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शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022

शुभ जन्मदिन

 

शुभ जन्मदिन

शुभ जन्मदिन,शुभ जन्मदिन,शुभ जन्मदिन,शुभ कामना।

हो शतंजीव, हो चिरंजीव, हो चिर प्रसन्न, शुभ भावना।।

 

सद्गुणी हों, सदाचारी हों, सदा सुखी हों, परोपकारी हों।

शूरवीर हों, कर्मवीर  हों, सदज्ञानी हो, न्यायकारी हों।।

जीवन का हर क्षण हो सुखमय, हर पल जीवन साधना।

हो शतंजीव, हो चिरंजीव, हो चिर प्रसन्न, शुभ भावना।।

 

सम्पूर्ण धरा में,जलधि गिरा में,अखिल विश्व में जय हो।

प्रेम दया करुणा हो उर में, निश्छल हो सरल ह्रदय  हो।।

शौर्य साहस उत्साह भरे हों, सर्वथा विजय की कामना।

हो शतंजीव, हो चिरंजीव, हो चिर प्रसन्न, शुभ भावना।।

 

उष्ण रक्त,मस्तिस्क सौम्य हो,वाक् प्रखर हो,बोधगम्य हो।

अनुपमेय हो कार्य तुम्हारे, जीवन का उपवन सुरम्य हो।।

सबमें निज स्वरूप को देखें, अहर्निश स्वयं की साधना।

हो शतंजीव, हो चिरंजीव, हो चिर प्रसन्न, शुभ भावना।।

 

यशस्वी हो, तपस्वी हो, ओजस्वी हो, प्राणवान हो।

तेजस्वी हो, वर्चस्वी हो, मनस्वी हो, कीर्तिवान हो।।

भाव तुम्हारे सदा पवित्र हो, ईश्वर की हो प्रार्थना । 

हो शतंजीव, हो चिरंजीव, हो चिर प्रसन्न, शुभ भावना।।

-उमेश यादव

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई

 

जन्मदिवस पर आज

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।

आनंदित हो हर पल तेरा,हर क्षण हो सुखदाई।।

 

जीवन तेरा मोद भरा हो,मंजिल अपनी पाओ।

मुस्कानों की कलियों को तुम,पुष्पों सा विहंसाओ।।

सुरभित रहे सम्पूर्ण दिशाएं,रहे नहीं कठिनाई।

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।

 

मंगलमय शुभ संकल्पों से, भरा हो तेरा जीवन।

शुभ कर्मों के पुष्प खिले हों,हर्ष भरा हो चितवन।।

सुयश कीर्ति विस्तृत हो जैसे, संध्या की परछाई।

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।

 

हो चिरंजीव,हो शतंजीव, हो कर्म सदा मनभावन।  

आनंदित हो परिजन सारे, खुशी भरे हों आँगन।।

मातु पिता गुरुजन हों तेरे, आजीवन वरदाई।

जन्मदिवस पर आज सभी,देते हैं तुम्हें बधाई।।

 

सद्गुण की सुरभि से महके,जीवन का ये उपवन।

हो महानता ऐसा जैसे, महके माधव मधुवन।।

अखिल विश्व का कण कण हो, तेरे हित सुखदाई।

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।

-उमेश यादव

जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामना

 

जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामना

 

जन्मदिन पर हमारी है शुभकामना।

स्वस्थ तन मन सदा हो यही भावना।।

 

कलियों सा सदा मुस्कराते रहो।

भौरों सा सदा गुनगुनाते रहो।।

खुश रहो और खुशियाँ लुटाते रहो।

खुद हंसो और जग को हंसाते रहो।।

दुखों से कभी भी ना हो सामना।

जन्मदिन पर हमारी है शुभकामना।।

 

संग परिजन सखा नित रहो तुम सुखी।

मुख खिले हों सदा ना रहो तुम दुखी।।

बादलों सा बनो तुम सहज और चपल।

बालकों सा रहो नित्य चंचल धवल।।

होवे साकार जो भी उठे कल्पना।

जन्मदिन पर हमारी है शुभकामना।।

 

दृढ़ संकल्प नए श्रेष्ठ पलते रहे।

उमंगो भरा दिन ये ढलते रहे।।

धर्म संस्कार दौलत प्रतिष्ठा बढ़े।

अपने आराध्य से उर में निष्ठा बढ़े।।

दीर्घ जीवन जियें प्रभु से  प्रार्थना।

जन्मदिन पर हमारी है शुभकामना।।

 

प्रेम करुणा हो उर में सरल हो हृदय।

देख पीड़ा पतन हो कभी ना निर्दय।।

मनुज हैं मनुज हित बढ़े ये चरण।

श्रेष्ठ जीवन सदा श्रेष्ठ हो आचरण।।

श्रेष्ठ सुन्दर सुखी नित रहे भावना।।

जन्मदिन पर हमारी है शुभकामना।।

-उमेश यादव

गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की (कंस वध)

हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की (कंस वध)

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।
ॐ नमो भगवते श्रीगोविन्दाय नमः।।

वेदव्यास मुनिश्रेष्ठ के, पद पंकज शिर नाय।
सुमिरौं गणपति देव को,हमपर होहिं सहाय।।
माँ देवकी वसुदेव पिता, वंदन बारम्बार।।  
पालक यशोमति नन्द को, नमन सहश्रों बार।। 

हम कथा सुनाते कृष्ण सकल गुणधाम की।   
हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की।। 
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की। 
ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।। 

जम्बुद्वीपे, भरतखंडे, आर्यावर्ते, भारतवर्षे।
एक नगरी है विख्यात मधुपुरी नाम की।।
यही जन्मभूमि है श्री कृष्ण भगवान की।
हम कथा सुनाते माधव केशव श्याम की।। 
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की। 
ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।। 

द्वापर में एक नृप दुष्टात्मा, अति नृशंस कंस पापात्मा। 
यमुना तट नृपति मधुरा के,पापकर्म से चर्चित जग में।।
ऋषि संतन को बहुत सताया,प्रजाजनों को दुःख पहुंचाया।
त्राहि त्राहि सब देव पुकारे ,रक्षा करो भगवान हमारे।।
भगिनी देवकी कंस की प्यारी,परिणय सूत्र बंधी सुकुमारी।
देवकी संग वसुदेव, व्याह किये सम्मान की।  
हम कथा सुनाते माधव केशव श्याम की।। 
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की।  
ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।। 
 
रथ बहन का हांक कर,ले चला हर्ष से कंस।
तभी गिरा गंभीर हुई, भगिनी सूत कंसहंत ।।
परिणय अंत हुआ दुखदायी,देवकी वध उद्धत आततायी।
वसुदेव देवकी को पापी ने ,बंदी बनाए संतापी ने।। 

जेल में मारण लगा, भगिनी जाये शिशु कंस।
मिट जाए हन्ता उसका,रहे न बहन का वंश।।

भादो मास कृष्णाष्टमी, तमस्विनी विकराल।
कारागृह में जन्म लिए, दुष्ट कंस के काल।।
प्रभु कृपा रक्षक सब सोये, द्वार खुले प्रभु ना रोये
सघन तमिस्रा घनी अंधियारी,यमुना में लावन अति भारी।।
बंधन मुक्त वसु हुए,कृपा कृष्ण भगवान् की
हम कथा सुनाते माधव केशव श्याम की।। 
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की।  
ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।। 

बसुदेव निज पुत्र ले, पहुंचे गोकुल धाम।
यदुकुल में पैदा हुए, श्रीकृष्ण घनश्याम।। 
गोकुल में उत्सव है भारी,गोकुल में उत्सव है भारी।
दुःख कष्टों को दूर करेंगे, यदुनंदन गिरधारी।।
गोकुल में उत्सव है भारी।

नन्द यशोदा संग में ,पलन लगे यदुराय।
सुनकर कंस कठोर को,चैन नहीं तब आये।।

धर्म हेतु ईश्वर अवतार, कृष्ण करेंगे जग उद्धार
वध करने पूतना आयीं,अंत किये प्रभु मुक्ति दिलाई।
शकट, तृण, वत्स, अघासुर मारे, वक धेनुक सब असुर संहारे।।  
सहज भाव से सबको मारा,निज हाथों दुष्टों को तारा 
हुई शक्ति अवतरित परम दिव्य भगवान की। 
हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की।। 
ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की।  
ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।। 

ब्रज की राधा हैं अति प्यारी, वृषभानु लाली अति न्यारी।
राधा संग महा रास रचाए, तिन्हून लोक सुख पहुंचाए।।
गोवर्धन ऊँगली से उठाये, इंद्र दर्प को चूर कराये।
गोचारण मुरलीधर लीला,गोपीन संग में रास रसीला।।

प्रलंबासुर,कागासुर, शंखचुड वध, कुब्जा उद्धार।
यमलार्जुन मोक्ष,इंद्रदर्प हरण, तृणावर्त उद्धार।। 

निर्दयी कंस बहुत बौराया, प्रजाजन में कुहराम मचाया।
अंत समय कंस का आया,गोपों संग  मथुरा बुलवाया।।
लीला पुरुष की लीला ने फिर,अनुपम चक्र चलाया। 
पापी ने अक्रूर से कहकर, मथुरा में कृष्ण बुलाया। 
मथुरा में ऐसा ऐसा एक दिन आया
स्वयं भगवान् को दाऊ संग में, पापी ने पास बुलाया।।  
मथुरा में ऐसा ऐसा एक दिन आया।

धर्म नीति तज चले जब न्याय कर्ता ही यहाँ।
असुरता बढ़ जाए जग में,संत जन जाए कहाँ।। 
ह्रदय करुणा शून्य होकर पाप के आधीन हो । 
बुद्धि विवेक शून्य होकर मनुजता बलहीन हो।। 

मानवता को खो बैठे जब, सभ्य समाज निवासी।
न्याय धर्म स्थापित करने को, आते हैं बृजवासी।।
उन प्रभु परम उदार का, श्रीकृष्ण शुभ नाम ।
निर्दयी कंस का अंत करन, चले स्वयम भगवान्।।
दाऊ कृष्ण वसुदेव के जाए,ईश्वर रूप जगत को भाये।

श्रोताओं, जब जब इस धरा धाम पर अत्याचार और पाप का साम्राज्य बढ़ा है, भगवान् स्वयं विभिन्न रूपों में अवतरित होकर पापियों और अत्याचारियों का विनाश किया है.क्रूरता की सारी हदें पार करने वाला कंस जैसा अत्याचारी राजा ने अपने पिता उग्रसेन को ही कारगार में डाल दिया था. बहन देवकी और जीजा वसुदेव को विवाहोपरांत ही कठिन कारागार में डालकर उनके होने वाले नवजात शिशुओं को शिला के उपर पटककर मार देता था.पाप का घड़ा भरते ही क्रूर कंस ने षड्यंत्र के तहत अक्रूर जी को ब्रज भेजकर कृष्ण बलराम को गोपों सहित मेला देखने मथुरा बुलवाया. मथुरा प्रवेश पर सुदाभ माली या कुब्जा दासी ने भगवन श्रीकृष्ण और बलराम का स्वागत किया और धन्य हुए तो कंस के चहेतों ने उनका विरोध किया और दण्डित भी हुए.आततायी  कंस ने कुवलयापीड़ हाथी को श्री कृष्ण और बलराम को कुचल कर मारने के लिए प्रशिक्षित किया था किंतु वह अपने इस षड़यंत्र में सफल नहीं हो सका और कुवलयापीड़ का कृष्ण द्वारा संहार कर दिया गया। उसके बाद रंगशाला के अखाड़े में चाणूर, मुष्टिक, शल, तोषल आदि बड़े-बड़े भयंकर पहलवान दंगल के लिए प्रस्तुत थे , श्रीकृष्ण बलराम ने इन सभी को मल्लयुद्ध में मार डाला। कुवलयापीड़ को मारने के बाद दोनों भाइयों ने उसके दांत उखड लिए और कंस के अनेक दुष्टों को मार डाला.तत्पश्चात आततायी कंस को भी उचित दंड देते हुए परलोक पहुंचा दिया..

पापी कंस अत्याचार,त्राहि त्राहि हो पुकार,हाहाकार कंस के वे सैनिक मचाते हैं। 
कृष्ण दाऊ बलराम, अतुलित बलधाम, मथुरा को पापियों से, मुक्ति वो दिलाते हैं।।  
कुवलयापीड़ का उद्धार,चाणूर मुष्टिक का संहार,दाऊ कृष्ण दोनों मिल,दुष्टों को निपटाते हैं।
भयाक्रांत पापी कंस, ललकारते हैं कृष्ण, सिंहासन से घसीट, मुष्टि से मिटाते हैं।। 
मुक्त किये उग्रसेन, दिए राज सिंहासन, प्रजाजन वासियों का, कष्ट वो मिटाते हैं।
नन्द बाबा के हैं प्यारे,यशोदा मैया के न्यारे, पितु मातु दर्शन, कारागार जाते हैं।। 
कष्ट का हुआ हरण,मातु पितु से मिलन,प्रभु और माता दोनों, अश्रु भी बहाते हैं।
जग के कष्टों के त्राता,कष्टों में रही हैं माता,स्वयं प्रभु आज माँ का कष्ट मिटाते हैं।।
यातना के दिन सहे, कारागार में वो रहे, पुत्र कृष्ण आज माँ से पहला प्यार पाते हैं।
देवकी माता के जाए, वसुदेव हरसाए, पुत्र कृष्ण आज अपना, फरज निभाते हैं।।                                              
ओ ओ देवकी माँ के आँख के तारे। 
स्वयं भगवन सूत उनके प्यारे।।
पितु वसुदेव के राज दुलारे। 
कृष्ण दाऊ हैं पूत तुम्हारे।।
यशोमति नन्द के हैं अति प्यारे।। 
पर पितु मातु हो तुम्हीं हमारे।
-उमेश यादव

बुधवार, 30 नवंबर 2022

जन्मदिवस पर आज*

 *जन्मदिवस पर आज*

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।

जीवन का हर क्षण हो सुखमय,हो हर पल सुखदाई।।

बधाई बधाई, हो बधाई बधाई।। 


रहो सदा आनंदित होकर,मंजिल अपनी पाओ।

मुस्कानों की कलियों को तुम,पुष्पों सा विहंसाओ।।

सुरभित रहे दशों दिशाएं,हो ना कोई कठिनाई।

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।


मंगलमय शुभ संकल्पों से, भरा हो तेरा जीवन।

शुभ कर्मों के पुष्प खिले हों,हर्ष भरा हो चितवन।।

सुयश कीर्ति विस्तृत हो जैसे, संध्या की परछाई। 

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।


हो चिरंजीव,हो शतंजीव, हो परहितमय जीवन। 

परिजन सखा सुखी रहें,हो खुशियों का आँगन।। 

मातु पिता गुरुजन तेरे हों, आजीवन वरदाई।

जन्मदिवस पर आज सभी,देते हैं तुम्हें बधाई।।


सद्गुण की सुरभि से महके,जीवन का ये उपवन।

हो महानता ऐसा जैसे,चमके रवि का रश्मि कण।।

अखिल विश्व का कण कण हो, तेरे हित सुखदाई। 

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।

-उमेश यादव –

हे गणपति तेरी जय हो, जय हो

  *हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।*
*कष्ट निवारक,विघ्न विनाशक।*
*एक दन्त हे असुर संहारक।।*
*लम्बोदर तेरी जय हो, जय हो।*
*हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।।*
*मंगल मूर्ति , हे गजानन।*
*शिव गौरी के हो तुम आनंद।*
*सुखकर्ता तेरी जय हो, जय हो।*
*हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।।*
*हे भालचंद्र ,हे बुद्धिनाथ प्रभु।*
*दुखियों के तुम सदा साथ प्रभु।।*
*सिद्धि दायक तेरी जय हो, जय हो।*
*हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।।*
*जगती का तुम ताप हरो अब।*
*कार्य सभी के सफल करो सब।।*
*वक्रतुंड तेरी जय हो, जय हो।*
*हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।।*
*प्राणिमात्र सब विलख रहे है।*
*बुद्धिहीन बन भटक रहे है।।*
*बुद्धि विधाता जय हो, जय हो।*
*हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।।*
*हे कृपाकर कृपा करो अब।*
*नवयुग का उद्घोष करो अब।।*
*श्री गणेश तेरी जय हो, जय हो।*
*हे गणपति तेरी जय हो, जय हो।।*
--उमेश यादव
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सरफ़रोशी की तमन्ना

 सरफ़रोशी की तमन्ना

सरफ़रोशी की  तमन्ना, दिल में  भरकर आगे आओ।  

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।। 


आजादी है पाई किन्तु, अब भी बंधन में पड़े हुए हैं।

फिरंगियों से हुए स्वतंत्र पर,फिरंगियत से जुड़े हुए हैं।।

राष्ट्र धर्म को संबल देने, राष्ट्रभक्त अब आगे आओ।

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।। 

 

हंस हंस कर बलि हो वीरों ने, क्रांति का पैगाम दिया।

सीने में गोली खाकर भी, आजादी को अंजाम दिया।। 

इन्कलाब का नारा दे फिर, राष्ट्र प्रेमियों कदम बढ़ाओ।

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।। 


आजादी के लिए भगत ने, हँसकर फांसी चूमा था।

सुकदेव राजगुरु के मत से ये,देश ही पूरा झूमा था।। 

सुखी सम्मुनत राष्ट्र बनाने,हे वीरों अब शौर्य दिखाओ।

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।। 


प्रगति के  बाधक तत्वों  को, रौंद हमें आगे बढ़ना है।

सोने की चिड़िया वाला ये, देश हमें फिर से गढ़ना है।। 

बलिदानों को याद करें सब,पुन: देश हित जोश जगाओ।

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।

–उमेश यादव

आन-बान और शान है झंडा

 राष्ट्र ध्वज है शान हमारा, यह प्राणों से प्यारा है।.जीना मरना तेरे हित है,यह संकल्प हमारा है।।

*आन-बान और शान है झंडा*

आन - बान और शान है झंडा,भारत का सम्मान तिरंगा।

मरें मिटें इस देश कि खातिर,हम सबकी है जान तिरंगा।


केसरिया रंग इस झंडे का,त्याग और बलिदान सिखाता।

ताकत  और साहस हो सबमें, राष्ट्र धर्म को श्रेष्ठ बताता।।

शांति,प्रगति के हर विकास से,जन जन का कल्याण तिरंगा।

आन - बान और शान है झंडा,भारत का सम्मान तिरंगा।।


शुभ्र-धवल  हिमालय जैसा, सत्य, शांतिमय पूर्ण वतन हो।

धर्म-संस्कृति सबसे ऊपर,ह्रदय उदार और निश्छल मन हो।।

सादा जीवन, उच्च विचार, नवयुग का निर्माण तिरंगा।

आन - बान और शान है झंडा,भारत का सम्मान तिरंगा।।


हरा रंग है माँ  धरती  पर, सूखी - सम्मुन्नत देश हमारा।

सब साधन से भरा रहे यह, स्वर्ग समान देश हो प्यारा।।

प्यार और सहकार हो सबमें, भारत का निर्माण तिरंगा।

आन - बान और शान है झंडा,भारत का सम्मान तिरंगा।।


नील  चक्र  कह  रहा  हमारा,  आगे   सतत   बढ़ेंगे ।

अटल  इरादे  लेकर  जग  में, नव  प्रतिमान  गढ़ेंगे।।

हम बदलेंगे  युग बदलेगा, हम सबका अरमान तिरंगा।

आन-बान और शान है झंडा,भारत का सम्मान तिरंगा।।


तीन  रंग का  प्यारा  झंडा,  अम्बर  में   फहरेगा।

हिन्द  देश  का  शान  ये  झंडा,  ऊँचा  सदा   रहेगा।।

तन मन धन न्योछावर तुमपर,हम सबकी पहचान तिरंगा।

आन - बान और शान है झंडा,भारत का सम्मान तिरंगा।।

-उमेश यादव

नए राष्ट्र का सृजन करेंगे

 *नए राष्ट्र का सृजन करेंगे*

कदम बढाओ, आगे आओ, नए राष्ट्र का सृजन करेंगे। 

प्राण न्योछावर किया जिन्होंने,उन वीरों को नमन करेंगे।। 


कितनी माताओं ने राष्ट्र हित,अपने अपने लाल दिए थे। 

बिस्मिल भगत आजाद सरीखे,दुश्मनों के काल दिए थे।। 

आजादी के इन परवानों को,अर्पण श्रद्धा सुमन  करेंगे।

प्राण न्योछावर किया जिन्होंने,उन वीरों को नमन करेंगे।। 


माँ का मस्तक उंचा करने,वीरों ने बड़ा कमाल किया था। 

फिरंगियों को धुल चटाने, उनने बड़ा धमाल किया था।। 

राष्ट्र भक्ति का जोश भरा,उन चरणों का अनुगमन करेंगे।

प्राण न्योछावर किया जिन्होंने उन वीरों को नमन करेंगे।। 


पहन केशरिया बाना जिनने,बांध कफ़न घर से निकले थे। 

सरफरोशी दिल की चाहत थी,मातृभूमि के लिए पले थे।।

वैसे अमर शहीदों को हम, शत शत बार नमन करेंगे ।

प्राण न्योछावर किया जिन्होंने,उन वीरों को नमन करेंगे।। 


आजादी के मतवालों सा,आओ, दिल में जोश जगाएं। 

राष्ट्र हमारा सर्वोपरि हो,राष्ट्र के लिए मर खप जाएँ।। 

राष्ट्र द्रोही की खैर नहीं हो,राष्ट्र द्रोह को दफ़न करेंगे। 

प्राण न्योछावर किया जिन्होंने,उन वीरों को नमन करेंगे।।

उमेश यादव 19-07-21

मातृभूमि अति प्यारा है

 *मातृभूमि अति प्यारा है*

सर्वश्रेष्ठ है राष्ट्र हमारा, अखिल विश्व में न्यारा है।

भारत माँ के वीर सपूत हम,मातृभूमि अति प्यारा है।। 

जय हिन्द हमारा नारा है।

यह राष्ट्र प्राण से प्यारा है।।


राष्ट्र ध्वजा है शान हमारा,आन बान अभिमान हमारा। 

रहे सदा ही सकल विश्व में, भारत राष्ट्र महान हमारा।।

उच्चा मस्तक रहे सदा ही,गरिमामय मान हमारा है।

भारत माँ के वीर सपूत हैं, मातृभूमि अति प्यारा है।।   


श्री राम के मतवाले हम,विचारक्रांति के क्रान्तिदूत हैं।

राष्ट्रभक्ति रग रग में फैला,ज्ञान क्रांति के अग्रदूत हैं।।

हो जाएँ बलिदान देश हित, वतन प्राण से प्यारा है।  

भारत माँ के वीर सपूत हैं, मातृभूमि अति प्यारा है।। 


ज्ञान क्रांति फैलाएं जग में,आओ जग को दिशा दिखाएँ।

जगतगुरु था पूर्ण विश्व में,पुनः वही  सम्मान दिलायें।।

विचार क्रान्ति से आलोकित कर,गुरु ने राष्ट्र संवारा है।

भारत माँ के वीर सपूत हैं, मातृभूमि अति प्यारा है।।

-उमेश यादव 19/7/21

भारत हो सर्वोच्च जगत में

 *भारत हो सर्वोच्च जगत में*

जय भारत,जय हिन्द हमारा,हमें प्राण से प्यारा है। 

भारत हो सर्वोच्च जगत में, यह संकल्प हमारा है।। 


धरती अम्बर सागर में, अपना परचम लहराए।

वन्दे मातरम्,वन्दे मातरम्,अखिल विश्व ही गाये।।

एक धर्म हो,एक हो भाषा,एक राष्ट्र ही प्यारा है।

भारत हो सर्वोच्च जगत में,यह संकल्प हमारा है।।  


मानवता का पाठ यहाँ से,भूमंडल ने सीखा है।

गीता का उपदेश मनुज को,संजीवनी सरीखा है।। 

ज्ञान यहाँ का सर्वश्रेष्ठ है,जग को सदा उबारा है।

भारत हो सर्वोच्च जगत में,यह संकल्प हमारा है।।  


परोपकार हो धर्म जगत का,परहित समय लगाएं।।

परपीड़ा दुखदायी होता,खुशियों के चमन खिलाएं।। 

मानव मात्र एक समान हो,यह गुरुवर का नारा है। 

भारत हो सर्वोच्च जगत में,यह संकल्प हमारा है।। 


अखिल विश्व को हमने ही,जीने का आधार बताया।

राष्ट्रधर्म से सबको जोड़ा,ईश तत्त्व का मर्म बताया।।

राष्ट्रभक्ति जाग्रत हो सबमें, युग ने हमें पुकारा है।  

भारत हो सर्वोच्च जगत में,यह संकल्प हमारा है।। 


सभी सुखी हो,व्याधि मुक्त हो,सबका ही कल्याण हो।

श्रेष्ठ समुन्नत जीवन जियें,यह अपना अभियान हो।।

श्रेष्ठ विचारों से सुवासित,किया हमने जग सारा है।

भारत हो सर्वोच्च जगत में,यह संकल्प हमारा है।। 

-उमेश यादव

वतन है माता हमारी

 वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है
माँ से ही है प्राण सबका,माँ से ही अरमान है
माँ तुम्हारी ही कृपा से सांस चलती है हमारी 
माँ तुम्हारी ही दया से,आस पलती है हमारी
जहाँ मेरी तुम हो माता,तुम्हीं आसमान है
वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है
माँ के अन्चरे को न कोई, मलीन करने पायेगा
आँखें दिखाने वाला माते,निश्चित ही मिट जाएगा
वतन के खातिर मिटेंगे,वतन ही अभिमान है 
वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है
जो भी तेरा शत्रु होगा,बच नहीं वह पायेगा
मिटेगा अस्तित्व उसका,ठौर कहीं न पायेगा
शपथ है तेरी हे माते, तेरे लिए मन प्राण है
वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है 
पुत्र की सांसे रहे तक,सर न झुकने देंगे हम
प्रगति के कदम बढ़े जो,वह न रुकने देंगे हम 
तुमसे ही है सांझ माते, तुमसे नव विहान है
वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है

   
 दुश्मनों की चीर छाती,बुलंदी पर जायेंगे हम  
दामन तुम्हारी हे माते न दाग लगने देंगे हम
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प्राण है यह राष्ट्र अपना,प्राण रहना चाहिए।

 प्राण है यह राष्ट्र अपना,प्राण रहना चाहिए।

मिट भी जाएं हम मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए।।


देश में हो प्यार सबमें,देश से ही प्यार हो।।

नफरतों का दिल में कोई, ना कहीं आधार हो।।

वतन से ये प्रेम गंगा, अविरल बहनी चाहिए।

मिट भी जाएं हम मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए।।


आपसी मतभेद हों पर,मन डूबे हों प्यार में।

कुर्बान हो जाएं हम तो, गम न हो संसार में।।

देश के गद्दार हैं जो, उनको मिटनी चाहिए।

मिट भी जाएं हम मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए।।


कतरा कतरा रक्त का ये सांस पर अधिकार हो।

वतन के हर जन को अपने,वतन से ही प्यार हो।।

देश भक्ति की लहर, लहू में उतरनी चाहिए।

मिट भी जाएं हम मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए।।


प्रगति की राह में जो, अड़चनें हैं, दूर होंगे।

शत्रु हैं जो राष्ट्र के वे, हारेंगे, मजबूर होंगे।।

शपथ लें हर देशवासी, देश बढ़नी चाहिए।।

मिट भी जाएं हम मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए।।


लूट रहे जो देश को वो कान खोलकर  सुन ले।

हम जगे हैं,अब तो अपनी मौत को ही चुन ले।।

देश प्रेम की स्नेह धारा, दिल में बहनी चाहिए।

मिट भी जाएं हम मगर ये राष्ट्र रहना चाहिए।।

उमेश यादव, शान्तिकुंज, हरिद्वार

वतन है माता हमारी,

 वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है।

माँ से ही तो प्राण सबका,माँ से ही अरमान है।।


माँ तुम्हारी ही कृपा से,सांस चलती है हमारी।

माँ तुम्हारी ही दया से,आस पलती है हमारी।।

जहाँ मेरी तुम हो माता, तुम्हीं आसमान है।

वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है।।


माँ के अन्चरे को न कोई, मलीन करने पायेगा।

आँखें दिखाने वाला माते,निश्चित मिट जाएगा।।

वतन के खातिर मिटेंगे,वतन ही अभिमान है ।

वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है।।


जो भी तेरा शत्रु होगा,बच नहीं वह पायेगा।

मिटेगा अस्तित्व उसका,ठौर कहीं न पायेगा।।

शपथ है तेरी हे माते, तेरे लिए मन प्राण है।

वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है ।।


 दुश्मनों की चीर छाती,बुलंदी पर जायेंगे ।

हमसे जलने वाले माते,स्वयं ही जल जाएंगे।।

स्वर्ग से सुंदर जहां में, सभी का कल्याण है।

वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है ।।


मां सुनो, सांसे रहे तक,सर न झुकने देंगे हम।

प्रगति के कदम बढ़े जो,वह न रुकने देंगे हम ।।

तुमसे ही है सांझ माते, तुमसे नव विहान है।

वतन है माता हमारी, वतन से सम्मान है।।

उमेश यादव, शान्तिकुंज, हरिद्वार

भारत माता की वेदना

 *भारत माता की वेदना*

कोटि कोटि संतानें सुनलो, अपनी व्यथा सुनाती हूँ।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ।। 


अनगिन पुत्रों के शीश कटे, तब ही आजादी पाई थी।

सिसकी थी कितनी संतानें,मैं भी तब अकुलाई थी।। 

आजादी में साँसे ली जब, तब की बात सुनाती हूँ।।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ ।। 


अब भी सरहद पर मेरे पुत्रों के,रक्त से आँचल रंगतीं हैं।

अब भी सड़कों पर मेरी बिटिया, चलने से भी डरती हैं।।

अब भी दहेज़ और भ्रूण हत्या से,अश्रु बहुत बहाती हूँ।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ ।। 


सबका भूख मिटाने वाले,बोलो क्यों भूखे सो जाते हैं।

निज हाथों महल बनाने वाले,रहने को छांव न पाते हैं।। 

नहीं सामान क्यों पुत्र हैं मेरे, मैं भेद नहीं अपनाती हूँ।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ मैं।।


मेरी माटी का अन्न खाकर,क्यों मेरे सा व्यवहार नहीं।

भ्रष्ट हुआ क्यों तेरा चिंतन,क्यों तेरा श्रेष्ठ विचार नहीं।।

माँ से ही गद्दारी करते हो, मैं इससे ही शर्माती हूँ ।

मुझसे ही गद्दारी करते  हो बस मैं इससे शर्माती हूँ।


सबकुछ दिया है मैने तुझको,फिर भी मुझे सताते हो। 

मेरी ही रोटी खाकर क्यों तुम, औरों की जय गाते हो।

मुझे मां समझे मेरे बच्चे, मैं इतनी आस जगाती हूं।

मैं मातृभूमि हूं माता तेरी, क्यूं तुम्हें समझा न पाती हूं।

विकल वेदना व्यथित ह्रदय है,दिल की बात बताती हूँ ।। 

उमेश यादव, शान्तिकुंज हरिद्वार।

माँ मुझको भी पढ़ना है

 माँ मुझको भी पढ़ना है।

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।। 

माँ मुझको भी पढ़ना है।


सीढियों पर चढने दो मुझको,पांवों में मत पायल डालो।

देखो ज़माना कहाँ जा रहा,काम काज में मत उलझालो।।

सुनो, समय से कदम मिलाकर, मुझको आगे बढना है। 

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।। 

माँ मुझको भी पढ़ना है।


जाने कैसी परिस्तिथियों में,आगे मुझको रहना होगा।

नहीं जरुरी पुष्प मिलेंगे, काँटों पर भी चलना होगा।।

अपने पैरों से चलना है, काबिल मुझको बनना है।

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।। 

माँ मुझको भी पढ़ना है।


भेद भाव ना करना मुझसे,मैं भी तेरी ही जायी हूँ।

तेरा रक्त धड़कता दिल में,अपनी हूँ,नहीं पराई हूँ।।

बांधों ना घर में ही मुझको, आसमान में उड़ना है। 

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।।

माँ मुझको भी पढ़ना है।


समय अभी तो पढने का है,व्यर्थ ना इसे गवाने दो। 

मुझे चाँद छूने का मन है,सपने तो मुझे सजाने दो।।

पहचान बनानी है अपनी,दहलीज से पार निकलना है।

शादी के बंधन से पहले, मुझको खुद को गढ़ना है।।

माँ मुझको भी पढ़ना है।

उमेश यादव

पकड़ उंगली चलाता है।

 *वह अपना है*

वह(गुरु)अपना है मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।  

गिर ना जाऊं कहीं,राहें वही दिखाता है।।

गुरु ही है मेरा जो हर बला से बचाता है। 

वह है अपना मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।।


क्या डूबाओगे मुझे,गुरु की नाव बैठा हूँ। 

भाव भक्ति में गुरु के ही मैं निरैठा हूँ।। 

कुछ न कर पाओगे,वो ही मेरा त्राता है। 

वह है अपना मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।।


मेरा साया है वो, प्रियतम है हमदम है। 

हर पग साथ है मेरे,दिल का स्पंदन है।। 

मेरे हर बात से वाकिफ है वो सर्वज्ञाता है।

वह है अपना मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।।


ज्ञान के नूर से उसके घर को जगमगाया है। 

अश्क से नम हुआ अक्ष जब,उसने हंसाया है।।

उजड़ी हुई चमन को फिर वही बसाता है। 

वह है अपना मुझे,पकड़ उंगली चलाता है।।


न गम हारने का है न जीत पर इतराया कभी।

न फिक्र आज की है न कल ने जगाया कभी।। 

छांव में हूँ सदा उनके,सुकून से मुझे सुलाता है। 

वह है अपना मुझे, पकड़ उंगली चलाता है।।

-उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार

अमृत महोत्सव स्वर्ण जयंती

 अमृत महोत्सव स्वर्ण जयंती

भारत अपनी श्रेष्ठ-विजय की, स्वर्णजयंती मना रहा है। 

सर्वश्रेष्ठ हम,स्वर्ण-गान यह,सारे जग को सूना रहा है।।


शिखर हिमाद्रि से अवनि तक,भारतजय का नारा था। 

रिपुदल दलबल था घुटनों पर, बुरी तरह से हारा था।।

शौर्य था वीरों का स्वर्णिम,हर भारतवासी सुना रहा है। 


जल में थल में नभ हम थे,सारे जहाँ में सबसे आगे।

महाशक्ति कहलाने वाले,पीठ दिखाकर थे भागे।।

अंत हुआ था अनय दुष्ट का,नक्शा ही यह बता रहा है। 


हैं अजेय हम, सदा रहेंगे,जगती ने यह मान लिया है। 

दुश्मनों की खैर नहीं है,रिपुओं ने भी जान लिया है।।

भारतवर्ष प्राण से प्यारा,रक्त का हर कण बता रहा है। 

#umeshpdyadav उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार

वो ही है मेरा अपना

 *वो ही है मेरा अपना* 

गिर ना जाऊं मैं कहीं,वही राहें दिखाता है।।

वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली चलाता है।।

गुरु ही है मेरा अपना,वो संकट से बचाता है। 

वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली चलाता है।।


डूबा ना पाओगे मुझे,गुरु की नाव बैठा हूँ। 

भाव से भक्ति से मैं तो,गुरु के ही निरैठा हूँ।। 

कर न पाओगे कुछ भी,मेरा तो वो ही त्राता है। 

वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली चलाता है।।


हमारी छांह है वो तो,मेरा प्रियतम है हमदम है। 

हर पल साथ है मेरे, मेरे दिल का स्पंदन है।। 

मेरे हर बात से वाकिफ, गुरु वो सर्वज्ञाता है।

वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली चलाता है।।


ज्ञान के नूर से उसने, घर को जगमगाया है। 

अश्कमय जब हुआ ये अक्ष,उसने ही हंसाया है।।

उजड़ी सी हुई चमन को,गुलशन वो बनाता है। 

वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली चलाता है।।


न गम है की मै हारा हूँ,जीत से ना इतराया है।

न चिंता आज की रहती,नतो कल ने जगाया है।। 

छांव में हूँ सदा उनके, सुकून से वो सुलाता है। 

वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली चलाता है।।

-उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार

तेरे रंग में रंग जाए।

 तेरे रंग में रंग जाए।


हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा, मन तेरे  रंग में रंग जाए। 

जितना  धोऊ  उतना  चमके, जीवन सतरंगी बन  जाए।। 


जहाँ जहाँ रंग मलिन हुआ है,उसको फिर से धवल बना दो। 

सूख रही भावों  की नदियाँ, स्नेह प्यार से सजल बना दो।। 

नहीं  रहे  बदरंग  कहीं  अब, सब पर ऐसा रंग चढ़ जाए। 

हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा, मन  तेरे  रंग में रंग जाए।।  


श्याम रंग क्यों डाला हमने, छवि अपनी मैली कर डाली।

प्रेम रंग अति गाढ़ा था पर, घृणा द्वेष भर उसे मिटा ली।।  

रंग बदलकर भी क्या जीना,खरा रंग अंग अंग लग जाए।

हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा, मन तेरे रंग में रंग जाए।।  

  

धरती, अम्बर, अवनि सबको, दिव्य रंग में रंग डाला है। 

सूरज, चाँद, सितारों से, दुनियां ही अनुपम कर डाला है।।

कुछ  ऐसा  तू  हमें भी रंग दे, तू जैसा चाहे बन जायें।

हे  रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा, मन तेरे रंग में रंग जाए।। 

   

फाग रंग अब नीरस हुआ है, हर्ष जोश का भंग चढ़ा दे।

राग द्वेष बढ़े  जो मन में, उसे मिटा अब प्यार बढ़ा दे।। 

अंतःकरण के दोष हटाकर, इन्द्रधनुष सा मन रंग जाए।   

हे रंगरेज  रंगो  कुछ  ऐसा, मन तेरे रंग में रंग जाए।।


तू  है बड़ा  रंगीला तूने, कहाँ कहाँ पर रंग नहीं डाला।

जीव जगत सब रंग में तेरे, सबको ही तूने रंग डाला।। 

प्रेम  रंग  में रंग दे सबको, प्रेममयी जीवन बन जाए।

हे रंगरेज रंगो कुछ ऐसा, मन  तेरे रंग  में रंग जाए।। 

   -उमेश यादव

नया वर्ष,नव संवत्सर है

 *नया वर्ष,नव संवत्सर है*

नया वर्ष, नव संवत्सर है, खुशियाँ आज मनायें।

देश, धर्म, संस्कृति रक्षा को,दृढ़ संकल्प जगाएं।।


नया सवेरा शंख बजाता,पूरब से नव सूर्य उगा है।

नये पुष्प पत्रों से सजकर,धरणी मानो स्वर्ग बना है।।

स्वागत करें नए साल का, स्वागत थाल सजायें। 

नया वर्ष, नव संवत्सर है, खुशियाँ आज मनायें।। 


सनातन संस्कृति का आओ, अंतस में आधान करें।

श्रेष्ठ समाज समर्थ राष्ट्र का,मिलकर नव निर्माण करें।। 

ध्वजारोहण करें संस्कृति का, केशरिया लहरायें।

नया वर्ष, नव संवत्सर है, खुशियाँ आज मनायें।। 

 

सादा जीवन उच्च विचार का भाव सर्वत्र फैलाएं।

सभी सुखी हों सबका हित हो,प्रेम भाव विकसायें।। 

चैत्र शुक्ल के प्रतिपदा को, उत्सव सभी मनाएं।  

नया वर्ष, नव संवत्सर है, खुशियाँ आज मनायें।। 


नए राष्ट्र के नव निर्माण हित,हम पुरुषार्थ जगाएं।  

नवरात्रि में शक्ति साधकर, प्राणशक्ति हम पायें।। 

प्रकृति के संग जीना सीख्रें, जीवन श्रेष्ठ बनाएं।

नया वर्ष, नव संवत्सर है, खुशियाँ आज मनायें।।  

-उमेश यादव

मंगलमय हो वर्ष नया ये

 *मंगलमय हो वर्ष नया ये*

मंगलमय हो वर्ष नया ये,सब मिल मंगल गान करें।

नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।।

  

भारतीय संस्कृति ने ही, साथ साथ चलना सिखलाया।

मन एक हो,बोलें संग में, परहित में जीना सिखलाया।।

सादा जीवन उच्च विचार से, स्वयं का उत्थान करें। 

नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।।


सभी सुखी हों सबका हित हो,पायें सभी निरोगी काया।

वसुधा है परिवार हमारा,मिलजुल कर रहना सिखलाया।।

जप तप पूजा पाठ ध्यान से,तन मन में नव प्राण भरें।

नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।।


ब्रह्मा ने ब्रह्माण्ड रचित कर,नूतन सृष्टि रचाया था। 

शक को हरा शालिवाहन ने, धर्म ध्वजा फहराया था।। 

दुष्ट दलन कर श्रीराम सा, राम राज्य निर्माण करें।।

नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।।

  

शिवाजी ने गुड़ी पड़वा पर, रिपुओं पर जय पाया था। 

भारत के हर वासी को ही,संस्कृति प्रेम सिखलाया था।

जोश भरें सबके उर में हम,संस्कृति का सम्मान करें

नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।।


त्याग तपस्या ज्ञान भक्ति से, कर्म पवित्र हो जाता हैं।

प्यार स्नेह सहकार अगर हो, गेह स्वर्ग बन जाता है।।

संस्कृति और संस्कार अपनाएँ,नवयुग का निर्माण करें।

नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।।

 -उमेश यादव

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना, पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।

 *तुम्हें पहचान दूंगा*


गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।

भटक जाओ कहीं फिर भी मत धैर्य खोना, 

अर्श पहुंचा तुम्हें मैं पहचान दूंगा।।


दे रहा तेरे हाथों में पतवार अब मैं, 

डरना न लहर से,तेरे साथ हूँ मैं। 

डगमगाए भँवर में नैया कभी जब, 

डांड बनकर तुम्हारे ही हाथ हूँ मैं।। 

जिंदगी के हरेक जंग में जीत होगी, 

पार्थ बन जा, कन्हैया सा रथ हांक दूंगा।।    माधव 

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।


अंग अवयव हमारे हो, प्राण भी तुम, 

रक्त का हर कण हो,हर श्वास हो तुम।

हाथ हो मेरे तुम्हीं, अब काम कर लो,

नए युग के सृजन का विश्वास हो तुम।। 

पूर्ण करना तुम्हें है, हर काम अपना,

मैं ह्रदय से हरपल तुम्हें मान दूंगा।

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।


कष्ट होंगे तुम्हें ये मैं जानता हूँ, 

पर दुखों से कभी भी नहीं हारना है।

मेरे कंधे हो तुम्हीं, तुम्हीं दृष्टि मेरी,

विकल हैं जो मनुज उनको भी तारना है।। 

दिल के टुकड़े हो मेरे तुम्हीं धड़कनें हो,

पुत्र मेरे हो तुम्हीं ये पहचान दूंगा। 

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।



पाँव छिल जाएँ फिर भी या कष्ट होवें,       जख्म    छाले पड़े पाँव या छिल जाएँ 

घाव में मरहम लगाता मेरा हाथ होगा।

कार्य पूरा करोगे भर जोश में तुम,

पीठ थपकी लगाता मेरा हाथ होगा।।

स्नेह ममता भरा ये साथ मेरा, 

हर बला में टालता, मैं ये अहसास दूंगा। 

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।


मैं दिखूं ना दिखूं, पर ये शक्ति हमारी,

प्रलय के अंत क्षण तक तेरे साथ होगा।।

सोचना मत कहीं तुम अकेले रहोगे, 

जन्म जन्मान्तरों तक मेरा साथ होगा।

जब कभी  हो असहाय मुझको पुकारो,  

मैं सहारा बनूंगा तुम्हें प्राण दूंगा।।

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।


मै तुम्हारा सदा हूँ, विश्वास करलो,

तुम हमारे रहोगे,मुझे आस है यह। 

कर्मपथ के दौड़ में जो साथ हैं, 

नयन तारे हो मेरे, अहसास है यह।।  

जिंदगी की डगर में जो शूल होंगे, 

बन के पदत्राण शूलों से मैं त्राण दूंगा।

गर कभी मन विकल हो,तुम याद करना,

पोंछ अश्रु को तेरे मुस्कान दूंगा।

भटक जाओ कहीं फिर भी मत धैर्य खोना, 

अर्श पहुंचा तुम्हें मैं पहचान दूंगा।।

-उमेश यादव

राष्ट्रव्यापी अभियान – नशा मुक्ति

 राष्ट्रव्यापी अभियान – नशा मुक्ति


नशा नाश की जड़ है भाई, यह  सबको  बतलाना है।

राष्ट्रव्यापी अभियान चलाकर,नशे को दूर भगाना है।।


हीरा जनम गवाया  हमने, नशा  खोरी की आदत से।

लाखों  घर  बर्बाद हो गये, नशा बाजी की आफत से।।

अब  कोई  भी  नशा ना लेवें, नया समाज बनाना है।

राष्ट्रव्यापी अभियान चलाकर,नशे को दूर भगाना है।।


नशा एक अभिशाप मनुज पर,आओ इसको दूर भगायें।

नष्ट करें ना जीवन अपना,है अनमोल हम इसे बचाएँ।।

व्यसनमुक्त हो अब समाज यह,शुभ संकल्प जगाना है।

राष्ट्रव्यापी अभियान चलाकर, नशे को दूर भगाना है।।


युवा समर्थ हो  अगर हमारे, देश समर्थ  हो  जाता  है।

युवा सभ्य शालीन अगर तो,सभ्य समाज बन पाता है।।

स्वस्थ शरीर,स्वच्छ मन सबका,सभ्य समाज बनाना है।

राष्ट्रव्यापी अभियान  चलाकर, नशे को दूर भगाना है।।


-उमेश यादव

नशा मुक्त भारत

 नशा मुक्त भारत
नशे के विरुध्ध अब,समर सज चुका है।
नशा मुक्त भारत हो,शंख बज चुका है।।
समर सज  चुका  है, शंख बज  चुका है।
जवानी  नहीं  अब,  नशे  मे  डुबेगी ।
कहानी  नहीं  अब,  नशे  की बनेगी।।
नशा नास करती,यही सच है समझो।
नशा न कहीं हो, मुहिम बन चूका है।।
नशा मुक्त भारत हो,शंख बज चुका है।
ना होंगे अब  सौदे  नशीली दवा के।
युवा  न  उड़ेगा  जहरीली  हवा में।।
नशा  का  कहीं अब न व्यापार होगा।
राष्ट्र  का  संकल्प  दृढ़  हो  चूका  है।।
नशा मुक्त भारत हो,शंख बज चुका है।
नशे  की  दिवानी, जवानी  न  होगी।
नशा  प्राण  लेले, कहानी  ना  होगी।।
नशा करने वालों का, बुरा हश्र होता।
तरुण सभ्य शिक्षित,यह राष्ट्र कह चुका है।।
नशा मुक्त भारत हो,शंख बज चुका है।
नशे के विरुद्ध आओ हम सब खड़े हों।
नशा करने वाले अब कहीं ना पड़े हों।।
नशेड़ियों  का  पूर्ण  बहिष्कार  होगा।
ना  लेगा  नशा  देश  प्रण ले चुका है।।
नशा मुक्त भारत हो,शंख बज चुका है।
-उमेश यादव
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नशे की मार

 नशे की मार
समाज  रो  रहा  है,परिवार रो रहा है।
नशे के भार को  ये, संसार  ढो  रहा है।।
ये क्या हो रहा है देखो,क्या हो रहा है।
नशे की मार से  ये, संसार रो  रहा  है।।
सहारे से चलता, वो सहारा था सबका।
उपेक्षित है सबसे, जो प्यारा था सबका।।
नशे से  ही घर औ’ परिवार खो रहा है ।
नशे  की  मार से  ये, संसार रो रहा  है।।
नयी जिंदगानी, दुर्व्यसन कर रही है ।
तरुणों की जवानी,नशे से मर रही  है।।
व्यसनी न बनो,अन्धकार  हो  रहा है।
नशे के भार को ये, संसार ढो रहा है।।
रिश्ते नाते कुटुम्बी, तुमसे दूर जा रहे हैं ।
ईमान धर्म नीति , ना  निभ पा रहे हैं ।।
नसें,  विष  नशा  से, बेकार हो रहा है ।
नशे की मार से ये, संसार  रो  रहा  है।।
समय आ गया है, दुर्व्यसन को भगाओ
नशा मुक्त जग हो, ये करके दिखाओ।।
हँसाना है, जिसको ये दर्द हो रहा है।
नशे के भार को ये, संसार ढो रहा है।।
-उमेश यादव

कान्हा मेरे,प्रेम की बंशी बजाओ

 *कान्हा मेरे,प्रेम की बंशी बजाओ* 


ग्वाल बाल सब कृष्ण पुकारे,

गोपियन ब्रज से तुम्हें गुहारे।।

प्यार के धुन पे नचाओ।

कान्हा मेरे,प्रेम की बंशी बजाओ।।     


जगत पुकारे, नंद दुलारे,

मन में बसी है छवि तुम्हारे।।

दिव्य दरश दिखलाओ।  

कान्हा मेरे,प्रेम की बंशी बजाओ।। 


गैया तेरी तुझे पुकारे, 

जमुना तट पर तुम्हें निहारे।।

नैनन को चैन दिलाओ। 

कान्हा मेरे,प्रेम की बंशी बजाओ।। 


लगन लगी है, कृष्ण दर्शन की,

मन के भाव हैं पद पूजन की।।

उर में स्नेह भर जाओ। 

कान्हा मेरे,प्रेम की बंशी बजाओ।। 

-उमेश यादव

हे मुरली मनोहर गिरधारी

 *हे मुरली मनोहर गिरधारी*

जाने कितनों के पाप हरे, जाने कितनों को तारा है।

हे मुरली मनोहर गिरधारी,सबपर उपकार तुम्हारा है।।


कंस का दर्प हरे तूने,कालिय नाग को बांधा था। 

गोवर्धन  उठाकर तूने, दर्प इंद्र का साधा था।। 

हे यदुनंदन नन्द दुलारे,तुम्हीं से सांस हमारा है। 


धरती पापों से तड़प रही,आकर यह भार घटा जाओ।

है मनुज कष्ट से तड़प रहा, गीता का ज्ञान सूना जाओ।।

हे मोहन माधव कृष्ण हरे, तुमने ही हमें संवारा है। 


अपना मुझे बना लेना,ये जीवन तुझको अर्पित है। 

जैसा भी हूँ अपना लेना,ये जीवन तुझे समर्पित है।।

हे गोकुल नंदन कृष्ण हरि,तेरा ही एक सहारा है।। 

-उमेश यादव

मेरा कान्हा है रखवाला

 *मेरा कान्हा है रखवाला* 


सांस कृष्ण है, प्राण कृष्ण है,जीवन भी है बंशीवाला।

कृष्ण ही मेरा है रखवाला, कृष्ण ही मेरा है रखवाला।।

मेरा कान्हा है रखवाला, मेरा कान्हा है रखवाला।। 


कृष्ण हैं तन में, मन में कृष्ण है,अंग अंग में बसे कृष्ण हैं। 

रक्त कणों में कृष्ण हर कण हैं, रोम रोम में रंगे कृष्ण हैं।। 

रहते संग संग सदा हमारे, कृष्ण साथ में चलने वाला।

कृष्ण ही मेरा है रखवाला, कृष्ण ही मेरा है रखवाला।।


सदा पकड़ निज हाथ चलाते, कष्टों में भी साथ निभाते। 

पाप ताप को कृष्ण मिटाते, भव के सागर पार कराते।। 

जहाँ कहीं भी नैया अटके, डांड हाथ ले नाव संभाला। 

कृष्ण ही मेरा है रखवाला, कृष्ण ही मेरा है रखवाला।।


कृष्ण बिना जीवन अंधियारा,कृष्ण बिना न कोई प्यारा।

कृष्णा बिना जग सूना लागे, श्री कृष्ण हैं जीवन सारा।। 

पालक पोषक सकल जगत के,है अपना यह मुरलीवाला।

कृष्ण ही मेरा है रखवाला, कृष्ण ही मेरा है रखवाला।। 

 -उमेश यादव

कृष्ण आन बसों

 *कृष्ण आन बसों*

कृष्ण आन बसों मेरे मन में तू,ये मन भी पावन बन जाए।। 

अब कृपा करो वृषभानु लली, यह उर वृन्दावन बन जाए।

 

मुरलीधर अपने होठों से, मुरली  की तान सूना जाना।

बज उठे ह्रदय के तार सभी, ऐसे ही धुन में गा जाना।।

नंद नंदन स्नेह रस बरसाओ, जीवन मनभावन बन जाए। 

कृष्ण आन बसों मेरे मन में तू,ये मन भी पावन बन जाए।। 


तू ग्वाल बाल के संग आना,गोपियों संग राधा को लाना।  

प्रभु शुष्क हो रहा मन मेरा, उर स्नेह प्यार से भर जाना।।

रंग रसिया रंग डालो मुझको, तन मन सतरंगी बन जाए।  

कृष्ण आन बसों मेरे मन में तू,ये मन भी पावन बन जाए।। 


मुरलीधर अपने होठों से, मुरली  की तान सूना देना।

बज उठे ह्रदय के तार सभी,मन के सब तार हिला देना।।

बंशीधर प्रेम रस बरसाओ, जीवन मनभावन बन जाए। 

कृष्ण आन बसों मेरे मन में तू,ये मन भी पावन बन जाए।। 


है निज कर्मों का भान नहीं,जीवन में भक्ति, ज्ञान नहीं।

यह सृष्टि तुम्हारी ही छवि है, कर पाते तेरा ध्यान नहीं।।

प्रभु गीता का ज्ञान हमें देना, जीवन के पथ में डट जाएँ।  

कृष्ण आन बसों मेरे मन में तू,ये मन भी पावन बन जाए।। 

-उमेश यादव

पितर हमारे सदा पूज्य हैं, तर्पण श्राद्ध कराएं

 पितर हमारे सदा पूज्य हैं, तर्पण श्राद्ध कराएं। 

पितरों की स्मृति में आओ हम एक वृक्ष लगाएं।। 

पितरों की स्मृति में आओ, आओ वृक्ष लगाएं।। 


पितरों ने जीवन रहते हमपर उपकार किया है।

ज्ञान धन प्रतिभा देकर,समृद्ध संसार दिया है।।

अभावों में रहे किन्तु,स्वजनों को मान दिलाया।

हरसंभव कोशिश से उनने हमको श्रेष्ठ बनाया।।  

ऋणी रहेंगे सदा उन्हीं के,कृतज्ञ भाव विकासायें।

पितरों की स्मृति में आओ हम एक वृक्ष लगाएं।।

पितरों की स्मृति में आओ, आओ वृक्ष लगाएं।।  


पितरों के लालन पालन, पोषण से  हुए बड़े हैं। 

पितरों के ही कृपादृष्टि से,हम सब आज खड़े हैं।। 

पितरों को श्रद्धांजलि देकर अपना फर्ज निभायें।

दस पुत्रों सम एक वृक्ष है, आओ  वृक्ष लगाएं।। 

ज़माना याद करें पितरों को,श्रद्धा सुमन चढ़ाएं। 

पितरों की स्मृति में आओ हम एक वृक्ष लगाएं।। 

पितरों की स्मृति में आओ, आओ वृक्ष लगाएं।। 

-उमेश यादव

पितर हमारे सदा पूज्य हैं

 *पितर हमारे सदा पूज्य हैं* 

पितर हमारे सदा पूज्य हैं, तर्पण और श्राद्ध कराएं। 

पितरों की स्मृति में आओ,आओ हम एक वृक्ष लगाएं।। 


पितरों ने जीवन के रहते, हमसब पर उपकार किया है।

साधन ज्ञान प्रतिभा देकर, हमें समृद्ध संसार दिया है।।

रहे अभाव में फिर भी उनने,स्वजनों को मान दिलाया था ।

हरसंभव कोशिश से उनने, हम सबको श्रेष्ठ बनाया था।।  

ऋणी रहेंगे सदा उन्हीं के, भाव कृतज्ञता के विकसायें।

पितर हमारे सदा पूज्य हैं, तर्पण और श्राद्ध कराएं। 

पितरों की स्मृति में आओ, आओ हम एक वृक्ष लगाएं।।  


पितरों के लालन पालन से, पोषण से हम बड़े हुए हैं।  

पितरों के ही कृपादृष्टि से, निज पैरों पर खड़े हुए हैं।। 

पितरों को श्रद्धांजलि देकर,आओ अपना फर्ज निभायें।

दस पुत्रों सम एक वृक्ष है, आओ हम एक वृक्ष लगाएं।। 

ज़माना याद करें पितरों को,स्नेह से श्रद्धा सुमन चढ़ाएं। 

पितरों की स्मृति में आओ, आओ हम एक वृक्ष लगाएं।।  


पितर ही हैं अदृश्य सहायक, हरपल रक्षा करते हैं।

डिगे जहाँ उत्साह हमारा, मन में साहस भरते हैं।।

सदा सर्वदा अपने हैं वो, कल्याण सदा ही करते हैं। 

हरक्षण होता छांव उन्हीं का, सारे संकट हरते हैं।। 

आशीर्वाद पितरों से पाकर हम,जीवन धन्य बनाएं।

पितरों की स्मृति में आओ हम एक वृक्ष लगाएं।।

-उमेश यादव

क्रोध

 *क्रोध*

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।

रोष गरल है, कोप अनल है, क्रोध नरक का द्वार है।।


मनवांछित न पाने पर हम, प्रायः क्रोधित हो जाते हैं।

विचार शून्य सा होश गंवाकर, अवांछित कर जाते हैं।।

क्रोध ध्वंस है पागलपन है, यही व्याधि का द्वार है।

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।।


बुद्धि विवेक हर लेता गुस्सा,नर हिंसक बन जाता है।

नीति नियम मर्यादा खोकर, अमर्ष उत्पात मचाता है।।

प्रतिघात पाप,आक्रोश शत्रु है, यह निकृष्ट कुविचार है।

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।।


करुणा ममता प्यार न होता, क्रोधावेग जब आता है।

झल्लाते चिल्लाते सब पर,रक्त विकृत हो जाता है।। 

क्रोध दोष है, क्रोध जुर्म है, यह मन का अंधियार है।

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।।


बचें, बचाएं  महादोष से, यह अत्यंत ही घातक है। 

क्रोधावेग को दूर करें हम,यह जघन्य सा पातक है।।

शुभ कार्य में समय लगाएं,शमन इसका सुविचार है।

क्रोध मनुज का महाविकार है,यह अनुचित व्यवहार है।।

उमेश यादव

जन्मदिवस पर आज

 *जन्मदिवस पर आज*

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।

जीवन का हर क्षण हो सुखमय,हो हर पल सुखदाई।।

बधाई बधाई, हो बधाई बधाई।। 


रहो सदा आनंदित होकर,मंजिल अपनी पाओ।

मुस्कानों की कलियों को तुम,पुष्पों सा विहंसाओ।।

सुरभित रहे दशों दिशाएं,हो ना कोई कठिनाई।

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।


मंगलमय शुभ संकल्पों से, भरा हो तेरा जीवन।

शुभ कर्मों के पुष्प खिले हों,हर्ष भरा हो चितवन।।

सुयश कीर्ति विस्तृत हो जैसे, संध्या की परछाई। 

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।


हो चिरंजीव,हो शतंजीव, हो परहितमय जीवन। 

परिजन सखा सुखी रहें,हो खुशियों का आँगन।। 

मातु पिता गुरुजन तेरे हों, आजीवन वरदाई।

जन्मदिवस पर आज सभी,देते हैं तुम्हें बधाई।।


सद्गुण की सुरभि से महके,जीवन का ये उपवन।

हो महानता ऐसा जैसे,चमके रवि का रश्मि कण।।

अखिल विश्व का कण कण हो, तेरे हित सुखदाई। 

जन्मदिवस पर आज सभी, देते हैं तुम्हें बधाई।।

-उमेश यादव –