*हे मुरली मनोहर गिरधारी*
जाने कितनों के पाप हरे, जाने कितनों को तारा है।
हे मुरली मनोहर गिरधारी,सबपर उपकार तुम्हारा है।।
कंस का दर्प हरे तूने,कालिय नाग को बांधा था।
गोवर्धन उठाकर तूने, दर्प इंद्र का साधा था।।
हे यदुनंदन नन्द दुलारे,तुम्हीं से सांस हमारा है।
धरती पापों से तड़प रही,आकर यह भार घटा जाओ।
है मनुज कष्ट से तड़प रहा, गीता का ज्ञान सूना जाओ।।
हे मोहन माधव कृष्ण हरे, तुमने ही हमें संवारा है।
अपना मुझे बना लेना,ये जीवन तुझको अर्पित है।
जैसा भी हूँ अपना लेना,ये जीवन तुझे समर्पित है।।
हे गोकुल नंदन कृष्ण हरि,तेरा ही एक सहारा है।।
-उमेश यादव
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