यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 7 जून 2020

माँ, माँ, बस तू माँ है।

माँ, माँ, बस तू माँ है।

क्या परिभाषा दूँ मैं माँ की
क्या बताऊँ परिचय माँ की।।
अथाह सागर बस ममता की
वह अपनी संपूर्ण जहाँ है
माँ, माँ बस तू माँ है।

जिसने मेरी परिभाषा दी है
जिसने जीवन की आशा दी है।।
रक्त, अस्थि, मज्जा दे करके
जिसने शरीर दे, साँसे दी हैं।।
क्या ऐसी है कोई जहाँ में?
माँ माँ बस तू माँ है।

माँ नहीं होती तो हम कहाँ होते
किसके आँचल में हम सर रखके सोते।।
लोरियां पता नहीं , होती ना होती
बालक कभी जग में , रोते ना रोते।।
माँ के जतन से ये, जमीं आसमाँ है
माँ, माँ बस तू माँ है।

वेदना सह कर माँ ने जग में बुलाया
पहला आहार माँ ने अमृत पिलाया।।
माँ की कृपा से धरती पर डोला
मुँह खोला तो पहले माँ ही बोला।।
आज हम हैं तो वजह केवल माँ है
माँ, माँ, बस तू माँ है।

बुरी नजरों से माँ ने बचाया
गालों पे काजल का टीका लगाया।।
तुतले वाणी को अच्छा बनाया
गिरते संभलते जग में दौड़ाया।।
बुराई अच्छाई समझा तुझसे माँ है।
माँ, माँ, बस तू माँ है।

मेरे दुखों से दुखी माँ हो जाती
मेरे ख़ुशी से माँ खुश हो जाती।।
चोट मुझे लगे दर्द माँ को ही होती है
आँचल में हमें रखकर,गीले में सोती है।।
धरती पे स्वर्ग की अनुभूति,बस तू माँ है
माँ, माँ, बस तू माँ है।

माँ की कृपा से कठिन कुछ नहीं है
माँ की दुआ से अशुभ कुछ नहीं है।।
हर दर्द की बस माँ एक दवा है
प्राणदायिनी बस माँ ही हवा है।।
संस्कारों की वजह बस तू माँ है
माँ, माँ, बस तू माँ है।

माँ है तो जग में हम सबसे धनी है।
माँ के आँचल में ना कोई कमी है।।
माँ ही साक्षात् ईश्वर है जग में।
माँ ही परम गुरु परमेश्वर है जग में।।
ईश्वर की सच्ची भक्ति बस तू माँ है
माँ माँ बस तू माँ है।
--उमेश यादव ,शांतिकुंज।