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रविवार, 13 नवंबर 2022

हे माँ गंगे , जय माँ गंगे।

 

पतित पावनी माँ गंगा तू, करती जन कल्याण है।

दीन दुखी संतप्त ह्रदय में, भरती माँ तुम प्राण है।।

 

कलुष मनुज के मिट जाते है,तेरे ही  निर्मल जल से।

प्यार छलकता है जीवों में,तेरे कलकल छलछल से।।

तेरे  उपकारों  से  हे  माँ,  जीव  मात्र  का त्राण है।

पतित पावनी माँ  गंगा तू, करती जन कल्याण है।।

 

श्रधा  से  स्नान से  माता, पाप ताप मिट जाते  हैं।

जनमों के संताप नष्ट हो,विमल ह्रदय बन जाते हैं।।

तेरी ममता के आँचल  से, अपना  देश  महान  है।

पतित पावनी माँ गंगा तू , करती जन कल्याण है।।

 

हर  प्राणी है प्यास बुझाता, तेरी अमृत धार से।

मिल पाती  है प्राण चेतना, तेरे  ही रसधार से।।

तेरे  ही कारण हे माता, जड़ जीवों  में  जान है।

पतित पावनी माँ गंगा तू,करती जन कल्याण है।।

-उमेश यादव


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