संस्कृति के उत्थान के लिए, उठो नारियों आगे आओ।
राष्ट्र धर्म को जागृत करने,नए सृजन का शंख बजाओ।।
भूल रहें हैं नीति धर्म सब, व्यसनों में हम फंसे हुए हैं।
दान पुण्य से दूर हो रहे, पाप पंक में धंसे हुए हैं।।
ममता,शुचिता,करुणामय हो,सब में प्रेम-भाव विकासाओ।
संस्कृति के उत्थान के लिए, उठो नारियों आगे आओ।।
संस्कारों से दूर हो रहे, मानवता को यूँ ही खो रहे।
जीर्ण-शीर्ण हो रही सभ्यता,भ्रम-रूढ़ियाँ अब भी ढो रहे।।
शक्ति हो,पहचानो खुद को,बढकर आगे शौर्य दिखाओ।
संस्कृति के उत्थान के लिए, उठो नारियों आगे आओ।।
महिला का अपमान हो रहा,कन्या का बलिदान हो रहा।
वनिता अब चीत्कार रही है,पशुता का सम्मान हो रहा।।
मातृ रूप में हे अम्बे तुम, स्नेह, प्यार, सहकार बढ़ाओ।
संस्कृति के उत्थान के लिए, उठो नारियों आगे आओ।।
जननी हो सम्पूर्ण जगत की,सब तेरे बालक बच्चे हैं।
इन्हें नीति सिखलाओ घर से, भटक गए तेरे बच्चे हैं।।
संस्कारों से इन्हें सुधारो,निर्दयी नहीं अब देव बनाओ।
संस्कृति के उत्थान के लिए, उठो नारियों आगे आओ।।
-उमेश यादव
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