अखंड
ज्योति
असुरता पर है प्रहार यह, ऋषियों का दिव्य
विचार है।
अज्ञानता का संहार करे यह, मनुजता को अनुपम उपहार है।।
खंड प्रलय सा विकट समय में, झंझावातों से निर्भय है।
ज्ञान ज्योति का सतत प्रवाह है,बढता रहा अनवरत अभय है।।
डमरू नाद यह महाकाल का,वेणु कृष्ण की मधुर तान है ।
ताल दे रहा स्वयं काल है, युग प्रवाह का तीव्र चाल है ।।
ज्योति यह जो कभी न खंडित,
दिग-दिगंत
तक महिमा मंडित।
प्रखर
विचार फैलाये सबमें , बाल, वृद्ध, नारी, नर, पंडित।।
तिल तिल जल प्रकाश फैलाता,
अंधकार
जब जब गहराता।
युग निर्माण का दिव्य सन्देश ले, सतत वेग से बढ़ता जाता।।
-उमेश
यादव 8 मार्च 2003
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