यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की (कंस वध)

हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की (कंस वध)

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।
ॐ नमो भगवते श्रीगोविन्दाय नमः।।

वेदव्यास मुनिश्रेष्ठ के, पद पंकज शिर नाय।
सुमिरौं गणपति देव को,हमपर होहिं सहाय।।
माँ देवकी वसुदेव पिता, वंदन बारम्बार।।  
पालक यशोमति नन्द को, नमन सहश्रों बार।। 

हम कथा सुनाते कृष्ण सकल गुणधाम की।   
हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की।। 
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की। 
ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।। 

जम्बुद्वीपे, भरतखंडे, आर्यावर्ते, भारतवर्षे।
एक नगरी है विख्यात मधुपुरी नाम की।।
यही जन्मभूमि है श्री कृष्ण भगवान की।
हम कथा सुनाते माधव केशव श्याम की।। 
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की। 
ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।। 

द्वापर में एक नृप दुष्टात्मा, अति नृशंस कंस पापात्मा। 
यमुना तट नृपति मधुरा के,पापकर्म से चर्चित जग में।।
ऋषि संतन को बहुत सताया,प्रजाजनों को दुःख पहुंचाया।
त्राहि त्राहि सब देव पुकारे ,रक्षा करो भगवान हमारे।।
भगिनी देवकी कंस की प्यारी,परिणय सूत्र बंधी सुकुमारी।
देवकी संग वसुदेव, व्याह किये सम्मान की।  
हम कथा सुनाते माधव केशव श्याम की।। 
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की।  
ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।। 
 
रथ बहन का हांक कर,ले चला हर्ष से कंस।
तभी गिरा गंभीर हुई, भगिनी सूत कंसहंत ।।
परिणय अंत हुआ दुखदायी,देवकी वध उद्धत आततायी।
वसुदेव देवकी को पापी ने ,बंदी बनाए संतापी ने।। 

जेल में मारण लगा, भगिनी जाये शिशु कंस।
मिट जाए हन्ता उसका,रहे न बहन का वंश।।

भादो मास कृष्णाष्टमी, तमस्विनी विकराल।
कारागृह में जन्म लिए, दुष्ट कंस के काल।।
प्रभु कृपा रक्षक सब सोये, द्वार खुले प्रभु ना रोये
सघन तमिस्रा घनी अंधियारी,यमुना में लावन अति भारी।।
बंधन मुक्त वसु हुए,कृपा कृष्ण भगवान् की
हम कथा सुनाते माधव केशव श्याम की।। 
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की।  
ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।। 

बसुदेव निज पुत्र ले, पहुंचे गोकुल धाम।
यदुकुल में पैदा हुए, श्रीकृष्ण घनश्याम।। 
गोकुल में उत्सव है भारी,गोकुल में उत्सव है भारी।
दुःख कष्टों को दूर करेंगे, यदुनंदन गिरधारी।।
गोकुल में उत्सव है भारी।

नन्द यशोदा संग में ,पलन लगे यदुराय।
सुनकर कंस कठोर को,चैन नहीं तब आये।।

धर्म हेतु ईश्वर अवतार, कृष्ण करेंगे जग उद्धार
वध करने पूतना आयीं,अंत किये प्रभु मुक्ति दिलाई।
शकट, तृण, वत्स, अघासुर मारे, वक धेनुक सब असुर संहारे।।  
सहज भाव से सबको मारा,निज हाथों दुष्टों को तारा 
हुई शक्ति अवतरित परम दिव्य भगवान की। 
हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की।। 
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की।  
ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।। 

ब्रज की राधा हैं अति प्यारी, वृषभानु लाली अति न्यारी।
राधा संग महा रास रचाए, तिन्हून लोक सुख पहुंचाए।।
गोवर्धन ऊँगली से उठाये, इंद्र दर्प को चूर कराये।
गोचारण मुरलीधर लीला,गोपीन संग में रास रसीला।।

प्रलंबासुर,कागासुर, शंखचुड वध, कुब्जा उद्धार।
यमलार्जुन मोक्ष,इंद्रदर्प हरण, तृणावर्त उद्धार।। 

निर्दयी कंस बहुत बौराया, प्रजाजन में कुहराम मचाया।
अंत समय कंस का आया,गोपों संग  मथुरा बुलवाया।।
लीला पुरुष की लीला ने फिर,अनुपम चक्र चलाया। 
पापी ने अक्रूर से कहकर, मथुरा में कृष्ण बुलाया। 
मथुरा में ऐसा ऐसा एक दिन आया
स्वयं भगवान् को दाऊ संग में, पापी ने पास बुलाया।।  
मथुरा में ऐसा ऐसा एक दिन आया।

धर्म नीति तज चले जब न्याय कर्ता ही यहाँ।
असुरता बढ़ जाए जग में,संत जन जाए कहाँ।। 
ह्रदय करुणा शून्य होकर पाप के आधीन हो । 
बुद्धि विवेक शून्य होकर मनुजता बलहीन हो।। 

मानवता को खो बैठे जब, सभ्य समाज निवासी।
न्याय धर्म स्थापित करने को, आते हैं बृजवासी।।
उन प्रभु परम उदार का, श्रीकृष्ण शुभ नाम ।
निर्दयी कंस का अंत करन, चले स्वयम भगवान्।।
दाऊ कृष्ण वसुदेव के जाए,ईश्वर रूप जगत को भाये।

श्रोताओं, जब जब इस धरा धाम पर अत्याचार और पाप का साम्राज्य बढ़ा है, भगवान् स्वयं विभिन्न रूपों में अवतरित होकर पापियों और अत्याचारियों का विनाश किया है.क्रूरता की सारी हदें पार करने वाला कंस जैसा अत्याचारी राजा ने अपने पिता उग्रसेन को ही कारगार में डाल दिया था. बहन देवकी और जीजा वसुदेव को विवाहोपरांत ही कठिन कारागार में डालकर उनके होने वाले नवजात शिशुओं को शिला के उपर पटककर मार देता था.पाप का घड़ा भरते ही क्रूर कंस ने षड्यंत्र के तहत अक्रूर जी को ब्रज भेजकर कृष्ण बलराम को गोपों सहित मेला देखने मथुरा बुलवाया. मथुरा प्रवेश पर सुदाभ माली या कुब्जा दासी ने भगवन श्रीकृष्ण और बलराम का स्वागत किया और धन्य हुए तो कंस के चहेतों ने उनका विरोध किया और दण्डित भी हुए.आततायी  कंस ने कुवलयापीड़ हाथी को श्री कृष्ण और बलराम को कुचल कर मारने के लिए प्रशिक्षित किया था किंतु वह अपने इस षड़यंत्र में सफल नहीं हो सका और कुवलयापीड़ का कृष्ण द्वारा संहार कर दिया गया। उसके बाद रंगशाला के अखाड़े में चाणूर, मुष्टिक, शल, तोषल आदि बड़े-बड़े भयंकर पहलवान दंगल के लिए प्रस्तुत थे , श्रीकृष्ण बलराम ने इन सभी को मल्लयुद्ध में मार डाला। कुवलयापीड़ को मारने के बाद दोनों भाइयों ने उसके दांत उखड लिए और कंस के अनेक दुष्टों को मार डाला.तत्पश्चात आततायी कंस को भी उचित दंड देते हुए परलोक पहुंचा दिया..

पापी कंस अत्याचार,त्राहि त्राहि हो पुकार,हाहाकार कंस के वे सैनिक मचाते हैं। 
कृष्ण दाऊ बलराम, अतुलित बलधाम, मथुरा को पापियों से, मुक्ति वो दिलाते हैं।।  
कुवलयापीड़ का उद्धार,चाणूर मुष्टिक का संहार,दाऊ कृष्ण दोनों मिल,दुष्टों को निपटाते हैं।
भयाक्रांत पापी कंस, ललकारते हैं कृष्ण, सिंहासन से घसीट, मुष्टि से मिटाते हैं।। 
मुक्त किये उग्रसेन, दिए राज सिंहासन, प्रजाजन वासियों का, कष्ट वो मिटाते हैं।
नन्द बाबा के हैं प्यारे,यशोदा मैया के न्यारे, पितु मातु दर्शन, कारागार जाते हैं।। 
कष्ट का हुआ हरण,मातु पितु से मिलन,प्रभु और माता दोनों, अश्रु भी बहाते हैं।
जग के कष्टों के त्राता,कष्टों में रही हैं माता,स्वयं प्रभु आज माँ का कष्ट मिटाते हैं।।
यातना के दिन सहे, कारागार में वो रहे, पुत्र कृष्ण आज माँ से पहला प्यार पाते हैं।
देवकी माता के जाए, वसुदेव हरसाए, पुत्र कृष्ण आज अपना, फरज निभाते हैं।।                                              
ओ ओ देवकी माँ के आँख के तारे। 
स्वयं भगवन सूत उनके प्यारे।।
पितु वसुदेव के राज दुलारे। 
कृष्ण दाऊ हैं पूत तुम्हारे।।
यशोमति नन्द के हैं अति प्यारे।। 
पर पितु मातु हो तुम्हीं हमारे।
-उमेश यादव

कोई टिप्पणी नहीं: