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गुरुवार, 27 जनवरी 2022

हम कथा सुनाते शातिकुन्ज युगधाम

 

*हम कथा सुनाते शातिकुन्ज युगधाम*

ॐ श्री महा गनाधिपतये नमः।

ॐ श्री उमामहेश्वराभ्याम नमः।।

परम पूज्य गुरुदेव के,पद  पंकज सिर नाय।

सुमिरे मातु भगवती,हमपर होहिं सहाय।।

माँ गायत्री वंदना, करते बारम्बार।

गुरुजन,परिजन,विज्ञजन नमन करो स्वीकार।। 

हम कथा सुनाते शांतिकुंज युग धाम की।

हम कथा सुनाते शांतिकुंज युग धाम की।।

ये कर्मभूमि है इस युग के श्री राम की।

जम्बुद्वीपे, भरत खंडे, आर्यावर्ते, भारतवर्षे।

एक नगरी है हरिद्वार शांतिकुंज नाम की।।

यही कर्मभूमि है परम पूज्य श्री राम की।

हम कथा सुनाते गुरुवर पूज्य ललाम की।।

ये कर्मभूमि है इस युग के श्री राम की।

ये कर्मभूमि है  वेद मूर्ति श्री राम की।।

ईश्वर भक्त ब्राह्मण पुण्यात्मा।रूपकिशोर पण्डित धर्मात्मा।।

भागवत कथा यज्ञ करवाये।धर्म कर्म का शुभ फल पाये।।

द्विज घर जन्मे राम हमारा।दानकुंवरी सूत जगत आधारा।।

ध्यान यज्ञ सेवा शुभ कामा।अछूत उद्धार दीनन को थामा।। 

गुरु मालवीय के गुरुकुल जाके।गुरु मंत्र दीक्षा तब पाके।।

पूरण हुई दीक्षा,गुरुवर पूज्य श्रीराम की।

हम कथा सुनाते,शांतिकुंज युग धाम की।

ये कर्मभूमि है इस युग के श्री राम की।।

ब्रह्म तेज प्रखर साधना,देशभक्ति के रंग।

स्वाधीनता संग्राम लडे,रण बांकुरों  संग।।

सर्वेश्वरानंद ऋषि आये।बहु जन्मों के दृश्य दिखाए।।

तप कठिन ऋषि ने करवाए।तपोनिष्ठ श्रीराम कहाए।।

ऋषि सर्वेश्वरानंद संग, हिमगिरी गए श्रीराम।

ऋषि मुनि से शुभ मिलन कर,गुरु पहुंचे गुरु धाम।।

शांतिकुंज उत्सव है भारी,शांतिकुंज उत्सव है भारी।

नव युग का निर्माण करेंगे, गुरुवर अवतारी।।

शांतिकुंज उत्सव है भारी।

पूज्य गुरुवर का प्रण है,नवयुग के निर्माण की।

आओ जय जयकार करे युग ऋषि पूज्य श्रीराम की।।

सब ऋषियों की एक ही बात।नवयुग का अब हो शुरुआत।।

श्रीराम प्रज्ञा  के अवतार।निज गुरु की आज्ञा सिरधार।।

सहज भाव से प्रण गुरु कीन्हा।गुरु कार्य सर माथे लीन्हा।।

पर हित सबसे श्रेष्ठ धर्म हैदुःख बंटाना श्रेष्ट कर्म है।।

गुरुवरवर का प्रण,नवयुग के निर्माण की।।

हम कथा सुनाते, शांतिकुंज युग धाम की।।

ये कर्मभूमि है इस युग के श्री राम की।।

भ्रम व भय से मुक्त कराया।नारी को सम्मान दिलाया।।

धर्म संस्कृति की रक्षा को।घर घर में जा अलख जगाया।।

कल्प-साधना, नारी-जागृति, चान्द्रायण।

सूक्ष्मी-करण राष्ट्र-जागरण,ब्रह्मवर्चस निर्माण।।

ज्ञान ज्योति अखंड जलायाविचार क्रांति का विगुल बजाया।।

बहु विस्तार मिशन ने पायासुख शांति घर घर पहुंचाया।।

काल चक्र के घटना क्रम में,ऐसा चक्र चलाया।

शांतिकुंज आश्रम में फिर,एक विपदा आया।।

कुञ्ज में ऐसा, ऐसा इक दिन आया।

एक दुष्ट पापी ने गुरु को,गहरा घात लगाया।।

कुञ्ज में ऐसा, ऐसा इक दिन आया।

चल पड़े मनुज जब छोड़ कर,धर्म नीति न्याय को।

पाषाण हो जाए ह्रदय,करने लगे अन्याय वो।।

रुधिर पायी भाव से यह,मनुज करुणा हीन है

बुद्धि विवेक नीति त्यागे,मनुज भी अति दीन है।।

आधि व्याधि से त्रसित विश्व हैरोग शोक से ग्रसित विश्व है 

मानवता को खो बैठे हम,सभ्य समाज के वासी।

तभी ज्ञान का दीप दिखाया,गुरु गृहस्थ  सन्यासी।।

उन गुरु परम उदार का,श्री राम  शुभ नाम।

वेदमूर्ति गुरु  तपोनिष्ठ ने,कर दिए अद्भुत काम।।

जग में ज्ञान क्रान्ति फैलाए।सबको मानवता सिखलाये।।

मनुष्य में देवत्व का जागरण और धरती पर स्वर्ग जैसे वातावरण बनाने वाला समय अब बहुत ही निकट है।युग परिवर्तन में चिंतन आचरण और व्यवहार के सभी पक्षों का आमूलचूल परिवर्तन होगा।शान्तिकुञ्ज व्यक्तित्व गढ़ने की टकसाल है।जाति, संप्रदाय, धर्म, पंथ आदि संकीर्णताओं से ऊपर उठकर लोगों को यह जीवन जीने की कला सिखाता है।उन्हें आत्मवादी जीवन जीने की प्रेरणा देता है। हर धर्म-वर्ग के लोग यहाँ आकर साधना करते हैं, शिक्षण लेते हैं।यहाँ शरीर, मन व अंत:करण को स्वस्थ, समुन्नत बनाने के लिए अद्वितीय अनुकूल वातावरण, मार्गदर्शन एवं शक्ति-अनुदान मिलते हैं।शान्तिकुञ्ज व्यक्ति को अंध विश्वास, मूढ़मान्यता, भाग्यवाद आदि से उठकर कर्मवादी बनने की प्रेरणा देता है।शान्तिकुञ्ज प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुरुप सयुंक्त परिवारों के प्रचलन को प्रोत्साहित करने वाला आदर्श केन्द्र है। शान्तिकुञ्ज सेवा और परोपकार की भावना को प्रोत्साहित करता है।गायत्री चेतना (युगचेतना) का विश्वयापी विस्तार यहाँ से हो रहा है। यहाँ के शिक्षण में धर्म विज्ञान का समन्वय है

सजल श्रद्धा है जहाँ, प्रखर प्रज्ञा है जहाँ,गुरु के चरण में सहज सुख पाते है।

ऋषि मुनियों का वास,देवी देवता निवास,तीर्थ शांतिकुंज में, अनंत शांति पाते है।।

कष्टों में पड़े हैं जो भी, दुःख में अड़े हैं जो भी,दीप दर्शन कर, गहन शांति पाते हैं

गंगा माता की शरण,माँ गायत्री के चरण,गुरुजी के ध्यान से अनंत शक्ति पाते हैं।।

नित्य यज्ञ होता यहाँ,नित्य जप होता यहाँ,साधकों के मन से कलुष मिट जाते हैं

राष्ट्र के पुरोहित हैं हम,संस्कृति दूत हैं हम,घर घर जाकर हम तो संस्कृति बचाते है।। 

रोम रोम पुलकित हो जाता।सिद्ध तीर्थ में जो कोई आता।।

कोटि कोटि के भाग्य सँवारे।हे श्री राम हम शिष्य तुम्हारे।।

जन जन का पावन गुरुद्वारा।शांतिकुंज युग तीर्थ हमारा।।

-उमेश यादव

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