*यज्ञ देव हे प्रभु हमारे*
यज्ञ देव हे प्रभु हमारे, यज्ञ मय संसार कर दो।
स्वार्थ भाव मिटे हमारा,मानवों में प्यार भर दो।।
लालसा मिट जाए मन से,लोभ की व स्वार्थ की।
भावना जग जाए सबमें, पुण्य की, परमार्थ की।।
सेवा में लग जाए जीवन,देव शुभ विचार भर दो।
स्वार्थ भाव मिटे हमारा,मानवों में प्यार भर दो।।
छल कपट से दूर होवें, सत्य का आधार हो।
दीन दुखियों पर दया हो,धर्म पर उपकार हो।।
स्नेह संवेदन ह्रदय हो,प्रेममय व्यवहार कर दो।
यज्ञ देव हे प्रभु हमारे, यज्ञमय संसार कर दो।।
पर दुखों से द्रवित होवें,ह्रदय में करुणा जगे।
हों अगर कोई पीड़ित तो, तन ये सेवा में लगे।।
ह्रदय में प्रभु मानवों के, स्नेह पारावार भर दो।
यज्ञ देव हे प्रभु हमारे, यज्ञ मय संसार कर दो।।
पतन पीड़ा देखकर प्रभु, नयन ये सजल रहे।
भाव देने का रहे प्रभु, मन में ये संबल रहे।।
चरण सेवा को बढ़े वह,शक्ति दे उपकार कर दो।
यज्ञ देव हे प्रभु हमारे, यज्ञ मय संसार कर दो।।
-उमेश यादव 28-5-21
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