यह ब्लॉग खोजें

shantikunj लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
shantikunj लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2021

2.ब्रह्मचारिणी माता


ब्रह्मचारिणी हे माँ दुर्गे, तप करने की शक्ति हमें दो।
ज्योतिर्मय हे मातु भवानी,चरणों में अनुरक्ति हमें दो।।

ब्रह्माण्ड निर्मात्री हे जगदम्बा, समस्त विद्याओं के ज्ञाता।
सफल करो ये जीवन अपना,कृपा भक्ति याचक हूँ माता।।
त्याग और वैराग्य बढ़ा माँ,अपनी अविचल भक्ति हमें दो।
ब्रह्मचारिणी हे माँ दुर्गे, तप करने की शक्ति हमें दो।।

हे ब्राह्मी माँ, तपश्चारिणी, ब्रह्म शक्ति मय तुम हो माता।
कमंडलु माला शोभित माते,बुद्धि विवेक नर तुमसे पाता।।
हे महादेवी, जगजननी माँ,ज्ञान भक्ति की युक्ति हमें दो।
ब्रह्मचारिणी हे माँ दुर्गे, तप करने की शक्ति हमें दो।।

सदाचार, संयम को माते, जीवन का आधार बना दो।
दुःख कष्टों से मुक्त हो जीवन,शान्तिमय संसार बनादो।।
त्रिभुवन सुंदरी हे माँ अम्बे,भव बंधन से मुक्ति हमें दो।
ब्रह्मचारिणी हे माँ दुर्गे, तप करने की शक्ति हमें दो।।
–उमेश यादव


गुरुवार, 17 जून 2021

श्रधेयद्वय को स्वर्णिम विवाहदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

 

श्रधेयद्वय को स्वर्णिम विवाहदिवस की

हार्दिक शुभकामनाएं


पुण्य  परमार्थ  मय  पूर्ण, जीवन  है  जिनका।

युग स्वयं ही लिखेगा,स्वर्णगाथा सृजन का।।


परिणय  से  नए  युग  की  शुरुआत  थी  तब।

अध्यात्म  में  नव  आयाम  की  बात  थी  तब।।

अभिनंदन  हुआ विज्ञान - धर्म के  मिलन का।

युग स्वयं ही लिखेगा,स्वर्ण गाथा सृजन का।।


माँ  भगवती   महाकाल   के  शैल  संतान  हैं।

माँ  सरस्वती   सत्य   के  प्रणव  पहचान  हैं।।

मिलन   है  प्रेम   का,  सत्य  न्याय  धर्म  का।

युग स्वयं ही लिखेगा,स्वर्णगाथा सृजन का।।


भक्ति  के  शिखर  शैल  श्रद्धा   के  अर्णव  हैं।

श्रद्देय  द्वय   हमारे   स्वयं   जीजी   प्रणव   हैं।।

स्वर्णिम  है   पल,  आप  दोनों  के  मिलन का।

युग स्वयं ही लिखेगा,स्वर्ण गाथा सृजन का।।

-उमेश यादव


पुण्यदायी होता है नाम स्मरण


पुण्यदायी होता है नाम स्मरण

पुण्यदायी होता है नाम स्मरण जिनका।

माँ भगवती स्वयं  ही माता  हैं उनका।।

स्वयं  महाकाल  की  श्रेष्ठ संतान है वो।

दीदी हैं हम सबकी,जीवन हैं,प्राण हैं वो।।

निज माता सदृश स्नेह पाया है उनका।

पुण्यदायी होता है नाम स्मरण जिनका।।

 

धर्म  विज्ञान के ज्ञान के वे अर्णव हैं।।

महाकाल रुद्राक्ष माल्य के प्रणव  हैं।

महाकाल ने जिनको चुना  स्वयं है।

जीजी के जीवन के साथी स्वयं हैं ।।

साक्षात् गुरु अंश, आशीष है गुरु  का।

पुण्यदायी होता है नाम स्मरण जिनका।।

 

सत्य  प्रेम  न्यायमूर्ति  के वे  सपूत  हैं।

माता सरस्वती के संस्कारित रक्त हैं।।

सेवा  की   दुनिया  में  स्वर्णाभूषित  हैं ।

चिकित्सा  और  विज्ञान  के अग्रदूत हैं।।

त्याग  तप  से विभूषित आभा है उनका।

पुण्यदायी होता है नाम स्मरण जिनका।।

 

गुरुवर ने द्वय को स्वयं तपाया गलाया।

मिशन के लिए उनको काबिल बनाया।।

शक्ति सामर्थ्य दे सूर्य  चन्द्र सा  बनाया ।

मिशन का गुरु ने उन्हें दायित्व थमाया।।

श्रधेय हैं जगत में,  नमन उन चरण का ।

पुण्यदायी होता है नाम स्मरण जिनका।।

-उमेश यादव

 


रविवार, 28 मार्च 2021

तेरे रंग में रंग जाए


*तेरे रंग में रंग जाए*
हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा,  मन  तेरे  रंग  में  रंग  जाए।।
जितना  धोऊ  उतना  चमके, जीवन  सतरंगी  बन जाए।।

जहाँ जहाँ रंग मलिन हुआ है,उसको फिर से धवल बना दो।
सूख रही भावों की नदियाँ, स्नेह  प्यार से  सजल बना दो।।
नहीं  रहे  बदरंग  कहीं  अब , सब  पर  ऐसा  रंग  चढ़ जाए।
हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा,  मन  तेरे  रंग  में  रंग  जाए।।

श्याम रंग क्यों डाला हमने,छवि अपनी मैली कर डाली।
प्रेम रंग  अति  गाढ़ा था  पर, घृणा द्वेष भर उसे मिटा ली।।
रंग बदलकर भी क्या जीना,खरा रंग अंग अंग लग जाए।
हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा,  मन  तेरे  रंग  में  रंग  जाए।।

धरती, अम्बर, अवनि सबको,दिव्य रंग में रंग डाला है।
सूरज,चाँद,सितारों से,दुनियां ही अनुपम कर डाला है।।
कुछ  ऐसा  तू  हमें  भी रंग दे, तू  जैसा चाहे  बन जायें।
हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा,  मन  तेरे  रंग  में  रंग  जाए।।

फाग रंग अब नीरस हुआ है, हर्ष -जोश का भंग चढ़ा दे।
राग  द्वेष  बढ़े  जो मन में, उसे  मिटा अब प्यार बढ़ा दे।।
अंतःकरण के दोष हटाकर, इन्द्रधनुष सा मन रंग जाए।
हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा,  मन  तेरे  रंग  में  रंग  जाए।।

तू  है  बड़ा  रंगीला  तूने, कहाँ कहाँ पर  रंग  नहीं  डाला।
जीव  जगत  सब  रंग  में  तेरे, सबको ही तूने रंग डाला।।
प्रेम  रंग  में  रंग  दे  सबको, प्रेममयी  जीवन  बन  जाए।
हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा,  मन  तेरे  रंग  में  रंग  जाए।।
-उमेश यादव

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

ऋतु बसंत है आया

          

                                      ऋतु बसंत है आया

मधुमास बसंत   है   आया, प्रेरक उमंग  है  लाया।

नव्य शक्ति से,नवल प्राण ले, नव संकल्प जगाया।।

 

झूम रहा है रोम-रोम तन, मन भी आज हर्षित है।

कण कण में उल्लास भरा,जड़ चेतन आकर्षित है।।

शांतिकुंज के हर जन मन में, दिव्य भाव है छाया।

नव्य शक्ति से, नवल प्राण ले,नव संकल्प जगाया।।

 

थिरक रहा  है अंग अंग सुन, थापें  अब गुरुवर के।

मन कोकिला चहकती है बस,माताजी के स्वर से।।

साँसों में  प्रभु  तुम्हीं  बसे हो, तुझमें प्राण समाया।

नव्य शक्ति से, नवल प्राण ले,नव संकल्प जगाया।।

 

सौरभ-सुरभित दशों दिशा में,रम्य अलौकिक पावन।

किसलय कोंपल पुष्पित-पल्लवित,नैसर्गिक मनभावन।।

ज्ञान, कला, संगीत  सुशोभित, रंग  बसंती  छाया।

नव्य शक्ति से,नवल प्राण ले, नव  संकल्प  जगाया।।

 

तेरे  स्वर को कर्ण  आतुर  हैं, पंचम  सुर  में गाओ।

मन  मयूर  नर्तन  करता है, नट  हो  आप नचाओ।।

श्रधेय-द्वय  के स्नेह प्यार से, दिव्य उछाह  है छाया।

नव्य शक्ति से, नवल प्राण ले, नव संकल्प जगाया।।

                                     -उमेश यादव,शांतिकुंज ,हरिद्वार