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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022

हे माँ तुम्हारे प्यार से

 हे माँ तुम्हारे प्यार से

हे माँ तुम्हारे प्यार से,जीवन संवर गया है।

स्नेह के स्पर्श से,तन मन निखर गया है।।

 

था पंक में गिरा मैं, तूने दिया सहारा।

तन मन हमारा धोया,तूने हमें निखारा।।

पकड़ी है तूने उंगली,बल पग में भर गया है।

हे माँ तुम्हारे प्यार से,जीवन संवर गया है।।

 

जकड़ा हुआ था मैं तो,व्यसनों की बेड़ियों से।

घिरा हुआ था लत की,प्राणान्तक भेड़ियों से।।

व्यामोह से उबारा, चिन्तन प्रखर दिया है।

हे माँ तुम्हारे प्यार से,जीवन संवर गया है।।

 

अपना ही सोचता था,स्वारथ भरा था जीवन।

न प्रेम था ह्रदय में,करुणा रहित था ये मन।।

पामर बना हुआ था,अब नर बना दिया है।

हे माँ तुम्हारे प्यार से,जीवन संवर गया है।।

 

औरों के हित में जीना तूने हमें सिखाया।

हर कष्ट हर दुखों से, तूने हमें बचाया।।

तुतली थी मेरी वाणी,माँ ने ही स्वर दिया है।

हे माँ तुम्हारे प्यार से,जीवन संवर गया है।। 

 

खोया हुआ था मैं तो,सपनों के इस शहर में।

भटक रहा था माते,अज्ञान तम डगर में।।

दे ज्ञान की किरण माँ,उड़ने को पर दिया है।

हे माँ तुम्हारे प्यार से,जीवन संवर गया है।। 

 

सारे जहाँ को तूने, परिवार है बनाया।

सुख दुःख में साथ होंवें,यह आपने सिखाया।।

प्रेमामृत पिलाकर, आनंद भर दिया है।

हे माँ तुम्हारे प्यार से,जीवन संवर गया है।। 

-उमेश यादव

 

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