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शनिवार, 30 सितंबर 2023

गुल्ली डंडा

 

*गुल्ली डंडा*

मचल रहा मन बहुत आज हम चलें गाँव की ओर

उठा हाथ में गुल्ली डंडे, खूब मचाएं शोर।।

 

कितना मनभावन होता है, बच्चों के संग खेलें

लकड़ी के गुल्ली डंडा को, निज हाथों में लेलें।।

बच्चों के संग निकलें बाहर,हो जाए जब भोर

उठा हाथ में गुल्ली डंडे,  खूब मचाएं शोर।।

 

डंडे से गड्ढे हम खोदें, गुल्ली वहां बिठाएं

गुल्ली को उछाल डंडे से, दूर मार ले जाएँ।। 

गुल्ली उड़े हवा में जाए जहां क्षेत्र का छोर

उठा हाथ में गिल्ली डंडे, खूब मचाएं शोर।।

 

जितना दुर जाये गुल्ली,उसको नापा जाता

गुल्ली पकड़ा जाए तो खिलाड़ी बाहर जाता।।

छुट जाए जब हाथ से गिल्ली, मचे जोर की शोर

उठा हाथ में गिल्ली डंडे, खूब मचाएं शोर।।

 

कौन है जीता कौन है हारा,हल्ला है मच जाता।  

बात बात में झगडा होता, सुलह शीघ्र हो जाता।।

पदने पदाने का मचता जब, आपस में है जोर

उठा हाथ में गिल्ली डंडे, खूब मचाएं शोर।।

 

बिन पैसे का खेल है प्यारा,कोई बही ना खाता

बच्चों सा उर अपना भी तो पावन है हो जाता।।

ललक जगी खेलें बच्चों संग मन बन गया किशोर।

उठा हाथ में गिल्ली डंडे, खूब मचाएं शोर।।

-उमेश यादव, शांतिकुंज,हरिद्वार,9258363333