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शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022
तेरे हित जीवन है मेरा
सोमवार, 14 फ़रवरी 2022
चलो चलें सब वोट दे आयें।
चलो चलें सब वोट दे आयें।
देखो सूर्य उदित हुआ है।।
एक अनोखा घटित हुआ है।।
अब तो किसी को सोने ना दो।
इस मौके को खोने न दो।।
मूल्यवान है तेरा मत अब।
लाओ नया सवेरा तू अब।।
अपने ताकत को आजमायें।,
चलो चलें सब वोट दे आयें।।
तेरा मत है पांच साल का।
तेरा मत तो है कमाल का।।
सोचो समझो बचो लोभ से।
पड़ो न प्यारे कभी मोह में।।
तेरे मत से सरकार बनेगी।
तेरे मत से घर बार बनेगी।।
अभी वक्त है देश बचायें।
चलो चलें सब वोट दे आयें।।
झूठे वादों पर ना जाना।
जीजा फूफा नहीं बनाना।।
रिश्तेदारी नहीं निभाना।
बेईमानों को घर है बिठाना।।
ईमानदार को वोट दे आना।
तुमको है सरकार बनाना।।
गलत वोट दे मत पछतायें।
चलो चलें सब वोट दे आयें।।
संसद में जो शोर मचाते।
सड़कों पर घनघोर मचाते।।
झूठ बोलकर जो भड़काते।
देश का जो हानि कराते।।
मक्कारों को दूर हटाओ।
गद्दारों को सबक सिखाओ।।
आवो देश को श्रेष्ठ बनायें।
चलो चलें सब वोट दे आयें।।
भ्रटाचार जो दूर भगाए।
गुंडों से जो हमें बचाए।।
माँ बहिनें हो जहाँ सुरक्षित।
धर्म संस्कृति जिस से रक्षित।।
हम सबका जो मान बढाए।
भारत का सम्मान बढ़ाये।।
उसको ही हम आज जितायें।
चलो चलें सब वोट दे आयें।।
सच्चे नेता सेवा करते।
जनता के ऊपर हैं मरते।।
अपना दौलत नहीं बढाते।
हमको जो ना लुट के खाते।।
सुख दुःख में साथी बन आते।
हमें सुखी समृद्ध बनाते।।
सही चुने हम देश बनायें।
चलो चलें सब वोट दे आयें।।
-उमेश यादव
गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022
चलो वोट देकर आयें
*चलो वोट देकर आयें*
राष्ट्र को समर्थ और
सशक्त बनाएं।
राष्ट्र धर्म
निभाये,चलो वोट देकर आयें।।
आपका ही वोट सारे
देश को चलाता है।
दिशा देश को आपका
वोट ही दिखाता है।।
चलो देशहित अपने कदम
हम बढायें।
राष्ट्र धर्म
निभाये,चलो वोट देकर आयें।।
रिश्ते नहीं, नाते नहीं,सरकार
बनानी है।
झूठे और गद्दारों से,देश
को बचानी है।।
ईमानदार, देशभक्त
इंसान को जितायें।
राष्ट्र धर्म
निभाये,चलो वोट देकर आयें।।
धर्म जाति पार्टी
नहीं, देश को जिताना है।।
लूट खाने वालों को तो घर पर बिठाना है।
अपना मतदान देश के
नाम करके आयें।।
राष्ट्र धर्म
निभाये,चलो वोट देकर आयें।।
-उमेश यादव
बुधवार, 9 फ़रवरी 2022
माँ मुझको भी पढ़ना है
रविवार, 6 फ़रवरी 2022
स्वर कोकिला को श्रधांजलि
स्वर कोकिला को श्रधांजलि
लय दिया संगीत में जब,वो नया युग आया था।
ताल से बाँधा समां, हर दिल ही मुस्कराया था।।
मंजिले तय की हैं वो जो, कोई न कर पायेगा।
गेय कर दी शब्द सारे, युगों तक जग गायेगा।।
शत नमन हे स्वर कोकिला,सुर से एकाकार हो।
कर रहे श्रद्धा समर्पित,सुरदेवी को स्वीकार हो।।
रहो सबके दिल में तुम, संगीतमय संसार हो।।
-उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार
शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022
बोझ क्यों बुढ़िया माता लगती,क्यों कुत्तों से प्यार है
*बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती*
जन्म
दिया और पाला पोषा, माँ जीवन की सार हैं।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती, पर कुत्तों से प्यार है।।
कोख
में पाला माँ ने तुमको,अपना रक्त पिलाया था।
दर्द
मौत का सहकर माँ ने, तुम्हें धरा पर लाया था।।
बिन
देखे ही माँ ने किया था, तुझसे इतना प्यार है।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती, पर कुत्तों से प्यार है।।
तेरे
मल मूत्रों को माँ ने, बड़े
प्यार से धोया था।
गीला
बिस्तर तू करता था,पर सूखे में सोया था।।
खुद
गीले में सोती हर माँ, शिशु उनका संसार है।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती, पर कुत्तों से प्यार है।।
आंचल
से अमृतपान कराई, आंचल में ही सुलाती थी।
तरह
तरह के नखरे तेरे, हंस हंस कर सह जाती थी।।
मां
को आज तुम्हारी जरूरत, क्यों करता इनकार है।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती, पर कुत्तों से प्यार है।।
मां
से ही है जीवन तेरा,अपना फर्ज निभाना है।
बूढ़े
होते मातु पिता का, थोडा कर्ज चुकाना है।।
पत्नी
बच्चे सभी हैं अपने,मिलकर घर परिवार है।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती, पर कुत्तों से प्यार है।।
घर
में बूढ़े मात पिता का,सुध नहीं हम लेते हैं।
वृद्धाश्रम
भेजे जाते वे, घर में कुत्ते पलते हैं।।
चाकर
कुत्तों की सेवा में, मात-पिता लाचार हैं।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती,पर कुत्तों से प्यार है।।
माँ
से ही हैं प्राण हमारे, माँ से ही संस्कार है।
माँ
के बिन ये सृष्टि अधूरी, माँ से ही संसार है।।
माँ
का दिल दुखाया तूने, तो तुझको धिक्कार है।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती,पर कुत्तों से प्यार है।।
-उमेश
यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार
गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022
विवाहदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई दीप्ति आनंद
विवाहदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई
दीया
और बाती सा दोनों,मिलकर जगमगाओगे।
पहुंचोगे
उच्चे मुकाम तक,सबका मान बढाओगे।।
तिमिर
निशा में,चन्द्र-सूर्य सा,दिव्य दीप्ति फैलावोगे।
आसमान
से ऊँचे उठकर, यश गौरव दोनों पाओगे।।
नंदिनी
आनंद हरपल खुश रहो, आशीष तुमपर।
दक्षता
दिखलाओ जग में,स्नेह की बारिश तुमपर।।
-माँ-पिताजी
दो बोल मिठास के
*दो बोल मिठास के*
दो बोल मिठास के बोलें, क्या कमाल दिखाते हैं।
वाणी तो जाते कानों में, पर चेहरे खिल जाते हैं।
वाणी पीर मिटाता मन का,द्वेष यही फैलाता है।
शब्द तीर है घाव है करता, मरहम यही लगाता है।।
कुटिल वाणी से शत्रु बनते,वाणी ही मीत बनाते हैं।
दो बोल मिठास के बोलें, क्या कमाल दिखाते हैं।
मधुर बोल हों यदि हमारे और उत्तम व्यवहार हो।
बिना जीत के युद्ध भी जीतें,जीतें सकल संसार को।।
मीठी वाणी की कुंजी से,दिल के द्वार खुल जाते हैं।
दो बोल मिठास के बोलो, क्या कमाल दिखाते हैं।।
जितना बांटो उतना बढ़ता,मधुर वचन तो हैं अनमोल।
मीठी वाणी से सुख बढ़ता,कभी न घटता इसका तोल।।
जीवन में खुशियाँ ये घोले,मन को निर्मल कर जाते हैं।
दो बोल मिठास के बोलो, क्या कमाल दिखाते हैं।।
ईश्वर से बिन मांगे मिलता,चाहे जितना बाँट सकें।
मधुरवाणी से एक दूजे के,दिल की दूरी पाट सकें हम।।
सोचें समझें फिर हम बोलें, सबसे प्रीत बढाते हैं।
दो बोल मिठास के बोलो, क्या कमाल दिखाते हैं।।
उमेश यादव, शांतिकुंज हरिद्वार
बुधवार, 2 फ़रवरी 2022
वो ही है मेरा अपना
*वो ही है मेरा अपना*
गिर ना जाऊं मैं कहीं,वही राहें
दिखाता है।।
वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली
चलाता है।।
गुरु ही है मेरा अपना,वो संकट से बचाता है।
वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली
चलाता है।।
डूबा ना पाओगे मुझे,गुरु की
नाव बैठा हूँ।
भाव से भक्ति से मैं तो,गुरु के ही निरैठा हूँ।।
कर न पाओगे कुछ भी,मेरा तो वो
ही त्राता है।
वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली
चलाता है।।
हमारी छांह है वो तो,मेरा प्रियतम है हमदम है।
हर पल साथ है मेरे, मेरे दिल का स्पंदन है।।
मेरे हर बात से वाकिफ, गुरु वो सर्वज्ञाता है।
वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली
चलाता है।।
ज्ञान के नूर से उसने, घर को जगमगाया है।
अश्कमय जब हुआ ये अक्ष,उसने ही हंसाया है।।
उजड़ी सी हुई चमन को,गुलशन वो बनाता है।
वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली
चलाता है।।
न गम है की मै हारा हूँ,जीत से ना इतराया है।
न चिंता आज की रहती,नतो कल ने जगाया है।।
छांव में हूँ सदा उनके, सुकून से वो सुलाता है।
वो ही है मेरा अपना,पकड़ उंगली
चलाता है।।
-उमेश यादव, शांतिकुंज,
हरिद्वार
शुक्रवार, 28 जनवरी 2022
गुरुवर तेरी कृपा ने
गुरुवर तेरी
कृपा ने
गुरुवर तेरी कृपा ने, किस्मत जगा दिया है।
दोजख सा जी रहा था,जन्नत बना दिया है।।
भटका पडा था यूँ ही,
ना ठौर
था हमारा।
ठोकर ही लग रही थी, तुमने दिया सहारा।।
उंगली पकड़ के तूने,चलना सीखा दिया है।
गुरुवर तेरी कृपा ने,किस्मत जगा दिया है।।
माया मरीचिका में, ये मन भटक रहा था।
सुख साधनों के पीछे, ये तन भटक रहा था।।
दुःख से भरा था जीवन,सुख सार दे दिया है।
गुरुवर तेरी कृपा ने, किस्मत जगा दिया है।।
छल दंभ द्वेष से तो,कलुषित हुआ था जीवन।
मद लोभ और घृणा से,दूषित हुआ था ये मन।।
हर दोष को मिटाकर, जीवन
बदल दिया है।
गुरुवर तेरी कृपा ने, किस्मत जगा दिया है।।
जिस पल से ये हाथ थामा,जीवन संवर गया है।
हर सांस अब है तेरा, तन मन निखर गया है।।
मै दास हूँ तुम्हारा, सब कुछ भुला दिया है।
गुरुवर तेरी कृपा ने, किस्मत
जगा दिया है।।
-उमेश यादव
कबीरवाणी क्रोध
*कबीरवाणी
क्रोध*
1. गुस्से से
तन मन जरै, गुस्सा खून जराय।
बिन विचारे क्रोध(रोष)करै, वो पाछे पछताय।।.. कबीरा वो पाछे पछताय
2. पलभर
गुस्से से मिटै, भरा पूरा
परिवार।
गुस्सा कभी न कीजिये,ये है परम विकार।।.. कबीरा ये है परम विकार
3. रोष को
अंकुश डारिये,कहीं बहक
ना जाए।
क्रोध जहाँ पर भी भयो,चाबुक हाथ चलाय।।
4. क्रोध कभी
मन में उठै, बाहर घूमिके आयें।
ठंडा पानी पीजिये,
तनिक
मौन होई जाएँ।।
5. मन चाहा
नहीं होत जब, काहे खून
जराय।
मन को ही समझाइये,क्रोध कभी न आये।।
6. अपनों से न
गुस्साइये, सहें मौन अपनाय।।
रिश्तों में नरमी बढे, सुख
सम्पति मिल जाय।।
7. मति मरि
जाती क्रोध में,रहत नहीं
विवेक।
मुरख नर हैं वो ही जो,क्रोध में निर्णय लेत।।
8. जब कबहूँ
गुस्सा उठे,कर शीतल जल
पान।
पेट ठठाकर हंस लियो,करो नया कुछ गान।।
9. क्रोध के
फल जानिये,कबहूँ न
मीठा होय।
हानि लाभ विचारिये, गुस्सा करिहैं तोय।।
10. क्रोध
कबहूँ न कीजिये,क्रोध नीच
व्यवहार।
क्रोध से पहिले सोचिये, क्रोध नरक के द्वार।।
11. मनवा जब
गुस्सा करे,स्वयं अहित
होई जाय।
तन हो मन हो खोखली,
फिर
पाछे पछताय।।
12. सही गलत ना
समझ सके,जौं गुस्से
में होय।
गुस्सा पहिले थूकिये,सब
कुछ अच्छा होय।।
13. क्रोध जहां वहां काल है, क्रोध न कीजै आप।
सर्वनाश
का मूल है, असमय क्रोध का पाप।।
14. शीतल छांव मिले जहाँ, हो संतन के वास।
जहाँ
क्रोध की आग है,शांति नहीं है पास।।
15. सतसंगत में बैठिये, तजिये क्रोध विकार।
अहंकार
मत पालिए, खुद का हो उद्धार।।
16. क्रोध व आंधी एक है, करत बहुत नुक्सान।
समझै
जब पल बीतती, होवै कितनी हानि।।
17. आंधर समझो क्रोधी को, दीखे नाहीं सांच।
क्रोधीन
से अज्ञानी भले,चाहे गिनती पांच।।
18. क्रोध ध्वंस सामान है,यही व्याधि का द्वार।
पागलपन
है क्रोध ये,है घटिया कुविचार।।
19. बुद्धि ज्ञान के दीप को,क्रोध देत बुझाय।
माचिस
तिली जैसो ये,जले और जलाय।।
20. क्रोध कबहूँ ना कीजिये, क्रोध ठेस पहुंचाय।
दुःख
औरन को होत है,शर्म स्वयं को आये।।
21. क्रोध एक जलयान है, डूबै बीच उफान।
समझदार
इंसान भी,भँवर में देवत प्राण।।
22. आग सामान लपेट है,ज्वाला धधकत जाय।
अंत
भला न क्रोध का,बचे तो केवल छाय।।
23. गुस्से से गर मीत है,समझो दुश्मन जीत।
तजिये
तुरत क्रोध को,कबहूँ न क्रोध से प्रीत।।
24. अपनी गलती होये जब,बढ़के गलती मान।
सच
न खुद को बोलिए,बचल रहै सम्मान।।
25. गलती से गुस्सा बढे,रोष में गलती होय।
एक
दूजे से दोस्ती,वीर बचै इन दोय।।
26. घाटे का
सौदा सदा,कबहूँ न कीजै मोल।
बिना क्रोध के बोलिए,वाणी दीजिये तौल।।
27. गुस्साने
का हक़ नहीं,अगर गलत हो आप।
ना चीखिये चिल्लाइये, बढ़ते जाते संताप।।
28. क्रोधित
मानुष है अगर,वाणी रक्खो मौन।
बुद्धि विवेक न होत है,तुम्हें सम्हाले कौन।।
29. क्रोध मनुज
का शत्रु है,वश में राखो रोष।
प्रगति में बाधक सदा,इससे बड़ा न दोष।।
30. क्रोध से
टूटे काम का,कोई नहीं जुगाड़।
बने बनाए काम को,पल में देत बिगाड़।।
31. क्रोध घृणित
गुनाह है,यह है केवल पाप।
खुद को ही यह श्राप है,केवल पश्चाताप।।
32. दया धर्म
से दूर करै, क्रोध पतन की राह
क्रोधी से अनपढ़ भले,होत प्रेम की चाह
33. मन में
गुस्सा होय जो,सौ तक गिने आप।
गुस्सा जो हद से बढै,बोलै सो बड पाप।।
34. जीत उसी की
होत है,मौन जो करते घात।
क्रोध दिलाये आपको, समझो हारे आप।।
35. क्रोध सजा
ना देत है,सजा क्रोध से पाय।
तनिक रुकिये क्रोध में,सबसे बड़ा उपाय।।
36. क्रोधाग्नि
से जल रहै,मानुष घर परिवार।
शीतल साधू संगती, हरै क्रोध विकार।।
37. क्रोध हमारा
अस्त्र है,हम पर करता वार।
पालन जो उसका करे,उसपर करै प्रहार।।
38. 10 तक
गिनती गिनिये,100 तक रहिये मौन।
उठकर पानी पीजिये,क्रोध को कीजिये गौण।।
39. दिनभर काम
से जो थकें,पल में थकते आप।
बस थोडा सा क्रोध से, होते विचलित आप।।
40. दिशा क्रोध
को दीजिये,रखिये मन में आग।
क्रोध के शुभ संबोध से, चमके तेरे भाग।।
41. क्रोध के
परिजन बहुत हैं,चलते उनके साथ।
इर्ष्या द्वेष छल दंभ भी,करते दो दो हाथ।।
उमेश यादव