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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022

श्रद्धेयद्वय के प्यार आप हैं

 

*श्रद्धेयद्वय के प्यार आप हैं*

दर्शन नव उल्लास जगाता,अवचेतन जग जाता है

स्नेह आपका पाकर मन,खुशियों से भर जाता है।।

 

श्रद्धेयद्वय के प्यार आप हैं, माताजी ने पाला है।

गुरुवर के अध्यात्मवाद को,जग चर्चित कर डाला है।।

धोती कुरता और खडाऊं,व्यक्तित्व सहज दर्शाता है।

स्नेह आपका पाकर मन,खुशियों से भर जाता है।।

 

मंद मंद मुस्कान सहेजे,जब भी सम्मुख होते हैं।

आपके ही हो जाते बरबस,आपा अपना खोते हैं।।

आपका व्यक्तिव निराला,पल में मन मुस्काता है।

स्नेह आपका पाकर मन,खुशियों से भर जाता है।।

 

वाणी में सरस्वती स्वयं है,उर में शान्ति जगाते हैं।

कर्मों में गुरुवर की छवि है,दरश उन्हीं का पाते हैं।।

वचन आपके बड़े प्रखर हैं, शत्रु मित्र बन जाता है।

स्नेह आपका पाकर मन,खुशियों से भर जाता है।।

 

त्याग तपस्यामय जीवन है,सेवा धर्म अपनाये है।

युवा वर्ग में आध्यात्मिकता,का सम्मान जगाये है।।

ओजस्वी उद्बोधन सुनकर, मन सबका हर्षाता है।

स्नेह आपका पाकर मन,खुशियों से भर जाता है।।

-उमेश यादव

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