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बुधवार, 18 जनवरी 2023

बासन्ती धरती का आँगन

 

*बासन्ती धरती का आँगन *

मधुमासी सुरभित बयार में,मन मयूर का नर्तन है।

बासन्ती धरती का आँगन,आनंदित जड़ चेतन है।।

 

पुष्पों के सुरभित बयार से, मन उन्मत्त हो जाता है।

नव पल्लव से पादप द्रुम,अनुपम सौंदर्य दिखाता है।।

मन्त्रों सा अनहत नाद सुनाता,भृंगों का भ्रम गुंजन है।

पीत वसन धरती का आँगन,आनंदित जड़ चेतन है।।


कू कू कुहक रही कोकिला, चक्रों को आंदोलित करती।

राग बसंत का गुंजन मन के,हर विकार को खंडित करती।।

वासंती उल्लास ह्रदय में, लाया  नव परिवर्तन है ।

बासन्ती धरती का आँगन,आनंदित जड़ चेतन है।।

 

निर्जन में भी स्वर्ग बसाए,मरू में निर्झरिणी बन जाए।

नीरस को भी सरस बनाए, जीवन सतरंगी बन जाए।।

बासंती उल्लास जगाये, गुरुचरणन में  अर्पण है।

बासन्ती धरती का आँगन, आनंदित जड़ चेतन है।।

 

पावन पर्व बासन्ती ने हर साधक को संदेश दिया है।

गणतंत्र के शुभ अवसर पर,राष्ट्र प्रेम उपदेश दिया है।।

नए सृजन का शंख बजायें,स्वार्थ भाव का तर्पण है।

बासन्ती धरती का आँगन, आनंदित जड़ चेतन है।।

-उमेश यादव

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