यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 30 नवंबर 2022

पकड़ उंगली चलाता है।

 *वह अपना है*

वह(गुरु)अपना है मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।  

गिर ना जाऊं कहीं,राहें वही दिखाता है।।

गुरु ही है मेरा जो हर बला से बचाता है। 

वह है अपना मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।।


क्या डूबाओगे मुझे,गुरु की नाव बैठा हूँ। 

भाव भक्ति में गुरु के ही मैं निरैठा हूँ।। 

कुछ न कर पाओगे,वो ही मेरा त्राता है। 

वह है अपना मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।।


मेरा साया है वो, प्रियतम है हमदम है। 

हर पग साथ है मेरे,दिल का स्पंदन है।। 

मेरे हर बात से वाकिफ है वो सर्वज्ञाता है।

वह है अपना मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।।


ज्ञान के नूर से उसके घर को जगमगाया है। 

अश्क से नम हुआ अक्ष जब,उसने हंसाया है।।

उजड़ी हुई चमन को फिर वही बसाता है। 

वह है अपना मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।।


न गम हारने का है न जीत पर इतराया कभी।

न फिक्र आज की है न कल ने जगाया कभी।। 

छांव में हूँ सदा उनके,सुकून से मुझे सुलाता है। 

वह है अपना मुझे, पकड़ उंगली चलाता है।।

-उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार

कोई टिप्पणी नहीं: