यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 27 जनवरी 2022

वसंत पर्व मधुमासी सुरभित बयार

 

*मधुमासी सुरभित बयार*

मधुमासी सुरभित बयार में, मन मयूर करता नर्तन है

पीत वसन धरती का आँगन,आनंदित हर जड़ चेतन है।।

 

पुष्पों के मादक सुगंध से, मन मतवाला हो जाता है

नव पल्लव से पादप द्रुम भी,अनुपम सौंदर्य दिखाता है।।

मन्त्रों सा अनहत नाद सुनाता,भृंगों का गायन गुंजन है

पीत वसन धरती का आँगन,आनंदित हर जड़ चेतन है।।

 

कू कू कुहक रही कोकिला, चक्रों को आंदोलित करती

राग वसंत के गुंजन से,मन के विकार को खंडित करती।।

वासंती उल्लास ह्रदय में, लेकर आया नव परिवर्तन है

पीत वसन धरती का आँगन,आनंदित हर जड़ चेतन है।।

 

निर्जन में भी स्वर्ग बसाए,मरू में निर्झरिणी बन जाए

नीरस को भी सरस बनाए, जीवन सतरंगी बन जाए।।

बासंती उल्लास जगा है, गुरुचरणन में पूर्ण अर्पण है

पीत वसन धरती का आँगन,आनंदित हर जड़ चेतन है।।

-उमेश यादव

 

कोई टिप्पणी नहीं: