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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023

कितनी और परीक्षा लोगे

 

कितनी और परीक्षा लोगे

कितनी और परीक्षा लोगे, देखो,अब मैं हार चुका हूँ

अपनी सारी इच्छाओं को, हे ईश्वर मैं मार चूका हूँ।।

 

मन का साहस तन का संबल,सारे चूक चुके हैं मेरे

खुशियाँ जीवन में जो मिलते, सारे रूठ चुके हैं मेरे।।

मेरा मुझमें बचा नहीं कुछ,अपने को बिसार चुका हूँ

कितनी और परीक्षा लोगे, देखो,अब मैं हार चुका हूँ।।

 

मान प्रतिष्टा इज्जत सारे,धुल धूसरित हो बिखर चुके हैं

सखा सहायक परिजन प्यारे, अपने सारे मुकर चुके हैं।।

अंधियारों से घिरा हूँ भगवन,कितनी बार पुकार चुका हूँ

कितनी और परीक्षा लोगे, देखो,अब मैं हार चुका हूँ।।

 

दुःख के सागर में गोते ले, सुख सागर से दूर हुआ हूँ

मृग तृष्णा में भटक भटक कर,रोने को मजबूर हुआ हूँ।।

कब तक कृपा करोगे भगवन,तुमसे सब इजहार चुका हूँ

कितनी और परीक्षा लोगे, देखो,अब मैं हार चुका हूँ।।

 -उमेश यादव, स्वरचित  

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