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सोमवार, 29 मार्च 2021

सबको रंग लगायेंगे


रंग   गुलाल  लेकर   निकले  है, सबको  रंग  लगायेंगे।

उत्साह   उमंग   जहाँ  सोया है,उनको पुन: जगायेंगे।।


खुशियों का त्यौहार है प्यारा,झूम रहा देखो जग सारा।

अब  तो आलस दूर भगाओ,इक दूजे को रंग लगाओ।।

राग   द्वेष  जो  भी   मन  में  है, उसको  आज  हटायेंगे।

रंग  गुलाल   लेकर   निकले   है, सबको रंग लगायेंगे।।


आओ  मस्ती  में  झूम जायें, प्यार और सहकार बढ़ाएं।

कटुता  का  रंग  फैला है जो, उसे हटा सद्भाव बढ़ाएं।।

प्रेम  रंग  में   रंगकर   सबमें,  प्रेम  भाव विकासायेंगे।।

रंग  गुलाल   लेकर  निकले   है, सबको  रंग लगायेंगे।।


आओ  रंग  की  नदी  बहायें, अम्बर  में  गुलाल उड़ायें।

कलह कलुष को धोएं इसमें, रंग लगा संगी बन जाए।।

सभी  चेहरे   एक   रूप  कर, महफिल आज सजायेंगे।

रंग  गुलाल   लेकर  निकले  है, सबको  रंग  लगायेंगे।।


मन में नहीं कपट छल होगा,सत्य न्याय का संबल होगा।

कडवाहट की कैद हटेगी, सबका उच्च मनोबल होगा।।

मिल  कर   सारे  एक  बनेंगे, अंतर  सारे  मिट  जायेंगे।

रंग  गुलाल   लेकर  निकले   है, सबको  रंग  लगायेंगे।।


थिरक  रहें   है  पाँव  हमारे, ढोल  मजीरे  के  संग सारे।

स्नेह  प्यार  के  रंग  में  भींगे, शुद्ध भाव हो  रहे हमारे।।

होली    कि   रंगोली   से  ही, प्रेम   मिलन   कर  पायेंगे।

रंग   गुलाल  लेकर  निकले  है, सबको   रंग  लगायेंगे।।


-उमेश यादव

रविवार, 28 मार्च 2021

तेरे रंग में रंग जाए


*तेरे रंग में रंग जाए*
हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा,  मन  तेरे  रंग  में  रंग  जाए।।
जितना  धोऊ  उतना  चमके, जीवन  सतरंगी  बन जाए।।

जहाँ जहाँ रंग मलिन हुआ है,उसको फिर से धवल बना दो।
सूख रही भावों की नदियाँ, स्नेह  प्यार से  सजल बना दो।।
नहीं  रहे  बदरंग  कहीं  अब , सब  पर  ऐसा  रंग  चढ़ जाए।
हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा,  मन  तेरे  रंग  में  रंग  जाए।।

श्याम रंग क्यों डाला हमने,छवि अपनी मैली कर डाली।
प्रेम रंग  अति  गाढ़ा था  पर, घृणा द्वेष भर उसे मिटा ली।।
रंग बदलकर भी क्या जीना,खरा रंग अंग अंग लग जाए।
हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा,  मन  तेरे  रंग  में  रंग  जाए।।

धरती, अम्बर, अवनि सबको,दिव्य रंग में रंग डाला है।
सूरज,चाँद,सितारों से,दुनियां ही अनुपम कर डाला है।।
कुछ  ऐसा  तू  हमें  भी रंग दे, तू  जैसा चाहे  बन जायें।
हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा,  मन  तेरे  रंग  में  रंग  जाए।।

फाग रंग अब नीरस हुआ है, हर्ष -जोश का भंग चढ़ा दे।
राग  द्वेष  बढ़े  जो मन में, उसे  मिटा अब प्यार बढ़ा दे।।
अंतःकरण के दोष हटाकर, इन्द्रधनुष सा मन रंग जाए।
हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा,  मन  तेरे  रंग  में  रंग  जाए।।

तू  है  बड़ा  रंगीला  तूने, कहाँ कहाँ पर  रंग  नहीं  डाला।
जीव  जगत  सब  रंग  में  तेरे, सबको ही तूने रंग डाला।।
प्रेम  रंग  में  रंग  दे  सबको, प्रेममयी  जीवन  बन  जाए।
हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा,  मन  तेरे  रंग  में  रंग  जाए।।
-उमेश यादव

मंगलवार, 23 मार्च 2021

सरफ़रोशी की तमन्ना - शहीद दिवस

सरफ़रोशी  की  तमन्ना, दिल  में  भरकर  आगे  आओ।  
देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।।

आजादी  है  पाई  किन्तु, अब  भी  बंधन  में पड़े  हुए हैं।
फिरंगियों  से  हुए स्वतंत्र पर,फिरंगियत से जुड़े हुए हैं।।
राष्ट्र  धर्म  को  संबल  देने, राष्ट्रभक्त  अब आगे  आओ।
देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।।
 
हंस हंस कर बलि हो वीरों ने, क्रांति का पैगाम दिया था।
सीने में गोली खाकर भी, आजादी को अंजाम दिया था।।
इन्कलाब का नारा दे फिर, राष्ट्र प्रेमियों  कदम  बढ़ाओ।
देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।।

आजादी  के  लिए  भगत  ने, हँसकर  फांसी  चूमा था।
राजगुरु सुकदेव  के मत से, देश  ही  पूरा  झूमा  था।।
सुखी सम्मुनत राष्ट्र  बनाने, हे वीरों अब शौर्य दिखाओ।
देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।।

प्रगति  के  बाधक  तत्वों  को, रौंद  हमें  आगे बढ़ना है।
सोने  की  चिड़िया वाला ये, देश हमें फिर  से गढ़ना है।।
बलिदानों को याद करें सब,पुन: देश हित जोश जगाओ।
देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।
–उमेश यादव

सोमवार, 15 मार्च 2021

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र

(नम:शिवाय पन्चाक्षरी स्तोत्र का पद्यानुवाद)

हे चंद्रशेखर, हे सर्वेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय
हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नमः शिवायः॥


नागेन्द्र से कंठ शोभित तुम्हारे, त्रिलोचन प्रभु दिव्य महेश्वर।
भस्मांग रागी हे शिवशंकर, शाश्वत पूर्ण पवित्र दिगंबर।।
हे शिव शम्भू ‘न’ कार रूप में, नम: शिवाय ॐ नम:शिवाय ।
हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।।

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नमः शिवायः॥


सुरसरि शोभित, चंदन,अकवन, बहुपुष्प अर्चित हे शिवशंकर।
प्रमथ गणों, नंदी के ईश्वर, बहुविधि पूजित नाथ महेश्वर।।
हे शिव शेखर ‘म’ कार रूप में नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।
हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।।

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नमः शिवायः॥


हे नीलकंठ, हे धर्म ध्वज धारी, दर्प दक्ष का चूर किये तुम।
माँ गौरी के श्रीमुख कमल को,सविता जैसी दीप्ति दिए तुम।।
हे गिरिजापति ‘शि’ कार रूप में, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।
हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।।

वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नमः शिवायः॥


ऋषि अगस्त्य,गौतम, वशिष्ठ, मुनियों से अर्चित हे परमेश्वर।
लोचन सूर्य, चन्द्र, पावक सम, देवाधिपति हे जगदीश्वर ।।
हे शिव भोले ‘व’ कार रूप में, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।
हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।।

यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नमः शिवायः॥


जटाधारी हे यक्ष स्वरूपा,पिनाक त्रिशूल हस्त शोभित रूपा।
सत्य,सनातन, दिव्य,पुरुष,हे देव दिगंबर अद्भुत रूपा।।
हे शिव सुन्दर ʼयʼ कार रूप में, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।
हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।।

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥


शिव के सानिध्य मे रहकर जो , पुण्य पंचाक्षर पाठ करेगा।
शिव के संग आनंदित होकर , शिव लोक में वास करेगा।।
सत्य शिव और सुन्दर मन से, नम: शिवाय ॐ नम:शिवाय।
हे सिद्धेश्वर, हे प्रज्ञेश्वर, नम:शिवाय ॐ नम:शिवाय।।
-उमेश यादव

रामकृष्ण परमहंस जयंती


रामकृष्ण परमहंस जयंती 15मार्च 

 

 

भक्ति में  है शक्ति अपरिमित,भगवन भी मिल जाते हैं। 

रामकृष्ण परमहंस जगत को,भक्ति मार्ग दिखलाते हैं।। 

   

माँ काली के परम भक्त थे, ईश् अंश अवतारी  थे 

प्रेम, दया, करुणा, ममता, मानवता  के  पुजारी थे।।  

हरि  दर्शन  को आतुर हर क्षण, ईश्वर को पा पाते हैं 

रामकृष्ण परमहंस जगत को,भक्ति मार्ग दिखलाते हैं।। 

  

भक्ति भाव से रामकृष्ण ने,काली को साकार किया।  

शुष्क हृदयों में भी गुरु ने, करुणा का संचार किया।।  

ह्रदय पवित्र,मन निर्मल जन,ईश्वर दर्शन कर पाते हैं।  

रामकृष्ण परमहंस जगत को,भक्ति मार्ग दिखलाते हैं।। 

 

दरिद्र-नारायण की सेवा को,भक्ति मार्ग से जोड़ा था। 

जाति-पाति और उच्च-नीच का,बंधन उनने तोड़ा था।। 

सेवा पथ  अपनाकर ही हम, ईश्वर से  मिल  पाते  हैं। 

रामकृष्ण परमहंस जगत को भक्ति मार्ग दिखलाते हैं।। 

  

विद्या और अविद्या  माया, का विस्तार बताया था। 

गृहस्थ तपोवन है भगवन ने,जीकर स्वयं सिखाया था।।   

‘कामिनी कंचन’ की बाधा से,ईश्वर मिल ना पाते हैं।।  

रामकृष्ण परमहंस जगत को,भक्ति मार्ग दिखलाते हैं।। 

 

इन्द्रिय निग्रह करके साधक, महायोगी बन पाते हैं।  

धर्म  सभी  सच्चे  होते  बस,  मार्ग अलग  हो जाते  हैं।। 

ज्ञान,भक्ति,वैराग्य साधकर ,बंधन  मुक्त  हो  पाते हैं। 

रामकृष्ण परमहंस जगत को,भक्ति मार्ग दिखलाते हैं।।   

                                                            -उमेश यादव 

 

 

रविवार, 7 मार्च 2021

उठो नारियों आगे आओ

संस्कृति के उत्थान के लिए, उठो नारियों आगे आओ।
राष्ट्र धर्म को जागृत करने,नए सृजन का शंख बजाओ।।

भूल रहें हैं नीति धर्म सब, व्यसनों  में  हम  फंसे  हुए  हैं।
दान  पुण्य  से  दूर  हो रहे, पाप  पंक  में  धंसे   हुए  हैं।।
ममता,शुचिता,करुणामय हो,सब में प्रेम-भाव विकासाओ।
संस्कृति के उत्थान के लिए, उठो नारियों आगे आओ।।
 
संस्कारों से  दूर हो  रहे, मानवता  को  यूँ  ही  खो  रहे।
जीर्ण-शीर्ण हो रही सभ्यता,भ्रम-रूढ़ियाँ अब भी ढो रहे।।
शक्ति हो,पहचानो खुद को,बढकर आगे शौर्य दिखाओ।
संस्कृति के उत्थान के लिए, उठो नारियों आगे आओ।।
 
महिला का अपमान हो रहा,कन्या का बलिदान हो रहा।
वनिता अब चीत्कार रही है,पशुता का सम्मान हो रहा।।
मातृ रूप में हे अम्बे तुम, स्नेह, प्यार, सहकार बढ़ाओ।
संस्कृति के उत्थान के लिए, उठो नारियों आगे आओ।।
 
जननी  हो  सम्पूर्ण  जगत  की,सब तेरे बालक बच्चे हैं।
इन्हें नीति सिखलाओ घर से, भटक  गए  तेरे बच्चे हैं।।
संस्कारों से इन्हें सुधारो,निर्दयी नहीं अब देव बनाओ।
संस्कृति के उत्थान के लिए, उठो नारियों आगे आओ।।
                       -उमेश यादव

 

शनिवार, 6 मार्च 2021

मित्रता

मित्रता

शुष्क   जीवन  को   बना दे, बासंती  मधुमास  है। 

मित्र सुगन्धित पुष्प है,सुरभित सुखद उल्लास है।। 

  

फिसलने  का  भय नहीं, जब मित्र अपने साथ हो। 

मुश्किलें  भी दूर  जाती,  हाथ  में  गर  हाथ  हो।। 

मित्रता  के  संग   जीवन, एक सुखद  एहसास है। 

मित्र सुगन्धित पुष्प है,सुरभित सुखद उल्लास है।। 

  

 मन-प्राण  को झंकृत करे, वो साज है, सितार है। 

सुर-ताल  का  संगीत है, लय-तान का संसार है।। 

मित्रता   है   छंद   जिसमें,  प्यार   है   विश्वास  है। 

मित्र सुगन्धित पुष्प है,सुरभित सुखद उल्लास है।। 

 

हर्ष   मय   आँगन  बना  दे,  मित्रता  की  छांव से। 

दुर्गुणों   को   दूर  कर  दे, सद्गुणों   के   गाँव से 

व्यक्त न  कर  पाए की जैसे, मूक  की मिठास है। 

मित्र सुगन्धित पुष्प है,सुरभित सुखद उल्लास है।। 

  

मित्र   हैं   तो  हर  ख़ुशी  है, ना  कोई  निराश है। 

दूर   रहते   पर   सदा,  लगता  हमारे  पास  है।। 

पूर्ण   हो  जाये  सदा  जो,  मित्र  ही  वो  आस है। 

मित्र सुगन्धित पुष्प है,सुरभित सुखद उल्लास है।। 

-उमेश यादव 6-3-21