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बुधवार, 21 जुलाई 2021

मेरा परिवार बचाओ

बेशक खुशियाँ खूब मनाओ,दशहरा,क्रिसमस,ईद मनाओ

खुशियों के त्यौहार हैं सारे, पर मेरा परिवार बचाओ।।


खुश होने से किसने रोका,नृत्य गान से किसने टोका

बेजुबान हम बकरों ने तो, कभी नहीं हँसने से रोका।।

हम भी तेरे संग मिमियालें, आओ ऐसा पर्व मनाओ

खुशियों के त्यौहार हैं सारे,तुम मेरा परिवार बचाओ।।  


सोचो, तेरे बच्चों को जब, कोई भी थप्पड़ जड़ता है

खून खौल जाता  है तेरा, मौका पा बदला लेता है।।

मेरे बच्चों से भी तुम तो,थोडा सा ही रहम जताओ

खुशियों के त्यौहार हैं सारे,तुम मेरा परिवार बचाओ।।  


मानव हो तुम,ज्ञान तुम्हें है,मुझ सा प्रज्ञाहीन नहीं हो

वीर धीर गंभीर बहुत हो,पशुओं सा बलहीन नहीं हो।।

नाहक अपने ताकत से क्यों, निर्दोषों के खून बहाओ

खुशियों के त्यौहार हैं सारे,तुम मेरा परिवार बचाओ।।

 

क्रूर नहीं हो फिर भी तुम तो,मुझे मारकर हंसते हो

कमजोरों की ह्त्या करके,कायर बुजदिल  बनते हो।।

मेरे आंसू वाली खुशियां,सभ्य लोग हो, नहीं मनाओ

खुशियों के त्यौहार हैं सारे,तुम मेरा परिवार बचाओ।।


शाकाहारी गुण हैं तेरे, मरी लाश तुम क्यों खाते हो

परदुःख द्रवित होने वाले तुम हमको क्यों तड़पाते हो।।

कृपा करो अब दया करो तुम,अब तो मेरे प्राण बचाओ

खुशियों के त्यौहार हैं सारे,तुम मेरा परिवार बचाओ।।  


पाँव जोड़ हम में में करते,बख्शो अब तो प्राण हमारे

मेरे बच्चों को ना मारो, कर दो जीवन दान हमारे।।

तेरे पाले ही हम भी हैं, मार मुझे न ख़ुशी मनाओ

खुशियों के त्यौहार हैं सारे,तुम मेरा परिवार बचाओ।।

-उमेश यादव 21/7/21

बुधवार, 14 जुलाई 2021

शिक्षा का स्वरुप

*शिक्षा का स्वरुप*

शिक्षा का स्वरुप बदलने,की अब तो दरकार है।
नौकर बनें न बच्चे अपने,इसके वो हकदार हैं।।

नौकरी  ही  चाहिए उनको, ऐसा नहीं पढ़ाएंगे।
हर काम उनसे हो जाए,उनको योग्य बनायेंगे।।
बचपन से ही स्वावलंबी  हों, इसके दावेदार हैं।
शिक्षा का स्वरुप बदलने,की अब तो दरकार है।।

संस्कारों  से  युक्त हों बच्चे ,ज्ञानवान बनायेंगे।
सभ्य और शालीन  बनें वे, प्राणवान बनायेंगे।।
बस्ता  बोझ  न होगा उनपर, ये तो अतिचार है।
शिक्षा का स्वरुप बदलने की,अब तो दरकार है।।

जिन विषयों में अभिरुचि हो,उसमें दक्ष बनाएं।
अंक पाने  की होड़ लगे ना, ऐसा पाठ पढ़ाएं।।
पढ़ने  लिखने पर भी क्यों, बच्चे  बेरोजगार हैं।
शिक्षा का स्वरुप बदलने,की अब तो दरकार है।।

शिक्षा का अधिकार सभी का,उनको योग्य बनाएं।
कार्य कुशलता का ही उनको, आगे पाठ पढ़ाएं।।
मालिक  बनें, नौकरी  दें वे,बच्चों को स्वीकार है।
नौकर  बनें न बच्चे अपने,इसके वो हकदार हैं।।
                    -उमेश यादव, शांतिकुंज हरिद्वार

रविवार, 11 जुलाई 2021

साँसें हैं निश्चित

उर्जावान रहें हमेशा

उर्जावान रहें हमेशा, आओ कुछ काम करें।

साँसें हैं निश्चित हम सबकी,क्यों विश्राम करें।।

 

समय चक्र ऐसा है जो कि, पीछे कभी न घूमता।

घड़ी, प्रहर, दिवस बन हरदम,आगे बढता रहता।।

साथ समय के चलकर आओ, निज कल्याण करें।

साँसें हैं निश्चित हम सबकी, क्यों विश्राम करें।।

 

पल पल होता है अमूल्य, इसको न व्यर्थ गवाएं।

सदुपयोग करें हर क्षण का,जीवन धन्य बनाएं।।

सूर्य चन्द्र सा इस जगती में, अपना नाम करें।

साँसें हैं निश्चित हम सबकी, क्यों विश्राम करें।।

 

समय न बीते व्यसनों में,जनहित में इसे लगाएं।

करें काम ऐसा जिससे हम,स्वयं प्रसन्न हो जाएँ।।

कल जाने क्या होगा इस, अवसर का मान करें।

साँसें हैं निश्चित हम सबकी, क्यों विश्राम करें।।

 

समय बीत जाने पर हमको, पड़ता है पछताना।

बीता है जो समय व्यर्थ,वापस कभी न आना।।

समय से आगे चलने का,अब तो अभियान करें।

साँसें हैं निश्चित हम सबकी, क्यों विश्राम करें।।

-उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार

शनिवार, 10 जुलाई 2021

गणेश दत्त 50 ईयर

हमारी सहपाठी श्रीमती हेमलता जी के पति श्री गणेश जी को उनके स्वर्णिम जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 
*गगन सा व्यक्तित्व है,मन पवित्र और पावन है।
*नेक दिल इंसान हो तुम,कार्य अति मन भावन है।।
*शत  सहाश्रयु रहो तुम, हर्ष में जीवन बिताओ। 
*दया धर्म इंसानियत से,मानवता का मान बढाओ।।
*तहेदिल से शुक्रिया है,स्वर्णिम जन्मदिवस मनाओ। 
   हेमलता,मोहित,मानस संग,घर को ही स्वर्ग बनाओ।।
    उमेश यादव

मंगलवार, 6 जुलाई 2021

अनुपम प्रसाद रांची जन्मदिवस

अनुपम दिव्य मनोहर छवि है,
मन पवित्र और पावन है।
नुकसानों को लाभ बना दे,
कार्य आपके मन भावन है ।।
पद पाकर भी अहं नहीं है,
दुखियों को सुखी बनाते हैं।
मस्ती में रहते हैं खुद भी, 
औरों को मस्त बनाते हैं।।  
प्रयास आपके होने से ही, 
रोने वाले भी मुस्काते है। 
साथ आपके सुषमा सिद्धि,
कदम से कदम मिलाते हैं।।
दया धर्म सेवामय जीवन,
ह्रदय स्नेह का आँगन है।
अनुपम दिव्य मनोहर छवि है,
मन पवित्र और पावन है।।
-उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार

दिव्यांश को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

 जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं
जन्मदिवस पर  दिव्यांश तुझको,ऐसा हम उपहार दें। 
आशीषों के समंदर को ही, अब तुझपे हम वारि दें ।।

दिव्य तुम्हारा जन्म हुआ है,दिव्य कर्म हो रहे तुम्हारे। 
शान्तिकुंज प्रांगण में पल बढ़,दिव्यभाव जग रहे तुम्हारे।।
बन जाओ सर्वश्रेष्ठ जगत में,हम अपना यही विचार दें। 
जन्मदिवस पर  दिव्यांश तुझको,ऐसा हम उपहार दें। 

बचपन से ही योगी हो तुम,अद्भुत योग दिखाते हो। 
अपनी प्रतिभा से तुम सबको,मंत्रमुग्ध कर जाते हो।।
जग में तेरा नाम हो ऊँचा,आशीष तुम्हें हर बार दें।
जन्मदिवस पर  दिव्यांश तुझको,ऐसा हम उपहार दें। 

दद्दा बुआ के प्रेम में पागल,इनके तुम अति प्यारे हो। 
इन दोनों के दिल के धड़कन,तुम सुन्दर हो न्यारे हो।।
मन करता है जी भर करके, खूब सारा हम प्यार दें।
जन्मदिवस पर  दिव्यांश तुझको,ऐसा हम उपहार दें। 
--दद्दा एवं बुआ

सोमवार, 5 जुलाई 2021

ओमकार पाटीदार जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

 

जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

मकार है नाम आपका, घर घर अलख जगाते हैं

 महाकाल से कदम मिला, डमरू की ताल बजाते हैं।। 

कार्य सदा गुरुवर की करते, शौर्य सभी में भरते हैं

 रहता मुख पर तेज हमेशा, हर्ष सभी में भरते हैं।।  

पाया है हरदम प्यार सदा,श्रधेय द्वय के चरणों में

टीस रहा मन में गुरुवर के,कार्य सदा ही करने में।।

दास सदा  गुरुवर माँ के  हैं, उनके गीत सुनाते हैं

हे सदा ही स्वस्थ प्रसन्न,गुरुवर से यही मनाते हैं।।

-उमेश यादव

रविवार, 20 जून 2021

स्वर्ण जयंती शांतिकुंज 50 वर्ष

----------------स्वर्ण जयंती -शांतिकुंज 50 वर्ष----------

शांतिकुंज अब स्थापना के,  स्वर्ण जयंती मना रहा है।

धर्मतंत्र का स्वर्ण  गान यह,सारे जग को सुना रहा है।।

 

गुरुवर ने निज कर कमलों से,शांतिकुंज निर्माण किया।

विश्वामित्र की तपस्थली में, ऋषियों का आह्वान किया।।

महा पुरश्चरणों  से  माँ  ने, तपः क्षेत्र  विकसाया था 

प्राणों का प्रत्यावर्तन करके, आश्रम दिव्य बनाया था।।

बीजारोपण वर्ष  इकहतर, से तरु बन लहलहा रहा है 

शांतिकुंज अब स्थापना के,  स्वर्ण जयंती मना रहा है।।1


कल्प और चान्द्रायण से ही, साधकों को बल दिया है।

साधना से  सिद्धि पा, हर  समस्या का हल  दिया है ।।

देव  कन्याओं   के  तप ने  , वातावरण   बनाया  था।

युग  शक्ति ही नारी शक्ति है,  माताजी ने तपाया था।।

सिद्धियों की दिव्य प्रभा अब,अम्बर तक झिलमिला रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना केस्वर्ण जयंती मना रहा है।।2

 

वानप्रस्थ से ज्ञान क्रांति का,सतत अभियान चलाया था।

महिला जाग्रति  शंख  बजाकर, ब्रह्मवादिनी बनाया था।।

वैज्ञानिक  अध्यात्मवाद  को, ब्रह्मवर्चस निर्मित  किया।

धर्म के  शाश्वत  स्वरुप को, जनहित में प्रस्तुत किया।।

शक्तिपीठ  हैं  शक्तिकेंद्र अब, दीप्त  हो जगमगा  रहा है 

शांतिकुंज अब स्थापना के , स्वर्ण जयंती मना रहा है।।3

 

सूक्ष्मीकरण साध   गुरुवर ने, वीरभद्र उत्पन्न किये 

पांच शरीर से एक साथ में, असंभव सम्पन्न किये।।

गुरुवर के हीरक जयंती पर,यज्ञ अभियान चलाया था।

राष्ट्रीय एकता यज्ञों  से, भारत को श्रेष्ट बनाया  था।।

मत्स्यावतार अपनी काया को, हरपल हरक्षण बढ़ा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।4

 

महाप्रयाण कर स्थूल देह को, पंचतत्व में लीन किया 

सबकी आँखों से ओझल  हो, गुरुवर ने  ग़मगीन किया।।

ब्रह्म्वेदी यज्ञों   से  गुरु  ने सोया राष्ट्र  जगाया  है।

सूक्ष्म रूप में गुरु चेतना शांतिकुंज   में  समाया  है।।

शांतिकुंज का  कोना कोना, गुरु-गान गुनगुना रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।5

 

श्रद्धांजलि देकर  शिष्यों   ने, अपना फर्ज  निभाया है 

देश धर्म संस्कृति रक्षा को,माटी ले शपथ उठाया है।।

अश्वमेधों का दौर चल पड़ा, धर्म तंत्र  मजबूत  हुआ।

दिग्दिगंत तक धर्म ध्वजा ले,क्रांति का अग्रदूत गया ।।

देव संस्कृति का परचम अब,अपने जलवे दिखा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के,स्वर्ण जयंती मना रहा है।।6

 

माताजी के  महा प्रयाण से, पुत्रों  ने दुःख पाया था 

स्नेह सलिला जीजी  ने हम, सबको गले लगाया था।।

गुरु अभियानों को श्रधेय ने, गति देकर आश्वस्त किया।

जन मानस के अंध तमस को,प्रखर-ज्ञान से ध्वस्त किया।।

अखंड ज्योति के  दिव्य ज्ञान से,अज्ञानता को मिटा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।7

 

पूर्णाहुति कर महाकुम्भ सा, जन सैलाब जुटाया था।

धरती के कोने कोने तक, धर्म ध्वजा फहराया था।।

चेतना केन्द्रों  की स्थापना, का संकल्प जगाया था।

गंगा को निर्मल करने का,जन अभियान चलाया था।।

प्रौढ़ शांतिकुंज स्वर्ण रश्मियों,से देखो जगमगा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है ।।8

 

कन्या कौशल   शिविरों से, नारी  सम्मान जगाया है।

‘दीया’ जलाकर युवा मनों में, नव विश्वास जगाया है।।

गाँव गाँव में नशा निवारण, का अभियान चलाया है।

स्वस्थ शरीर स्वच्छ मन सबका,सभ्य समाज बनाया है।।

पर्यावरण  को   शुद्ध  कराने, वृक्षारोपण करा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।9

 

संस्कारों की परिपाटी को, फिर से जीवनदान मिला।

तीर्थ क्षेत्र में संस्कारों को पुनः उचित स्थान मिला।।

शिक्षा,स्वास्थ्य,साधना जैसे, क्रांति का आगाज हुआ।

सप्त क्रांतियों की धूम मची,अश्वमेधों का प्रयाज हुआ।।

नवल विश्व के नव समाज में,नवीन चेतना जगा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।10

 

भाषांतर कर शांतिकुंज से,  साहित्य का विस्तार किया ।

हर भाषा में  हर लोगों तक, गुरु का श्रेष्ठ विचार दिया ।।     

उत्तर  दक्षिण  पूरब  पश्चिमयुग  निर्माण  का नारा है।

अखिल विश्व में दिग्दिगंत तक शांतिकुंज अति प्यारा है।।  

लक्ष  एक से कोटि कोटि तक अपना परिकर बढ़ा रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है ।11

 

विश्व विद्यालय  गुरुवर  के, सपनों का विद्यालय  है।

देव संस्कृति जग  में  फैले, मानवता का आलय है।।

तकनीकों  का प्रयोग हम, जन हित में  ही करते है।

प्राचीन विद्या का प्रसार  हम, तकनीकों  से करते हैं।।

एकहतर की छोटी बगिया,कोटि-कोटि फूल खिला रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है ।।12

 

संकट की घड़ियाँ है बीती, नया सूर्य अब चमक रहा है।

स्वर्णमयी आभा है इसकी,शांतिकुंज अब दमक रहा है ।।

स्वर्ण जयंती संग महाकुम्भ का,दिव्य संयोग सुहाना है।

धरती पर ही स्वर्ग सृजन में,जन-जन को लग जाना है।।

घर घर गंगा जल पहुचाकर, कुम्भ घरों में मना रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के,  स्वर्ण जयंती मना रहा है।।13                       -------उमेश यादव,शांतिकुंज,हरिद्वार


शांतिकुंज के पचास वर्ष की उपलब्धियों का सार  




गुरुवार, 17 जून 2021

श्रधेयद्वय को स्वर्णिम विवाहदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

 

श्रधेयद्वय को स्वर्णिम विवाहदिवस की

हार्दिक शुभकामनाएं


पुण्य  परमार्थ  मय  पूर्ण, जीवन  है  जिनका।

युग स्वयं ही लिखेगा,स्वर्णगाथा सृजन का।।


परिणय  से  नए  युग  की  शुरुआत  थी  तब।

अध्यात्म  में  नव  आयाम  की  बात  थी  तब।।

अभिनंदन  हुआ विज्ञान - धर्म के  मिलन का।

युग स्वयं ही लिखेगा,स्वर्ण गाथा सृजन का।।


माँ  भगवती   महाकाल   के  शैल  संतान  हैं।

माँ  सरस्वती   सत्य   के  प्रणव  पहचान  हैं।।

मिलन   है  प्रेम   का,  सत्य  न्याय  धर्म  का।

युग स्वयं ही लिखेगा,स्वर्णगाथा सृजन का।।


भक्ति  के  शिखर  शैल  श्रद्धा   के  अर्णव  हैं।

श्रद्देय  द्वय   हमारे   स्वयं   जीजी   प्रणव   हैं।।

स्वर्णिम  है   पल,  आप  दोनों  के  मिलन का।

युग स्वयं ही लिखेगा,स्वर्ण गाथा सृजन का।।

-उमेश यादव