गंगा माँ
गंगा माँ
का जल अमृत
है, आओ अमृतपान करें।
पाप नाशिनी,मोक्ष दायिनी,माता का जय गान करें।।
हर हर गंगे... जय माँ गंगे....
भागीरथ के पुण्य परमार्थ से,सुरसरि भू पर आयीं थीं।
क्षुधा पीड़ित सगर पुत्रों को, संजीवनी पिलाई थीं।।
सम्पूर्ण राष्ट्र समृद्ध हुआ था, पुनः मातु उत्थान करें।
पाप नाशिनी, मोक्ष दायिनी,माता का जय गान करें ।।
मरूभूमि सा आर्यावर्त का, माँ ने
ही कल्याण किया।
शस्य श्यामला बना देश यह,और जगत में मान दिया।।
माँ के
पावन जल से आओ, श्रद्धा सहित स्नान करें।
पाप नाशिनी, मोक्ष दायिनी, माता का जय गान करें।।
विष्णुपदी माँ भागीरथी के, तट पर सारे धाम हैं।
प्रयाग, बनारस, हरिद्वार, अति पावन तीर्थस्थान हैं।।
तीर्थ वास कर, दिव्य चेतना,का निज में आधान करें।
पाप नाशिनी, मोक्ष दायिनी,माता का जय गान करें।।
पुण्य सलिला, माते गंगे, भक्तों पर उपकार करो।
मन-निर्मल जल जैसा कर दो, श्रेष्ठ भाव संचार करो।।
भक्ति प्रेम से पूरित सब जन पावन जल का पान
करें।
पाप नाशिनी,मोक्ष दायिनी, माता का जय गान
करें।।
-उमेश यादव1-1-21
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