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रविवार, 5 फ़रवरी 2023

छवि तेरी नैनों में रह गई

 छवि तेरी नैनों में रह गई

पलभर का वो मिलन हमारा, पलकें अनकह बात कह गई।

पता नहीं फिर से कब मिलिहैं, छवि तेरी नैनों में रह गई।।   

 

मंद मंद मुस्कान तुम्हारा, वो मधुर कोकिल सी वाणी।

नयनों के अंजन ने बोला, जन्म जन्म की राम कहानी।।

मुखमंडल की भाव भंगिमा,उर में फिर उपताप भर गई।   

पता नहीं फिर से कब मिलिहैं, छवि तेरी नैनों में रह गई।।    

 

चपल चितेरे हुलसित मनवाँ,स्मित हास्य अंतर्मन छूतीं।

अलक कान्ति को छूकर वायु, मानों मौन आमंत्रण देतीं।।  

स्पर्श मात्र क्षणांश को पाकर, मन के सारे गाद बह गई।

पता नहीं फिर से कब मिलिहैं, छवि तेरी नैनों में रह गई।।    

 

सहर सकार हुआ है अब तो, प्राची से दिनकर भी आया।

खग कलरव चहुं ओर अनाहद, जागृति का उन्नाद सुनाया।।

शबनम से सिंचित हिय गुलशन,सुप्त सृजन जग जागृत कर गई।

पता नहीं फिर से कब मिलिहैं, छवि तेरी नैनों में रह गई।

-उमेश यादव

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