महाकुम्भ: हरिद्वार-आपके द्वार
महाकुम्भ की पावन बेला ,सुधा कलश ले आयें हैं।
महाकुम्भ का महाप्रसाद ले, द्वार द्वार पहुंचाए है।।
सागर मंथन करके जग ने,अमृत कुम्भ को पाया था।
देवासुर के रण में हरि ने,दुष्टों से कुम्भ बचाया था।।
देव संस्कृति रक्षक देवों
को, सुधा पान करवाया था।
दानवता फिर पस्त हुई थी,सतयुग जग में आया था।।
पुनः देवत्व की दिव्य ध्वजा,घर घर फहराने आये हैं।
महाकुम्भ का महाप्रसाद ले, द्वार द्वार पहुंचाए है।।
आदि शंकराचार्य ने जग में, धर्म ध्वजा फहराया था।
सम्पूर्ण देश तब एक हुआ था, केशरिया लहराया था।।
चार धाम और चार कुम्भ से,शुभ संस्कार जगाया था।
धर्म चेतना जागृत करके, राष्ट्र सशक्त बनाया था।।
गुरुसत्ता की प्रखर चेतना, शांतिकुंज से लायें है।
महाकुम्भ का महाप्रसाद ले, द्वार द्वार पहुंचाए है।।
महाकुम्भ के पवित्र सुधा को, तुम्हें पिलाने आये हैं।
जाग उठो हे देव शक्तियां, तुम्हें जगाने आयें है।।
अमृत पान करो हे देवों, संगठित हो शौर्य दिखावो।
देव संस्कृति की रक्षा को,कमर कसो अब आगे आओ।
युग निर्माण के ज्ञानामृत की, धार पिलाने आये हैं।
महाकुम्भ का महाप्रसाद ले, द्वार द्वार पहुंचाए है।।
-उमेश यादव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें