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बुधवार, 30 नवंबर 2022

जन्मदिवस पर आज*

 *जन्मदिवस पर आज*

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।

जीवन का हर क्षण हो सुखमय,हो हर पल सुखदाई।।

बधाई बधाई, हो बधाई बधाई।। 


रहो सदा आनंदित होकर,मंजिल अपनी पाओ।

मुस्कानों की कलियों को तुम,पुष्पों सा विहंसाओ।।

सुरभित रहे दशों दिशाएं,हो ना कोई कठिनाई।

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।


मंगलमय शुभ संकल्पों से, भरा हो तेरा जीवन।

शुभ कर्मों के पुष्प खिले हों,हर्ष भरा हो चितवन।।

सुयश कीर्ति विस्तृत हो जैसे, संध्या की परछाई। 

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।


हो चिरंजीव,हो शतंजीव, हो परहितमय जीवन। 

परिजन सखा सुखी रहें,हो खुशियों का आँगन।। 

मातु पिता गुरुजन तेरे हों, आजीवन वरदाई।

जन्मदिवस पर आज सभी,देते हैं तुम्हें बधाई।।


सद्गुण की सुरभि से महके,जीवन का ये उपवन।

हो महानता ऐसा जैसे,चमके रवि का रश्मि कण।।

अखिल विश्व का कण कण हो, तेरे हित सुखदाई। 

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।

-उमेश यादव –

हे गणपति तेरी जय हो, जय हो

  *हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।*
*कष्ट निवारक,विघ्न विनाशक।*
*एक दन्त हे असुर संहारक।।*
*लम्बोदर तेरी जय हो, जय हो।*
*हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।।*
*मंगल मूर्ति , हे गजानन।*
*शिव गौरी के हो तुम आनंद।*
*सुखकर्ता तेरी जय हो, जय हो।*
*हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।।*
*हे भालचंद्र ,हे बुद्धिनाथ प्रभु।*
*दुखियों के तुम सदा साथ प्रभु।।*
*सिद्धि दायक तेरी जय हो, जय हो।*
*हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।।*
*जगती का तुम ताप हरो अब।*
*कार्य सभी के सफल करो सब।।*
*वक्रतुंड तेरी जय हो, जय हो।*
*हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।।*
*प्राणिमात्र सब विलख रहे है।*
*बुद्धिहीन बन भटक रहे है।।*
*बुद्धि विधाता जय हो, जय हो।*
*हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।।*
*हे कृपाकर कृपा करो अब।*
*नवयुग का उद्घोष करो अब।।*
*श्री गणेश तेरी जय हो, जय हो।*
*हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।।*
--उमेश यादव
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सरफ़रोशी की तमन्ना

 सरफ़रोशी की तमन्ना

सरफ़रोशी की  तमन्ना, दिल में  भरकर आगे आओ।  

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।। 


आजादी है पाई किन्तु, अब भी बंधन में पड़े हुए हैं।

फिरंगियों से हुए स्वतंत्र पर,फिरंगियत से जुड़े हुए हैं।।

राष्ट्र धर्म को संबल देने, राष्ट्रभक्त अब आगे आओ।

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।। 

 

हंस हंस कर बलि हो वीरों ने, क्रांति का पैगाम दिया।

सीने में गोली खाकर भी, आजादी को अंजाम दिया।। 

इन्कलाब का नारा दे फिर, राष्ट्र प्रेमियों कदम बढ़ाओ।

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।। 


आजादी के लिए भगत ने, हँसकर फांसी चूमा था।

सुकदेव राजगुरु के मत से ये,देश ही पूरा झूमा था।। 

सुखी सम्मुनत राष्ट्र बनाने,हे वीरों अब शौर्य दिखाओ।

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।। 


प्रगति के  बाधक तत्वों  को, रौंद हमें आगे बढ़ना है।

सोने की चिड़िया वाला ये, देश हमें फिर से गढ़ना है।। 

बलिदानों को याद करें सब,पुन: देश हित जोश जगाओ।

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।

–उमेश यादव

आन-बान और शान है झंडा

 राष्ट्र ध्वज है शान हमारा, यह प्राणों से प्यारा है।.जीना मरना तेरे हित है,यह संकल्प हमारा है।।

*आन-बान और शान है झंडा*

आन - बान और शान है झंडा,भारत का सम्मान तिरंगा।

मरें मिटें इस देश कि खातिर,हम सबकी है जान तिरंगा।


केसरिया रंग इस झंडे का,त्याग और बलिदान सिखाता।

ताकत  और साहस हो सबमें, राष्ट्र धर्म को श्रेष्ठ बताता।।

शांति,प्रगति के हर विकास से,जन जन का कल्याण तिरंगा।

आन - बान और शान है झंडा,भारत का सम्मान तिरंगा।।


शुभ्र-धवल  हिमालय जैसा, सत्य, शांतिमय पूर्ण वतन हो।

धर्म-संस्कृति सबसे ऊपर,ह्रदय उदार और निश्छल मन हो।।

सादा जीवन, उच्च विचार, नवयुग का निर्माण तिरंगा।

आन - बान और शान है झंडा,भारत का सम्मान तिरंगा।।


हरा रंग है माँ  धरती  पर, सूखी - सम्मुन्नत देश हमारा।

सब साधन से भरा रहे यह, स्वर्ग समान देश हो प्यारा।।

प्यार और सहकार हो सबमें, भारत का निर्माण तिरंगा।

आन - बान और शान है झंडा,भारत का सम्मान तिरंगा।।


नील  चक्र  कह  रहा  हमारा,  आगे   सतत   बढ़ेंगे ।

अटल  इरादे  लेकर  जग  में, नव  प्रतिमान  गढ़ेंगे।।

हम बदलेंगे  युग बदलेगा, हम सबका अरमान तिरंगा।

आन-बान और शान है झंडा,भारत का सम्मान तिरंगा।।


तीन  रंग का  प्यारा  झंडा,  अम्बर  में   फहरेगा।

हिन्द  देश  का  शान  ये  झंडा,  ऊँचा  सदा   रहेगा।।

तन मन धन न्योछावर तुमपर,हम सबकी पहचान तिरंगा।

आन - बान और शान है झंडा,भारत का सम्मान तिरंगा।।

-उमेश यादव

नए राष्ट्र का सृजन करेंगे

 *नए राष्ट्र का सृजन करेंगे*

कदम बढाओ, आगे आओ, नए राष्ट्र का सृजन करेंगे। 

प्राण न्योछावर किया जिन्होंने,उन वीरों को नमन करेंगे।। 


कितनी माताओं ने राष्ट्र हित,अपने अपने लाल दिए थे। 

बिस्मिल भगत आजाद सरीखे,दुश्मनों के काल दिए थे।। 

आजादी के इन परवानों को,अर्पण श्रद्धा सुमन  करेंगे।

प्राण न्योछावर किया जिन्होंने,उन वीरों को नमन करेंगे।। 


माँ का मस्तक उंचा करने,वीरों ने बड़ा कमाल किया था। 

फिरंगियों को धुल चटाने, उनने बड़ा धमाल किया था।। 

राष्ट्र भक्ति का जोश भरा,उन चरणों का अनुगमन करेंगे।

प्राण न्योछावर किया जिन्होंने उन वीरों को नमन करेंगे।। 


पहन केशरिया बाना जिनने,बांध कफ़न घर से निकले थे। 

सरफरोशी दिल की चाहत थी,मातृभूमि के लिए पले थे।।

वैसे अमर शहीदों को हम, शत शत बार नमन करेंगे ।

प्राण न्योछावर किया जिन्होंने,उन वीरों को नमन करेंगे।। 


आजादी के मतवालों सा,आओ, दिल में जोश जगाएं। 

राष्ट्र हमारा सर्वोपरि हो,राष्ट्र के लिए मर खप जाएँ।। 

राष्ट्र द्रोही की खैर नहीं हो,राष्ट्र द्रोह को दफ़न करेंगे। 

प्राण न्योछावर किया जिन्होंने,उन वीरों को नमन करेंगे।।

उमेश यादव 19-07-21

मातृभूमि अति प्यारा है

 *मातृभूमि अति प्यारा है*

सर्वश्रेष्ठ है राष्ट्र हमारा, अखिल विश्व में न्यारा है।

भारत माँ के वीर सपूत हम,मातृभूमि अति प्यारा है।। 

जय हिन्द हमारा नारा है।

यह राष्ट्र प्राण से प्यारा है।।


राष्ट्र ध्वजा है शान हमारा,आन बान अभिमान हमारा। 

रहे सदा ही सकल विश्व में, भारत राष्ट्र महान हमारा।।

उच्चा मस्तक रहे सदा ही,गरिमामय मान हमारा है।

भारत माँ के वीर सपूत हैं, मातृभूमि अति प्यारा है।।   


श्री राम के मतवाले हम,विचारक्रांति के क्रान्तिदूत हैं।

राष्ट्रभक्ति रग रग में फैला,ज्ञान क्रांति के अग्रदूत हैं।।

हो जाएँ बलिदान देश हित, वतन प्राण से प्यारा है।  

भारत माँ के वीर सपूत हैं, मातृभूमि अति प्यारा है।। 


ज्ञान क्रांति फैलाएं जग में,आओ जग को दिशा दिखाएँ।

जगतगुरु था पूर्ण विश्व में,पुनः वही  सम्मान दिलायें।।

विचार क्रान्ति से आलोकित कर,गुरु ने राष्ट्र संवारा है।

भारत माँ के वीर सपूत हैं, मातृभूमि अति प्यारा है।।

-उमेश यादव 19/7/21

भारत हो सर्वोच्च जगत में

 *भारत हो सर्वोच्च जगत में*

जय भारत,जय हिन्द हमारा,हमें प्राण से प्यारा है। 

भारत हो सर्वोच्च जगत में, यह संकल्प हमारा है।। 


धरती अम्बर सागर में, अपना परचम लहराए।

वन्दे मातरम्,वन्दे मातरम्,अखिल विश्व ही गाये।।

एक धर्म हो,एक हो भाषा,एक राष्ट्र ही प्यारा है।

भारत हो सर्वोच्च जगत में,यह संकल्प हमारा है।।  


मानवता का पाठ यहाँ से,भूमंडल ने सीखा है।

गीता का उपदेश मनुज को,संजीवनी सरीखा है।। 

ज्ञान यहाँ का सर्वश्रेष्ठ है,जग को सदा उबारा है।

भारत हो सर्वोच्च जगत में,यह संकल्प हमारा है।।  


परोपकार हो धर्म जगत का,परहित समय लगाएं।।

परपीड़ा दुखदायी होता,खुशियों के चमन खिलाएं।। 

मानव मात्र एक समान हो,यह गुरुवर का नारा है। 

भारत हो सर्वोच्च जगत में,यह संकल्प हमारा है।। 


अखिल विश्व को हमने ही,जीने का आधार बताया।

राष्ट्रधर्म से सबको जोड़ा,ईश तत्त्व का मर्म बताया।।

राष्ट्रभक्ति जाग्रत हो सबमें, युग ने हमें पुकारा है।  

भारत हो सर्वोच्च जगत में,यह संकल्प हमारा है।। 


सभी सुखी हो,व्याधि मुक्त हो,सबका ही कल्याण हो।

श्रेष्ठ समुन्नत जीवन जियें,यह अपना अभियान हो।।

श्रेष्ठ विचारों से सुवासित,किया हमने जग सारा है।

भारत हो सर्वोच्च जगत में,यह संकल्प हमारा है।। 

-उमेश यादव

वतन है माता हमारी

 वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है
माँ से ही है प्राण सबका,माँ से ही अरमान है
माँ तुम्हारी ही कृपा से सांस चलती है हमारी 
माँ तुम्हारी ही दया से,आस पलती है हमारी
जहाँ मेरी तुम हो माता,तुम्हीं आसमान है
वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है
माँ के अन्चरे को न कोई, मलीन करने पायेगा
आँखें दिखाने वाला माते,निश्चित ही मिट जाएगा
वतन के खातिर मिटेंगे,वतन ही अभिमान है 
वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है
जो भी तेरा शत्रु होगा,बच नहीं वह पायेगा
मिटेगा अस्तित्व उसका,ठौर कहीं न पायेगा
शपथ है तेरी हे माते, तेरे लिए मन प्राण है
वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है 
पुत्र की सांसे रहे तक,सर न झुकने देंगे हम
प्रगति के कदम बढ़े जो,वह न रुकने देंगे हम 
तुमसे ही है सांझ माते, तुमसे नव विहान है
वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है

   
 दुश्मनों की चीर छाती,बुलंदी पर जायेंगे हम  
दामन तुम्हारी हे माते न दाग लगने देंगे हम
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प्राण है यह राष्ट्र अपना,प्राण रहना चाहिए।

 प्राण है यह राष्ट्र अपना,प्राण रहना चाहिए।

मिट भी जाएं हम मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए।।


देश में हो प्यार सबमें,देश से ही प्यार हो।।

नफरतों का दिल में कोई, ना कहीं आधार हो।।

वतन से ये प्रेम गंगा, अविरल बहनी चाहिए।

मिट भी जाएं हम मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए।।


आपसी मतभेद हों पर,मन डूबे हों प्यार में।

कुर्बान हो जाएं हम तो, गम न हो संसार में।।

देश के गद्दार हैं जो, उनको मिटनी चाहिए।

मिट भी जाएं हम मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए।।


कतरा कतरा रक्त का ये सांस पर अधिकार हो।

वतन के हर जन को अपने,वतन से ही प्यार हो।।

देश भक्ति की लहर, लहू में उतरनी चाहिए।

मिट भी जाएं हम मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए।।


प्रगति की राह में जो, अड़चनें हैं, दूर होंगे।

शत्रु हैं जो राष्ट्र के वे, हारेंगे, मजबूर होंगे।।

शपथ लें हर देशवासी, देश बढ़नी चाहिए।।

मिट भी जाएं हम मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए।।


लूट रहे जो देश को वो कान खोलकर  सुन ले।

हम जगे हैं,अब तो अपनी मौत को ही चुन ले।।

देश प्रेम की स्नेह धारा, दिल में बहनी चाहिए।

मिट भी जाएं हम मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए।।

उमेश यादव, शान्तिकुंज, हरिद्वार

वतन है माता हमारी,

 वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है।

माँ से ही तो प्राण सबका,माँ से ही अरमान है।।


माँ तुम्हारी ही कृपा से,सांस चलती है हमारी।

माँ तुम्हारी ही दया से,आस पलती है हमारी।।

जहाँ मेरी तुम हो माता, तुम्हीं आसमान है।

वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है।।


माँ के अन्चरे को न कोई, मलीन करने पायेगा।

आँखें दिखाने वाला माते,निश्चित मिट जाएगा।।

वतन के खातिर मिटेंगे,वतन ही अभिमान है ।

वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है।।


जो भी तेरा शत्रु होगा,बच नहीं वह पायेगा।

मिटेगा अस्तित्व उसका,ठौर कहीं न पायेगा।।

शपथ है तेरी हे माते, तेरे लिए मन प्राण है।

वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है ।।


 दुश्मनों की चीर छाती,बुलंदी पर जायेंगे ।

हमसे जलने वाले माते,स्वयं ही जल जाएंगे।।

स्वर्ग से सुंदर जहां में, सभी का कल्याण है।

वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है ।।


मां सुनो, सांसे रहे तक,सर न झुकने देंगे हम।

प्रगति के कदम बढ़े जो,वह न रुकने देंगे हम ।।

तुमसे ही है सांझ माते, तुमसे नव विहान है।

वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है।।

उमेश यादव, शान्तिकुंज, हरिद्वार

भारत माता की वेदना

 *भारत माता की वेदना*

कोटि कोटि संतानें सुनलो, अपनी व्यथा सुनाती हूँ।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ।। 


अनगिन पुत्रों के शीश कटे, तब ही आजादी पाई थी।

सिसकी थी कितनी संतानें,मैं भी तब अकुलाई थी।। 

आजादी में साँसे ली जब, तब की बात सुनाती हूँ।।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ ।। 


अब भी सरहद पर मेरे पुत्रों के,रक्त से आँचल रंगतीं हैं।

अब भी सड़कों पर मेरी बिटिया, चलने से भी डरती हैं।।

अब भी दहेज़ और भ्रूण हत्या से,अश्रु बहुत बहाती हूँ।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ ।। 


सबका भूख मिटाने वाले,बोलो क्यों भूखे सो जाते हैं।

निज हाथों महल बनाने वाले,रहने को छांव न पाते हैं।। 

नहीं सामान क्यों पुत्र हैं मेरे, मैं भेद नहीं अपनाती हूँ।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ मैं।।


मेरी माटी का अन्न खाकर,क्यों मेरे सा व्यवहार नहीं।

भ्रष्ट हुआ क्यों तेरा चिंतन,क्यों तेरा श्रेष्ठ विचार नहीं।।

माँ से ही गद्दारी करते हो, मैं इससे ही शर्माती हूँ ।

मुझसे ही गद्दारी करते  हो बस मैं इससे शर्माती हूँ।


सबकुछ दिया है मैने तुझको,फिर भी मुझे सताते हो। 

मेरी ही रोटी खाकर क्यों तुम, औरों की जय गाते हो।

मुझे मां समझे मेरे बच्चे, मैं इतनी आस जगाती हूं।

मैं मातृभूमि हूं माता तेरी, क्यूं तुम्हें समझा न पाती हूं।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ ।। 

उमेश यादव, शान्तिकुंज हरिद्वार।

माँ मुझको भी पढ़ना है

 माँ मुझको भी पढ़ना है।

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।। 

माँ मुझको भी पढ़ना है।


सीढियों पर चढने दो मुझको,पांवों में मत पायल डालो।

देखो ज़माना कहाँ जा रहा,काम काज में मत उलझालो।।

सुनो, समय से कदम मिलाकर, मुझको आगे बढना है। 

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।। 

माँ मुझको भी पढ़ना है।


जाने कैसी परिस्तिथियों में,आगे मुझको रहना होगा।

नहीं जरुरी पुष्प मिलेंगे, काँटों पर भी चलना होगा।।

अपने पैरों से चलना है, काबिल मुझको बनना है।

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।। 

माँ मुझको भी पढ़ना है।


भेद भाव ना करना मुझसे,मैं भी तेरी ही जायी हूँ।

तेरा रक्त धड़कता दिल में,अपनी हूँ,नहीं पराई हूँ।।

बांधों ना घर में ही मुझको, आसमान में उड़ना है। 

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।।

माँ मुझको भी पढ़ना है।


समय अभी तो पढने का है,व्यर्थ ना इसे गवाने दो। 

मुझे चाँद छूने का मन है,सपने तो मुझे सजाने दो।।

पहचान बनानी है अपनी,दहलीज से पार निकलना है।

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।।

माँ मुझको भी पढ़ना है।

उमेश यादव

पकड़ उंगली चलाता है।

 *वह अपना है*

वह(गुरु)अपना है मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।  

गिर ना जाऊं कहीं,राहें वही दिखाता है।।

गुरु ही है मेरा जो हर बला से बचाता है। 

वह है अपना मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।।


क्या डूबाओगे मुझे,गुरु की नाव बैठा हूँ। 

भाव भक्ति में गुरु के ही मैं निरैठा हूँ।। 

कुछ न कर पाओगे,वो ही मेरा त्राता है। 

वह है अपना मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।।


मेरा साया है वो, प्रियतम है हमदम है। 

हर पग साथ है मेरे,दिल का स्पंदन है।। 

मेरे हर बात से वाकिफ है वो सर्वज्ञाता है।

वह है अपना मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।।


ज्ञान के नूर से उसके घर को जगमगाया है। 

अश्क से नम हुआ अक्ष जब,उसने हंसाया है।।

उजड़ी हुई चमन को फिर वही बसाता है। 

वह है अपना मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।।


न गम हारने का है न जीत पर इतराया कभी।

न फिक्र आज की है न कल ने जगाया कभी।। 

छांव में हूँ सदा उनके,सुकून से मुझे सुलाता है। 

वह है अपना मुझे, पकड़ उंगली चलाता है।।

-उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार

अमृत महोत्सव स्वर्ण जयंती

 अमृत महोत्सव स्वर्ण जयंती

भारत अपनी श्रेष्ठ-विजय की, स्वर्णजयंती मना रहा है। 

सर्वश्रेष्ठ हम,स्वर्ण-गान यह,सारे जग को सूना रहा है।।


शिखर हिमाद्रि से अवनि तक,भारतजय का नारा था। 

रिपुदल दलबल था घुटनों पर, बुरी तरह से हारा था।।

शौर्य था वीरों का स्वर्णिम,हर भारतवासी सुना रहा है। 


जल में थल में नभ हम थे,सारे जहाँ में सबसे आगे।

महाशक्ति कहलाने वाले,पीठ दिखाकर थे भागे।।

अंत हुआ था अनय दुष्ट का,नक्शा ही यह बता रहा है। 


हैं अजेय हम, सदा रहेंगे,जगती ने यह मान लिया है। 

दुश्मनों की खैर नहीं है,रिपुओं ने भी जान लिया है।।

भारतवर्ष प्राण से प्यारा,रक्त का हर कण बता रहा है। 

#umeshpdyadav उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार

वो ही है मेरा अपना

 *वो ही है मेरा अपना* 

गिर ना जाऊं मैं कहीं,वही राहें दिखाता है।।

वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली चलाता है।।

गुरु ही है मेरा अपना,वो संकट से बचाता है। 

वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली चलाता है।।


डूबा ना पाओगे मुझे,गुरु की नाव बैठा हूँ। 

भाव से भक्ति से मैं तो,गुरु के ही निरैठा हूँ।। 

कर न पाओगे कुछ भी,मेरा तो वो ही त्राता है। 

वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली चलाता है।।


हमारी छांह है वो तो,मेरा प्रियतम है हमदम है। 

हर पल साथ है मेरे, मेरे दिल का स्पंदन है।। 

मेरे हर बात से वाकिफ, गुरु वो सर्वज्ञाता है।

वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली चलाता है।।


ज्ञान के नूर से उसने, घर को जगमगाया है। 

अश्कमय जब हुआ ये अक्ष,उसने ही हंसाया है।।

उजड़ी सी हुई चमन को,गुलशन वो बनाता है। 

वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली चलाता है।।


न गम है की मै हारा हूँ,जीत से ना इतराया है।

न चिंता आज की रहती,नतो कल ने जगाया है।। 

छांव में हूँ सदा उनके, सुकून से वो सुलाता है। 

वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली चलाता है।।

-उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार

तेरे रंग में रंग जाए।

 तेरे रंग में रंग जाए।


हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा, मन तेरे  रंग में रंग जाए। 

जितना  धोऊ  उतना  चमके, जीवन सतरंगी बन  जाए।। 


जहाँ जहाँ रंग मलिन हुआ है,उसको फिर से धवल बना दो। 

सूख रही भावों  की नदियाँ, स्नेह प्यार से सजल बना दो।। 

नहीं  रहे  बदरंग  कहीं  अब, सब पर ऐसा रंग चढ़ जाए। 

हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा, मन  तेरे  रंग में रंग जाए।।  


श्याम रंग क्यों डाला हमने, छवि अपनी मैली कर डाली।

प्रेम रंग अति गाढ़ा था पर, घृणा द्वेष भर उसे मिटा ली।।  

रंग बदलकर भी क्या जीना,खरा रंग अंग अंग लग जाए।

हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा, मन तेरे रंग में रंग जाए।।  

  

धरती, अम्बर, अवनि सबको, दिव्य रंग में रंग डाला है। 

सूरज, चाँद, सितारों से, दुनियां ही अनुपम कर डाला है।।

कुछ  ऐसा  तू  हमें भी रंग दे, तू जैसा चाहे बन जायें।

हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा, मन तेरे रंग में रंग जाए।। 

   

फाग रंग अब नीरस हुआ है, हर्ष जोश का भंग चढ़ा दे।

राग द्वेष बढ़े  जो मन में, उसे मिटा अब प्यार बढ़ा दे।। 

अंतःकरण के दोष हटाकर, इन्द्रधनुष सा मन रंग जाए।   

हे रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा, मन तेरे रंग में रंग जाए।।


तू  है बड़ा  रंगीला तूने, कहाँ कहाँ पर रंग नहीं डाला।

जीव जगत सब रंग में तेरे, सबको ही तूने रंग डाला।। 

प्रेम  रंग  में रंग दे सबको, प्रेममयी जीवन बन जाए।

हे रंगरेज रंगो कुछ ऐसा, मन  तेरे रंग  में रंग जाए।। 

   -उमेश यादव

नया वर्ष,नव संवत्सर है

 *नया वर्ष,नव संवत्सर है*

नया वर्ष, नव संवत्सर है, खुशियाँ आज मनायें।

देश, धर्म, संस्कृति रक्षा को,दृढ़ संकल्प जगाएं।।


नया सवेरा शंख बजाता,पूरब से नव सूर्य उगा है।

नये पुष्प पत्रों से सजकर,धरणी मानो स्वर्ग बना है।।

स्वागत करें नए साल का, स्वागत थाल सजायें। 

नया वर्ष, नव संवत्सर है, खुशियाँ आज मनायें।। 


सनातन संस्कृति का आओ, अंतस में आधान करें।

श्रेष्ठ समाज समर्थ राष्ट्र का,मिलकर नव निर्माण करें।। 

ध्वजारोहण करें संस्कृति का, केशरिया लहरायें।

नया वर्ष, नव संवत्सर है, खुशियाँ आज मनायें।। 

 

सादा जीवन उच्च विचार का भाव सर्वत्र फैलाएं।

सभी सुखी हों सबका हित हो,प्रेम भाव विकसायें।। 

चैत्र शुक्ल के प्रतिपदा को, उत्सव सभी मनाएं।  

नया वर्ष, नव संवत्सर है, खुशियाँ आज मनायें।। 


नए राष्ट्र के नव निर्माण हित,हम पुरुषार्थ जगाएं।  

नवरात्रि में शक्ति साधकर, प्राणशक्ति हम पायें।। 

प्रकृति के संग जीना सीख्रें, जीवन श्रेष्ठ बनाएं।

नया वर्ष, नव संवत्सर है, खुशियाँ आज मनायें।।  

-उमेश यादव

मंगलमय हो वर्ष नया ये

 *मंगलमय हो वर्ष नया ये*

मंगलमय हो वर्ष नया ये,सब मिल मंगल गान करें।

नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।।

  

भारतीय संस्कृति ने ही, साथ साथ चलना सिखलाया।

मन एक हो,बोलें संग में, परहित में जीना सिखलाया।।

सादा जीवन उच्च विचार से, स्वयं का उत्थान करें। 

नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।।


सभी सुखी हों सबका हित हो,पायें सभी निरोगी काया।

वसुधा है परिवार हमारा,मिलजुल कर रहना सिखलाया।।

जप तप पूजा पाठ ध्यान से,तन मन में नव प्राण भरें।

नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।।


ब्रह्मा ने ब्रह्माण्ड रचित कर,नूतन सृष्टि रचाया था। 

शक को हरा शालिवाहन ने, धर्म ध्वजा फहराया था।। 

दुष्ट दलन कर श्रीराम सा, राम राज्य निर्माण करें।।

नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।।

  

शिवाजी ने गुड़ी पड़वा पर, रिपुओं पर जय पाया था। 

भारत के हर वासी को ही,संस्कृति प्रेम सिखलाया था।

जोश भरें सबके उर में हम,संस्कृति का सम्मान करें

नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।।


त्याग तपस्या ज्ञान भक्ति से, कर्म पवित्र हो जाता हैं।

प्यार स्नेह सहकार अगर हो, गेह स्वर्ग बन जाता है।।

संस्कृति और संस्कार अपनाएँ,नवयुग का निर्माण करें।

नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।।

 -उमेश यादव

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना, पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।

 *तुम्हें पहचान दूंगा*


गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।

भटक जाओ कहीं फिर भी मत धैर्य खोना, 

अर्श पहुंचा तुम्हें मैं पहचान दूंगा।।


दे रहा तेरे हाथों में पतवार अब मैं, 

डरना न लहर से,तेरे साथ हूँ मैं। 

डगमगाए भँवर में नैया कभी जब, 

डांड बनकर तुम्हारे ही हाथ हूँ मैं।। 

जिंदगी के हरेक जंग में जीत होगी, 

पार्थ बन जा, कन्हैया सा रथ हांक दूंगा।।    माधव 

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।


अंग अवयव हमारे हो, प्राण भी तुम, 

रक्त का हर कण हो,हर श्वास हो तुम।

हाथ हो मेरे तुम्हीं, अब काम कर लो,

नए युग के सृजन का विश्वास हो तुम।। 

पूर्ण करना तुम्हें है, हर काम अपना,

मैं ह्रदय से हरपल तुम्हें मान दूंगा।

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।


कष्ट होंगे तुम्हें ये मैं जानता हूँ, 

पर दुखों से कभी भी नहीं हारना है।

मेरे कंधे हो तुम्हीं, तुम्हीं दृष्टि मेरी,

विकल हैं जो मनुज उनको भी तारना है।। 

दिल के टुकड़े हो मेरे तुम्हीं धड़कनें हो,

पुत्र मेरे हो तुम्हीं ये पहचान दूंगा। 

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।



पाँव छिल जाएँ फिर भी या कष्ट होवें,       जख्म    छाले पड़े पाँव या छिल जाएँ 

घाव में मरहम लगाता मेरा हाथ होगा।

कार्य पूरा करोगे भर जोश में तुम,

पीठ थपकी लगाता मेरा हाथ होगा।।

स्नेह ममता भरा ये साथ मेरा, 

हर बला में टालता, मैं ये अहसास दूंगा। 

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।


मैं दिखूं ना दिखूं, पर ये शक्ति हमारी,

प्रलय के अंत क्षण तक तेरे साथ होगा।।

सोचना मत कहीं तुम अकेले रहोगे, 

जन्म जन्मान्तरों तक मेरा साथ होगा।

जब कभी  हो असहाय मुझको पुकारो,  

मैं सहारा बनूंगा तुम्हें प्राण दूंगा।।

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।


मै तुम्हारा सदा हूँ, विश्वास करलो,

तुम हमारे रहोगे,मुझे आस है यह। 

कर्मपथ के दौड़ में जो साथ हैं, 

नयन तारे हो मेरे, अहसास है यह।।  

जिंदगी की डगर में जो शूल होंगे, 

बन के पदत्राण शूलों से मैं त्राण दूंगा।

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।

भटक जाओ कहीं फिर भी मत धैर्य खोना, 

अर्श पहुंचा तुम्हें मैं पहचान दूंगा।।

-उमेश यादव

राष्ट्रव्यापी अभियान – नशा मुक्ति

 राष्ट्रव्यापी अभियान – नशा मुक्ति


नशा नाश की जड़ है भाई, यह  सबको  बतलाना है।

राष्ट्रव्यापी अभियान चलाकर,नशे को दूर भगाना है।।


हीरा जनम गवाया  हमने, नशा  खोरी की आदत से।

लाखों  घर  बर्बाद हो गये, नशा बाजी की आफत से।।

अब  कोई  भी  नशा ना लेवें, नया समाज बनाना है।

राष्ट्रव्यापी अभियान चलाकर,नशे को दूर भगाना है।।


नशा एक अभिशाप मनुज पर,आओ इसको दूर भगायें।

नष्ट करें ना जीवन अपना,है अनमोल हम इसे बचाएँ।।

व्यसनमुक्त हो अब समाज यह,शुभ संकल्प जगाना है।

राष्ट्रव्यापी अभियान चलाकर, नशे को दूर भगाना है।।


युवा समर्थ हो  अगर हमारे, देश समर्थ  हो  जाता  है।

युवा सभ्य शालीन अगर तो,सभ्य समाज बन पाता है।।

स्वस्थ शरीर,स्वच्छ मन सबका,सभ्य समाज बनाना है।

राष्ट्रव्यापी अभियान  चलाकर, नशे को दूर भगाना है।।


-उमेश यादव

नशा मुक्त भारत

 नशा मुक्त भारत
नशे के विरुध्ध अब,समर सज चुका है।
नशा मुक्त भारत हो,शंख बज चुका है।।
समर सज  चुका  है, शंख बज  चुका है।
जवानी  नहीं  अब,  नशे  मे  डुबेगी ।
कहानी  नहीं  अब,  नशे  की बनेगी।।
नशा नास करती,यही सच है समझो।
नशा न कहीं हो, मुहिम बन चूका है।।
नशा मुक्त भारत हो,शंख बज चुका है।
ना होंगे अब  सौदे  नशीली दवा के।
युवा  न  उड़ेगा  जहरीली  हवा में।।
नशा  का  कहीं अब न व्यापार होगा।
राष्ट्र  का  संकल्प  दृढ़  हो  चूका  है।।
नशा मुक्त भारत हो,शंख बज चुका है।
नशे  की  दिवानी, जवानी  न  होगी।
नशा  प्राण  लेले, कहानी  ना  होगी।।
नशा करने वालों का, बुरा हश्र होता।
तरुण सभ्य शिक्षित,यह राष्ट्र कह चुका है।।
नशा मुक्त भारत हो,शंख बज चुका है।
नशे के विरुद्ध आओ हम सब खड़े हों।
नशा करने वाले अब कहीं ना पड़े हों।।
नशेड़ियों  का  पूर्ण  बहिष्कार  होगा।
ना  लेगा  नशा  देश  प्रण ले चुका है।।
नशा मुक्त भारत हो,शंख बज चुका है।
-उमेश यादव
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नशे की मार

 नशे की मार
समाज  रो  रहा  है,परिवार रो रहा है।
नशे के भार को  ये, संसार  ढो  रहा है।।
ये क्या हो रहा है देखो,क्या हो रहा है।
नशे की मार से  ये, संसार रो  रहा  है।।
सहारे से चलता, वो सहारा था सबका।
उपेक्षित है सबसे, जो प्यारा था सबका।।
नशे से  ही घर औ’ परिवार खो रहा है ।
नशे  की  मार से  ये, संसार रो रहा  है।।
नयी जिंदगानी, दुर्व्यसन कर रही है ।
तरुणों की जवानी,नशे से मर रही  है।।
व्यसनी न बनो,अन्धकार  हो  रहा है।
नशे के भार को ये, संसार ढो रहा है।।
रिश्ते नाते कुटुम्बी, तुमसे दूर जा रहे हैं ।
ईमान धर्म नीति , ना  निभ पा रहे हैं ।।
नसें,  विष  नशा  से, बेकार हो रहा है ।
नशे की मार से ये, संसार  रो  रहा  है।।
समय आ गया है, दुर्व्यसन को भगाओ
नशा मुक्त जग हो, ये करके दिखाओ।।
हँसाना है, जिसको ये दर्द हो रहा है।
नशे के भार को ये, संसार ढो रहा है।।
-उमेश यादव

कान्हा मेरे,प्रेम की बंशी बजाओ

 *कान्हा मेरे,प्रेम की बंशी बजाओ* 


ग्वाल बाल सब कृष्ण पुकारे,

गोपियन ब्रज से तुम्हें गुहारे।।

प्यार के धुन पे नचाओ।

कान्हा मेरे,प्रेम की बंशी बजाओ।।     


जगत पुकारे, नंद दुलारे,

मन में बसी है छवि तुम्हारे।।

दिव्य दरश दिखलाओ।  

कान्हा मेरे,प्रेम की बंशी बजाओ।। 


गैया तेरी तुझे पुकारे, 

जमुना तट पर तुम्हें निहारे।।

नैनन को चैन दिलाओ। 

कान्हा मेरे,प्रेम की बंशी बजाओ।। 


लगन लगी है, कृष्ण दर्शन की,

मन के भाव हैं पद पूजन की।।

उर में स्नेह भर जाओ। 

कान्हा मेरे,प्रेम की बंशी बजाओ।। 

-उमेश यादव

हे मुरली मनोहर गिरधारी

 *हे मुरली मनोहर गिरधारी*

जाने कितनों के पाप हरे, जाने कितनों को तारा है।

हे मुरली मनोहर गिरधारी,सबपर उपकार तुम्हारा है।।


कंस का दर्प हरे तूने,कालिय नाग को बांधा था। 

गोवर्धन  उठाकर तूने, दर्प इंद्र का साधा था।। 

हे यदुनंदन नन्द दुलारे,तुम्हीं से सांस हमारा है। 


धरती पापों से तड़प रही,आकर यह भार घटा जाओ।

है मनुज कष्ट से तड़प रहा, गीता का ज्ञान सूना जाओ।।

हे मोहन माधव कृष्ण हरे, तुमने ही हमें संवारा है। 


अपना मुझे बना लेना,ये जीवन तुझको अर्पित है। 

जैसा भी हूँ अपना लेना,ये जीवन तुझे समर्पित है।।

हे गोकुल नंदन कृष्ण हरि,तेरा ही एक सहारा है।। 

-उमेश यादव

मेरा कान्हा है रखवाला

 *मेरा कान्हा है रखवाला* 


सांस कृष्ण है, प्राण कृष्ण है,जीवन भी है बंशीवाला।

कृष्ण ही मेरा है रखवाला, कृष्ण ही मेरा है रखवाला।।

मेरा कान्हा है रखवाला, मेरा कान्हा है रखवाला।। 


कृष्ण हैं तन में, मन में कृष्ण है,अंग अंग में बसे कृष्ण हैं। 

रक्त कणों में कृष्ण हर कण हैं, रोम रोम में रंगे कृष्ण हैं।। 

रहते संग संग सदा हमारे, कृष्ण साथ में चलने वाला।

कृष्ण ही मेरा है रखवाला, कृष्ण ही मेरा है रखवाला।।


सदा पकड़ निज हाथ चलाते, कष्टों में भी साथ निभाते। 

पाप ताप को कृष्ण मिटाते, भव के सागर पार कराते।। 

जहाँ कहीं भी नैया अटके, डांड हाथ ले नाव संभाला। 

कृष्ण ही मेरा है रखवाला, कृष्ण ही मेरा है रखवाला।।


कृष्ण बिना जीवन अंधियारा,कृष्ण बिना न कोई प्यारा।

कृष्णा बिना जग सूना लागे, श्री कृष्ण हैं जीवन सारा।। 

पालक पोषक सकल जगत के,है अपना यह मुरलीवाला।

कृष्ण ही मेरा है रखवाला, कृष्ण ही मेरा है रखवाला।। 

 -उमेश यादव

कृष्ण आन बसों

 *कृष्ण आन बसों*

कृष्ण आन बसों मेरे मन में तू,ये मन भी पावन बन जाए।। 

अब कृपा करो वृषभानु लली, यह उर वृन्दावन बन जाए।

 

मुरलीधर अपने होठों से, मुरली  की तान सूना जाना।

बज उठे ह्रदय के तार सभी, ऐसे ही धुन में गा जाना।।

नंद नंदन स्नेह रस बरसाओ, जीवन मनभावन बन जाए। 

कृष्ण आन बसों मेरे मन में तू,ये मन भी पावन बन जाए।। 


तू ग्वाल बाल के संग आना,गोपियों संग राधा को लाना।  

प्रभु शुष्क हो रहा मन मेरा, उर स्नेह प्यार से भर जाना।।

रंग रसिया रंग डालो मुझको, तन मन सतरंगी बन जाए।  

कृष्ण आन बसों मेरे मन में तू,ये मन भी पावन बन जाए।। 


मुरलीधर अपने होठों से, मुरली  की तान सूना देना।

बज उठे ह्रदय के तार सभी,मन के सब तार हिला देना।।

बंशीधर प्रेम रस बरसाओ, जीवन मनभावन बन जाए। 

कृष्ण आन बसों मेरे मन में तू,ये मन भी पावन बन जाए।। 


है निज कर्मों का भान नहीं,जीवन में भक्ति, ज्ञान नहीं।

यह सृष्टि तुम्हारी ही छवि है, कर पाते तेरा ध्यान नहीं।।

प्रभु गीता का ज्ञान हमें देना, जीवन के पथ में डट जाएँ।  

कृष्ण आन बसों मेरे मन में तू,ये मन भी पावन बन जाए।। 

-उमेश यादव

पितर हमारे सदा पूज्य हैं, तर्पण श्राद्ध कराएं

 पितर हमारे सदा पूज्य हैं, तर्पण श्राद्ध कराएं। 

पितरों की स्मृति में आओ हम एक वृक्ष लगाएं।। 

पितरों की स्मृति में आओ, आओ वृक्ष लगाएं।। 


पितरों ने जीवन रहते हमपर उपकार किया है।

ज्ञान धन प्रतिभा देकर,समृद्ध संसार दिया है।।

अभावों में रहे किन्तु,स्वजनों को मान दिलाया।

हरसंभव कोशिश से उनने हमको श्रेष्ठ बनाया।।  

ऋणी रहेंगे सदा उन्हीं के,कृतज्ञ भाव विकासायें।

पितरों की स्मृति में आओ हम एक वृक्ष लगाएं।।

पितरों की स्मृति में आओ, आओ वृक्ष लगाएं।।  


पितरों के लालन पालन, पोषण से  हुए बड़े हैं। 

पितरों के ही कृपादृष्टि से,हम सब आज खड़े हैं।। 

पितरों को श्रद्धांजलि देकर अपना फर्ज निभायें।

दस पुत्रों सम एक वृक्ष है, आओ  वृक्ष लगाएं।। 

ज़माना याद करें पितरों को,श्रद्धा सुमन चढ़ाएं। 

पितरों की स्मृति में आओ हम एक वृक्ष लगाएं।। 

पितरों की स्मृति में आओ, आओ वृक्ष लगाएं।। 

-उमेश यादव

पितर हमारे सदा पूज्य हैं

 *पितर हमारे सदा पूज्य हैं* 

पितर हमारे सदा पूज्य हैं, तर्पण और श्राद्ध कराएं। 

पितरों की स्मृति में आओ,आओ हम एक वृक्ष लगाएं।। 


पितरों ने जीवन के रहते, हमसब पर उपकार किया है।

साधन ज्ञान प्रतिभा देकर, हमें समृद्ध संसार दिया है।।

रहे अभाव में फिर भी उनने,स्वजनों को मान दिलाया था ।

हरसंभव कोशिश से उनने, हम सबको श्रेष्ठ बनाया था।।  

ऋणी रहेंगे सदा उन्हीं के, भाव कृतज्ञता के विकसायें।

पितर हमारे सदा पूज्य हैं, तर्पण और श्राद्ध कराएं। 

पितरों की स्मृति में आओ, आओ हम एक वृक्ष लगाएं।।  


पितरों के लालन पालन से, पोषण से हम बड़े हुए हैं।  

पितरों के ही कृपादृष्टि से, निज पैरों पर खड़े हुए हैं।। 

पितरों को श्रद्धांजलि देकर,आओ अपना फर्ज निभायें।

दस पुत्रों सम एक वृक्ष है, आओ हम एक वृक्ष लगाएं।। 

ज़माना याद करें पितरों को,स्नेह से श्रद्धा सुमन चढ़ाएं। 

पितरों की स्मृति में आओ, आओ हम एक वृक्ष लगाएं।।  


पितर ही हैं अदृश्य सहायक, हरपल रक्षा करते हैं।

डिगे जहाँ उत्साह हमारा, मन में साहस भरते हैं।।

सदा सर्वदा अपने हैं वो, कल्याण सदा ही करते हैं। 

हरक्षण होता छांव उन्हीं का, सारे संकट हरते हैं।। 

आशीर्वाद पितरों से पाकर हम,जीवन धन्य बनाएं।

पितरों की स्मृति में आओ हम एक वृक्ष लगाएं।।

-उमेश यादव

क्रोध

 *क्रोध*

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।

रोष गरल है, कोप अनल है, क्रोध नरक का द्वार है।।


मनवांछित न पाने पर हम, प्रायः क्रोधित हो जाते हैं।

विचार शून्य सा होश गंवाकर, अवांछित कर जाते हैं।।

क्रोध ध्वंस है पागलपन है, यही व्याधि का द्वार है।

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।।


बुद्धि विवेक हर लेता गुस्सा,नर हिंसक बन जाता है।

नीति नियम मर्यादा खोकर, अमर्ष उत्पात मचाता है।।

प्रतिघात पाप,आक्रोश शत्रु है, यह निकृष्ट कुविचार है।

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।।


करुणा ममता प्यार न होता, क्रोधावेग जब आता है।

झल्लाते चिल्लाते सब पर,रक्त विकृत हो जाता है।। 

क्रोध दोष है, क्रोध जुर्म है, यह मन का अंधियार है।

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।।


बचें, बचाएं  महादोष से, यह अत्यंत ही घातक है। 

क्रोधावेग को दूर करें हम,यह जघन्य सा पातक है।।

शुभ कार्य में समय लगाएं,शमन इसका सुविचार है।

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।।

उमेश यादव

जन्मदिवस पर आज

 *जन्मदिवस पर आज*

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।

जीवन का हर क्षण हो सुखमय,हो हर पल सुखदाई।।

बधाई बधाई, हो बधाई बधाई।। 


रहो सदा आनंदित होकर,मंजिल अपनी पाओ।

मुस्कानों की कलियों को तुम,पुष्पों सा विहंसाओ।।

सुरभित रहे दशों दिशाएं,हो ना कोई कठिनाई।

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।


मंगलमय शुभ संकल्पों से, भरा हो तेरा जीवन।

शुभ कर्मों के पुष्प खिले हों,हर्ष भरा हो चितवन।।

सुयश कीर्ति विस्तृत हो जैसे, संध्या की परछाई। 

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।


हो चिरंजीव,हो शतंजीव, हो परहितमय जीवन। 

परिजन सखा सुखी रहें,हो खुशियों का आँगन।। 

मातु पिता गुरुजन तेरे हों, आजीवन वरदाई।

जन्मदिवस पर आज सभी,देते हैं तुम्हें बधाई।।


सद्गुण की सुरभि से महके,जीवन का ये उपवन।

हो महानता ऐसा जैसे,चमके रवि का रश्मि कण।।

अखिल विश्व का कण कण हो, तेरे हित सुखदाई। 

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।

-उमेश यादव –

शुभ जन्मदिन,शुभ जन्मदिन,शुभ जन्मदिन,शुभ कामना।

 *शुभ जन्मदिन*

शुभ जन्मदिन,शुभ जन्मदिन,शुभ जन्मदिन,शुभ कामना।

हो शतंजीव, हो चिरंजीव, हो नित्य प्रसन्न, शुभ भावना।।


सद्गुणी हों, सदाचारी हों, सदा सुखी हों, परोपकारी हों।

शूर वीर हों, कर्मवीर  हों, सद्ग्यानी हो, न्यायकारी हों।।

जीवन का हर क्षण हो सुखमय, हर पल जीवन साधना।

हो शतंजीव, हो चिरंजीव, हो नित्य प्रसन्न, शुभ भावना।।


सम्पूर्ण धरा में,जलधि गिरा में,अखिल विश्व में जय हो।

प्रेम दया करुणा हो उर में, निश्छल हो सरल ह्रदय  हो।। 

साहस शौर्य उत्साह भरे हों, करें राष्ट्र आराधना।

हो शतंजीव, हो चिरंजीव, हो चिर प्रसन्न, शुभ भावना।। 


उष्ण रक्त,मस्तिस्क सौम्य हो,वाक् प्रखर हो,बोधगम्य हो।

अनुपमेय हो कार्य तुम्हारे, जीवन का उपवन सुरम्य हो।। 

सबमें निज स्वरूप को देखें, अहर्निश स्वयं की साधना।

हो शतंजीव, हो चिरंजीव, हो नित्य प्रसन्न, शुभ भावना।। 


ओजस्वी हो, प्राणवान हो, यशस्वी हो, कीर्तिवान हो।

तेजस्वी हो, गुणों की खान हो, तपस्वी हो, तू महान हो।।

भाव तुम्हारे सदा पवित्र हो, ईश्वर की हो उपासना।  

हो शतंजीव, हो चिरंजीव, हो नित्य प्रसन्न, शुभ भावना।।

-उमेश यादव

आत्मबोध – तत्वबोध

 *आत्मबोध – तत्वबोध* 

हर दिन अपना नया जन्म है,रात्रि समझो देहावसान है। 

हर दिन का रख लें हम लेखा,भूल सुधार बनते महान हैं।। 


सुबह सबेरे जगते ही हम, आत्मबोध का भाव जगाएं। 

नया जन्म है एक दिवस का,यही सोच शुभ करें कराएं।।

दिनभर अच्छे कार्य ही करना,सांझ ढले सुर्यावसान है।

हर दिन अपना नया जन्म है,रात्रि समझो देहावसान है।। 

 

काम करें ऐसा की जिसमें, औरों का कल्याण छुपा हो।

कदम बढ़े उधर ही जिसमें,दुखियों का उत्थान छुपा हो।।

ध्वंस सरल है,सृजन कठिन है,सन्मार्ग नहीं आसान है।

हर दिन अपना नया जन्म है,रात्रि समझो देहावसान है।। 

 

रात्री प्रहर,विश्राम से पहले,तत्वबोध कर मनन करें हम। 

क्या अच्छा,क्या बुरा हुआ,सोने से पहले गणन करें हम।।

स्वर्ग नरक कर्मों से ही है, प्रतिदिन का  यह ध्यान है।

हर दिन अपना नया जन्म है,रात्रि समझो देहावसान है।। 

 -उमेश यादव –

बड़े जतन से गुरु आप मिले हो (किस्मत से तुम हमको मिले हो)

 *बड़े जतन से गुरु आप मिले हो (किस्मत से तुम हमको मिले हो)*


बड़े जतन से गुरु आप मिले हो,

गुरुवर मैं  धन्य हुआ, ये जीवन धन्य हुआ, 

बड़े जतन  गुरु, आप मिले हो,

गुरुवर मैं तो धन्य हुआ, ये जीवन धन्य हुआ, 


हाथ पकड़ लो मेरा अब तो,दूर करो अन्धेरा अब तो 

दे दो अब हाथ तेरा, 

बड़े जतन से  आप मिले हो,

गुरुवर मैं धन्य हुआ, ये जीवन धन्य हुआ, 

हाथ पकड़ लो मेरा अब तो,दूर करो अन्धेरा अब तो 

दे दो अब साथ मेरा, 

बड़े जतन से हमें  मिले हो,

गुरुवर मैं धन्य हुआ, ये जीवन धन्य हुआ, 


गुरुवर जबसे आप मिले हो,जीवन का शूल गया

याद रहे बस तुम माताजी,कष्टों को भूल गया 

कष्ट हरण कर तारा हमको,डूब रहा था उबारा हमको

जीवन को तार दिया, तुमने ही प्यार दिया  

बड़े जतन से गुरु आप मिले हो,

गुरुवर मैं धन्य हुआ, ये जीवन धन्य हुआ,

अँधेरों में भटक रहा था,जीवन पथ में अटक रहा था

तुमने प्यार दिया  

बड़े जतन से हमें मिले हो,

गुरुवर मैं तो धन्य हुआ, ये जीवन धन्य हुआ,

हाथ पकड़ लो मेरा अब तो,दूर करो अन्धेरा अब तो 

दे दो अब हाथ तेरा, 


हाथ पकड़कर साथ चलाया,सत्कर्मों की राह दिखाया

अज्ञानी था तूने पढ़ाया, जीवन में कुछ योग्य बनाया

साहस दे उत्साह जगाया, प्राणशक्ति दे सबल बनाया 

सांसों में बस तुम्ही बसे हो,रोम रोम में तुम्ही रचे हो 

हो प्राण हमारा

बड़े भाग्य से गुरु आप मिले हो,

गुरुवर मैं तो धन्य हुआ, ये जीवन धन्य हुआ, 

हाथ पकड़ लो मेरा अब तो,दूर करो अन्धेरा अब तो 

दे दो अब हाथ तेरा,

-UMESH YADAV

हे गुरुवर, नमन है बारम्बार* (पवन सूत विनती बारम्बार )

 *हे गुरुवर, नमन है बारम्बार* (पवन सूत विनती बारम्बार )
*हे गुरुवर, नमन है बारम्बार* (पवन सूत विनती बारम्बार )
हे करुणाकर, अब तो कृपाकर,सुन लो शिष्य पुकार।
हे गुरुवर, नमन है बारम्बार।।
 
तप:पूत अद्भुत बुद्धि ज्ञाना, वेदमूर्ति प्रभु कृपा निधाना।
गुरु ईश्वर हैं साथ में स्वामी, दूर करो अन्धकार।।
हे गुरुवर, नमन है बारम्बार।
हे करुणाकर,अब तो कृपाकर,सुन लो शिष्य पुकार।
हे गुरुवर, नमन है बारम्बार।।
 
यज्ञ पिता गायत्री माता, जोड़ा इनसे जग का नाता।
ऋषियों के सब काज सँवारे, भर दो प्रखर विचार।।
हे गुरुवर, नमन है बारम्बार।
हे करुणाकर,अब तो कृपाकर,सुन लो शिष्य पुकार।
हे गुरुवर, नमन है बारम्बार।।
 
गुरुरूप ईश्वर अवतारी, दिए ज्ञान मेटे अंधियारी।
भक्तिभाव से तुम्हें पुकारूं, कर दो मेरा उद्धार।।
हे गुरुवर, नमन है बारम्बार।
हे करुणाकर,अब तो कृपाकर,सुन लो शिष्य पुकार।
हे गुरुवर, नमन है बारम्बार।।
 
जय श्रीराम जगत हितकारी, जय गुरुदेव जग मंगलकारी।
हम भी तेरे शरण में आये, भव से कर दो पार।।
हे गुरुवर, नमन है बारम्बार।
हे करुणाकर, अब तो कृपाकर, सुन लो शिष्य पुकार।
हे गुरुवर, नमन है बारम्बार।।
-उमेश यादव
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दशावतार –मानव विकास की कथा

*दशावतार –मानव विकास की कथा* 

जय जगदीश्वर,परम पिता प्रभु, तुमने है संसार बनाया|  

सृष्टि सृजन में दशावतार ले,यह अद्भुत संसार बसाया॥

                      तुमने सुन्दर जगत बसाया॥


दशावतार मानव विकास के, अनुक्रम को बतलाता है| 

घटघट वासी ईश्वर का अनुपम,रूप हमें दिखलाता है॥

हर कथा कहानी ग्रंथों में है,अति अद्भुत ज्ञान समाया|

जय जगदीश्वर,परम पिता प्रभु, तुमने है संसार बनाया॥0॥ 


महाप्रलय पश्चात सिन्धु था, जलीय जीव विकसाए थे|

सतत विकास के क्रम में भगवन,मीन रूप धर आये थे॥

वेद ज्ञान संचित रख प्रभु ने,नवल सृजन का शंख बजाया|

जय जगदीश्वर,परम पिता प्रभु, तुमने है संसार बनाया॥1॥  


विकसित हुए उभयचर प्राणी, जल-थल में जीव विराजे| 

उभय स्थान पर रहने वाले, जीव जंतु जगत में साजे॥

कछुए का प्रभु रूप धरे तुमने, धरती का भार उठाया| 

जय जगदीश्वर,परम पिता प्रभु, तुमने है संसार बनाया॥2॥ 


जल जमीन अलग होने तक,पंक-कीच में सना हुआ था| 

शुकर समान जीव थे भूपर, दलदल गारा बना हुआ था॥ 

वराह रूप लेकर श्री हरि ने, तब दांतों से इसे जमाया|

जय जगदीश्वर,परम पिता प्रभु, तुमने है संसार बनाया ॥3॥ 


वन सम्पदा बढ़ी धरती पर,वन का जीव फिर आया था|

प्रगति के क्रम में धरती पर,जंतु नर-पशु सा आया था॥ 

मानव विकास के क्रम में प्रभु ने नर-सिंह रूप दिखाया|

जय जगदीश्वर,परम पिता प्रभु, तुमने है संसार बनाया ॥4॥


वनमानुष सा लघु मानव का, धरती पर आवास हुआ|

इस कालखंड में ही मानव का,लघु से पूर्ण विकास हुआ॥

वामन रूप से विकसित मानव बन, पूर्ण धरा पर छाया|

जय जगदीश्वर,परम पिता प्रभु, तुमने है संसार बनाया॥5॥ 


पाषाण युगीन मानव था तब, आखेट किया करता था| 

परशु कुठार पत्थर से अपना, रक्षण पोषण करता था॥

परशुराम अवतार ने सबको, उस युग का भान कराया|

जय जगदीश्वर,परम पिता प्रभु, तुमने है संसार बनाया॥6॥ 


बर्बर था मानव जाति तब, दैत्यों ने त्राहि मचाया था  

मानव थोडा सभ्य हुआ था, धनुष बाण अपनाया था॥ 

नीति नियम मर्यादा का युग, श्रीराम राज्य में आया| 

जय जगदीश्वर,परम पिता प्रभु, तुमने है संसार बनाया॥7॥


चक्र मुरली हल हाथ लिए प्रभु, श्रीकृष्ण रूप में आये| 

ज्ञान कर्म और भक्ति योग का, गीता ज्ञान सुनाये॥

कृषि और गोपालन से हमने, प्रगति का कदम बढ़ाया|

जय जगदीश्वर,परम पिता प्रभु, तुमने है संसार बनाया॥8॥ 


करुणा ममता धर्म अहिंसा, का व्यापक विस्तार हुआ| 

मानव में अब बुद्धि बढ़ी थी,मानवता का उपकार हुआ॥

बुद्ध रूप में हे भगवन तुमने, विज्ञ मानव विकसाया| 

जय जगदीश्वर,परम पिता प्रभु, तुमने है संसार बनाया॥9॥ 


प्रगति के पहिये में पंख लगे,चन्द्र तारक तक हम पहुंचे|

अनु में, विभु में,दिग दिगंत तक,नभ से भी हो गए ऊँचे॥

कल्कि-प्रज्ञा अवतार प्रभु ने,मन-चिंतन को श्रेष्ठ बनाया|

जय जगदीश्वर,परम पिता प्रभु, तुमने है संसार बनाया॥10॥

-उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार 

सदगुरु ही राह दिखाते हैं

 *सदगुरु ही राह दिखाते हैं*  


शिष्यों को सन्मार्ग दिखाए,गुरु तो वही कहाते हैं।

भटक रही मानवता को, सदगुरु ही राह दिखाते हैं।। 


नाव भँवर में गोते खाकर,पाप कीच में धंस जाता है।

मंझधार पतवार हमारा,हाथ से छूटकर बह जाता है।।

गुरु ही अपनी नैया में ले, भवसागर पार कराते हैं।

भटक रही मानवता को, सदगुरु ही राह दिखाते हैं।।


देश जभी खतरे में होता,संस्कृति पर हमले होते हैं।

शौर्य हमारा चुक जाता है,साहस बस जुमले होते हैं।।

जीवन जब संकट में होता, गुरु ही प्राण बचाते हैं। 

भटक रही मानवता को, सदगुरु ही राह दिखाते हैं।। 


चिंतन में अंधियारा फैला,हुआ चरित्र मनुज का मैला। 

मानवता का पतन हुआ जब,आचरण भी हुआ कसैला।।

युग निर्माण करने ईश्वर तब, गुरु बन भूपर आते हैं।

भटक रही मानवता को, सदगुरु ही राह दिखाते हैं।। 


धर्म आडम्बर जब है बनता, कर्म कुकर्मों से है सनता।

सत्कर्मों से दूर भाग जब, मानव विषयों में है रमता।। 

आस्था संकट से उबारने, गुरु ही ज्ञान सिखाते हैं।

भटक रही मानवता को, सदगुरु ही राह दिखाते हैं।।

-उमेश यादव 19-11-21

रानी लक्ष्मी बाई

 *रानी लक्ष्मी बाई* 

मोरोपंत और भागीरथी की, मणिकर्णिका दुलारी थी। 

वाराणसी की वीर छबीली, मनु  दुर्गा अवतारी थी।।   


बाजीराव के राज सभा में, बचपन उनका बीता था। 

शास्त्रों की ज्ञाता थीं उनको, प्रिय रामायण गीता था।।

दरबारी बचपन से थी तो, राज काज में दक्ष रहीं । 

प्रजाहित की समझ उसे थी,न्याय हेतु निष्पक्ष रहीं।। 

शिवा थे आदर्श मनु के, समर भूमि फुलवारी थी।

वाराणसी की वीर छबीली, मनु दुर्गा अवतारी थी।।   


शस्त्र चलाना बचपन से ही,,बड़े  चाव से सीखा था।

भाला बरछा तलवारों से,मनु से न कोई जीता था।।

तीर कमान समशीर सदा, हाथों में शोभा पाते थे।

बड़े बड़े योद्धा भी उनसे,लड़कर हार ही जाते थे।। 

दुश्मन तो थर थर कापें थे,जब उनने हुंकारी थी।

वाराणसी की वीर छबीली, मनु दुर्गा अवतारी थी।।   


राव गंगाधर संग फेरे ले, अब झाँसी की रानी थी।

मनु से लक्ष्मी बाई बनी वो,आगे असल कहानी थी।

अंग्रेजों के हड़प नीति ने, झांसी को अवसाद दिया। 

किया खजाना जब्त राज्य का,राजकोष बर्बाद किया।।  

झाँसी को रक्षित करने का,संकल्प लिए ये नारी थी।

वाराणसी की वीर छबीली, मनु दुर्गा अवतारी थी।।   


रणचंडी बन कूद पड़ी वह, अंग्रेजों से टकराई थी। 

युद्ध भूमि में रण कौशल से,उनको धुल चटाई थी।।

हारी गयी अंग्रेजी सेना,कालपी ग्वालियर भी हारी।

झांसी की रानी काली बन,रिपुओं पर वो थी भारी।।

वीरगति को पायी रानी, वीरांगना अवतारी थी। 

वाराणसी की वीर छबीली, मनु दुर्गा अवतारी थी।।   

उमेश यादव

बिरसा भगवान

 *बिरसा भगवान*

बिरसा भगवान् गरीब का,निर्बल का हमराही था।  

अंग्रेजों को धूल चटाया,भारत का वीर सिपाही था।।


उलीहातू खूंटी में पैदा,धरती का वह लाल हुआ।

सुगना-कर्मी पूर्ति का घर-आँगन तब खुशहाल हुआ।।

करुण प्रेम से भरा ह्रदय था,जन सेवा ही प्यारा था। 

“धरती आबा” बने थे वे तो,नाम ही उनका न्यारा था।।

किया विरोध उनने अनीति का,और जो तानाशाही था।

अंग्रेजों को धूल चटाया,भारत का वीर सिपाही था।।


पशु बलि और हिंसा को,मुंडा ने गलत बताया था। 

टोना जादू भुत प्रेत का,मन से वहम मिटाया था।।   

ईसाइयत स्वीकार नहीं, स्कूल से नाता तोड़ लिया।

“साहेब साहेब एक टोपी” वैष्णव से नाता जोड़ लिया।।

सिंगबोंगा या सूर्योपासना,का वह परम पुजाही था।

अंग्रेजों को धूल चटाया,भारत का वीर सिपाही था।।


फिरंगियों के अत्याचारों से जनवासी पस्त हुए थे।

धर्म-संस्कृति पर आघातों से वनवासी त्रस्त हुए थे।।

भू लगान से बुरा हाल था,झारखण्ड घबराया था।

सत्ता सुख में चूर फिरंगी,मद में अति बौराया था।।

अन्यायों से पीड़ित जनों का वह तो ही परछाही था।

अंग्रेजों को धूल चटाया,भारत का वीर सिपाही था।।


जल जंगल जमीन की खातिर,बिरसा ने संग्राम किया। 

‘उलगुलान’ करके मुंडा ने,गोरों को लहू लुहान किया।। 

तीर कमान भाले बरछे से,फिरंगी तब घबराया था।

कैद किया बिरसा को उनने,विष देकर मरवाया था।।

हुआ शहीद देशभक्त था,जन जन का इलाही था।

अंग्रेजों को धूल चटाया,भारत का वीर सिपाही था।।

-उमेश यादव, शांतिकुंज,हरिद्वार

हे सूर्य, षष्टी माता

 *हे सूर्य, षष्टी माता*

हे आदित्य भगवान जगत से, कष्ट,शोक संताप हरें।

हे सूर्य, षष्टी माता, निज भक्तों का कल्याण करें।। 


असुरों ने जब देवों पर ही, भीष्ण अत्याचार किया। 

हार गए तब देव असुर से,ऐसा प्रबल प्रहार किया।। 

देवों की माता अदिति ने, तप हेतु प्रस्थान किया ।

माँ छठी की कृपा हुई तब,दिव्य पुत्र वरदान दिया।।

अदिति पुत्र ने जय पाया, हम उनका ही ध्यान धरें।

हे सूर्य, षष्टी माता, निज भक्तों का कल्याण करें।। 


सूर्य पुत्र ने सुर्यार्चन से,बल ऐश्वर्या को पाया था।

सूर्य अर्घ्य और उपासना को, कर्ण ने अपनाया था।।

छठ व्रत से ही पांडव ने फिर,राज पाट को पाया था।

द्रौपदी ने व्रत करके ही, खोया मान लौटाया था।

जगपालक दिनमान सूर्य हैं,श्रद्धा सहित प्रणाम करें।

हे सूर्य, षष्टी माता, निज भक्तों का कल्याण करें।। 


माँ सीता संग श्रीराम ने, सूर्य षष्ठी व्रत अपनाया था। 

ऋषि मुद्गल ने रावणबध के,पापों से मुक्त कराया था।

माँ सीता ने विधि विधान से, माँ छठी का ध्यान किया। 

छः दिवस तक दोनों ने ही, माँ छठी को मान दिया।

भगवन भाष्कर संग में माता, छठी को प्रणाम करें। 

हे सूर्य, षष्टी माता, निज भक्तों का कल्याण करें।। 


सविता देव कल्याण करो प्रभु,भक्तों को वरदान दो।

धन धान्य संतान प्राप्ति हो,दुःख कष्टों से त्राण दो।।

हे दिनकर, हे कृपानिधान,सारे जग का कल्याण करो।

हे सविता, हे शक्तिपुंज,तम का जग से अवसान करो।।

भगवान सूर्य संग माँ षष्टी का,स्तुति अर्चन गान करें।

हे सूर्य, षष्टी माता, निज भक्तों का कल्याण करें।। 

उमेश यादव

छठ पर्व पर सूर्य देव

 *छठ पर्व पर सूर्य देव*

हे आदित्य भगवान जगत से, कष्टों का अवसान करें।

छठ पर्व पर सूर्य देव, निज भक्तों का कल्याण करें।।


असुरों ने जब देवों पर ही, भीष्ण अत्याचार किया। 

हार गए तब देव असुरों से,ऐसा था प्रहार किया।। 

देवों की माता अदिति ने तप हेतु प्रस्थान किया ।

माँ छठी की कृपा हुई तब,दिव्य पुत्र वरदान दिया।।

अदिति पुत्र ने जय पाया, हम उनका ही ध्यान धरें।

छठ पर्व पर सूर्य देव, निज भक्तों का कल्याण करें।।


सूर्य पुत्र ने सुर्यार्चन से,बल ऐश्वर्या को पाया था।

सूर्य अर्घ्य और उपासना को, उसने सदा निभाया था।।

छठ व्रत से पांडव ने फिर से,राज पाट को पाया था।

द्रौपदी ने व्रत करके उनको,खोया मान लौटाया था।

जगपालक दिनमान सूर्य को,श्रद्धा सहित प्रणाम करें।

छठ पर्व पर सूर्य देव, निज भक्तों का कल्याण करें।।


माँ सीता संग श्री राम ने, सूर्य षष्ठी व्रत अपनाया था। 

ऋषि मुद्गल ने रावणबध के,पापों से मुक्त कराया था।

माँ सीता ने विधि विधान से, माँ छठी को मान दिया। 

छः दिवस तक दोनों ने ही, माँ छठी का ध्यान किया।

भगवन भाष्कर संग में माता, छठी को प्रणाम करें। 

छठ पर्व पर सूर्य देव, निज भक्तों का कल्याण करें।।


सविता देव कल्याण करो प्रभु,भक्तों को वरदान दो।

धन धान्य संतान प्राप्ति हो, हर कष्टों से मां त्रान दो।।

हे दिनकर, हे कृपानिधान ,सारे जग का कल्याण करो।

हे सविता, हे शक्तिपुंज,तम का जग से अवसान करो।

भगवान सूर्य संग षष्टी माता का, स्तुति अर्चन गान करें।

छठ पर्व पर सूर्य देव, निज भक्तों का कल्याण करें।।

उमेश यादव

अन्तस के अँधियारे को,

 दीप से दीप जलाएँ ।।

अन्तस के अँधियारे को, आओ हम दूर भगायें।

दीप से  दीप जलाएँ, आओ  दीपावली  मनाएं।।

 

असुर नाश कर पुन: राम जब,अवधपुरी में आये थे।

नर - नारी आबाल वृध्द ने, घी के दीये जलाए थे।।


राम राज्य साकार हुआ था, अवधवासी हर्षाए थे।

सम्पूर्ण राष्ट्र ही धन्य हुआ था,गीत खुशी के गाये थे।।

आओ मन के  असुरों को भी, फिर से मार भगायें।

दीप  से  दीप  जलाएँ,  आओ  दीपावली  मनाएं।।


नरकासूर  ने  अत्याचार से, ऐसा  नर्क मचाया था।

देव पूजित नारियों को  ही, उसने बन्दी बनाया था।।

सत्यभामा संग श्रीकृष्ण ने, उनको  मुक्त कराया  था।

नरकासूर का नर्क मिटा कर,दीपोत्सव मनवाया था।।

नारी  का  अपमान नहीं, अब उनको सबल  बनाएं।

दीप  से  दीप  जलाएँ,  आओ  दीपावली  मनाएं।।


असुरों ने जब धरा धाम पर,भीषण अत्याचार किया।

माँ दुर्गा ने महाकाली बन, महिषासुर  संहार किया।।

तमसो मा सदगमय का फिर, भाव सर्वत्र जगाना है।     

हर कोना रोशन हो जाए, ऐसी ज्योति  जलाना   है।।

हम  बदलेंगे युग  बदलेगा, घर घर अलख जगाएं।

दीप  से  दीप  जलाएँ,  आओ  दीपावली  मनाएं।।


अन्तस के अँधियारे को, आओ हम दूर भगायें।
दीप से  दीप जलाएँ, आओ  दीपावली  मनाएं।।

असुर नाश कर पुन: राम जब, अवधपुरी में आये थे।
नर - नारी आबाल वृध्द ने, घी के दीये जलाए थे।।
हर कोना रोशन कर सबने, गीत खुशी के गाए थे।
तमसो मा ज्योतिर्गमय के, भाव सभी में छाए थे।।  

हम  बदलेंगे युग  बदलेगा, घर घर अलख जगाएं।
दीप  से  दीप  जलाएँ,  आओ  दीपावली  मनाएं।।

        -उमेश यादव,शांतिकुंज,हरिद्वार

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गुरुवर आप ही तो साथ हैं

 गुरुवर आप ही तो साथ हैं 
 
प्रखर प्रज्ञा पुंज गुरुवर, आप ही तो साथ हैं। 
मातु ममता स्नेह सर पर, वर दायी हाथ है।। 
 
आपके आशीष से ही, साँस चलते हैं हमारे। 
आपके वरदान से ही, प्राण पलते हैं हमारे।। 
आपही हैं रुधिर तन के,आप ही प्रभुनाथ हैं। 
प्रखर प्रज्ञा पुंज गुरुवर,आप ही तो साथ हैं।। 
 
आपके ही कृपा से,दिन रात अपने हो रहे हैं। 
दया से ही आपके प्रभु,दैन्यता को खो रहे हैं।। 
आप ही हैं गुरु हमारे, आप ही जगन्नाथ हैं। 
प्रखर प्रज्ञा पुंज गुरुवर, आप ही तो साथ हैं।। 
 
याचना है प्रभु तुमसे,दूर कर दुःख-कष्ट सबके। 
भाव उज्जवल हों हमारे,आपदा हों नष्ट जग के।। 
आप करुणा रूप गुरुवर, आप ही अधिनाथ हैं । 
प्रखर प्रज्ञा पुंज गुरुवर, आप ही तो साथ हैं।। 
-उमेश यादव 2-1-21
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हे माते हो कृपा तुम्हारी



हे माते हो कृपा तुम्हारी


हे माते हो कृपा तुम्हारी,सुत तेरे अति दु:ख पा रहे हैं।
हे करुणामयी मातु भगवती,आर्त भाव से बुला रहे है।।
ज्ञानामृत की धार पिलाई,करुणा का अध्याय सिखाया।
प्यार सदा ही हो जीवन में,यह सबमे विश्वास जगाया।।
अनुशासन सिखलाया तुमने, उससे जीवन चला रहे है।
हे करुणामयी मातु भगवती, आर्त भाव से बुला रहे है।।

मानव में देवत्व जगेगा, इसकी तुमने आस दिलाई।
स्वर्ग धरा पर ही उतरेगा,राह सही तुमने दिखालाई ।।
हे माँ शारदा जगत बचालो,असुर हमें अब रुला रहे हैं।
हे करुणामयी मातु भगवती,आर्त भाव से बुला रहे है।।
बिखर रहे हैं कुल कुटुंब सब,आकर माते पुनः सम्भालो।
मर्यादाएं भूल रहे हैं, सबको माँ फिर याद दिला लो।
राह मिटाने लगे हैं बच्चे, पथ में कांटे बिछा रहे हैं।
हे करुणामयी मातु भगवती,आर्त भाव से बुला रहे है।।

अमृत पान करा दो अंबे, दुःख कष्टों से मुक्त जगत हो।
सभी सुखी हों,रोगमुक्त हो,स्नेह प्रेम मय पूर्ण जगत हो।
तेरे चरणों में ही माते, सूत अनुपम सुख ले पा रहे है।
हे करुणामयी मातु भगवती,आर्त भाव से बुला रहे है।।

-उमेश यादव

जीजी आपके जन्मदिवस पर

 जीजी आपके जन्मदिवस पर


गीता के अवतरण दिवस पर,अभिवंदन स्वीकार करो। 

जीजी आपके जन्मदिवस पर,स्नेह सुमन स्वीकार करो।।

जन्मदिवस है, अवतरण दिवस है।जन्मदिवस है,आपका जन्मदिवस है।


युग निर्माण के महा अभियान को, दिग्दिगंत फैलाई हैं। 

विचार क्रांति के लाल मशाल, जन जन पहुंचाई हैं।

अखंड दीप की ज्योति जीजी, अंतस के अंधकार हरो। 

जीजी आपके जन्मदिवस पर,स्नेह सुमन स्वीकार करो।। 


तेरे अगुवाई  में हर दम ही, धर्मध्वजा फहराया है।।

ज्ञान क्रांति की दिव्य पताका, चहुँ ओर लहराया है। 

अज्ञान तिमिर से घिरे विश्व में, ज्ञान क्रांति संचार करो।

जीजी आपके जन्मदिवस पर,स्नेह सुमन स्वीकार करो।।


नारी जाग्रति अभियान  से, नारी को सम्मान मिला है। 

संस्कारों की परम्परा से, संतति को सद्ज्ञान मिला है।। 

गुरु मातु की तनुजा दीदी, गुरुपुत्रों के अवसाद हरो। 

जीजी आपके जन्मदिवस पर,स्नेह सुमन स्वीकार करो।।


स्वयं  वेदना में रहकर भी, अनुजों को है सदा हँसाया।  

अगणित घाव सहे पर तुमनें, दुष्टों को भी नहीं रुलाया।। 

मातृ रूप में हे जीजी माँ, अब उनका भी उपचार करो। 

जीजी आपके जन्मदिवस पर,स्नेह सुमन स्वीकार करो। 


व्यामोह में फसे पार्थ  को, योगेश्वर ने ज्ञान दिया था।

भारत राष्ट्र बने महान यह, श्रीकृष्ण ने ठान लिया था।।

कौरव दल छल बल संग बैठा, पार्थ प्रचंड हुंकार भरो।

गीता के अवतरण दिवस पर,अभिवंदन स्वीकार करो।।

-उमेश यादव

हे करूणानिधि गुरु हमारे

  *हे करूणानिधि गुरु हमारे*

हे करूणानिधि गुरु हमारे,आर्त भाव से तुम्हें पुकारूं।

तड़प रहा हूँ त्राण प्रभु दो,नतमस्तक हो हाथ पसारूं।।


जीवन सुगम रहा नहीं है,पथ काँटों से भरा हुआ है।

सांसारिक कष्टों से घिरकर,अंतस मेरा डरा हुआ है।।

दयानिधि अब दया करो प्रभु,सजल नयन से तुम्हें निहारूं।

हे करूणानिधि गुरु हमारे,आर्त भाव से तुम्हें पुकारूं।।

 

कुविचार ने मन को घेरा,तन निर्बल हो सता रहा है।

धन से निर्बल होकर जीवन,अपनी दुविधा जता रहा है।।

कष्टों का अम्बार खड़ा है,बोलो अब मैं किसे गुहारुं।

हे करूणानिधि गुरु हमारे,आर्त भाव से तुम्हें पुकारूं।।


चित भी अचित हुआ जाता है,कार्य सफल ना होते हैं।

जहाँ कहीं भी मन जाता है, मरीचिका में खोते हैं।।

अंध तमस से घिरा ,तुम्हीं बताओ क्या मैं विचारूं।

हे करूणानिधि गुरु हमारे,आर्त भाव से तुम्हें पुकारूं।।


जिस दिन से है थामा तुमको,सब कुछ अपना भूल चूका हूँ।

और परीक्षा लो मत गुरुवर,बहुत कष्ट दुःख झेल चुका हूँ।।

चाहे कष्ट मिले या सुख हो,सांस रहे तक तुझे पुकारूं।

हे करूणानिधि गुरु हमारे,आर्त भाव से तुम्हें पुकारूं।।

-उमेश यादव

गुरु गीता

 Umesh Yadav: गुरु गीता

योगपूर्णं तपोनिष्ठं वेदमूर्तिं यशस्विनम् ।। 

गौरवर्णं गुरूं श्रेष्ठं भगवत्या सुशोभितम्॥ 

कारूण्यामृतसागरं शिष्यभक्तादिसेवितम्। 

श्रीरामं सद्गुरूं ध्यायेत् तमाचार्यवरं प्रभुम्॥ 

 

हे योगपूर्ण, हे तपोनिष्ठ, हे वेदमूर्ति श्रीराम।

शिष्यों से पूजित सदगुरु को,बारम्बार प्रणाम।।

हे प्रेम मूर्ति, करुणा के सागर,गौरवर्ण ललाम।  

माँ भगवती संग गुरु तुम्हें है,बारम्बार प्रणाम।।

 

ऋषयः ऊचुः

गुह्यात् गुह्यतरा विद्या गुरूगीता विशेषतः।

ब्रूहि नः सूत कृपया श्रृणुमस्त्वत्प्रसादतः॥

 

जिज्ञासु ऋषियों के मन में,गुरुगीता का प्रश्न जगा।

नैमिषारण्य तीर्थस्थल में,ऋषियों का सत्संग चला।।

हे सूत,ऋषियों के हित में,इस विद्या का प्रसार करो।

गुरुगीता अति गुह्य ज्ञान का साधक में संचार करो।।  

सूत बोले यह भक्तितत्व है, है यह अनुसंधान।

माँ भगवती संग गुरु तुम्हें है,बारम्बार प्रणाम।।

 

कैलाश शिखरे रम्ये भक्ति सन्धान नायकम् ।।

प्रणम्य पार्वती भक्त्या शंकरं पर्यपृच्छत॥ १॥

ॐ नमो देवदेवेश परात्पर जगद्गुरो।

सदाशिव महादेव गुरूदीक्षां प्रदेहि मे ॥ २॥

केन मार्गेण भो स्वामिन् देही ब्रह्रामयो भवेत्।।

त्वं कृपां कुरू मे स्वामिन् नमामि चरणौ तव॥३॥

 

सूत बोले यह कथा है पावन,शिवधाम में सृजित हुआ।

शक्तिमय माता के मन में भक्ति तत्व अंकुरित हुआ।।

बोलीं शिव से दीक्षा दो प्रभु, जगद्गुरु कल्याण करो।

ब्रह्मस्वरूप जीव हों कैसे, शिष्य हूँ ज्ञान प्रदान करो।।

आदिशक्ति माँ शिष्य बनी, हैं आदिगुरू भगवान।

माँ भगवती संग गुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।। 

मम रूपासि देवित्वं त्वत्प्रीत्यर्थं वदाम्यहम्। 

लोकोपकारकः प्रश्नो न केनाऽपि कृतः पुरा॥ ४॥ 

दुर्लभं त्रिषु लोकेषु ततश्क्णुष्व वदाम्यहम् ।। 

गुरूं बिना ब्रह्म नान्यत् सत्यं सत्यं वरानने॥ ५॥ 

 

शिव बोले की, हे देवी,हर शिष्य ही आत्म स्वरूप है। 

जनहितकारी प्रश्न तुम्हारा,अति दुर्लभ और अनूप है।।

गुरु बिना कोई ब्रह्म नहीं है, सत्य यही उत्तर जानो।

गुरु शिष्य हैं एक सर्वदा, ब्रह्म स्वरुप गुरु को मानो।।

गुरु के प्राणों से प्राणित हो, बनते शिष्य महान।

माँ भगवती संग गुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

 

वेदशास्त्रपुराणानि इतिहासादिकानि च। 

मंत्रयंत्रादि विद्याश्च स्मृतिरूच्चाटनादिकम्॥ ६॥ 

शैवशाक्तागमादीनि अन्यानि विविधानि च। 

अपभ्रंशकराणीह जीवानां भ्रान्तचेतसाम् ॥ ७॥ 

 

वेद शाष्त्र पूराण ज्ञान,बिन गुरु निष्फल हो जाते हैं।

मंत्र यन्त्र स्मृति उच्चाटन, चित भ्रमित कर जाते हैं।।

शैव शाक्त आगम ज्ञान सब अर्थ हीन हो जाते हैं।

लौकिक आध्यात्मिक विद्या का,सार गुरु बतलाते हैं।।

गुरुकृपा की महिमा न्यारी, हर लेते अज्ञान।

माँ भगवती संग गुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

 

यज्ञो व्रतं तपो दानं जपस्तीर्थ तथैव च। 

गुरूतत्त्वमविज्ञाय मूढस्तु चरते जनः ॥ ८॥ 

गुरूर्बुद्धयात्मनो नान्यत् सत्यं सत्यं न संशयः। 

तल्लाभार्थ प्रयत्नस्तु कर्तव्यो हि मनीषिभिः॥ ९॥ 

 

गुरुतत्व के बिना श्रेष्ठ कर्म, भी हो जाते शापित हैं।

जप तप यज्ञ व्रत दान तीर्थ में गुरुतत्व अपेक्षित है।।

सदगुरु और प्रबुद्ध आत्मा, सदा एक हैं यह मानो।

मननशील मनीषी होकर श्रेष्ठ कर्म को ध्येय मानो।।

मूढ़मति से ज्ञानवान, सदगुरु तक  करो प्रयाण।

माँ भगवती संग गुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

 

गूढ़विधा जगन्माया देहेचाज्ञानसम्भवा। 

उदयो यत्प्रकाशेन गुरूशब्देन कथ्यते॥ १०॥ 

सर्वपापविशुद्धात्मा श्रीगुरोः पादसेवनात् ।। 

देहीब्रह्मभवेद् यस्मात् त्वत् कृपार्थं वदामि ते॥ ११॥ 

 

माया से आवृत ये जग है,अज्ञानी से गुप्त यही है।

सत्य ज्ञान जागृत गुरु करते,गुरुकृपा से मूढ़ नहीं है।।

सब पापों से मुक्त हो प्राणी, आत्म शुद्ध हो जाते हैं।

शिवशंकर बोले- देहधारी भी, ब्रह्मभाव पा जाते हैं।।

शिष्य प्रेमी गुरुदेव बने हैं, भक्त वत्सल भगवान्।

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

 

गुरूपादाम्बुजं स्मृत्वा जलं शिरसि धारयेत् ।। 

सर्वतीथावगाहस्य सम्प्राप्रोति फलं नरः ॥ १२॥ 

शोषकं पापपङ्कस्य दीपनं ज्ञानतेजसाम् ।। 

गुरूपादोदकं सम्यक् संसारार्णवतारकम् ॥ १३॥ 

अज्ञानमूलहरणं जन्मकर्मनिवारणम् ।। 

ज्ञानवैराग्यसिद्धर्य्थ गुरूपादोदकं पिबेत् ॥ १४॥ 

 

देवों के भी परम देव, गुरु महिमा समझाते हैं  

माँ पार्वती शिष्य भाव में,गुरुगीता सुन पाती हैं

स्मरण मात्र गुरुचरणों का, जब स्नान में आता है

सारे तीर्थों में नहान का,पुण्य फल मानव पाता है

गुरु कृपा ही केवलम, साधक का सत्य है जान 

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

 

पाप पंक सुखते शिष्यों के,दिव्य ज्ञान मिल जाता है

गुरु चरणों के जल पीने से, भव सागर तर जाता है

आध्यात्मिक उर्जा भरी रहे जहाँ गुरु का रहे निवास

गुरु धाम काशी मथुरा है,मुक्त हो साधक का श्वास     

गुरु चरणामृत से साधक गण,पाते सिद्धि और ज्ञान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

 

गुरोः पादोदकं पीत्वा गुरोरूच्छिष्टभोजनम् ।। 

गुरूमूर्तेः सदा ध्यानं गुरूमन्त्रं सदा जपेत्॥ १५॥ 

काशीक्षेत्रं तन्निवासो जाह्नवी चरणोदकम्। 

गुरूः विश्वेश्वरः साक्षात् तारकं ब्रह्मनिश्चितम्॥ १६॥ 

गुरोः पादोदकं यत्तु गयाsसौ सोऽक्षयोवटः। 

तीर्थराज प्रयागश्च गुरूमूर्त्यै नमोनमः॥ १७॥  

 

समर्थ साधना सार शिष्य का, चरणामृत का पान है

गुरु समर्पित भोज्य प्रसाद ही,जीवनोदक सा खान है

गुरुमूर्ति का ध्यान सदा और, गुरु मंत्र का जाप है

गुरु निवास ही मुक्ति दायिनी,काशी है, तीर्थराज है

गुरु चरणोदक गया तीर्थ हैं, विश्वनाथ भगवान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

 

गुरूमूर्तिं स्मरेत्रित्यं गुरूनाम सदा जपेत्।। 

गुरोराज्ञां प्रकुर्वीत गुरोरन्यन्न भावयेत्॥१८॥ 

गुरूवक्त्रस्थितं ब्रह्म प्राप्यते तत्प्रसादतः। 

गुरोर्ध्यानं सदा कुर्यात् कुलस्त्री स्वपतेर्यथा॥ १९॥ 

स्वाश्रमं च स्वजातिं च स्वकीर्तिं पुष्टिवर्धनम्। 

एतत्सर्वं परित्यज्य गुरोन्यत्र भावयेत् ॥ २०॥ 

 

हर क्षण गुरुवर की छवि,हर क्षण गुरु का नाम

हर पल गुरु आज्ञा निभे, गुरु भाव रहे अष्टयाम

गुर मुख  ब्रह्मा वास है,ब्रह्मवाक्य है गुरु वाणी  

गुरु कृपा से ब्रह्म मिले,कर निष्ठा से गुरु ध्यान

गुरुगीता के महामंत्र को, पारसमणि सम जान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

 

पतिव्रता प्राणेश का,ज्यों हर पल करती ध्यान 

साधक वैसा ही करें, हर क्षण गुरु का ध्यान

आश्रम जाति कीर्ति का, वर्धन हो अति गौण

गुरु भाव विकसाइए, अन्य भाव हो मौन 

शिव पार्वती संवाद से, जगत ने पाया ज्ञान 

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

 

अनन्यश्चिन्तयन्तो मां सुलभं परमं पदम् ।। 

तस्मात् सर्वप्रयत्त्रेन गुरोराराधनं कुरू॥ २१॥ 

त्रैलोक्ये स्फुटवक्तारो देवाधसुरपत्रगाः ।। 

गुरूवक्त्रस्थिता विद्या गुरूभक्त्या तु लभ्यते॥ २२॥ 

गुकारस्त्वन्धकारश्च रूकारस्तेज उच्यते। 

अज्ञानग्रासकं ब्रह्म गुरूरेव न संशयः॥ २३॥ 

गुकारः प्रथमो वर्णो मायादिगुणभासकः ।। 

रूकारो द्वितीयो ब्रह्म मायाभ्रान्ति विनाशनम्॥ २४॥ 

एवं गुरूपदं श्रेष्ठं देवानामपि दुर्लभं ।। 

हाहाहूहू गणैश्चैव गन्धर्वैश्च प्रपूज्यते ॥ २५॥

 

सदगुरु का चिंतन सदा, परम पद करे प्रदान 

शिव सुमिरन ही समझ करो,यत्न से गुरु ध्यान

देव नाग असुर त्रिलोक में, करते गुरु का गान 

गुरुभक्ति से ब्रह्मविद्या का, करते सभी बखान

महामंत्र का हर अक्षर है गुरु महिमा ज्ञान 

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

 

    गु जड़ता का तिमिर है,  रु से ब्रह्म प्रकाश,

संशय तनिक ना कीजिये,तम का करे विनाश

    माया सब हर लेत है ,गुरुवर का पुण्य प्रताप 

    गुरुपद ही सर्व श्रेष्ठ है ,देव दुर्लभ पद आप

    गण गन्धर्व सब पूजते, गुरु महिमा को जान 

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

 

ध्रुवं तेषां च सर्वेषां नास्ति तत्त्वं गरोः परम्। 

आसनं शयनं वस्त्रं भूषणं वाहनादिकम्॥ २६॥ 

साधकेन प्रदातव्यं गुरूसन्तोषकारकम् ।। 

गुरोराराधनं कार्य स्वजीवित्वं निवेदसेत् ॥ २७॥ 

कर्मणा मनसा वाचा नित्यमाराधयेद् गुरूम् ।। 

दीर्घदण्डम् नमस्कृत्य निर्लज्जोगुरूसन्निधौ ॥ २८॥ 

शरीरमिन्द्रियं प्राणान् सद्गुरूभ्यो निवेदयेत्। 

आत्मदारादिकं सर्व सद्गुरूभ्यो निवेदयेत् ॥ २९॥ 

कृमिकीट भस्मविष्ठा- दुर्गन्धिमलमूत्रकम्। 

श्लेष्मरक्तं त्वचामांसं वञ्चयेन्न वरानने ॥ ३०॥ 

 

अटल सत्य है शिष्य समझ लें,परम तत्व गुरु ही हैं

लोक कल्याण निरत रहते हैं,परम कृपालु गुरु ही हैं

परमारथ में लगे गुरु को अपना सब अर्पण कर दें

समर्पित करें तन मन धन,जीवन भी अर्पित कर दें 

साधना का पथ प्रदीप है इन, महामंत्रों का ज्ञान 

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

 

मन कर्म वचन से गुरु सेवा ही,शिष्यों का शुभ कर्म है

मान सदा है गुरु कार्य में,साष्टांग प्रणाम शिष्य धर्म है

तन मन इन्द्रिय प्राण परिजन गुरु कार्य को अर्पित हो

अधम तत्व से निर्मित तन भी गुरु कार्य को अर्पित हो 

इससे भला न श्रेष्ठ कार्य है,गुरु को सब कुछ मान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।  

 

संसारवृक्षमारूढा पतन्तो नरकार्णवे ।। 

येन चैवोद्घृताः सर्वे तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ ३१॥ 

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः ।। 

गुरूरेव परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ ३२॥ 

हेतवे जगतामेव संसारार्णवसेतवे। 

प्रभवे सर्वविद्यानां शंभवे गुरवे नमः ॥ ३३॥ 

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया। 

चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ ३४॥ 

त्वं पिता त्वं च मे माता त्वं बंधुस्त्वं च देवता। 

संसारप्रतिबोधार्थं तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ३५॥ 

 

संसार वृक्षारूढ़ जीवों को, भवसागर पार कराते हैं

नमन सद्गुरु भगवान तुम्हें,यमपुर से हमें बचाते हैं

गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, शिव हैं गुरु साकार।

परम ब्रह्म गुरु शिष्य के, नमन है बारम्बार।।

ज्ञानांजन देकर गुरु, हरते लेते  अज्ञान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।। 

 

शिव रूपी गुरु को है नमन,जो जगत के हेतु हैं 

समस्त विद्याओं  के उद्गम,संसार सागर सेतु हैं

अज्ञान तम के अंध को,ज्ञान प्रकाश भर देते हैं 

कृपा गुरु के हो जाने से,ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं

मातु पिता अरु इष्ट बंधू हैं,सत्य कराते भान 

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

 

यत्सत्येन जगत्सत्यं यत्प्रकाशेन भाति तत्। 

यदानन्देन नन्दन्ति तस्मै श्री गुरवे नमः॥ ३६॥ 

यस्य स्थित्या सत्यमिदं यद्भाति भानुरूपतः। 

प्रियं पुत्रादि यत्प्रीत्या तस्मै श्री गुरवे नमः॥ ३७॥ 

येन चेतयते हीदं चित्तं चेतयते न यम् ।। 

जाग्रत्स्वन्प सुषुप्त्यादि तस्मै श्री गुरवे नमः॥ ३८॥ 

यस्य ज्ञानादिदं विश्वं न दृश्यं भिन्नभेदतः। 

सदेकरूपरूपाय तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ ३९॥ 

यस्यामतं तस्य मतं मतं यस्य न वेद सः। 

अनन्यभावभावाय तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ ४०॥ 

 

सद्गुरु नमन के महामन्त्र में गहन तत्व का ज्ञान है 

प्रकृति गुरु परमात्म तत्व का अति विस्तृत विज्ञान है 

जिस सत्य से जगत सत्य है,आनंद से जगातानंद है 

नमन सद्गुरु को है जिनका, स्वरुप  सचिदानंद है 

मेरा परिवार बचाओ

 *मेरा परिवार बचाओ*

बेशक खुशियाँ खूब मनाओ, 

दशहरा,क्रिसमस,ईद मनाओ।

खुशियों के त्यौहार हैं सारे, 

पर मेरा परिवार बचाओ।।


खुश होने से किसने रोका,

नृत्य गान से किसने टोका।

बेजुबान हम बकरों ने तो, 

कभी नहीं हँसने से रोका।।

हम भी तेरे संग मिमियालें, 

आओ ऐसा पर्व मनाओ।

खुशियों के त्यौहार हैं सारे,

तुम मेरा परिवार बचाओ।।  


सोचो, तेरे बच्चों को जब, 

कोई भी थप्पड़ जड़ता है।

खून खौल जाता  है तेरा, 

मौका पा बदला लेता है।।

मेरे बच्चों से भी तुम तो,

थोडा सा ही रहम जताओ।

खुशियों के त्यौहार हैं सारे,

तुम मेरा परिवार बचाओ।।  


मानव हो तुम,ज्ञान तुम्हें है,

मुझ सा प्रज्ञाहीन नहीं हो।

वीर धीर गंभीर बहुत हो,

पशुओं सा बलहीन नहीं हो।।

नाहक अपने ताकत से क्यों, 

निर्दोषों के खून बहाओ।

खुशियों के त्यौहार हैं सारे,

तुम मेरा परिवार बचाओ।।

 

क्रूर नहीं हो फिर भी तुम तो,

मुझे मारकर हंसते हो।

कमजोरों की ह्त्या करके,

कायर बुजदिल  बनते हो।।

मेरे आंसू वाली खुशियां,

सभ्य लोग हो, नहीं मनाओ।

खुशियों के त्यौहार हैं सारे,

तुम मेरा परिवार बचाओ।।


शाकाहारी गुण हैं तेरे, 

मरी लाश तुम क्यों खाते हो।

परदुःख द्रवित होने वाले तुम,

 हमको क्यों तड़पाते हो।।

कृपा करो अब दया करो तुम,

अब तो मेरे प्राण बचाओ।

खुशियों के त्यौहार हैं सारे,

तुम मेरा परिवार बचाओ।।  


पाँव जोड़ हम में में करते,

बख्शो अब तो प्राण हमारे।

मेरे बच्चों को ना मारो, 

कर दो जीवन दान हमारे।।

तुमने ही पाला है मुझको, 

मार मुझे न ख़ुशी मनाओ।

खुशियों के त्यौहार हैं सारे,

तुम मेरा परिवार बचाओ।।

-उमेश यादव 21/7/21

युवाओं के आदर्श चिन्मय

*जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई*

हर युवा के *दिल की धड़कन,* जन्मदिवस  पर तुम्हें बधाई।।

*युवाओं के आदर्श चिन्मय*, जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई। 


आपका है जन्म पावन, मनुज को वरदान है। 

आपसे हर समस्या का,समुचित समाधान है।।

*युवाओं के शक्ति चिन्मय*,जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।। 


गुरुवर के अंश वंशज,प्रणव के प्रतिरूप हो। 

ज्ञान के सागर तुम्हीं हो,शैल के अनुरूप हो।।  

*ज्ञान के अग्रदूत चिन्मय,* जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई। 

    

प्रेरणा पाते तुम्हीं से,मिशन के अभियान का। 

योजनायें सफल होती,ज्ञान और विज्ञान का।। 

*मिशन का विश्वास चिन्मय*,जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई। 


राम का ही कार्य करने,अवतरण है आपका। 

चेतना है प्रखर उज्जवल,गुरु का,भगवान का।। 

*संस्कृति के दूत चिन्मय,* जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।


आपका निर्देश पाकर, मिशन बढ़ता जाएगा।

पताका ये क्रांति का, सर्वत्र ही लहराएगा।।

*मनुजता की आस चिन्मय*,जन्मदिवस की तुम्हें बधाई।


धन्य है जीवन हमारा,आपका शुभ स्नेह पाकर। 

दिव्यता से मन है भरता,आपके ही पास आकर।।

*प्रेरणा के श्रोत चिन्मय,* जन्मदिवस की तुम्हें बधाई। 

             -दीप्ति,आनंद,सरिता,उमेश

हैं किसान भगवान हमारे

 हैं किसान भगवान हमारे

हैं किसान भगवान हमारे, अन्नदाता कहलाते हैं।

मेहनत कर बंजर मिट्टी से, वे सोना उपजाते हैं।।


औरों के हित जीवन उनका,परहित प्राण लगाते है।

अथक परिश्रम से उनके हम,अपना भूख मिटाते हैं।।

स्वागत करें भूमिपुत्र का,वो सबके प्राण बचाते हैं।

हैं किसान भगवान हमारे, अन्नदाता कहलाते हैं।


हलधर के हल चलने से ही, पाँव हमारे चलते है।

प्रगति का पहिया भी उनके,श्रम  से आगे बढ़ते है।।

है विकास अधूरा जबतक,कृषक पीछे रह जाते है।


हैं किसान भगवान हमारे, अन्नदाता कहलाते हैं।।

उनका है अहसान जगत पर,उनसे अपना जीवन है।

है प्रत्यक्ष भगवान हमारे,हम उनके ही कारण है।।


आओ खेतिहर किसान के,महिमा की जय गाते हैं।

हैं किसान भगवान हमारे, अन्नदाता कहलाते हैं।।

उमेश यादव,शांतिकुंज,हरिद्वार

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र (नम:शिवाय पन्चाक्षरी स्तोत्र का पद्यानुवाद)

 श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र

(नम:शिवाय पन्चाक्षरी स्तोत्र का पद्यानुवाद)


हे चंद्रशेखर, हे सर्वेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय

हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।


नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नमः शिवायः॥


नागेन्द्र से कंठ शोभित तुम्हारे, त्रिलोचन प्रभु दिव्य महेश्वर।

भस्मांग रागी हे शिवशंकर, शाश्वत पूर्ण पवित्र दिगंबर।।

हे शिव शम्भू ‘न’ कार रूप में, नम: शिवाय ॐ नम:शिवाय ।

हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।।


मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।

मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नमः शिवायः॥


सुरसरि शोभित, चंदन,अकवन, बहुपुष्प अर्चित हे शिवशंकर।

प्रमथ गणों, नंदी के ईश्वर, बहुविधि पूजित नाथ महेश्वर।।

हे शिव शेखर ‘म’ कार रूप में नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।

हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।।


शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।

श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नमः शिवायः॥


हे नीलकंठ, हे धर्म ध्वज धारी, दर्प दक्ष का चूर किये तुम।

माँ गौरी के श्रीमुख कमल को,सविता जैसी दीप्ति दिए तुम।।

हे गिरिजापति ‘शि’ कार रूप में, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।

हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।।


वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय।

चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नमः शिवायः॥


ऋषि अगस्त्य,गौतम, वशिष्ठ, मुनियों से अर्चित हे परमेश्वर।

लोचन सूर्य, चन्द्र, पावक सम, देवाधिपति हे जगदीश्वर ।।

हे शिव भोले ‘व’ कार रूप में, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।

हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।।


यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।

दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नमः शिवायः॥


जटाधारी हे यक्ष स्वरूपा,पिनाक त्रिशूल हस्त शोभित रूपा।

सत्य,सनातन, दिव्य,पुरुष,हे देव दिगंबर अद्भुत रूपा।।

हे शिव सुन्दर ʼयʼ कार रूप में, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।

हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।।


पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥


शिव के सानिध्य मे रहकर जो , पुण्य पंचाक्षर पाठ करेगा।

शिव के संग आनंदित होकर , शिव लोक में वास करेगा।।

सत्य शिव और सुन्दर मन से, नम: शिवाय ॐ नम:शिवाय।

हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।।

-उमेश यादव,शांतिकुंज,हरिद्वार

धर्म ध्वजा फहरे

 धर्म ध्वजा फहरे

सत्य,प्रेम और न्याय की जग में, धर्म ध्वजा फहरे।

नवयुग  का  उद्घोष व्योम तक,  केशरिया  लहरे।।

त्याग, तपस्या, बलिदानों की, प्रेरक दिव्य पताका।

निविड़ निशा में घिरे विश्व की,अंजन ज्ञान शलाका।।

आस्था दृढ़, विश्वास प्रबल हो,  भक्ति भावना जागे।

साहस, बल, पुरुषार्थ प्रखर हो, असुर वृतियां भागे।।

ज्ञान कर्म और भक्तियोग की, साध सधे अब गहरे।

नवयुग  का  उद्घोष व्योम तक,  केशरिया  लहरे।।1

चिंतन,चरित्र,व्यवहार सभी के,सबके मन को भावे।

संयम,  सेवा, स्वाध्याय  का,  साथ मनुजता पावे।।

तन बलिष्ठ और मन पवित्र हो,सेवामय जीवन हो।

मिलजुल कर सब रहें प्रेम से,सबमें अपनापन हो।।

श्रद्धा,  प्रज्ञा,  निष्ठां  के हों,  भाव मनों  में गहरे।

नवयुग  का  उद्घोष व्योम तक,  केशरिया  लहरे।।2

शहीद, सुधारक, संतों का,सम्मान जगत में फैले।

लोभ, मोह और अहंकार से,रहें न अब कोई मैले।।

ओज, तेज, वर्चस धारण कर,हम अद्भुत कर पायें।

सादा जीवन, उच्च विचार का, मंत्र सभी अपनाएँ।।

गुण, कर्म, सुभाव से बने श्रेष्ठ औ’मनुज देव बन विचरें।

नवयुग  का  उद्घोष व्योम तक,  केशरिया लहरे।।3

दिग-दिगंत तक,आदि अनंत तक,क़दम बढ़ाकर नापें।

धरती से अवनी, अम्बर, चहुँ ओर श्रेष्ठता व्यापे।।

विचार क्रांति अभियान हमारा,फैले दसों दिशा में।

लाल-मशाल के साथ चलें हम,तम की गहन निशा में।। 

बढ़े कदम,  पीछे  न हटायें, भले विकट हों लहरें।

नवयुग का  उद्घोष  व्योम तक,  केशरिया लहरे।।4

ममता समता शुचिता सबमें, साहस सब अपनाएँ। 

नयी धरा हो,  नया गगन हो, नव संसार बसायें।।

मानव में देवत्व उदय कर, स्वर्ग धरा पर लाना।

युग निर्माण है लक्ष्य हमारा,निश्चित ही है पाना।।

मंजिल मिल जाने से पहले, कहीं नहीं हम ठहरे।

नवयुग का उद्घोष व्योम तक, केशरिया लहरे।।5

-              उमेश यादव 19-2-21

गुरुवर के दिव्य संदेश वाहक

 गुरुवर के दिव्य संदेश वाहक,

प्रखर चेतना के प्रखर पुंज तुम हो।

ज्ञान रूप गुरुवर के दिव्य साधक,

नवल चेतना,नव्य शांतिकुंज तुम हो।।


तुम्ही से जगत ने नई शक्ति पाई,

अध्यात्म ने नव विस्तार पाया।

धर्म को विज्ञान से तुमने जोड़ा, 

अध्यात्म का लाभ संसार पाया।।

प्रखर ज्ञान संचार कर्ता जगत के,

अदभुत प्रतिभा के पुंज तुम हो।

ज्ञान रूप गुरुवर के दिव्य साधक,

नवल चेतना नव्य शांतिकुंज तुम हो।।


युवावर्ग  के मार्गदर्शक तुम्हीं हो,

प्रेरणा ले तुम्ही से सन्मार्ग पाया।

भावना शून्य भौतिकता से हुए थे,

अध्यात्म अमृत उनको चखाया।।

आदर्श हो तुम युवा के, जगत के,

सन्मार्ग दर्शक प्रेरणा पुंज तुम हो।

ज्ञान रूप गुरुवर के दिव्य साधक,

नवल चेतना नव्य शांतिकुंज तुम हो।।

 

गुरुवर के गूढ़ सूत्रों को तुमने, 

सहज भाव कर के जग को बताया। 

अध्यात्म के मर्म का ज्ञान देकर,

मानवी चेतना को उन्नत बनाया।।

अवतरण है तुम्हारा देवत्व को सिखाने,  

प्रखर दिव्य शक्ति,चेतनापुन्ज तुम हो।। 

ज्ञान रूप गुरुवर के दिव्य साधक,

नवल चेतना नव्य शांतिकुंज तुम हो।।

-उमेश यादव

मंगलवार, 29 नवंबर 2022

*हम कथा सुनाते शातिकुन्ज युगधाम*

 *हम कथा सुनाते शातिकुन्ज युगधाम*

ॐ श्री महा गनाधिपतये नमः।

ॐ श्री उमामहेश्वराभ्याम नमः।।

परम पूज्य गुरुदेव के,पद  पंकज सिर नाय।

सुमिरे मातु भगवती,हमपर होहिं सहाय।।

माँ गायत्री वंदनाकरते बारम्बार।

गुरुजन,परिजन,विज्ञजन नमन करो स्वीकार।। 

हम कथा सुनाते शांतिकुंज युग धाम की।

हम कथा सुनाते शांतिकुंज युग धाम की।।

ये कर्मभूमि है इस युग के श्री राम की।

जम्बुद्वीपे, भरत खंडे, आर्यावर्ते, भारतवर्षे।

एक नगरी है हरिद्वार शांतिकुंज नाम की।।

यही कर्मभूमि है परम पूज्य श्री राम की।

हम कथा सुनाते गुरुवर पूज्य ललाम की।।

ये कर्मभूमि है इस युग के श्री राम की।

ये कर्मभूमि है  वेद मूर्ति श्री राम की।।

ईश्वर भक्त ब्राह्मण पुण्यात्मा।रूपकिशोर पण्डित धर्मात्मा।।

भागवत कथा यज्ञ करवाये।धर्म कर्म का शुभ फल पाये।।

द्विज घर जन्मे राम हमारा।दानकुंवरी सूत जगत आधारा।।

ध्यान यज्ञ सेवा शुभ कामा।अछूत उद्धार दीनन को थामा।। 

गुरु मालवीय के गुरुकुल जाके।गुरु मंत्र दीक्षा तब पाके।।

पूरण हुई दीक्षा,गुरुवर पूज्य श्रीराम की।

हम कथा सुनाते,शांतिकुंज युग धाम की।

ये कर्मभूमि है इस युग के श्री राम की।।

ब्रह्म तेज प्रखर साधना,देशभक्ति के रंग।

स्वाधीनता संग्राम लडे,रण बांकुरों  संग।।

सर्वेश्वरानंद ऋषि आये।बहु जन्मों के दृश्य दिखाए।।

तप कठिन ऋषि ने करवाए।तपोनिष्ठ श्रीराम कहाए।।

ऋषि सर्वेश्वरानंद संगहिमगिरी गए श्रीराम।

ऋषि मुनि से शुभ मिलन कर,गुरु पहुंचे गुरु धाम।।

शांतिकुंज उत्सव है भारी,शांतिकुंज उत्सव है भारी।

नव युग का निर्माण करेंगे, गुरुवर अवतारी।।

शांतिकुंज उत्सव है भारी।

पूज्य गुरुवर का प्रण है,नवयुग के निर्माण की।

आओ जय जयकार करे युग ऋषि पूज्य श्रीराम की।।

सब ऋषियों की एक ही बात।नवयुग का अब हो शुरुआत।।

श्रीराम प्रज्ञा  के अवतार।निज गुरु की आज्ञा सिरधार।।

सहज भाव से प्रण गुरु कीन्हा।गुरु कार्य सर माथे लीन्हा।।

पर हित सबसे श्रेष्ठ धर्म हैदुःख बंटाना श्रेष्ट कर्म है।।

गुरुवरवर का प्रण,नवयुग के निर्माण की।।

हम कथा सुनाते, शांतिकुंज युग धाम की।।

ये कर्मभूमि है इस युग के श्री राम की।।

भ्रम व भय से मुक्त कराया।नारी को सम्मान दिलाया।।

धर्म संस्कृति की रक्षा को।घर घर में जा अलख जगाया।।

कल्प-साधनानारी-जागृतिचान्द्रायण।

सूक्ष्मी-करण राष्ट्र-जागरण,ब्रह्मवर्चस निर्माण।।

ज्ञान ज्योति अखंड जलायाविचार क्रांति का विगुल बजाया।।

बहु विस्तार मिशन ने पायासुख शांति घर घर पहुंचाया।।

काल चक्र के घटना क्रम में,ऐसा चक्र चलाया।

शांतिकुंज आश्रम में फिर,एक विपदा आया।।

कुञ्ज में ऐसाऐसा इक दिन आया।

एक दुष्ट पापी ने गुरु को,गहरा घात लगाया।।

कुञ्ज में ऐसाऐसा इक दिन आया।

चल पड़े मनुज जब छोड़ कर,धर्म नीति न्याय को।

पाषाण हो जाए ह्रदय,करने लगे अन्याय वो।।

रुधिर पायी भाव से यह,मनुज करुणा हीन है

बुद्धि विवेक नीति त्यागे,मनुज भी अति दीन है।।

आधि व्याधि से त्रसित विश्व हैरोग शोक से ग्रसित विश्व है 

मानवता को खो बैठे हम,सभ्य समाज के वासी।

तभी ज्ञान का दीप दिखाया,गुरु गृहस्थ  सन्यासी।।

उन गुरु परम उदार का,श्री राम  शुभ नाम।

वेदमूर्ति गुरु  तपोनिष्ठ ने,कर दिए अद्भुत काम।।

जग में ज्ञान क्रान्ति फैलाए।सबको मानवता सिखलाये।।

मनुष्य में देवत्व का जागरण और धरती पर स्वर्ग जैसे वातावरण बनाने वाला समय अब बहुत ही निकट है।युग परिवर्तन में चिंतन आचरण और व्यवहार के सभी पक्षों का आमूलचूल परिवर्तन होगा।शान्तिकुञ्ज व्यक्तित्व गढ़ने की टकसाल है।जातिसंप्रदायधर्मपंथ आदि संकीर्णताओं से ऊपर उठकर लोगों को यह जीवन जीने की कला सिखाता है।उन्हें आत्मवादी जीवन जीने की प्रेरणा देता है। हर धर्म-वर्ग के लोग यहाँ आकर साधना करते हैंशिक्षण लेते हैं।यहाँ शरीरमन व अंत:करण को स्वस्थसमुन्नत बनाने के लिए अद्वितीय अनुकूल वातावरणमार्गदर्शन एवं शक्ति-अनुदान मिलते हैं।शान्तिकुञ्ज व्यक्ति को अंध विश्वासमूढ़मान्यताभाग्यवाद आदि से उठकर कर्मवादी बनने की प्रेरणा देता है।शान्तिकुञ्ज प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुरुप सयुंक्त परिवारों के प्रचलन को प्रोत्साहित करने वाला आदर्श केन्द्र है। शान्तिकुञ्ज सेवा और परोपकार की भावना को प्रोत्साहित करता है।गायत्री चेतना (युगचेतना) का विश्वयापी विस्तार यहाँ से हो रहा है। यहाँ के शिक्षण में धर्म विज्ञान का समन्वय है

सजल श्रद्धा है जहाँ, प्रखर प्रज्ञा है जहाँ,गुरु के चरण में सहज सुख पाते है।

ऋषि मुनियों का वास,देवी देवता निवास,तीर्थ शांतिकुंज में, अनंत शांति पाते है।।

कष्टों में पड़े हैं जो भी, दुःख में अड़े हैं जो भी,दीप दर्शन कर, गहन शांति पाते हैं

गंगा माता की शरण,माँ गायत्री के चरण,गुरुजी के ध्यान से अनंत शक्ति पाते हैं।।

नित्य यज्ञ होता यहाँ,नित्य जप होता यहाँ,साधकों के मन से कलुष मिट जाते हैं

राष्ट्र के पुरोहित हैं हम,संस्कृति दूत हैं हम,घर घर जाकर हम तो संस्कृति बचाते है।। 

रोम रोम पुलकित हो जाता।सिद्ध तीर्थ में जो कोई आता।।

कोटि कोटि के भाग्य सँवारे।हे श्री राम हम शिष्य तुम्हारे।।

जन जन का पावन गुरुद्वारा।शांतिकुंज युग तीर्थ हमारा।।

-उमेश यादव