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बुधवार, 30 नवंबर 2022

क्रोध

 *क्रोध*

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।

रोष गरल है, कोप अनल है, क्रोध नरक का द्वार है।।


मनवांछित न पाने पर हम, प्रायः क्रोधित हो जाते हैं।

विचार शून्य सा होश गंवाकर, अवांछित कर जाते हैं।।

क्रोध ध्वंस है पागलपन है, यही व्याधि का द्वार है।

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।।


बुद्धि विवेक हर लेता गुस्सा,नर हिंसक बन जाता है।

नीति नियम मर्यादा खोकर, अमर्ष उत्पात मचाता है।।

प्रतिघात पाप,आक्रोश शत्रु है, यह निकृष्ट कुविचार है।

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।।


करुणा ममता प्यार न होता, क्रोधावेग जब आता है।

झल्लाते चिल्लाते सब पर,रक्त विकृत हो जाता है।। 

क्रोध दोष है, क्रोध जुर्म है, यह मन का अंधियार है।

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।।


बचें, बचाएं  महादोष से, यह अत्यंत ही घातक है। 

क्रोधावेग को दूर करें हम,यह जघन्य सा पातक है।।

शुभ कार्य में समय लगाएं,शमन इसका सुविचार है।

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।।

उमेश यादव

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