विवेकानंद
, हे चिर युवा
धर्म संस्कृति की विजय पताका, दिग्दिगंत फहराए।
विवेकानंद , हे चिर युवा, भारत का मान बढाए।।
रुको न जब तक लक्ष्य न पाओ,ऐसा प्रखर विचार
दिया था।
निर्बल नहीं, तुम सिंह वीर हो,युवकों को हुंकार दिया था ।
ज्ञान, कर्म और भक्ति की धारा,
चहुँ दिश में पहुंचाए।
धर्म संस्कृति की विजय
पताका, दिग्दिगंत फहराए।।
डरें
नहीं, निर्भीक बनें हम, पीड़ितों का उपकार करेंगे।
स्वयं को श्रम से पुष्ट बनाकर, दुखियो का
उद्धार करेंगे।।
हर मानव में
हरि बसे हैं
, यह सन्देश फैलाये।
धर्म संस्कृति की विजय पताका, दिग्दिगंत फहराए।।
धर्म हमारी
राष्ट्र शक्ति है, जन जन तक पहुंचाना है।
हर वासी को
भक्ति सिखाकर, राष्ट्र समर्थ बनाना है।।
विश्व पटल पर भारत माँ
का, शान बढ़ाने आये।
धर्म संस्कृति की विजय पताका, दिग्दिगंत फहराए।।
दर्शन उपनिषदों की गाथा, पश्चिम ने स्वीकार किया था।
भाई बहनों का संबोधन , जग ने पहली बार सुना था।।
हे सन्यासी, वीर युवा,
तुम
राष्ट्र जगाने आये थे।
धर्म संस्कृति की विजय पताका, दिग्दिगंत फहराए
थे।।
-उमेश यादव
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