यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 27 जनवरी 2022

गुरु गीता



गुरु गीता

योगपूर्णं तपोनिष्ठं वेदमूर्तिं यशस्विनम् ।।

गौरवर्णं गुरूं श्रेष्ठं भगवत्या सुशोभितम्॥

कारूण्यामृतसागरं शिष्यभक्तादिसेवितम्।

श्रीरामं सद्गुरूं ध्यायेत् तमाचार्यवरं प्रभुम्॥



हे योगपूर्ण, हे तपोनिष्ठ, हे वेदमूर्ति श्रीराम।

शिष्यों से पूजित सदगुरु को,बारम्बार प्रणाम।।

हे प्रेम मूर्ति, करुणा के सागर,गौरवर्ण ललाम।

माँ भगवती संग गुरु तुम्हें है,बारम्बार प्रणाम।।



ऋषयः ऊचुः

गुह्यात् गुह्यतरा विद्या गुरूगीता विशेषतः।

ब्रूहि नः सूत कृपया श्रृणुमस्त्वत्प्रसादतः॥



जिज्ञासु ऋषियों के मन में,गुरुगीता का प्रश्न जगा।

नैमिषारण्य तीर्थस्थल में,ऋषियों का सत्संग चला।।

हे सूत,ऋषियों के हित में,इस विद्या का प्रसार करो।

गुरुगीता अति गुह्य ज्ञान का साधक में संचार करो।।

सूत बोले यह भक्तितत्व है, है यह अनुसंधान।

माँ भगवती संग गुरु तुम्हें है,बारम्बार प्रणाम।।



कैलाश शिखरे रम्ये भक्ति सन्धान नायकम् ।।

प्रणम्य पार्वती भक्त्या शंकरं पर्यपृच्छत॥ १॥

ॐ नमो देवदेवेश परात्पर जगद्गुरो।

सदाशिव महादेव गुरूदीक्षां प्रदेहि मे ॥ २॥

केन मार्गेण भो स्वामिन् देही ब्रह्रामयो भवेत्।।

त्वं कृपां कुरू मे स्वामिन् नमामि चरणौ तव॥३॥



सूत बोले यह कथा है पावन,शिवधाम में सृजित हुआ।

शक्तिमय माता के मन में भक्ति तत्व अंकुरित हुआ।।

बोलीं शिव से दीक्षा दो प्रभु, जगद्गुरु कल्याण करो।

ब्रह्मस्वरूप जीव हों कैसे, शिष्य हूँ ज्ञान प्रदान करो।।

आदिशक्ति माँ शिष्य बनी, हैं आदिगुरू भगवान।

माँ भगवती संग गुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।

मम रूपासि देवित्वं त्वत्प्रीत्यर्थं वदाम्यहम्।

लोकोपकारकः प्रश्नो न केनाऽपि कृतः पुरा॥ ४॥

दुर्लभं त्रिषु लोकेषु ततश्क्णुष्व वदाम्यहम् ।।

गुरूं बिना ब्रह्म नान्यत् सत्यं सत्यं वरानने॥ ५॥



शिव बोले की, हे देवी,हर शिष्य ही आत्म स्वरूप है।

जनहितकारी प्रश्न तुम्हारा,अति दुर्लभ और अनूप है।।

गुरु बिना कोई ब्रह्म नहीं है, सत्य यही उत्तर जानो।

गुरु शिष्य हैं एक सर्वदा, ब्रह्म स्वरुप गुरु को मानो।।

गुरु के प्राणों से प्राणित हो, बनते शिष्य महान।

माँ भगवती संग गुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



वेदशास्त्रपुराणानि इतिहासादिकानि च।

मंत्रयंत्रादि विद्याश्च स्मृतिरूच्चाटनादिकम्॥ ६॥

शैवशाक्तागमादीनि अन्यानि विविधानि च।

अपभ्रंशकराणीह जीवानां भ्रान्तचेतसाम् ॥ ७॥



वेद शाष्त्र पूराण ज्ञान,बिन गुरु निष्फल हो जाते हैं।

मंत्र यन्त्र स्मृति उच्चाटन, चित भ्रमित कर जाते हैं।।

शैव शाक्त आगम ज्ञान सब अर्थ हीन हो जाते हैं।

लौकिक आध्यात्मिक विद्या का,सार गुरु बतलाते हैं।।

गुरुकृपा की महिमा न्यारी, हर लेते अज्ञान।

माँ भगवती संग गुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



यज्ञो व्रतं तपो दानं जपस्तीर्थ तथैव च।

गुरूतत्त्वमविज्ञाय मूढस्तु चरते जनः ॥ ८॥

गुरूर्बुद्धयात्मनो नान्यत् सत्यं सत्यं न संशयः।

तल्लाभार्थ प्रयत्नस्तु कर्तव्यो हि मनीषिभिः॥ ९॥



गुरुतत्व के बिना श्रेष्ठ कर्म, भी हो जाते शापित हैं।

जप तप यज्ञ व्रत दान तीर्थ में गुरुतत्व अपेक्षित है।।

सदगुरु और प्रबुद्ध आत्मा, सदा एक हैं यह मानो।

मननशील मनीषी होकर श्रेष्ठ कर्म को ध्येय मानो।।

मूढ़मति से ज्ञानवान, सदगुरु तक करो प्रयाण।

माँ भगवती संग गुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



गूढ़विधा जगन्माया देहेचाज्ञानसम्भवा।

उदयो यत्प्रकाशेन गुरूशब्देन कथ्यते॥ १०॥

सर्वपापविशुद्धात्मा श्रीगुरोः पादसेवनात् ।।

देहीब्रह्मभवेद् यस्मात् त्वत् कृपार्थं वदामि ते॥ ११॥



माया से आवृत ये जग है,अज्ञानी से गुप्त यही है।

सत्य ज्ञान जागृत गुरु करते,गुरुकृपा से मूढ़ नहीं है।।

सब पापों से मुक्त हो प्राणी, आत्म शुद्ध हो जाते हैं।

शिवशंकर बोले- देहधारी भी, ब्रह्मभाव पा जाते हैं।।

शिष्य प्रेमी गुरुदेव बने हैं, भक्त वत्सल भगवान्।

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



गुरूपादाम्बुजं स्मृत्वा जलं शिरसि धारयेत् ।।

सर्वतीथावगाहस्य सम्प्राप्रोति फलं नरः ॥ १२॥

शोषकं पापपङ्कस्य दीपनं ज्ञानतेजसाम् ।।

गुरूपादोदकं सम्यक् संसारार्णवतारकम् ॥ १३॥

अज्ञानमूलहरणं जन्मकर्मनिवारणम् ।।

ज्ञानवैराग्यसिद्धर्य्थ गुरूपादोदकं पिबेत् ॥ १४॥



देवों के भी परम देव, गुरु महिमा समझाते हैं

माँ पार्वती शिष्य भाव में,गुरुगीता सुन पाती हैं

स्मरण मात्र गुरुचरणों का, जब स्नान में आता है

सारे तीर्थों में नहान का,पुण्य फल मानव पाता है

गुरु कृपा ही केवलम, साधक का सत्य है जान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



पाप पंक सुखते शिष्यों के,दिव्य ज्ञान मिल जाता है

गुरु चरणों के जल पीने से, भव सागर तर जाता है

आध्यात्मिक उर्जा भरी रहे जहाँ गुरु का रहे निवास

गुरु धाम काशी मथुरा है,मुक्त हो साधक का श्वास

गुरु चरणामृत से साधक गण,पाते सिद्धि और ज्ञान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



गुरोः पादोदकं पीत्वा गुरोरूच्छिष्टभोजनम् ।।

गुरूमूर्तेः सदा ध्यानं गुरूमन्त्रं सदा जपेत्॥ १५॥

काशीक्षेत्रं तन्निवासो जाह्नवी चरणोदकम्।

गुरूः विश्वेश्वरः साक्षात् तारकं ब्रह्मनिश्चितम्॥ १६॥

गुरोः पादोदकं यत्तु गयाsसौ सोऽक्षयोवटः।

तीर्थराज प्रयागश्च गुरूमूर्त्यै नमोनमः॥ १७॥



समर्थ साधना सार शिष्य का, चरणामृत का पान है

गुरु समर्पित भोज्य प्रसाद ही,जीवनोदक सा खान है

गुरुमूर्ति का ध्यान सदा और, गुरु मंत्र का जाप है

गुरु निवास ही मुक्ति दायिनी,काशी है, तीर्थराज है

गुरु चरणोदक गया तीर्थ हैं, विश्वनाथ भगवान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



गुरूमूर्तिं स्मरेत्रित्यं गुरूनाम सदा जपेत्।।

गुरोराज्ञां प्रकुर्वीत गुरोरन्यन्न भावयेत्॥१८॥

गुरूवक्त्रस्थितं ब्रह्म प्राप्यते तत्प्रसादतः।

गुरोर्ध्यानं सदा कुर्यात् कुलस्त्री स्वपतेर्यथा॥ १९॥

स्वाश्रमं च स्वजातिं च स्वकीर्तिं पुष्टिवर्धनम्।

एतत्सर्वं परित्यज्य गुरोन्यत्र भावयेत् ॥ २०॥



हर क्षण गुरुवर की छवि,हर क्षण गुरु का नाम

हर पल गुरु आज्ञा निभे, गुरु भाव रहे अष्टयाम

गुर मुख ब्रह्मा वास है,ब्रह्मवाक्य है गुरु वाणी

गुरु कृपा से ब्रह्म मिले,कर निष्ठा से गुरु ध्यान

गुरुगीता के महामंत्र को, पारसमणि सम जान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



पतिव्रता प्राणेश का,ज्यों हर पल करती ध्यान

साधक वैसा ही करें, हर क्षण गुरु का ध्यान

आश्रम जाति कीर्ति का, वर्धन हो अति गौण

गुरु भाव विकसाइए, अन्य भाव हो मौन

शिव पार्वती संवाद से, जगत ने पाया ज्ञान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



अनन्यश्चिन्तयन्तो मां सुलभं परमं पदम् ।।

तस्मात् सर्वप्रयत्त्रेन गुरोराराधनं कुरू॥ २१॥

त्रैलोक्ये स्फुटवक्तारो देवाधसुरपत्रगाः ।।

गुरूवक्त्रस्थिता विद्या गुरूभक्त्या तु लभ्यते॥ २२॥

गुकारस्त्वन्धकारश्च रूकारस्तेज उच्यते।

अज्ञानग्रासकं ब्रह्म गुरूरेव न संशयः॥ २३॥

गुकारः प्रथमो वर्णो मायादिगुणभासकः ।।

रूकारो द्वितीयो ब्रह्म मायाभ्रान्ति विनाशनम्॥ २४॥

एवं गुरूपदं श्रेष्ठं देवानामपि दुर्लभं ।।

हाहाहूहू गणैश्चैव गन्धर्वैश्च प्रपूज्यते ॥ २५॥



सदगुरु का चिंतन सदा, परम पद करे प्रदान

शिव सुमिरन ही समझ करो,यत्न से गुरु ध्यान

देव नाग असुर त्रिलोक में, करते गुरु का गान

गुरुभक्ति से ब्रह्मविद्या का, करते सभी बखान

महामंत्र का हर अक्षर है गुरु महिमा ज्ञान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



गु जड़ता का तिमिर है, रु से ब्रह्म प्रकाश,

संशय तनिक ना कीजिये,तम का करे विनाश

माया सब हर लेत है ,गुरुवर का पुण्य प्रताप

गुरुपद ही सर्व श्रेष्ठ है ,देव दुर्लभ पद आप

गण गन्धर्व सब पूजते, गुरु महिमा को जान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



ध्रुवं तेषां च सर्वेषां नास्ति तत्त्वं गरोः परम्।

आसनं शयनं वस्त्रं भूषणं वाहनादिकम्॥ २६॥

साधकेन प्रदातव्यं गुरूसन्तोषकारकम् ।।

गुरोराराधनं कार्य स्वजीवित्वं निवेदसेत् ॥ २७॥

कर्मणा मनसा वाचा नित्यमाराधयेद् गुरूम् ।।

दीर्घदण्डम् नमस्कृत्य निर्लज्जोगुरूसन्निधौ ॥ २८॥

शरीरमिन्द्रियं प्राणान् सद्गुरूभ्यो निवेदयेत्।

आत्मदारादिकं सर्व सद्गुरूभ्यो निवेदयेत् ॥ २९॥

कृमिकीट भस्मविष्ठा- दुर्गन्धिमलमूत्रकम्।

श्लेष्मरक्तं त्वचामांसं वञ्चयेन्न वरानने ॥ ३०॥



अटल सत्य है शिष्य समझ लें,परम तत्व गुरु ही हैं

लोक कल्याण निरत रहते हैं,परम कृपालु गुरु ही हैं

परमारथ में लगे गुरु को अपना सब अर्पण कर दें

समर्पित करें तन मन धन,जीवन भी अर्पित कर दें

साधना का पथ प्रदीप है इन, महामंत्रों का ज्ञान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



मन कर्म वचन से गुरु सेवा ही,शिष्यों का शुभ कर्म है

मान सदा है गुरु कार्य में,साष्टांग प्रणाम शिष्य धर्म है

तन मन इन्द्रिय प्राण परिजन गुरु कार्य को अर्पित हो

अधम तत्व से निर्मित तन भी गुरु कार्य को अर्पित हो

इससे भला न श्रेष्ठ कार्य है,गुरु को सब कुछ मान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



संसारवृक्षमारूढा पतन्तो नरकार्णवे ।।

येन चैवोद्घृताः सर्वे तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ ३१॥

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः ।।

गुरूरेव परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ ३२॥

हेतवे जगतामेव संसारार्णवसेतवे।

प्रभवे सर्वविद्यानां शंभवे गुरवे नमः ॥ ३३॥

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।

चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ ३४॥

त्वं पिता त्वं च मे माता त्वं बंधुस्त्वं च देवता।

संसारप्रतिबोधार्थं तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ३५॥



संसार वृक्षारूढ़ जीवों को, भवसागर पार कराते हैं

नमन सद्गुरु भगवान तुम्हें,यमपुर से हमें बचाते हैं

गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, शिव हैं गुरु साकार।

परम ब्रह्म गुरु शिष्य के, नमन है बारम्बार।।

ज्ञानांजन देकर गुरु, हरते लेते अज्ञान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



शिव रूपी गुरु को है नमन,जो जगत के हेतु हैं

समस्त विद्याओं के उद्गम,संसार सागर सेतु हैं

अज्ञान तम के अंध को,ज्ञान प्रकाश भर देते हैं

कृपा गुरु के हो जाने से,ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं

मातु पिता अरु इष्ट बंधू हैं,सत्य कराते भान

माँ भगवती सदगुरु तुम्हें है, बारम्बार प्रणाम।।



यत्सत्येन जगत्सत्यं यत्प्रकाशेन भाति तत्।

यदानन्देन नन्दन्ति तस्मै श्री गुरवे नमः॥ ३६॥

यस्य स्थित्या सत्यमिदं यद्भाति भानुरूपतः।

प्रियं पुत्रादि यत्प्रीत्या तस्मै श्री गुरवे नमः॥ ३७॥

येन चेतयते हीदं चित्तं चेतयते न यम् ।।

जाग्रत्स्वन्प सुषुप्त्यादि तस्मै श्री गुरवे नमः॥ ३८॥

यस्य ज्ञानादिदं विश्वं न दृश्यं भिन्नभेदतः।

सदेकरूपरूपाय तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ ३९॥

यस्यामतं तस्य मतं मतं यस्य न वेद सः।

अनन्यभावभावाय तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ ४०॥



सद्गुरु नमन के महामन्त्र में गहन तत्व का ज्ञान है

प्रकृति गुरु परमात्म तत्व का अति विस्तृत विज्ञान है

जिस सत्य से जगत सत्य है,आनंद से जगातानंद है

नमन सद्गुरु को है जिनका, स्वरुप सचिदानंद है

कोई टिप्पणी नहीं: