ऋतु बसंत है आया
मधुमास
बसंत है आया, प्रेरक
उमंग है लाया।
नव्य
शक्ति से,नवल प्राण ले, नव संकल्प
जगाया।।
झूम
रहा है रोम-रोम तन, मन भी आज हर्षित है।
कण
कण में उल्लास भरा,जड़ चेतन आकर्षित है।।
शांतिकुंज
के हर जन मन में, दिव्य भाव है छाया।
नव्य
शक्ति से, नवल प्राण ले,नव संकल्प
जगाया।।
थिरक
रहा है अंग अंग सुन,
थापें अब गुरुवर के।
मन
कोकिला चहकती है बस,माताजी के स्वर से।।
साँसों
में प्रभु तुम्हीं बसे हो,
तुझमें प्राण समाया।
नव्य
शक्ति से, नवल प्राण ले,नव संकल्प
जगाया।।
सौरभ-सुरभित दशों दिशा में,रम्य अलौकिक पावन।
किसलय
कोंपल पुष्पित-पल्लवित,नैसर्गिक मनभावन।।
ज्ञान,
कला, संगीत सुशोभित, रंग बसंती छाया।
नव्य
शक्ति से,नवल प्राण
ले, नव संकल्प जगाया।।
तेरे
स्वर को कर्ण आतुर हैं, पंचम सुर में
गाओ।
मन
मयूर नर्तन करता
है, नट हो आप नचाओ।।
श्रधेय-द्वय
के स्नेह प्यार से, दिव्य उछाह है छाया।
नव्य
शक्ति से, नवल प्राण ले, नव संकल्प
जगाया।।