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गुरुवार, 27 जनवरी 2022

माँ मुझको भी पढ़ना है

*माँ मुझको भी पढ़ना है*

माँ मुझको भी पढ़ना है

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।।

माँ मुझको भी पढ़ना है

 

सीढियों पर चढने दो मुझको,पांवों में मत पायल डालो

देखो ज़माना कहाँ जा रहा,काम काज में मत उलझालो।।

सुनो, समय से कदम मिलाकर, मुझको आगे बढना है

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।।

माँ मुझको भी पढ़ना है

 

जाने कैसी परिस्तिथियों में,आगे मुझको रहना होगा

नहीं जरुरी पुष्प मिलेंगे, काँटों पर भी चलना होगा।।

अपने पैरों से चलना है, काबिल मुझको बनना है

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।।

माँ मुझको भी पढ़ना है

 

भेद भाव ना करना मुझसे,मैं भी तेरी ही जायी हूँ

तेरा रक्त धड़कता दिल में,अपनी हूँ,नहीं पराई हूँ।।

बांधों ना घर में ही मुझको, आसमान में उड़ना है

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।।

माँ मुझको भी पढ़ना है

 

समय अभी तो पढने का है,व्यर्थ ना इसे गवाने दो

मुझे चाँद छूने का मन है,सपने तो मुझे सजाने दो।।

पहचान बनानी है अपनी,दहलीज से पार निकलना है

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।।

माँ मुझको भी पढ़ना है

उमेश यादव

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