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रविवार, 19 दिसंबर 2021

मैं एक जागृत नारी हूँ।

 

असंभव को संभव करने मैं,धर्मराज से लड़ सकती हूँ

रणचंडी दुर्गा बनकर मैं, महिषासुर का बध करती हूँ।।

पड़े जरुरत अगर राष्ट्र को, लक्ष्मीबाई बन सकती हूँ

नारी हूँ पर रक्तबीजों का,रक्तपान भी कर सकती हूँ।।

जान हथेली पर लेकर भी, सृष्टि की रचना करती हूँ

यदि हमारी जरुरत हो तो,अहर्निश सेवा में लगती हूँ।।

सदा सर्वदा पर हित  सोचूं, परहित में ही मरती हूँ

वार तिथि समय ना देखूं, सेवा निशदिन करती हूँ।।

लक्ष्यपथ से न कभी भटकती,मैं एक जागृत नारी हूँ

समर्पित हूँ मैं अर्पित भी हूँ,मैं नारी हूँ, मैं नारी हूँ।।

-उमेश यादव

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