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सोमवार, 25 जुलाई 2022

Shree Shivrudrashtak श्री शिवरुद्राष्टकम #rudrashtakam #bhagwan #bhajan...

श्री शिव रुद्राष्टक स्तोत्र || Shri Shiva Rudrashtakam Stotram ||

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे हं॥1॥

 

नमन कर रहे शिव हे विश्व नायक। वेदस्वरुप ब्रह्म मुक्ति प्रदायक।

निर्विकल्प, निर्गुण,निर्लिप्त, निश्छल,भजे ईश् ईशान हे भक्त वत्सल॥1॥

 

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।

करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो हं॥2॥

 

ॐकार आधार निराकार ईश्वर। शब्द ज्ञान इन्द्रिय से हैं जो ऊपर।

गुणागार चन्द्रभाल विकराल हैं काल।भव मुक्त करते जयजय महाकाल॥2॥

 

तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥

 

हिमालय सदृश गौर गंभीर शंकर। कोटि कामदेवों से हैं मनोहर।

भाल चंद्र कल्लोल गंगा की धारा।शिरोधरा शोभित सर्पों की माला॥3॥

 

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥

 

प्रसन्न मुख नीलकंठ आँखें हैं सुन्दर।चपल कान कुंडल भृकुटी मनोहर।

मुंडहार शोभित, चर्म सिंह वसन है। सर्वनाथ शंकर प्रिय को नमन है॥4॥

 

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।

त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजे हं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥

 

रुद्ररूप उत्कृष्ट यशस्वी परमेश्वर।अजन्मा अखंड सर्वशक्तिमान ईश्वर।

त्रिशूल धारक हैं शुलों के निवारक,भावगम्य गिरिजापति को नमन है॥5॥

 

कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।

चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥

 

कला से परे प्रलय कल्याण कारी। त्रिपुरारी शिव सज्जन बिहारी।

मोह नष्ट कर स्नेह आनंदकारी। होवें प्रसन्न चंद्रमौली कामारी॥6॥

 

न यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

 

चरण कमल वंदन परमेश्वर।सर्व लोक में शिव पूजे नारी नर।

सुख शांति हैं शिव संताप नाशी। हों प्रसन्न उमापति चराचर वासी॥7॥

 

न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतो हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।

जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो॥8॥

 

जानू नहीं योग जाप ना ही पूजा। हर पल नमन शम्भू कोई ना दूजा।

रक्षा करो प्रभु विनती स्वीकारो। ज़रा जन्म कष्टों से अब तो उबारो॥8॥

 

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।

ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥

 

जो भी नर इस रुद्राष्टक का, भक्ति भाव से पाठ करते हैं

भगवान शिव प्रसन्न होते है, सारे दुःख और कष्ट हरते हैं।।  निवेदक – उमेश यादव, umeshpdyadav@gmail.com

गुरुवार, 12 मई 2022

गुरुवर तेरी कृपा ने Guruwar Teri Kripa Ne #shantikunjvideo #guruwarter...

    
गुरुवर तेरी कृपा ने गुरुवर तेरी कृपा ने, किस्मत जगा दिया है। दोजख सा जी रहा था,जन्नत बना दिया है।। भटका पडा था यूँ ही, ना ठौर था हमारा। ठोकर ही लग रही थी, तुमने दिया सहारा।। उंगली पकड़ के तूने,चलना सीखा दिया है। गुरुवर तेरी कृपा ने,किस्मत जगा दिया है।। माया मरीचिका में, ये मन भटक रहा था। सुख साधनों के पीछे, ये तन भटक रहा था।। दुःख से भरा था जीवन,सुख सार दे दिया है। गुरुवर तेरी कृपा ने, किस्मत जगा दिया है।। छल दंभ द्वेष से तो,कलुषित हुआ था जीवन। मद लोभ और घृणा से,दूषित हुआ था ये मन।। हर दोष को मिटाकर, जीवन बदल दिया है। गुरुवर तेरी कृपा ने, किस्मत जगा दिया है।। जिस पल से ये हाथ थामा,जीवन संवर गया है। हर सांस अब है तेरा, तन मन निखर गया है।। मै दास हूँ तुम्हारा, सब कुछ भुला दिया है। गुरुवर तेरी कृपा ने, किस्मत जगा दिया है।। -उमेश यादव

गुरुवार, 5 मई 2022

चलो रे मन शान्तिकूँज गुरुधाम Chalo Re Man Shantikunj Gurudham

चलो रे मन शान्तिकूँज गुरुधाम Chalo Re Man Shantikunj Gurudham प्रज्ञा गीत भजन AWGP Pragya Geet गीतकार:- श्री उमेश यादव स्वर :- सुश्री स्वेता यादव चलो रे मन शान्तिकूँज गुरुधाम। जहां बसतु हैं मातु हमारी, गुरुवर संग ललाम।। शांतिकुंज चैतन्य तीर्थ है, ऋषियों का दिव्य निकेतन। कण-कण सिंचित तप उर्जा से,दीप्त सभी जड़ चेतन।। चलो चलें उस पुण्य भूमि पर, दंडवत करें प्रणाम। चलो रे मन शान्तिकूँज गुरुधाम।। शान्तिकूँज के दिव्य तीर्थ में, ऋषि-मुनि-संत बिराजै। आदित्य, अश्वनी, वरुण, रूद्र संग सभी देवता राजै।। देव लोक सी अनुपम सुन्दर, रुचिर रम्य अभिराम। चलो रे मन शान्तिकूँज गुरुधाम।। दिव्य सिद्ध चैतन्य तीर्थ का, दरशन धन्य बनाता। जनम-जनम का कष्ट क्लेश भी,पल भर में मिट जाता।। सजल श्रध्दा और प्रखर प्रज्ञा के,चरणों में नित्य प्रणाम। चलो रे मन शान्तिकूँज गुरुधाम।। यज्ञ निरत जीवन हो सबका, पर हित जीना सीखे। देश-धर्म-संस्कृति की खातिर,हंस हंस मरना सीखे।। यज्ञ देव को आहुति देवें, कर्म करें निष्काम। चलो रे मन शान्तिकूँज गुरुधाम।। सप्तऋषियों की परा-वाणी को,अनुभव आज करें हम। ऋषियो मुनियों संतो जैसा, जन हित स्वयं तपें हम।। शांतिकुञ्ज में तप की उर्जा, बहती है अविराम। चलो रे मन शान्तिकूँज गुरुधाम।। सतत साधना से गुरुवर ने, जाग्रत तीर्थ बनाया। गायत्री के महामंत्र को, जन जन तक पहुँचाया।। अखंड दीप के दिव्य ज्योति को, बारम्बार प्रणाम। चलो रे मन शान्तिकूँज गुरुधाम।। दिव्य हिमालय मंदिर में हम,प्रभु का ध्यान लगायें। दिग्दर्शन कर दिव्य तीर्थ का, जीवन सफल बनाएं।। आओ करें तीर्थ सेवन हम, पायें दिव्य वरदान। चलो रे मन शान्तिकूँज गुरुधाम।। -उमेश यादव !! हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा। हम बदलेंगे-युग बदलेगा !! सावधान! युग बदल रहा है। सावधान। नया युग आ रहा है। हमारी युग निर्माण योजना- सफल हो, सफल हो, सफल हो। हमारा युग निर्माण सत्संकल्प- पूर्ण हो, पूर्ण हो, पूर्ण हो। इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भविष्य। वन्दे- वेद मातरम्। #ChaloReManShantikunjGurudham #RishiChintan #PtShriramSharmaAcharya

बुधवार, 4 मई 2022

भगवान परशुराम जयंती @PARSHURAM PARIVAR HARYANA @YouTube@Rishi Chintan @P...



भगवान परशुराम

क्षत्रियहीन किया था जग को,मेटा था अभिमान को।

नमन करें हम संस्कृति रक्षक, भार्गव परशुराम को।।

 

दुष्ट दलन कर धरा धाम को,पुण्य पवित्र बनाया था।

शोषण और दमन चक्र से,जग को मुक्त कराया था।।

पुण्य कार्य है खंडित करना, अहंकार अभिमान को।

नमन करें हम संस्कृति रक्षक, भार्गव परशुराम को।।

 

वेद ज्ञान हों मुख में सारे,पीठ पर धनुष सजायें।

ब्रह्म शक्ति और शस्त्र शक्ति से, धर्माचरण  कराएं।।

करें प्रणाम हम धर्मोद्धारक, परशुधर भगवान् को।

नमन करें हम संस्कृतिरक्षक, भार्गव परशुराम को।।

 

थे समर्थ गुरुदेव जगत के,शस्त्र शाष्त्र के ज्ञाता थे।

धर्म चेतना अवतरित करने, अवतारी विधाता थे।।

धारण किया था परशु को,संस्कृति के उत्थान को।

नमन करें हम संस्कृतिरक्षक, भार्गव परशुराम को।।

 

दंभ मनुज का मिट जाता है,ब्राह्मणत्व गर जागे।

सहश्र हाथ भी काम न आते,सत्य न्याय के आगे।।

आदर्श बनाए भृगुनंदन को, धर्मरक्षक भगवान् को।

नमन करें हम संस्कृतिरक्षक, भार्गव परशुराम को।।

 

भृगुनंदन के आदर्शों को हम, जीवन में अपनाएँ।

दुष्टों को दंड देना सीखें, सज्जन को सदा बचाएं।।

शस्त्र शास्त्र दोनों आवश्यक,होता जन कल्याण को।

नमन करें हम संस्कृतिरक्षक, भार्गव परशुराम को।। 

-उमेश यादव


शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022

तो समझो की ये होली है

 

*तो समझो की ये #होली है*

नयनों में खुमारी छाये, साँसों में भी उष्णता आये

अपनों से मिलने को मन,होकर अधीर अकुलाये।।

लहरों सा हिलोरे ले मन,तो समझो की ये होली है।।

 

मन मस्ती में जब डूब जाए,गाना होठ स्वतः ही गाये

लगे स्वयं ही पाँव थिरकने, भावों में समरसता आये।।

सपनों में बस साजन होंवें,तो समझो की ये होली है।।

  

मुश्किल हैं दर्शन भी जिनके,स्पर्श का अवसर मिल जाए

बिना चखे जिह्वा भी जैसे, अमृतपान सा तृप्त हो पाए।।

बातें बिन बोले हो जाए, तो समझो की ये होली है।।

 

स्वांस प्रस्वांस में जब भी, खुशबु चन्दन जैसी आये

मदमस्त मगन मन को कोई,केवल एक नाम ही भाये।।

सतरंगों की हो शीतल फुहार,तो समझो की ये होली है।।

 

जब तुम खोलो मन के द्वार,खड़े प्रियतम होवें उस पार

प्रेम की ऐसी गंगा बह जाए, डूब जाए उसमें संसार।।

जुड़ जाएँ जब भावों के तार,तो समझो की ये होली है।।

-उमेश यादव

अभी न शादी करना बाबा

 *अभी न शादी करना बाबा*

अभी खेलने के दिन मेरे,चिड़ियों के संग उड़ना चाहूँ।

अभी न शादी करना बाबा,अभी ना डोली चढ़ना चाहूँ।।

 

मेरे खिलौनों का क्या होगा, गुडिया कैसे सोएगी।

मेरे बगैर दुखी होगी वह, फूट फूट करके रोएगी।।

तुझे फिकर भले ना मेरी,इनके बिन न रहना चाहूँ।

अभी न शादी करना बाबा,अभी ना डोली चढ़ना चाहूँ।।

 

खेल खिलौना ही है जीवन,स्कूल भी ना जा पाती हूँ।

चलते हुए कदम हिलते हैं,नहीं स्वयं से खा पाती हूँ।।

समझ नहीं है सही गलत का,अपने पैरों चलना चाहूँ।

अभी न शादी करना बाबा, अभी ना डोली चढ़ना चाहूँ।।

 

कलि हूँ मैं पुष्प बनूँगी,खिलने दो अपनी बगिया में।

दांत दूध के भी न टूटे,छुपने दो माँ की अंगिया में।।

अभी नहीं दुनिया देखी है,पढ़ लिखकर मैं बढ़ना चाहूँ।

अभी न शादी करना बाबा,अभी ना डोली चढ़ना चाहूँ।।

 

पीले हाथ करो मत बाबा,घर का कर्ज उतारूंगी।

बचपन मेरा मत छीनो, मैं परिवार सवारुंगी।।

खूंटे से मत बांधो बाबा,नभ से ऊँचा चढ़ना चाहूँ।

अभी न शादी करना बाबा,अभी ना डोली चढ़ना चाहूँ।।

 

कच्ची मटकी हूँ माटी की, पकी नहीं अभी खोटी हूँ।

अभी भी  बुद्धि कच्ची मेरी,अभी बहुत ही छोटी हूं।।

शक्ति,विद्या और ज्ञान से, सबसे काबिल बनना चाहूँ।

अभी न शादी करना बाबा,अभी ना डोली चढ़ना चाहूँ।।

-उमेश यादव 23-3-22


उम्र से पहले शादी

 

*उम्र से पहले शादी*

उम्र से पहले शादी करके,मुझपर अत्याचार किया है।

घर वालों ने बोझ समझकर,आंसू का उपहार दिया है।।

 

खेल खिलौने थे हाथों में,हथकड़ियों से हैं चुडे कंगन ।

हँसते थे उन्मुक्त हंसी अब,रस्म रिवाजों के हैं बंधन।।

काजल से ना शोभित आँखें,अविरल अश्रु धार दिया है।

उम्र से पहले शादी करके,मुझपर अत्याचार किया है।।

 

रिश्ते नातों का बंधन है, कैसे इसे निभाउंगी मैं।

घूँघट में अपने सपनों को,कैसे सच कर पाउंगी मैं।।

टूट गए हैं सारे सपने,अपनों ने ही प्रहार किया है।

उम्र से पहले शादी करके,मुझपर अत्याचार किया है।।

 

कच्ची माटी की गगरी हूँ,सृजन कलश क्या ढो पाउंगी।

नयी सृष्टि से पहले ही मैं, कच्ची काया ढह जाउंगी।।

कलियों को तोड़ा अपनों ने,पुष्पों का संहार किया है।

उम्र से पहले शादी करके,मुझपर अत्याचार किया है।।

 

पढ़ने और बढ़ने के दिन थे,अरमानों को तोड़ दिया है।

चूल्हा चौका करती हूँ अब,सपनों ने संग छोड़ दिया है।।

पंक्षी को उड़ने से पहले, ही पिंजरे में डार दिया है।

उम्र से पहले शादी करके,मुझपर अत्याचार किया है।।

 -उमेश यादव

 

अखंड दीप के दिव्य ज्योति को

 अखंड दीप के दिव्य ज्योति को

दर्शन मात्र से सिद्ध हो जाते, बिगड़े सारे काम। 

अखंड दीप के दिव्य ज्योति को, बारम्बार प्रणाम।।


गुरुवर ने प्रचंड तप करके,ज्योति सिद्ध कराया। 

माताजी ने स्नेह बाती दे, दीप अखंड जलाया।।

ऋषियों के तप की उर्जा से,है यह ललित ललाम। 

अखंड दीप के दिव्य ज्योति को, बारम्बार प्रणाम।।


दर्शन से सुख पाते मानव, दिव्य शान्ति हैं पाते। 

सम्मुख आकर व्यथा वेदना,कष्ट सभी मिट जाते।।

प्रतिपल शक्ति प्रवाहित होता,भरता है नव प्राण।

अखंड दीप के दिव्य ज्योति को, बारम्बार प्रणाम।।


दिव्य दीप को नमन करें हम,सुख सौभाग्य जगाएं। 

अंतस में तप की उर्जा ले, मन वांछित फल पायें।। 

दिव्य भाव भर देता है उर में,मन होता निष्काम।

अखंड दीप के दिव्य ज्योति को, बारम्बार प्रणाम।।


जनम जनम के पाप ताप को,पल में ये हर लेता। 

इसकी पावन ज्योति से प्राणी,भवसागर तर लेता।।

नमन करें श्रद्धा सहित हम, दंडवत करें प्रणाम।

अखंड दीप के दिव्य ज्योति को, बारम्बार प्रणाम।।

-उमेश यादव

महावीर बजरंग बली(new)

*महावीर बजरंग बली*(new)

महावीर बजरंग बली, श्री राम दूत का अभिनन्दन है।

दुष्टदलन,दुःख-कष्ट हरण,श्री हनुमान का शुभ वंदन है।।

 

दुष्टों के प्रभु सदा काल हैं, महाकाल के अवतारी हैं।

संतों के रक्षक हैं हरपल, भक्तों के ह्रदय बिहारी हैं।।

जहाँ कहीं भी अन्धकार है,सूर्य समान पथ द्योतक हैं।

बल बुद्धि विद्या के सागर हैं,आप ही संकटमोचक हैं।।

हर संकट के समाधान हैं,शुभ कार्य को हरि चन्दन हैं।

महावीर बजरंग बली, श्री राम दूत का अभिनन्दन है।।

 

मनुजता जब भी फंसी भँवर में,हनुमन ने हमें उबारा है।

भ्रम व भय से मुक्ति दिलाया,साहस दे हमें संवारा है।।

सेवा धर्म ही श्रेष्ठ धर्म है, हनुमत ने जीकर सिखलाया।।

सेवा से श्री राम प्रसन्न हो, जाते हैं जग को बतलाया।

प्रभुसेवक केसरीनंदन का,पवनसुत का अभिवंदन है।

महावीर बजरंग बली, श्री राम दूत का अभिनन्दन है।।

 

नयी विपदा आई जग में, आप ही अब उपचार करो।

अतिसूक्ष्म है असुर आज का, प्रभु इसका संहार करो।।

संकट में है प्राण मनुज के, संजीवन दे उपचार करो।

अभयदान दो भक्तों को प्रभु,हम सब पर उपकार करो।।

आस और विश्वास कपिवर, आपका ही चरण वंदन है।

महावीर बजरंग बली, श्रीराम दूत का अभिनन्दन है।।

 

महायुद्ध से त्रसित विश्व है,अंजनी पुत्र कल्याण करो।

आतताइयों को दण्डित कर,मानवता का उत्थान करो।।

रोको जग को महायुद्ध से, प्रभु जग पर उपकार करो।

विपदाओं से ग्रसित विश्व है, हे कपीश उद्धार करो।।

केसरीनंदन वायुपुत्र के, जन्मदिवस पर अभिनन्दन है।

दुष्टदलन,दुःख-कष्ट हरण,श्री हनुमान का शुभ वंदन है।।

-उमेश यादव