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गुरुवार, 27 जनवरी 2022

सरफ़रोशी की तमन्ना

 

सरफ़रोशी की तमन्ना

सरफ़रोशी की  तमन्ना, दिल में  भरकर आगे आओ। 

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।।

 

आजादी है पाई किन्तु, अब भी बंधन में पड़े हुए हैं।

फिरंगियों से हुए स्वतंत्र पर,फिरंगियत से जुड़े हुए हैं।।

राष्ट्र धर्म को संबल देने, राष्ट्रभक्त अब आगे आओ।

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।।

 

हंस हंस कर बलि हो वीरों ने, क्रांति का पैगाम दिया।

सीने में गोली खाकर भी, आजादी को अंजाम दिया।।

इन्कलाब का नारा दे फिर, राष्ट्र प्रेमियों कदम बढ़ाओ।

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।।

 

आजादी के लिए भगत ने, हँसकर फांसी चूमा था।

सुकदेव राजगुरु के मत से ये,देश ही पूरा झूमा था।।

सुखी सम्मुनत राष्ट्र बनाने,हे वीरों अब शौर्य दिखाओ।

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।।

 

प्रगति के  बाधक तत्वों  को, रौंद हमें आगे बढ़ना है।

सोने की चिड़िया वाला ये, देश हमें फिर से गढ़ना है।।

बलिदानों को याद करें सब,पुन: देश हित जोश जगाओ।

देश धर्म संस्कृति के खातिर,अब अपना सर्वस्व लगाओ।

–उमेश यादव

 

 

यह सूना संसार था

 

यह सूना संसार था

जीवन पथ पर निकल पड़ा जब, यह सूना संसार था।

राह  नयी  और  अनजानी थी, न कोई आधार था।।

 

ऊँगली पकड़ी, हमें चलाया,दिशा दिखाई, मार्ग बताया।

दे पाथेय आश्वस्त कराया,साहस दे पुरुषार्थ जगाया।।

जहाँ जहाँ  भी  चलें   हैं  हम तो, संरक्षण साकार था।

जीवन पथ पर निकल पड़ा जब,यह सूना संसार था।।

 

शूल  बिछे  थे  मग में तूने, पदत्रान  दे हमें बचाया।

जब भी जख्म लगे थे तुमने,निज हाथों उपचार कराया।।

हमें  लगा  हम  ही चलते हैं, पर यह तेरा प्यार था।

जीवन पथ पर निकल पड़ा जब, यह सूना संसार था।।

 

निविड़ निशा में भटक गए थे,बीच राह में अटक गए थे।

सुरसा संकट मुंह बाए थी, जोश होश सब चटक गए थे।।

साँसें   अटक   रही   थी   तब   भी, तू   ही   प्राणाधार था।

जीवन   पथ   पर  निकल  पड़ा जब, यह सूना संसार था।।

 

नाव  भवंर  में जब भी आई, खुद पतवार संभाले थे।

नैया  डूब   रही  थी जब  भी, तुम सबके रखवाले थे।।

कैसे  कहूँ, क्या   क्या   थे  मेरे,  तू  ही खेवनहार था।

जीवन पथ पर निकल पड़ा जब, यह सूना संसार था।।

 

हे  गुरुवर   हे  मातु  तुमने, अनगिन है उपकार किया।

जीवन धन्य हुआ है अपना,तुमने ये जो प्यार दिया।।

शेष सांस और रुधिर तुम्हारा,यह अपना मनुहार था।

जीवन पथ पर निकल पड़ा जब,यह सूना संसार था।।

-उमेश यादव 22-2-21

‘तूलिका’ का महत्व

चित्रफलक तो श्वेत श्याम है,रंग ही उसका मूल प्राण है।

‘तूलिका’को सर्वस्व अर्पण कर,हो जाती कृतियाँ महान हैं।।

 

जीवन पथ पर भटक रहा था,पास नहीं अपनी मंजिल थी।

लक्ष्य कहीं न दीख रहा था, दूर कहीं अपनी साहिल थी।।

 

झंझावातों भरी उदधि में, तरिणी अपनी अटक रही थी।

संकट का वह पारावार था, चक्रवात से उलझ रही थी।।

 

सघन तमिस्रा चहुँ ओर थी,नहीं पास में अभी भोर थी।

सब कुछ सूना सूना सा था,ताने की सब उलझी डोर थी।।

 

जीवन भी तब बड़ा उदास था,ना कोई उमंग उल्लास था।

खोया खोया आत्मविश्वास था,लगता कोई नहीं खास था।।

 

शुष्क हृदय था,क्षीण प्राण था,रंगों का भी नहीं ज्ञान था।

जीवन का जो चित्रफलक था,पटल हमारा स्वेत श्याम था।।

 

तब जीवन की एक किरण ने,फिजा बदल दी रश्मिकणों ने।

लगा की नौका साहिल पर हैझंझा का ना कोई डर है।।

 

अरुण भाग्य का उदय हुआ था,ईश्वर भी तब सदय हुआ था।

चित्रफलक ने ली अंगड़ाई, ‘तूलिका’ जब अस्तित्व में आई।।

 

इन्द्रधनुष सी निखर उठी थी,सतरंगी बन शिखर चढ़ी थी। 

प्राण पटल रंगों से भर के, जीवन सफल कूंची ने कर दी।।

 

नए नए नित  चित्र बनाये, स्वर्ग धरा पर ही ले आये।

नवल चेतना,दिव्य प्राण भर, इसने ही नव रंग बनाए।।

 

चित्रफलक हर्षित हो पुलका, चित्रों की है प्राण ‘तूलिका’।

सारे जहाँ की शान‘तूलिका’,चित्रों से भी महान ‘तूलिका’।।

 

'तूलिका' बिन कुछ मूल्य नहीं है,'तूलिका' से ही मूल्य सही है।

‘तूलिका’ को अर्पण तन मन सब,चित्रफलक की कथा यही है

-उमेश यादव 19-4-21

   

अमर शहीद मंगल पाण्डेय

 *अमर शहीद मंगल पाण्डेय*

भारत माँ का वीर सिपाही, धर्म कर्म उसे प्यारा था।

अमर शहीद मंगल पाण्डेय से,ब्रिटिश हुकूमत हारा था।।

 

ईस्ट इंडिया  ने भारत पर, एक छत्र था राज किया।

जितना चाहा उतना लूटा,भय आतंक का राज दिया।।

स्वर्णमयी भारतमाता को, निर्धन और लाचार किया।

मंगल ने तब तुरही फूंक,नवचेतन का संचार किया।।

व्यथित हुई भारत माँ ने, शूरों को तभी पुकारा था।

अमर शहीद मंगल पाण्डेय से,ब्रिटिश हुकूमत हारा था।।

 

विगुल बजाया आजादी का, चिंगारी सुलगाया था।

वह था वीर सिपाही जिससे,ब्रिटिश राज घबराया था।।

सिपाही विद्रोह करा, अपना सामर्थ्य दिखाया था।

हर फोजी में जोश जगा, गोरों का होश उड़ाया था।।

मारो फिरंगी के नारे से, अंग्रेजों को ललकारा था।

अमर शहीद मंगल पाण्डेय से,ब्रिटिश हुकूमत हारा था।।

 

राष्ट्र हित इस महावीर ने,जन जन का आव्हान किया।

देशभक्ति  को जागृत करनें, प्राणों का बलिदान दिया।।

प्रथम वीर मंगल पाण्डेय ने, राष्ट्र-धर्म  सिखलाया था।

आजादी की सोच हमारे, अन्तः तक पहुंचाया था।।

भारत माँ  के वीर सपूत को, आजादी अति प्यारा था।

अमर शहीद मंगल पाण्डेय से,ब्रिटिश हुकूमत हारा था।।

-उमेश यादव ८ अप्रैल २०२१

धर्म ध्वजा फहरे

 

धर्म ध्वजा फहरे

सत्य,प्रेम और न्याय की जग में, धर्म ध्वजा फहरे।

नवयुग  का  उद्घोष व्योम तक,  केशरिया  लहरे।।

त्याग, तपस्या, बलिदानों की, प्रेरक दिव्य पताका।

निविड़ निशा में घिरे विश्व की,अंजन ज्ञान शलाका।।

आस्था दृढ़, विश्वास प्रबल हो,  भक्ति भावना जागे।

साहस, बल, पुरुषार्थ प्रखर हो, असुर वृतियां भागे।।

ज्ञान कर्म और भक्तियोग की, साध सधे अब गहरे।

नवयुग  का  उद्घोष व्योम तक,  केशरिया  लहरे।।1

चिंतन,चरित्र,व्यवहार सभी के,सबके मन को भावे।

संयम,  सेवा, स्वाध्याय  का,  साथ मनुजता पावे।।

तन बलिष्ठ और मन पवित्र हो,सेवामय जीवन हो।

मिलजुल कर सब रहें प्रेम से,सबमें अपनापन हो।।

श्रद्धा,  प्रज्ञा,  निष्ठां  के हों,  भाव मनों  में गहरे।

नवयुग  का  उद्घोष व्योम तक,  केशरिया  लहरे।।2

शहीद, सुधारक, संतों का,सम्मान जगत में फैले।

लोभ, मोह और अहंकार से,रहें न अब कोई मैले।।

ओज, तेज, वर्चस धारण कर,हम अद्भुत कर पायें।

सादा जीवन, उच्च विचार का, मंत्र सभी अपनाएँ।।

गुण, कर्म, सुभाव से बने श्रेष्ठ औ’मनुज देव बन विचरें।

नवयुग  का  उद्घोष व्योम तक,  केशरिया लहरे।।3

दिग-दिगंत तक,आदि अनंत तक,क़दम बढ़ाकर नापें।

धरती से अवनी, अम्बर, चहुँ ओर श्रेष्ठता व्यापे।।

विचार क्रांति अभियान हमारा,फैले दसों दिशा में।

लाल-मशाल के साथ चलें हम,तम की गहन निशा में।। 

बढ़े कदम,  पीछे  न हटायें, भले विकट हों लहरें।

नवयुग का  उद्घोष  व्योम तक,  केशरिया लहरे।।4

ममता समता शुचिता सबमें, साहस सब अपनाएँ। 

नयी धरा हो,  नया गगन हो, नव संसार बसायें।।

मानव में देवत्व उदय कर, स्वर्ग धरा पर लाना।

युग निर्माण है लक्ष्य हमारा,निश्चित ही है पाना।।

मंजिल मिल जाने से पहले, कहीं नहीं हम ठहरे।

नवयुग का उद्घोष व्योम तक, केशरिया लहरे।।5

-              उमेश यादव 19-2-21

VIBGYOR इन्द्रधनुष

 

आओ स्वयं से होली खेलें, खुद को ही हम रंग लगाएं

इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल बनायें।।

 

*V*   बैर  भाव अब दूर भगाएं, प्यार और  सहकर  बढ़ाएं

*बै*     मिलजुलकर हम रहना सीखें,सबके सहयोगी बन जाएँ।।

आध्यात्मिकता से जीवन  के, रंग बैंगनी से रंग जाएँ

इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन,जीवन अपना सफल बनायें।।

 

*I*    नील रंग अवनी नभ शोभित,अति अनन्त का भाव जगाता

*नी*    ह्रदय हमारा हो विशाल यह,  शांति धैर्य सद्भाव बढाता।।

नील रंग में रंगकर हम भी, स्नेह प्रेम विश्वाश जगाएं

इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल बनायें।।

 

*B*     बल साहस व शौर्य शक्ति संग, धीर वीर गंभीर बनें हम

*आ*   मस्त मयूर कानन नर्तन में,जोश होश उल्लास भरें हम।।

आसमान से रंग मिलाकर,दिग दिगंत तक हम बढ़ जाएँ

इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल बनायें।।

 

*G*    हरा रंग हरियाली मन की, स्वस्थ समृद्ध हो जीवन अपना

*ह*    मातृभूमि के लिए हमारा, तन मन धन अर्पण सब अपना।।

हरे रंग से रंगकर मन ये , धरती  माँ  का  मान बढ़ाए

इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल  बनायें।।

 

*Y*     पीत पवित्र पावन निर्मल मन,त्याग तपस्या मय जीवन हो

*पी*    गुरु के आदर्शों में ढलकर,गुरु को ही अर्पित तन मन हो।।

गुरु चरणों का रज धारण कर, गुरु के रंगों में रंग जाएँ

इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन, जीवन अपना सफल बनायें।।

 

*O*    नारंगी रंग मान हमारा, राष्ट्र धर्म का प्राण है प्यारा

*ना*    केसरिया बलदायक भी है, संतों का परिचायक भी है ।।

मन केसरिया रंग में रंग कर,धर्ममय जीवन बन जाए

इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन,जीवन अपना सफल बनायें।।

 

*R*     लाल रंग का रक्त हमारा, अंग अंग में जोश जगाता

*ला*   सूर्योदय की मधुर लालिमा, से सारा जग उर्जा पाता।।  

लाल रंग तो प्रेम रंग है, प्रेममयी  जीवन बन जाए

इन्द्रधनुष सा सतरंगी बन,जीवन अपना सफल बनायें।।

 

इन्द्रधनुष सा जीवन को भी, सात रंग से रंग डालें हम

सात चक्र को जागृत करके,शक्ति श्रोत को ही पा लें हम।।

शुभ्र धवल दिनकर सा बनकर,परहित में जीवन लग जाए

आओ स्वयं से होली खेलें, खुद को ही हम रंग लगाएं-उमेश यादव