*यज्ञ वही जो मानव मन में*
यज्ञ वही जो मानव मन में, मंगलकारी भाव जगाये।
दिव्य यज्ञ वह होता जिसमें, संघबद्ध सेवा कर पायें।।
कुंडों की ज्वाला में मन के, द्वेष दंभ को नष्ट करें।
ज्ञान कर्म और भक्ति भाव से,जीवन को हम पुष्ट करें।।
आहुति दे हम क्षुद्र स्वार्थ को,कैवल्य(आत्म)भाव विकसायें।
यज्ञ वही जो मानव मन में, मंगलकारी भाव जगाये।।
ईश्वर ने जो हमें दिया है,सबके हित उपयोग करें हम।
औरों को देकर ही अपने, साधन का उपभोग करें हम।।
अपने कौशल समय शक्ति से,हम सबका उपकार कराएं।
यज्ञ वही जो मानव मन में, मंगलकारी भाव जगाये।।
यज्ञ भाव वह दिव्य भाव है, देना हमें सिखाता है।
यज्ञ कर्म करके ही मानव, देव तुल्य बन जाता है।।
आओ हर घर में यज्ञ करें,हितकारी सद्भाव बढ़ाएं।
यज्ञ वही जो मानव मन में,मंगलकारी भाव जगाये।।
ज्ञान यज्ञ घर घर में होवे, यह अभियान चलाना है।
ज्ञानदीप से दीप जला, घर घर में अलख जगाना है।।
गुरुवर के इस ज्ञान यज्ञ से,हर मानव को श्रेष्ठ बनाएं।
यज्ञ वही जो मानव मन में,मंगलकारी भाव जगाये।।
-उमेश यादव 27-05-21
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