वाणी दीजिये तौल।।
27. गुस्साने
का हक़ नहीं,अगर गलत हो आप।
ना चीखिये चिल्लाइये, बढ़ते जाते संताप।।
28. क्रोधित
मानुष है अगर,वाणी रक्खो मौन।
बुद्धि विवेक न होत है,तुम्हें सम्हाले कौन।।
29. क्रोध मनुज
का शत्रु है,वश में राखो रोष।
प्रगति में बाधक सदा,इससे बड़ा न दोष।।
30. क्रोध से
टूटे काम का,कोई नहीं जुगाड़।
बने बनाए काम को,पल में देत बिगाड़।।
31. क्रोध घृणित
गुनाह है,यह है केवल पाप।
खुद को ही यह श्राप है,केवल पश्चाताप।।
32. दया धर्म
से दूर करै, क्रोध पतन की राह
क्रोधी से अनपढ़ भले,होत प्रेम की चाह
33. मन में
गुस्सा होय जो,सौ तक गिने आप।
गुस्सा जो हद से बढै,बोलै सो बड पाप।।
34. जीत उसी की
होत है,मौन जो करते घात।
क्रोध दिलाये आपको, समझो हारे आप।।
35. क्रोध सजा
ना देत है,सजा क्रोध से पाय।
तनिक रुकिये क्रोध में,सबसे बड़ा उपाय।।
36. क्रोधाग्नि
से जल रहै,मानुष घर परिवार।
शीतल साधू संगती, हरै क्रोध विकार।।
37. क्रोध हमारा
अस्त्र है,हम पर करता वार।
पालन जो उसका करे,उसपर करै प्रहार।।
38. 10 तक
गिनती गिनिये,100 तक रहिये मौन।
उठकर पानी पीजिये,क्रोध को कीजिये गौण।।
39. दिनभर काम
से जो थकें,पल में थकते आप।
बस थोडा सा क्रोध से, होते विचलित आप।।
40. दिशा क्रोध
को दीजिये,रखिये मन में आग।
क्रोध के शुभ संबोध से, चमके तेरे भाग।।
41. क्रोध के
परिजन बहुत हैं,चलते उनके साथ।
इर्ष्या द्वेष छल दंभ भी,करते दो दो हाथ।।
उमेश यादव