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रविवार, 20 जून 2021

स्वर्ण जयंती शांतिकुंज 50 वर्ष

----------------स्वर्ण जयंती -शांतिकुंज 50 वर्ष----------

शांतिकुंज अब स्थापना के,  स्वर्ण जयंती मना रहा है।

धर्मतंत्र का स्वर्ण  गान यह,सारे जग को सुना रहा है।।

 

गुरुवर ने निज कर कमलों से,शांतिकुंज निर्माण किया।

विश्वामित्र की तपस्थली में, ऋषियों का आह्वान किया।।

महा पुरश्चरणों  से  माँ  ने, तपः क्षेत्र  विकसाया था 

प्राणों का प्रत्यावर्तन करके, आश्रम दिव्य बनाया था।।

बीजारोपण वर्ष  इकहतर, से तरु बन लहलहा रहा है 

शांतिकुंज अब स्थापना के,  स्वर्ण जयंती मना रहा है।।1


कल्प और चान्द्रायण से ही, साधकों को बल दिया है।

साधना से  सिद्धि पा, हर  समस्या का हल  दिया है ।।

देव  कन्याओं   के  तप ने  , वातावरण   बनाया  था।

युग  शक्ति ही नारी शक्ति है,  माताजी ने तपाया था।।

सिद्धियों की दिव्य प्रभा अब,अम्बर तक झिलमिला रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना केस्वर्ण जयंती मना रहा है।।2

 

वानप्रस्थ से ज्ञान क्रांति का,सतत अभियान चलाया था।

महिला जाग्रति  शंख  बजाकर, ब्रह्मवादिनी बनाया था।।

वैज्ञानिक  अध्यात्मवाद  को, ब्रह्मवर्चस निर्मित  किया।

धर्म के  शाश्वत  स्वरुप को, जनहित में प्रस्तुत किया।।

शक्तिपीठ  हैं  शक्तिकेंद्र अब, दीप्त  हो जगमगा  रहा है 

शांतिकुंज अब स्थापना के , स्वर्ण जयंती मना रहा है।।3

 

सूक्ष्मीकरण साध   गुरुवर ने, वीरभद्र उत्पन्न किये 

पांच शरीर से एक साथ में, असंभव सम्पन्न किये।।

गुरुवर के हीरक जयंती पर,यज्ञ अभियान चलाया था।

राष्ट्रीय एकता यज्ञों  से, भारत को श्रेष्ट बनाया  था।।

मत्स्यावतार अपनी काया को, हरपल हरक्षण बढ़ा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।4

 

महाप्रयाण कर स्थूल देह को, पंचतत्व में लीन किया 

सबकी आँखों से ओझल  हो, गुरुवर ने  ग़मगीन किया।।

ब्रह्म्वेदी यज्ञों   से  गुरु  ने सोया राष्ट्र  जगाया  है।

सूक्ष्म रूप में गुरु चेतना शांतिकुंज   में  समाया  है।।

शांतिकुंज का  कोना कोना, गुरु-गान गुनगुना रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।5

 

श्रद्धांजलि देकर  शिष्यों   ने, अपना फर्ज  निभाया है 

देश धर्म संस्कृति रक्षा को,माटी ले शपथ उठाया है।।

अश्वमेधों का दौर चल पड़ा, धर्म तंत्र  मजबूत  हुआ।

दिग्दिगंत तक धर्म ध्वजा ले,क्रांति का अग्रदूत गया ।।

देव संस्कृति का परचम अब,अपने जलवे दिखा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के,स्वर्ण जयंती मना रहा है।।6

 

माताजी के  महा प्रयाण से, पुत्रों  ने दुःख पाया था 

स्नेह सलिला जीजी  ने हम, सबको गले लगाया था।।

गुरु अभियानों को श्रधेय ने, गति देकर आश्वस्त किया।

जन मानस के अंध तमस को,प्रखर-ज्ञान से ध्वस्त किया।।

अखंड ज्योति के  दिव्य ज्ञान से,अज्ञानता को मिटा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।7

 

पूर्णाहुति कर महाकुम्भ सा, जन सैलाब जुटाया था।

धरती के कोने कोने तक, धर्म ध्वजा फहराया था।।

चेतना केन्द्रों  की स्थापना, का संकल्प जगाया था।

गंगा को निर्मल करने का,जन अभियान चलाया था।।

प्रौढ़ शांतिकुंज स्वर्ण रश्मियों,से देखो जगमगा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है ।।8

 

कन्या कौशल   शिविरों से, नारी  सम्मान जगाया है।

‘दीया’ जलाकर युवा मनों में, नव विश्वास जगाया है।।

गाँव गाँव में नशा निवारण, का अभियान चलाया है।

स्वस्थ शरीर स्वच्छ मन सबका,सभ्य समाज बनाया है।।

पर्यावरण  को   शुद्ध  कराने, वृक्षारोपण करा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।9

 

संस्कारों की परिपाटी को, फिर से जीवनदान मिला।

तीर्थ क्षेत्र में संस्कारों को पुनः उचित स्थान मिला।।

शिक्षा,स्वास्थ्य,साधना जैसे, क्रांति का आगाज हुआ।

सप्त क्रांतियों की धूम मची,अश्वमेधों का प्रयाज हुआ।।

नवल विश्व के नव समाज में,नवीन चेतना जगा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।10

 

भाषांतर कर शांतिकुंज से,  साहित्य का विस्तार किया ।

हर भाषा में  हर लोगों तक, गुरु का श्रेष्ठ विचार दिया ।।     

उत्तर  दक्षिण  पूरब  पश्चिमयुग  निर्माण  का नारा है।

अखिल विश्व में दिग्दिगंत तक शांतिकुंज अति प्यारा है।।  

लक्ष  एक से कोटि कोटि तक अपना परिकर बढ़ा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है ।11

 

विश्व विद्यालय  गुरुवर  के, सपनों का विद्यालय  है।

देव संस्कृति जग  में  फैले, मानवता का आलय है।।

तकनीकों  का प्रयोग हम, जन हित में  ही करते है।

प्राचीन विद्या का प्रसार  हम, तकनीकों  से करते हैं।।

एकहतर की छोटी बगिया,कोटि-कोटि फूल खिला रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है ।।12

 

संकट की घड़ियाँ है बीती, नया सूर्य अब चमक रहा है।

स्वर्णमयी आभा है इसकी,शांतिकुंज अब दमक रहा है ।।

स्वर्ण जयंती संग महाकुम्भ का,दिव्य संयोग सुहाना है।

धरती पर ही स्वर्ग सृजन में,जन-जन को लग जाना है।।

घर घर गंगा जल पहुचाकर, कुम्भ घरों में मना रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के,  स्वर्ण जयंती मना रहा है।।13                       -------उमेश यादव,शांतिकुंज,हरिद्वार


शांतिकुंज के पचास वर्ष की उपलब्धियों का सार  




मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

ऋतु बसंत है आया

          

                                      ऋतु बसंत है आया

मधुमास बसंत   है   आया, प्रेरक उमंग  है  लाया।

नव्य शक्ति से,नवल प्राण ले, नव संकल्प जगाया।।

 

झूम रहा है रोम-रोम तन, मन भी आज हर्षित है।

कण कण में उल्लास भरा,जड़ चेतन आकर्षित है।।

शांतिकुंज के हर जन मन में, दिव्य भाव है छाया।

नव्य शक्ति से, नवल प्राण ले,नव संकल्प जगाया।।

 

थिरक रहा  है अंग अंग सुन, थापें  अब गुरुवर के।

मन कोकिला चहकती है बस,माताजी के स्वर से।।

साँसों में  प्रभु  तुम्हीं  बसे हो, तुझमें प्राण समाया।

नव्य शक्ति से, नवल प्राण ले,नव संकल्प जगाया।।

 

सौरभ-सुरभित दशों दिशा में,रम्य अलौकिक पावन।

किसलय कोंपल पुष्पित-पल्लवित,नैसर्गिक मनभावन।।

ज्ञान, कला, संगीत  सुशोभित, रंग  बसंती  छाया।

नव्य शक्ति से,नवल प्राण ले, नव  संकल्प  जगाया।।

 

तेरे  स्वर को कर्ण  आतुर  हैं, पंचम  सुर  में गाओ।

मन  मयूर  नर्तन  करता है, नट  हो  आप नचाओ।।

श्रधेय-द्वय  के स्नेह प्यार से, दिव्य उछाह  है छाया।

नव्य शक्ति से, नवल प्राण ले, नव संकल्प जगाया।।

                                     -उमेश यादव,शांतिकुंज ,हरिद्वार  

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

मैं नारी हूँ।

 

मैं नारी हूँ।

मैं  नारी  हूँ, मैं शक्ति हूँ मैं  देवी हूँ, अवतारी  हूँ  मैं।

अबला कभी समझ मत लेना,ज्वाला हूँ,चिंगारी हूँ मैं ।।

               

कल्याणी,भवानी,सीता भी मैं,गायत्री गंगा गीता भी मैं।

माँ हूँ तो कन्या भी हूँ मैं, भगिनीबहु,परिणीता भी मैं।।

मुझको  डरना  मत सिखलाना, मैं  दुर्गा हूँ, काली हूँ मैं।

अबला कभी समझ मत लेना, ज्वाला हूँचिंगारी हूँ मैं।।

 

वसुंधरा सी  सहिष्णुता और सागर की गहराई मुझमें।

सृष्टि  चक्र  की  धुरी हूँ मैं, जीवन मूल समायी मुझमें।।

प्रलय के झंझावातों में भी, शीतलता हूँ,फुलवारी हूँ मैं।

अबला कभी समझ मत लेना, ज्वाला हूँ,चिंगारी हूँ मैं।।

 

मरू का निर्झर,शांत प्रखर,उन्मुक्त प्रवाह की सरिता हूँ मैं।

सबके हित जीती मैं औरत, सहचरी,श्रीमती,वनिता हूँ मैं।।

किसी का भी नहीं  मैं  दुश्मन, हर दुश्मन पर भारी हूँ मैं।

अबला  कभी  समझ  मत लेना, ज्वाला हूँ,चिंगारी हूँ मैं।।

 

रण में हूँ मैंधन में  हूँ मैं, कला,कौशलविधान में मैं हूँ।

अभिनय,खेल,विज्ञान में हूँ मैं,तकनीकी अभियान में मैं हूँ।।

सम्पूर्ण  जगत की जननी  मैं  हूँ, स्त्री  हूँ  मैं,न्यारी हूँ मैं।

अबला  कभी  समझ मत लेना,ज्वाला हूँ,चिंगारी हूँ मैं।।

मैं  नारी  हूँ,  मैं  शक्ति  हूँ मैं  देवी  हूँअवतारी हूँ मैं।।

-उमेश यादव १८-१२-२०

अखंड ज्योति

अखंड ज्योति

सुरता पर है  प्रहार यह, ऋषियों का दिव्य विचार है

अज्ञानता का संहार करे यह, मनुजता को अनुपम उपहार है।।

खंड प्रलय सा  विकट समय में, झंझावातों से  निर्भय  है

ज्ञान ज्योति का सतत प्रवाह है,बढता रहा अनवरत अभय है।।

मरू नाद यह महाकाल का,वेणु कृष्ण की मधुर तान है 

ताल  दे  रहा  स्वयं काल  है, युग  प्रवाह का तीव्र चाल है 

ज्योति यह जो कभी न खंडित, दिग-दिगंत तक महिमा मंडित

प्रखर विचार फैलाये सबमें , बाल, वृद्धनारी, नर, पंडित।।

तिल तिल जल प्रकाश फैलाता, अंधकार जब जब गहराता

युग निर्माण का दिव्य सन्देश ले, सतत वेग से बढ़ता जाता।।

                                                                      -उमेश यादव 8 मार्च 2003