*बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती*
जन्म
दिया और पाला पोषा, माँ जीवन की सार हैं।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती, पर कुत्तों से प्यार है।।
कोख
में पाला माँ ने तुमको,अपना रक्त पिलाया था।
दर्द
मौत का सहकर माँ ने, तुम्हें धरा पर लाया था।।
बिन
देखे ही माँ ने किया था, तुझसे इतना प्यार है।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती, पर कुत्तों से प्यार है।।
तेरे
मल मूत्रों को माँ ने, बड़े
प्यार से धोया था।
गीला
बिस्तर तू करता था,पर सूखे में सोया था।।
खुद
गीले में सोती हर माँ, शिशु उनका संसार है।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती, पर कुत्तों से प्यार है।।
आंचल
से अमृतपान कराई, आंचल में ही सुलाती थी।
तरह
तरह के नखरे तेरे, हंस हंस कर सह जाती थी।।
मां
को आज तुम्हारी जरूरत, क्यों करता इनकार है।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती, पर कुत्तों से प्यार है।।
मां
से ही है जीवन तेरा,अपना फर्ज निभाना है।
बूढ़े
होते मातु पिता का, थोडा कर्ज चुकाना है।।
पत्नी
बच्चे सभी हैं अपने,मिलकर घर परिवार है।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती, पर कुत्तों से प्यार है।।
घर
में बूढ़े मात पिता का,सुध नहीं हम लेते हैं।
वृद्धाश्रम
भेजे जाते वे, घर में कुत्ते पलते हैं।।
चाकर
कुत्तों की सेवा में, मात-पिता लाचार हैं।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती,पर कुत्तों से प्यार है।।
माँ
से ही हैं प्राण हमारे, माँ से ही संस्कार है।
माँ
के बिन ये सृष्टि अधूरी, माँ से ही संसार है।।
माँ
का दिल दुखाया तूने, तो तुझको धिक्कार है।
बुढ़िया
माता बोझ हैं लगती,पर कुत्तों से प्यार है।।
-उमेश
यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार
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