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शनिवार, 2 जनवरी 2010

नव वर्ष २०१० की शुभकामना,

नव वर्ष के इस महापर्व को, आओ सब मिल साथ मनाएं. 
अब समाज के शेष तिमिर को, आओ सब मिल दूर भगाएं. 

 नए साल में नए लक्ष्य ले, नए जोश से काम करें हम. 
 समय आ गया परिवर्तन का, तनिक नहीं विश्राम करें हम. 
 नयी लगन और श्रम, निष्ठा से, आओ नया समाज बनायें. 
 नव वर्ष के इस महापर्व ......... 

नयी सुबह है, नयी उमंग है, नया प्राण संचार करें हम. 
नयी सभ्यता, नया देश हो, अपना ह्रदय विस्तार करें हम. 
नए विश्व के नवनिर्माण के नए गीत सब मिलकर गायें. 
 नव वर्ष के इस महापर्व ......... 

 सभी साक्षर हों, ज्ञानवान हों, सबमें हम अपने को देखें. 
 सभी सुखी हों, सभी स्वस्थ हों, सभी नए सपनों को देखें. 
 परहित सबसे बड़ा धर्मं हो, पर पीड़ा में साथ निभाएं. 
 नव वर्ष के इस महापर्व ......... 

सत्पथगामी युवा हमारे, नयी क्रांति जग में लाना है. 
भय का भूख का नाम न हो अब, विश्व परिवार बनाना है. 
अमन चैन हो स्वर्ग सा जग में, मिलजुल कर साकार बनायें. 
नव वर्ष के इस महापर्व ......... 

 भ्रष्टाचार से मुक्त समाज हो, अब आतंक का नाम न होगा. 
 नशा कुरीति और अत्याचार का, नए समाज से काम न होगा. 
 नयी दिशा हो, नयी फिजा हो, युग निर्माण का शंख बजाएं. 
 नव वर्ष के इस महापर्व को आओ सब मिल साथ मनाएं. 
 ----उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार.

२०१० शुभकामना

नव वर्ष के इस महापर्व को, आओ सब मिल साथ मनाएं. 
अब समाज के शेष तिमिर को, आओ सब मिल दूर भगाएं. 

 नए साल में नए लक्ष्य ले, नए जोश से काम करें हम. 
 समय आ गया परिवर्तन का, तनिक नहीं विश्राम करें हम. 
 नयी लगन और श्रम, निष्ठा से, आओ नया समाज बनायें. 
 नव वर्ष के इस महापर्व ......... 

नयी सुबह है, नयी उमंग है, नया प्राण संचार करें हम. 
नयी सभ्यता, नया देश हो, अपना ह्रदय विस्तार करें हम. 
नए विश्व के नवनिर्माण के नए गीत सब मिलकर गायें. 
 नव वर्ष के इस महापर्व ......... 

 सभी साक्षर हों, ज्ञानवान हों, सबमें हम अपने को देखें. 
 सभी सुखी हों, सभी स्वस्थ हों, सभी नए सपनों को देखें. 
 परहित सबसे बड़ा धर्मं हो, पर पीड़ा में साथ निभाएं. 
 नव वर्ष के इस महापर्व ......... 

सत्पथगामी युवा हमारे, नयी क्रांति जग में लाना है. 
भय का भूख का नाम न हो अब, विश्व परिवार बनाना है. 
अमन चैन हो स्वर्ग सा जग में, मिलजुल कर साकार बनायें. 
नव वर्ष के इस महापर्व ......... 

 भ्रष्टाचार से मुक्त समाज हो, अब आतंक का नाम न होगा. 
 नशा कुरीति और अत्याचार का, नए समाज से काम न होगा. 
 नयी दिशा हो, नयी फिजा हो, युग निर्माण का शंख बजाएं. 
 नव वर्ष के इस महापर्व को आओ सब मिल साथ मनाएं. 
 ----उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार.