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शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

अन्तिम ठिकाना


                   अंतिम वही ठिकाना है।
 

जो भी आया है  इस जग में, एक दिन सबको जाना है।   
कुछ-कुछ यादें छोड़ यहाँ पर, अंतिम वही ठिकाना है।। 

 

परम-तत्व का अंश जीव यह,पल-पल से है जीवन बनता। 
आत्मरूप  में  अभ्यागत  हैं, असल पता वहीँ का रहता।।   
जब  प्रभु का आदेश है मिलता , विलम्ब नहीं हो पाना है। 
जो भी आया  है इस जग में, एक दिन सबको जाना है।   
 
रंगमंच के पात्र हैं हमसब, अपना किरदार निभाते है। 
अपना रोल ख़तम होते ही, नेपथ्य की शान बढ़ाते है।।  
सब कुछ यहीं छोड़कर बन्दे, खाली हाथ ही जाना है। 
जो भी आया है इस जग में,एक दिन सबको जाना है।   
 
कब जाना है, कैसे जाना ,ये तो हमको पता न होता। 
नट है वो, नचाता सबको, जैसा उसका मन है करता।। 
उसकी लीला  बड़ी  निराली, समझ नहीं यह आना है। 
जो भी आया है इस जग में, एक दिन सबको जाना है।   
 
स्तुति –निंदा होती पीछे, गुण अवगुण सभी बताते हैं   
प्रेम – मोह से बंधे अपने जो, विरह  वेदना पाते  हैं।।  
अभिनय तो बस अभिनय ही है,हंसना और रुलाना है। 
जो भी आया है इस जग में,एक दिन सबको जाना है।   
 
कारण कुछ भी हो जाते हैं, जीवन जब जाना होता है।  
दोष किसी पर लग जाता है,समय पूर्ण जब हो जाता है।। 
ईश्वरके  हाथों  ही  होता,  मारना  और  बचाना  है । 
जो भी आया है इस जग में,एक दिन सबको जाना है।   
   
जीवन मरण का चक्र हमेशा, यूँ ही चलता आया है।  
शुभ कर्म सुनिश्चित करें यहाँ,जब तक जीवन है,काया है।। 
सेवा धर्म ही मोक्ष मार्ग है, उसमें समय बिताना है 
जो भी आया है इस जग में,एक दिन सबको जाना है।   
  
शुभ कर्मों की गठरी लेकर ,जब हम घर पर जायेंगे।  
चैन की नींद आराम करेंगे, परम गति को पाएंगे।।  
परम पिता के अंश मात्र हम,उनमें ही मिल जाना है। 
जो भी आया है इस जग में,एक दिन सबको जाना है।   
                                        -उमेश यादव 

शनिवार, 23 जनवरी 2021

जय हिन्द हमारा नारा है।

सुभाष चंद्र बोस
खून  के  बदले  आजादी  लो, देश प्रेम  का नारा  था।
हे  सुभाष, हे  परमवीर,  हर  दुश्मन  तुमसे  हारा था।
जय हिन्द हमारा नारा था।यह हिन्द प्राण से प्यारा था।

सबसे  पहले  देश  का  झंडा, तुमने  ही फहराया था।
अंग्रेजों  से  महायुद्ध कर, अपना  शौर्य दिखाया  था।।
जर्मनी  से बर्मा, जपान तक, जय हिन्द  का नारा था।
हे  सुभाष, हे  परमवीर, हर  दुश्मन  तुमसे  हारा था।।

वह  लहू  नहीं  है पानी है,जो काम देश के आ न सके।
युवा जोश वह है व्यर्थ,जो शाने वतन कहला न सके।।
प्रतिभाओं के धनी बोस को, मुक्त हिन्द ही प्यारा था।
हे सुभाष,  हे परमवीर,  हर  दुश्मन  तुमसे  हारा था।।

सोये  पड़े  भारत वीरों  को, तुमने  ही ललकार जगाया।
प्रान्त कई  स्वतंत्र  कराकर, फिरंगियों को धुल चटाया।। “दिल्ली चलो” का घोष किया,वह वीर बोस हमारा था।।
हे  सुभाष,  हे  परमवीर, हर  दुश्मन  तुमसे  हारा  था।।

आजादी  के लिए बोस ने,जीवन का हर सांस जिया था।
विजय हमारी निश्चित ही है, ऐसा दृढ विश्वास दिया था।।
आजाद  हिन्द  फौज  बनाकर,अंग्रेजों को ललकारा था।
हे  सुभाष,  हे  परमवीर,  हर  दुश्मन  तुमसे  हारा  था।।
-उमेश यादव
https://youtu.be/FvXa_umEOBs

मंगलवार, 12 जनवरी 2021

विवेकानन्द- चिर युवा

 


  विवेकानंद , हे चिर युवा

धर्म संस्कृति की विजय पताका, दिग्दिगंत फहराए

विवेकानंद , हे चिर युवा, भारत का मान  बढाए।।

 

रुको न जब तक लक्ष्य न पाओ,ऐसा प्रखर विचार दिया था

निर्बल नहीं,तुम सिंह वीर हो,युवकों को हुंकार दिया था

ज्ञान, कर्म  और भक्ति  की  धारा, चहुँ  दिश में पहुंचाए

धर्म  संस्कृति  की  विजय पताका, दिग्दिगंत  फहराए।।

 

डरें  नहीं, निर्भीक बनें हम, पीड़ितों का उपकार करेंगे

स्वयं को श्रम से पुष्ट बनाकर,दुखियो का उद्धार करेंगे।।

हर  मानव  में  हरि  बसे  हैं , यह  सन्देश  फैलाये

धर्म संस्कृति की विजय पताका, दिग्दिगंत फहराए।।


धर्म  हमारी राष्ट्र शक्ति है, जन जन तक पहुंचाना है

हर वासी को  भक्ति सिखाकर, राष्ट्र समर्थ बनाना है।।

विश्व  पटल  पर  भारत  माँ का, शान  बढ़ाने  आये

धर्म संस्कृति की विजय पताका, दिग्दिगंत फहराए।।

 

दर्शन उपनिषदों  की गाथा, पश्चिम ने स्वीकार किया था

भाई बहनों  का संबोधन , जग ने पहली बार सुना था ।।

हे  सन्यासी,  वीर  युवा,  तुम  राष्ट्र  जगाने  आये  थे

धर्म संस्कृति की विजय पताका, दिग्दिगंत फहराए थे।।

-उमेश यादव

                    https://youtu.be/Q_mEai13KJI