*मेरा परिवार बचाओ*
बेशक खुशियाँ खूब मनाओ,
दशहरा,क्रिसमस,ईद मनाओ।
खुशियों के त्यौहार हैं सारे,
पर मेरा परिवार बचाओ।।
खुश होने से किसने रोका,
नृत्य गान से किसने टोका।
बेजुबान हम बकरों ने तो,
कभी नहीं हँसने से रोका।।
हम भी तेरे संग मिमियालें,
आओ ऐसा पर्व मनाओ।
खुशियों के त्यौहार हैं सारे,
तुम मेरा परिवार बचाओ।।
सोचो, तेरे बच्चों को जब,
कोई भी थप्पड़ जड़ता है।
खून खौल जाता है तेरा,
मौका पा बदला लेता है।।
मेरे बच्चों से भी तुम तो,
थोडा सा ही रहम जताओ।
खुशियों के त्यौहार हैं सारे,
तुम मेरा परिवार बचाओ।।
मानव हो तुम,ज्ञान तुम्हें है,
मुझ सा प्रज्ञाहीन नहीं हो।
वीर धीर गंभीर बहुत हो,
पशुओं सा बलहीन नहीं हो।।
नाहक अपने ताकत से क्यों,
निर्दोषों के खून बहाओ।
खुशियों के त्यौहार हैं सारे,
तुम मेरा परिवार बचाओ।।
क्रूर नहीं हो फिर भी तुम तो,
मुझे मारकर हंसते हो।
कमजोरों की ह्त्या करके,
कायर बुजदिल बनते हो।।
मेरे आंसू वाली खुशियां,
सभ्य लोग हो, नहीं मनाओ।
खुशियों के त्यौहार हैं सारे,
तुम मेरा परिवार बचाओ।।
शाकाहारी गुण हैं तेरे,
मरी लाश तुम क्यों खाते हो।
परदुःख द्रवित होने वाले तुम,
हमको क्यों तड़पाते हो।।
कृपा करो अब दया करो तुम,
अब तो मेरे प्राण बचाओ।
खुशियों के त्यौहार हैं सारे,
तुम मेरा परिवार बचाओ।।
पाँव जोड़ हम में में करते,
बख्शो अब तो प्राण हमारे।
मेरे बच्चों को ना मारो,
कर दो जीवन दान हमारे।।
तुमने ही पाला है मुझको,
मार मुझे न ख़ुशी मनाओ।
खुशियों के त्यौहार हैं सारे,
तुम मेरा परिवार बचाओ।।
-उमेश यादव 21/7/21
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें