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गुरुवार, 27 जनवरी 2022

बेटी

 

बेटी
घर आँगन में खिले पुष्प की, सुरभित सुखद सुवास है बेटी।
मरू की निर्झर,परी सी निश्छल,खुबसूरत अहसास है बेटी।।

बगिया में कोयल की गायन, कड़क धुप में शीत समीरण।
अर्णव में तुम दीप-स्तंभ से ,सविता की पहली रश्मि कण।।
अरुणोदय के खग कलरव तुम,ऋतुओ में मधुमास है बेटी।
मरू की निर्झर,परी सी निश्छल,खुबसूरत अहसास है बेटी।।

इन्द्रधनुष के सतरंगी सा, जीवन के हर रंग में तुम हो।
पुत्री भी तू, माता भी तू, सृष्टि के कण कण में तुम हो।।
तुम से ही ये सारा जहाँ है, बिन तेरे संत्रास है बेटी।
मरू की निर्झर,परी सी निश्छल,खुबसूरत अहसास है बेटी।।

जिस घर में भी होती तनया, घर आँगन खुशियाँ भर देती।
पद पैंजनियों की छन छन से, असह्य वेदना भी हर लेती।।
हर संकट में,विकट विपथ में,सुख का सहज आभास है बेटी।
मरू की निर्झर,परी सी निश्छल,खुबसूरत अहसास है बेटी।।

ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति हो,घर आँगन की शान है बेटी।
जहाँ रहे खुशियाँ ही बांटे, दो कुल की अभिमान है बेटी।।
सागर की माणिक मुक्ता सा,तू अतुल्य और ख़ास है बेटी।
मरू की निर्झर,परी सी निश्छल, खुबसूरत अहसास है बेटी।।

अमावस की दीपमालिका, सघन तिमिस्रा में प्रदीप हो।
भटक रहे मानवता के तुम,पथ दर्शक हो, दंड दीप हो।।
गंगा की पुण्य प्रवाह जगत में, सिंदूरी आकाश है बेटी।
मरू की निर्झर,परी सी निश्छल,खुबसूरत अहसास है बेटी।।
-उमेश यादव 15-4-21





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