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गुरुवार, 27 जनवरी 2022

भारत माता की वेदना

 

*भारत माता की वेदना*

कोटि कोटि संतानें सुनलो, अपनी व्यथा सुनाती हूँ।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ।।

 

अनगिन पुत्रों के शीश कटे, तब ही आजादी पाई थी।

सिसकी थी कितनी संतानें,मैं भी तब अकुलाई थी।।

आजादी में साँसे ली जब, तब की बात सुनाती हूँ।।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ ।।

 

अब भी सरहद पर मेरे पुत्रों के,रक्त से आँचल रंगतीं हैं।

अब भी सड़कों पर मेरी बिटिया, चलने से भी डरती हैं।।

अब भी दहेज़ और भ्रूण हत्या से,अश्रु बहुत बहाती हूँ।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ ।।

 

सबका भूख मिटाने वाले,बोलो क्यों भूखे सो जाते हैं।

निज हाथों महल बनाने वाले,रहने को छांव न पाते हैं।।

नहीं सामान क्यों पुत्र हैं मेरे, मैं भेद नहीं अपनाती हूँ।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ मैं।।

 

मेरी माटी का अन्न खाकर,क्यों मेरे सा व्यवहार नहीं।

भ्रष्ट हुआ क्यों तेरा चिंतन,क्यों तेरा श्रेष्ठ विचार नहीं।।

माँ से ही गद्दारी करते हो, मैं इससे ही शर्माती हूँ ।

मुझसे ही गद्दारी करते  हो बस मैं इससे शर्माती हूँ।

 

सबकुछ दिया है मैने तुझको,फिर भी मुझे सताते हो।

मेरी ही रोटी खाकर क्यों तुम, औरों की जय गाते हो।

मुझे मां समझे मेरे बच्चे, मैं इतनी आस जगाती हूं।

मैं मातृभूमि हूं माता तेरी, क्यूं तुम्हें समझा न पाती हूं।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ ।।

उमेश यादव, शान्तिकुंज हरिद्वार।

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