*हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की*
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।
ॐ नमो भगवते श्रीगोविन्दाय नमः।।
वेदव्यास मुनिश्रेष्ठ के, पद पंकज सिर नाय।
सुमिरौं गणपति देव को, हमपर होहिं सहाय।।
माँ देवकी वसुदेव पिता, वंदन बारम्बार।।
पालक यशोमति नन्द को, नमन
सहश्रों बार।।
हम कथा सुनाते कृष्ण सकल गुणधाम की।
हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की।।
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की।
जम्बुद्वीपे, भरतखंडे, आर्यावर्ते, भारतवर्षे।
एक नगरी है विख्यात मथुरा नाम की।।
यही जन्मभूमि है मुरलीधर घनश्याम की।
हम कथा सुनाते माधव केशव श्याम की।।
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की।
ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।।
यदुकुल के राजा दुष्टात्मा,
अति नृशंस कंस पापात्मा।
यमुना तट नृपति मथुरा के,
पापकर्म चर्चित वसुधा में।।
ऋषि संतन को बहुत सताया,
प्रजाजनों को दुःख पहुंचाया।
त्राहि त्राहि सब देव पुकारे,
रक्षा करो भगवान हमारे।।
भगिनी देवकी कंस की प्यारी,
परिणय सूत्र बंधी सुकुमारी।
देवकी संग वसुदेव,
व्याह किये सम्मान की।
हम कथा सुनाते माधव केशव श्याम की।।
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की।
ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।।
रथ बहन का हांक कर,
ले चला हर्ष से कंस।
तभी गिरा गंभीर हुई,
भागनेय कंस हंत ।।
परिणय अंत हुआ दुखदायी,
देवकी वध उद्धत आततायी।
वसुदेव देवकी को पापी ने,
बंदी बनाए संतापी ने।।
भादो मास कृष्णाष्टमी,
तमस्विनी विकराल।
कारागृह में जन्म लिए,
दुष्ट कंस के काल।।
गोकुल में उत्सव है भारी,
गोकुल में उत्सव है भारी।
दुःख कष्टों को दूर करेंगे, गिरिधर अवतारी ।।
गोकुल में उत्सव है भारी।
नन्द यशोदा संग में,
पलन लगे यदुराय।
सुनकर कंस कठोर को,
चैन नहीं तब आये।।
धर्म हेतु ईश्वर अवतार,
कृष्ण करेंगे जग उद्धार।
पूतना आई रूप संवार
दुग्ध पान दुष्टा को मार
शकट, अघासुर तृण,
वत्स, मारे,
वक धेनुक सब असुर संहारे।।
क्रीड़ा में ही, सबको मारा,
निज हाथों दुष्टों को तारा।
हुई शक्ति अवतरित परम दिव्य भगवान की।
हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की।।
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की।
ब्रज की राधा हैं अति प्यारी,
वृषभानु लली हैं अति न्यारी।
राधा संग महा रास रचाए,
तिन्हूँ लोक सुख पहुंचाए।।
प्रलंबासुर,कागासुर, शंखचुड वध, कुब्जा उद्धार।
यमलार्जुन मोक्ष,इंद्रदर्प हरण,
तृणावर्त उद्धार।।
निर्दयी कंस बहुत बौराया,
प्रजाजन में कुहराम मचाया।
अंत समय जब कंस का आया,
गोपों संग मथुरा बुलवाया।।
लीला पुरुष की लीला ने फिर,
अनुपम चक्र चलाया।
चाणूर, मुष्टिक कंस के भट को,
अपने धाम पहुंचाया
कान्हा ने ऐसी ऐसी रची कुछ माया
स्वयं भगवान् और दाऊ संग में,
पापी ने निज काल बुलाया।।
कान्हा ने ऐसी ऐसी रची कुछ माया
जब कृष्ण दाऊ रौद्र रूप धर, असुर वध करने लगे
मच गई थी त्राहि त्राहि, दुष्ट सब मरने लगे
केश पकडे कंस का और खिंच लाये धुल में
खड़ग लेकर अंत कर दी अधम मिल गया था धुल में
अधरमी का नाश हुआ था,
धर्म
ध्वजा अम्बर फहरा था.
मानवता को खो बैठें जब,
सभ्य समाज निवासी।
न्याय धर्म स्थापित करने,
आते हैं बृजवासी।।
उन प्रभु परम उदार का,
श्रीकृष्ण शुभ नाम।
निर्दयी कंस का अंत हुआ,
जय जय जय घनश्याम।।
दाऊ कृष्ण वसुदेव के जाए,
ईश्वर रूप जगत को भाये।
श्रोताओं, जब जब इस धरा धाम
पर अत्याचार और पाप का साम्राज्य बढ़ा है, भगवान्
स्वयं विभिन्न रूपों में अवतरित होकर पापियों और अत्याचारियों का विनाश किया है.महाभारत
के युद्ध में गीता का अमर ज्ञान देने वाले भगवान् श्रीकृष्ण ने किसी का वध न करने
या कोई भी हथियार न उठाने का संकल्प लिया था पर अपने बाल्यकाल से ही इस धरा धाम को
सुखी सम्मुनत करने के लिए कई दैत्यों को मारकर निजधाम प्रदान किये.
पूतना, बकासुर और वत्सासुर राक्षस का वध श्रीकृष्ण
ने खेलते ही खेलते कर दिया था.कालिय नाग मर्दन,नलकुबेर एवं मणिग्रीवा का उद्धार
किया, गोवर्धन धारी ने इंद्र का दर्प हरण अपने किशोरावस्था में ही कर दिए थे. क्रूरता
की सारी हदें पार करने वाला कंस जैसा अत्याचारी राजा ने अपने पिता उग्रसेन को ही
कारागार में डाल दिया था. बहन देवकी और जीजा वसुदेव को विवाहोपरांत ही कठिन
कारागार में डालकर उनके होने वाले नवजात शिशुओं को शिला के उपर पटककर मार देता
था.पाप का घड़ा भरते ही क्रूर कंस को उसके दलबल, कुबलयापीड़ हाथी समेत संहार किया.
जरासंध की भीम के द्वारा एवं कालयवन
का राजा मुचुकुन्द से बध करवाया.श्रेष्ठता का दंभ भरने वाले शिशुपाल एवं पौन्ड्रक को
परलोक पहुंचाया.
कंस
का हुआ संहार, चारों ओर हाहाकार,
स्वसुर
जरासंध ने तब, जुलम मचाया था.
मल्लयुद्ध
का समर, कृष्ण योजना प्रखर
इशारे
से भीम दोई पाट फड़वाया था.
पौन्ड्रक
अहंकार, शिशुपाल पर प्रहार
चक्रधारी
ने निज चक्र से मिटाया था
धर्म
और सत्य न्याय,महाभारत का अध्याय
कौरवों
को, विधर्मी को, समूल मिटाया था
भीष्म
द्रोण से प्रखर, कर्ण जैसा धनुर्धर,
दुर्योधन
के अहं को, मिटटी में मिलाते है
शान्ति
हेतु युद्ध था वो, युद्ध से ही शांति था वो
सत्य
न्याय नीति का वो ध्वजा फहराते हैं
राष्ट्र
बांधे एकता में, मिटाए अनेकता को
धर्मयुद्ध
से ही, महाभारत बनाते हैं
भक्ति
ज्ञान कर्मयोग, चक्र मुरली का संयोग
योगेश्वर
जगत हित, गीता भी सुनाते हैं
वंशी
शांति का प्रतीक,चक्र शक्ति का प्रतीक
हलधर
संग कृष्ण, समृद्धि बढाते हैं.
नन्द बाबा के हैं प्यारे,यशोदा मैया के न्यारे,
जगत को पापियों से, मुक्ति वो
दिलाते हैं।।
ओ ओ देवकी माँ के आँख के तारे।
स्वयं भगवन सूत उनके प्यारे।।
ओ पितु वसुदेव के राज दुलारे।
श्री कृष्ण हैं पूत तुम्हारे।।
यशोमति नन्द के हैं अति प्यारे।।
जगपालक जगती को तारे।
-उमेश यादव