अनुपम दिव्य मनोहर छवि है,
मन पवित्र और पावन है।
नुकसानों को लाभ बना दे,
कार्य आपके मन भावन है ।।
पद पाकर भी अहं नहीं है,
दुखियों को सुखी बनाते हैं।
मस्ती में रहते हैं खुद भी,
औरों को मस्त बनाते हैं।।
प्रयास आपके होने से ही,
रोने वाले भी मुस्काते है।
साथ आपके सुषमा सिद्धि,
कदम से कदम मिलाते हैं।।
दया धर्म सेवामय जीवन,
ह्रदय स्नेह का आँगन है।
अनुपम दिव्य मनोहर छवि है,
मन पवित्र और पावन है।।
-उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें