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शनिवार, 12 नवंबर 2022

सदगुरु ही राह दिखाते हैं

*सदगुरु ही राह दिखाते हैं*  

शिष्यों को सन्मार्ग दिखाए,गुरु तो वही कहाते हैं।
भटक रही मानवता को, सदगुरु ही राह दिखाते हैं।। 

नाव भँवर में गोते खाकर,पाप कीच में धंस जाता है।
मंझधार पतवार हमारा,हाथ से छूटकर बह जाता है।।
गुरु ही अपनी नैया में ले, भवसागर पार कराते हैं।
भटक रही मानवता को, सदगुरु ही राह दिखाते हैं।।

देश जभी खतरे में होता,संस्कृति पर हमले होते हैं।
शौर्य हमारा चुक जाता है,साहस बस जुमले होते हैं।।
जीवन जब संकट में होता, गुरु ही प्राण बचाते हैं। 
भटक रही मानवता को, सदगुरु ही राह दिखाते हैं।। 

चिंतन में अंधियारा फैला,हुआ चरित्र मनुज का मैला। 
मानवता का पतन हुआ जब,आचरण भी हुआ कसैला।।
युग निर्माण करने ईश्वर तब, गुरु बन भूपर आते हैं।
भटक रही मानवता को, सदगुरु ही राह दिखाते हैं।। 

धर्म आडम्बर जब है बनता, कर्म कुकर्मों से है सनता।
सत्कर्मों से दूर भाग जब, मानव विषयों में है रमता।। 
आस्था संकट से उबारने, गुरु ही ज्ञान सिखाते हैं।
भटक रही मानवता को, सदगुरु ही राह दिखाते हैं।।
-उमेश यादव 19-11-21

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