*जय बोलें श्रीराम की*
आओ सब मिल महिमा गायें,जननायक श्रीराम की।
राम तत्त्व मन में विकसायें, जय बोलें श्रीराम की।।
राज पाट को छोड़ा प्रभु ने,कानन को स्वीकार किया।
सुख सुविधा भी छोड़ी उनने,काँटों को अंगीकार किया।।
पितृ आज्ञा व भ्रात प्रेम से,अपना हक भी त्यागा था।
लक्ष्मण ने सबकुछ छोड़ा था,पूर्ण समय ही जागा था।।।
उनके आदर्शों पर चलकर, कर लें प्रभु का काम जी।
राम तत्त्व मन में विकसायें, जय बोलें श्रीराम की।।
राजपुत्र से सन्यासी बन,कंद
मूल फल खाया था।
दीन दुखी वंचित पतितों को,अपने गले लगाया था।।
ऋषि मुनियों की सेवा कर,दुष्टों को मार भगाया था।
ताड़का को तो दंड दिया,जूठन शबरी का खाया था।।
वानर रीछ बनवासी जन से, बनी सेना श्रीराम की।
राम तत्त्व मन में विकसायें, जय बोलें श्रीराम की।।
मित्र धर्म की निष्ठा को,सुग्रीव के साथ निभाया था।
बालि बध कर श्रीराम ने,नारी को न्याय दिलाया था।।
सागर पर सेतु बंधवाकर लंका तक सेना पहुचाया।
संगठन शक्ति से ही राम ने,असंभव संभव कर पाया।।
अहर्निश लक्ष्य तक बढ़े चले,न चिंता थी विश्राम की।
राम तत्त्व मन में विकसायें, जय बोलें श्रीराम की।।
रावण सा अत्याचारी भी, सत्य के आगे हारा था।
अन्यायी का साथ निभाने, वाले को भी मारा था।।
सत्य धर्म की विजय पताका, लंका में फहराया था।
संत ह्रदय श्रीराम भक्त,विभीषण को राज दिलाया था।।
स्वर्णमयी लंका में भी तब, जय गूंजा श्रीराम की।
राम तत्त्व मन में विकसायें, जय बोलें श्रीराम की।।
-उमेश यादव, 9258363333
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