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बुधवार, 24 अप्रैल 2024

नवल वर्ष नव संवत्सर में

*मंगलमय हो वर्ष नया ये* मंगलमय हो वर्ष नया ये,सब मिल मंगल गान करें। नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।। सत्य सनातन संस्कृति ने ही, साथ साथ चलना सिखलाया। मन एक हो, संग संग बोलें, परहित में जीना सिखलाया।। सादा जीवन उच्च विचार से, स्वयं का ही उत्थान करें। नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।। सभी सुखी हों,सबका हित हो, पायें सभी निरोगी काया। वसुधा है परिवार हमारा, मिलजुल कर रहना सिखलाया।। जप तप पूजा पाठ ध्यान से, तन मन में नव प्राण भरें। नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।। ब्रह्मा ने ब्रह्माण्ड रचित कर, नूतन सृष्टि रचाया था। शक को हरा शालिवाहन ने, धर्म ध्वजा फहराया था।। दुष्ट दलन कर श्रीराम सा, राम राज्य निर्माण करें।। नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।। गुड़ी पड़वा पर शिवाजी ने, रिपुओं पर जय पाया था। भारत के हर वासी को ही, संस्कृति प्रेम सिखाया था। जोश भरें सबके उर में हम, संस्कृति का सम्मान करें। नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।। त्याग तपस्या ज्ञान भक्ति से, कर्म पवित्र हो जाता है। प्यार स्नेह सहकार अगर हो, गेह स्वर्ग बन जाता है।। संस्कृति और संस्कार अपनाएँ, नवयुग का निर्माण करें। नवल वर्ष नव संवत्सर में, जगदीश्वर कल्याण करें।। -उमेश यादव

स्वागत करें ज्योति कलश का

*ज्योति कलश* अखंड दीप गुरुवर की चेतना, ज्ञान रूप अवतारी हैं। स्वागत करें ज्योति कलश की, गुरु की ज्ञान सवारी है॥ हृदय बसाया जिनने गुरु को, गुरु सुमिरन दिन रैन किए। गुरु कार्य जीवन था अर्पित, जो पलभर न चैन लिए॥ है फिर उनको झंकृत करना, जिनकी शक्ति हारी है। स्वागत करें ज्योति कलश की, गुरु की ज्ञान सवारी है॥ साथ चली थी कभी कारवां, बैठ गए थे विवश क्लांति से। कारण कुछ था साथ है छूटा, मार्गविहीन हो गए भ्रांति से॥ उन सबको फिर साथ है लाना, नवयुग की यही तैयारी है। स्वागत करें ज्योति कलश की, गुरु की ज्ञान सवारी है॥ चरण गुरुवर के जहां पड़े थे, तीर्थ हमारे वहीं वहीं हैं। हाथ गुरु के सर जिनके था,नींव मिशन के आज वही हैं॥ उन सबको फिर एक सूत्र में, गूंथना ही जिम्मेदारी है। स्वागत करें ज्योति कलश की, गुरु की ज्ञान सवारी है॥ याद करें गुरुवर की वाणी, अखंड दीप में ज्योतित हैं वे। माताजी की जन्मशती है, ज्योति रूप आलोकित हैं वे॥ परिवर्तन का समय आ गया, फैली जग उजियारी है। स्वागत करें ज्योति कलश की, गुरु की ज्ञान सवारी है॥ -उमेश यादव

ज्योति कलश जन-जन तक पहुंचे

*ज्योति कलश जन-जन तक पहुंचे* अखंड ज्योति चैतन्य रूप है, गुरुवर पूज्य ललाम की। ज्योति कलश जन-जन तक पहुंचे,विचार क्रांति अभियान की। जय गुरुवर श्रीराम की॥ शांतिकुंज युगधाम की॥ अखंड ज्योति के जन्म शती पर, यह संकल्प जगानी है। ज्योति कलश के दिव्य ज्योति को,प्रखर प्रचंड बनानी है॥ जले ज्योति से ज्योति धरा पर, तमस मिटे अज्ञान की। ज्योति कलश जन-जन तक पहुंचे,विचार क्रांति अभियान की। सप्त क्रांतियों की ज्वाला को, फिर से अब धधकाना है। समयदान और अंशदान कर, घर घर अलख जगाना है॥ महत्ता सबको बतलानी होगी, रचनात्मक अभियान की। ज्योति कलश जन जन तक पहुंचे,जय गुरुवर श्रीराम की॥ महिला, युवा, प्रज्ञा मंडल को, फिर सक्रिय बनाएंगे। अन्नघट और ज्ञानघट योजना, का महत्व समझाएंगे॥ घर घर में हों देवस्थापन, चर्चा हो यज्ञ अभियान की। ज्योति कलश जन-जन तक पहुंचे,विचार क्रांति अभियान की। ऋषियुग्म के संस्मरणों के, हम सब साझीदार बनेंगे। परिचय,प्रेम,प्रगति,प्रयास से, प्यार और सहकार बढ़ेंगे॥ श्रेष्ठ बनेंगे, युग सैनिक हम, गुरुवर के अभियान की। ज्योति कलश जन-जन तक पहुंचे,विचार क्रांति अभियान की। -उमेश यादव

ज्योति कलश की प्रखर रश्मियाँ

ज्योति कलश की प्रखर रश्मियाँ गुरुवर ने उद्घोष किया, जन मन में उसे बसानी है। गुरुवर के तप त्याग पुण्य की,जग में ज्योति जलानी है॥ समय आ गया महाक्रांति का, अखंडदीप के जन्म शती का। शक्तियां शक्तिपीठ की जागे, शुभ अवसर सुयोग सन्मति का॥ हर मन, हर घर, संस्थानों में, चैतन्यता पुनः जगानी है। गुरुवर के तप त्याग पुण्य की, जग में ज्योति जलानी है॥ व्यक्तिगत और समूह साधना, संस्कार यज्ञ आराधना। जन संपर्क अखंड ज्योति से, लक्ष्य प्राप्ति दैवीय योजना॥ सद्विचार घर द्वार लगे हों, श्रद्धा-विश्वास बढ़ानी है। गुरुवर के तप त्याग पुण्य की, जग में ज्योति जलानी है॥ ढूंढें, मिलें, मिशन समझाएं, आत्मीयता का भाव जगाएं। दो पग साथ साथ चलने की, उनके मन संकल्प जगाएं॥ गुणी, धनी, भाव, शक्ति संग, प्रतिभायें आगे आनी है। गुरुवर के तप त्याग पुण्य की, जग में ज्योति जलानी है॥ हर गाँव, नगर, हर घर, मोहल्ले, स्वागत की तैयारी होवे। ज्योति कलश की प्रखर रश्मियाँ,हर मन के कलुष को धोवे॥ अखंड ज्योति से ज्योतित जग में, अवतरण पर्व मनानी है। गुरुवर के तप त्याग पुण्य की, जग में ज्योति जलानी है॥ -उमेश यादव

नवसंवत्सर का अभिनंदन

*नवसंवत्सर का अभिनंदन* नूतन भाव संकल्प नवल,नव शक्ति का संचार कर रहा। नवसंवत्सर का अभिनंदन, नूतनता विस्तार कर रहा॥ मन में उमड़े दिव्य भाव का,मिलजुल कर विस्तार करेंगे। ज्योति कलश की दिव्य ज्योति को,मन से अंगीकार करेंगे॥ समरोहमय संवत्सर यह, आत्मीय व्यवहार कर रहा। नवसंवत्सर का अभिनंदन, नूतनता विस्तार कर रहा॥ हम परिचय से प्रेम बढ़ाकर, शुभ वांछित को पा सकते हैं। प्रस्तुत कर प्रगति प्रतिवेदन, हम सहयोग जुटा सकते हैं॥ कार्ययोजना पूर्ण करने को, सबके मन सहकार भर रहा। नव संवत्सर का अभिनंदन, नूतनता विस्तार कर रहा॥ हम सब अंग अवयव गुरुवर के,आपस में सहकार करेंगे। परामर्श अनुजों से लेंगे, ज्येष्ठों का सत्कार करें॥ एक बनें हम नेक बने मन, प्रेम भाव स्वीकार कर रहा। नव संवत्सर का अभिनंदन, नूतनता विस्तार कर रहा॥ नूतन भाव संकल्प नवल,नव शक्ति का संचार कर रहा॥ -उमेश यादव

गुरुवार, 28 मार्च 2024

हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की

 

*हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की*

 

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।

ॐ नमो भगवते श्रीगोविन्दाय नमः।।

वेदव्यास मुनिश्रेष्ठ के, पद पंकज सिर नाय।

सुमिरौं गणपति देव को, हमपर होहिं सहाय।।

माँ देवकी वसुदेव पिता, वंदन बारम्बार।।  

पालक यशोमति नन्द को, नमन सहश्रों बार।। 

 

हम कथा सुनाते कृष्ण सकल गुणधाम की।   

हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की।। 

ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की। 

 

जम्बुद्वीपे, भरतखंडे, आर्यावर्ते, भारतवर्षे।

एक नगरी है विख्यात मथुरा नाम की।।

यही जन्मभूमि है मुरलीधर घनश्याम की।

हम कथा सुनाते माधव केशव श्याम की।। 

ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की। 

ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।। 

 

यदुकुल के राजा दुष्टात्मा,

अति नृशंस कंस पापात्मा। 

यमुना तट नृपति मथुरा के,

पापकर्म चर्चित वसुधा में।।

ऋषि संतन को बहुत सताया,

प्रजाजनों को दुःख पहुंचाया।

त्राहि त्राहि सब देव पुकारे,

रक्षा करो भगवान हमारे।।

 

भगिनी देवकी कंस की प्यारी,

परिणय सूत्र बंधी सुकुमारी।

देवकी संग वसुदेव,

व्याह किये सम्मान की।  

हम कथा सुनाते माधव केशव श्याम की।। 

ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की।  

ये दिव्य कथा है श्रीकृष्ण भगवान की।। 

 

रथ बहन का हांक कर,

ले चला हर्ष से कंस।

तभी गिरा गंभीर हुई,

भागनेय कंस हंत ।।

परिणय अंत हुआ दुखदायी,

देवकी वध उद्धत आततायी।

वसुदेव देवकी को पापी ने,

बंदी बनाए संतापी ने।। 

 

भादो मास कृष्णाष्टमी,

तमस्विनी विकराल।

कारागृह में जन्म लिए,

दुष्ट कंस के काल।।

 

गोकुल में उत्सव है भारी,

गोकुल में उत्सव है भारी।

दुःख कष्टों को दूर करेंगे, गिरिधर अवतारी ।।

गोकुल में उत्सव है भारी।

 

नन्द यशोदा संग में,

पलन लगे यदुराय।

सुनकर कंस कठोर को,

चैन नहीं तब आये।।

 

धर्म हेतु ईश्वर अवतार,

कृष्ण करेंगे जग उद्धार।

पूतना आई रूप संवार

दुग्ध पान दुष्टा को मार

शकट, अघासुर तृण, वत्स, मारे,  

वक धेनुक सब असुर संहारे।।  

 

क्रीड़ा में ही, सबको मारा,

निज हाथों दुष्टों को तारा।  

हुई शक्ति अवतरित परम दिव्य भगवान की। 

हम कथा सुनाते श्रीकृष्ण भगवान की।। 

ये कृष्ण कथा है भागवत दिव्य पुराण की।  

 

ब्रज की राधा हैं अति प्यारी,

वृषभानु लली हैं अति न्यारी।

राधा संग महा रास रचाए,

तिन्हूँ लोक सुख पहुंचाए।।

 

प्रलंबासुर,कागासुर, शंखचुड वध, कुब्जा उद्धार।

यमलार्जुन मोक्ष,इंद्रदर्प हरण, तृणावर्त उद्धार।। 

 

निर्दयी कंस बहुत बौराया,

प्रजाजन में कुहराम मचाया।

अंत समय जब कंस का आया,

गोपों संग  मथुरा बुलवाया।।

 

लीला पुरुष की लीला ने फिर,

अनुपम चक्र चलाया। 

चाणूर, मुष्टिक कंस के भट को,

अपने धाम पहुंचाया

 

कान्हा ने ऐसी ऐसी रची कुछ माया

स्वयं भगवान् और दाऊ संग में,

पापी ने निज काल बुलाया।।  

कान्हा ने ऐसी ऐसी रची कुछ माया

 

जब कृष्ण दाऊ रौद्र रूप धर, असुर वध करने लगे

मच गई थी त्राहि त्राहि, दुष्ट सब मरने लगे

केश पकडे कंस का और खिंच लाये धुल में

खड़ग लेकर अंत कर दी अधम मिल गया था धुल में   

  

 अधरमी का नाश हुआ था,

धर्म ध्वजा अम्बर फहरा था.

मानवता को खो बैठें जब,

सभ्य समाज निवासी।

न्याय धर्म स्थापित करने,

आते हैं बृजवासी।।

उन प्रभु परम उदार का,

श्रीकृष्ण शुभ नाम।

निर्दयी कंस का अंत हुआ,

जय जय जय घनश्याम।।

 

दाऊ कृष्ण वसुदेव के जाए,

ईश्वर रूप जगत को भाये।

 

श्रोताओं, जब जब इस धरा धाम पर अत्याचार और पाप का साम्राज्य बढ़ा है, भगवान् स्वयं विभिन्न रूपों में अवतरित होकर पापियों और अत्याचारियों का विनाश किया है.महाभारत के युद्ध में गीता का अमर ज्ञान देने वाले भगवान् श्रीकृष्ण ने किसी का वध न करने या कोई भी हथियार न उठाने का संकल्प लिया था पर अपने बाल्यकाल से ही इस धरा धाम को सुखी सम्मुनत करने के लिए कई दैत्यों को मारकर निजधाम प्रदान किये. पूतना, बकासुर और वत्सासुर राक्षस का वध श्रीकृष्ण ने खेलते ही खेलते कर दिया था.कालिय नाग मर्दन,नलकुबेर एवं मणिग्रीवा का उद्धार किया, गोवर्धन धारी ने इंद्र का दर्प हरण अपने किशोरावस्था में ही कर दिए थे. क्रूरता की सारी हदें पार करने वाला कंस जैसा अत्याचारी राजा ने अपने पिता उग्रसेन को ही कारागार में डाल दिया था. बहन देवकी और जीजा वसुदेव को विवाहोपरांत ही कठिन कारागार में डालकर उनके होने वाले नवजात शिशुओं को शिला के उपर पटककर मार देता था.पाप का घड़ा भरते ही क्रूर कंस को उसके दलबल, कुबलयापीड़ हाथी समेत संहार किया. जरासंध की भीम के द्वारा एवं कालयवन का राजा मुचुकुन्द से बध करवाया.श्रेष्ठता का दंभ भरने वाले शिशुपाल एवं पौन्ड्रक को परलोक पहुंचाया.  

 

कंस का हुआ संहार, चारों ओर हाहाकार,

स्वसुर जरासंध ने तब, जुलम मचाया था.

मल्लयुद्ध का समर, कृष्ण योजना प्रखर    

इशारे से भीम दोई पाट फड़वाया था.

पौन्ड्रक  अहंकार, शिशुपाल पर प्रहार

चक्रधारी ने निज चक्र से मिटाया था

धर्म और सत्य न्याय,महाभारत का अध्याय

कौरवों को, विधर्मी को, समूल मिटाया था

भीष्म द्रोण से प्रखर, कर्ण जैसा धनुर्धर,

दुर्योधन के अहं को, मिटटी में मिलाते है

शान्ति हेतु युद्ध था वो, युद्ध से ही शांति था वो

सत्य न्याय नीति का वो  ध्वजा फहराते हैं

राष्ट्र बांधे एकता में, मिटाए अनेकता को

धर्मयुद्ध से ही, महाभारत बनाते हैं

भक्ति ज्ञान कर्मयोग, चक्र मुरली का संयोग

योगेश्वर जगत हित, गीता भी सुनाते हैं

वंशी शांति का प्रतीक,चक्र शक्ति का प्रतीक

हलधर संग कृष्ण, समृद्धि बढाते हैं.

नन्द बाबा के हैं प्यारे,यशोदा मैया के न्यारे,   

जगत को पापियों से, मुक्ति वो दिलाते हैं।।

  

ओ ओ देवकी माँ के आँख के तारे। 

स्वयं भगवन सूत उनके प्यारे।।

ओ पितु वसुदेव के राज दुलारे। 

श्री कृष्ण हैं पूत तुम्हारे।।

यशोमति नन्द के हैं अति प्यारे।। 

जगपालक जगती को तारे। 

-उमेश यादव

रविवार, 4 फ़रवरी 2024

उम्मीदों को नवीन, पंख मिल गए है

*उम्मीदों को नवीन, पंख मिल गए है*

उम्मीदों को नवीन, पंख मिल गए है॥

मंजिल तक पहुंचने के, पंथ खुल गए हैं॥

 

परीक्षा पर चर्चा से, ग्रंथियां खुली हैं।

खुशियों की सतरंगी,रंग मन घुली हैं।।

दिशाएं नई, नवल, प्राण-बल मिला है।

आपके स्नेह से उर, कमलदल खिला है।

विज्ञान ज्ञान अर्जन के,ग्रंथ मिल गए हैं।

मंजिल तक पहुंचने के, पंथ खुल गए हैं॥

 

आपकी मधुर वाणी, स्नेह रस सनी है॥

हिम्मत मिली है मानो, किस्मत बनी है।

परिश्रम से सफलता की साधना सिखाये।

बलिदान से राष्ट्र की, आराधना सिखाये॥

शक्ति पाकर कलम की,प्रखर हो गए हैं।

मंजिल तक पहुंचने के, पंथ खुल गए हैं॥

 

हिम्मत करो जग में, आगे बढ़ो तुम।

प्रगति के सारे ,शिखर पर चढ़ो तुम॥

सवालों के बंधन रुला ना सकेंगी।

सफलता तुम्हारे, चरण चूम लेंगी॥

भंवर पार करने के, हुनर मिल गए हैं।

मंजिल तक पहुंचने के, पंथ खुल गए हैं॥

 

आगाज हैं हम, आवाज हैं हम

साहस से युद्ध की, साज हैं हम॥  

भारत को विकसित बनाने का सपना॥

राष्ट्र आराधना अब तो संकल्प अपना।  

शुद्ध हैं हम,अब तो,प्रबुद्ध बन गए हैं

मंजिल तक पहुंचने के, पंथ खुल गए हैं॥

 

चमकेंगे दिनकर सम व्योम ऊपर॥

हौसलों से ये तारे भी होंगे जमीं पर॥

रोशनी सूर्य सी जगमगाएंगे जग को।

ज्योतित करेंगे मानवता के मग को॥    

हरेक रोम कण को,  स्पंदन दिए हैं।

मंजिल तक पहुंचने के, पंथ खुल गए हैं॥

--उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार,9258363333  

गुरुवार, 11 जनवरी 2024

हृदय स्पंदन, रघुकुलनंदन

 हृदय स्पंदन, रघुकुलनंदन

अवधपुरी कौशलपुर दर्शन, दिव्य अयोध्या धाम हरे।

हृदय स्पंदन, रघुकुलनंदन, निशिदिन वंदन राम हरे॥

 

रघुकुलनायक,संत सहायक,जन सुखदायक राम विभो।

दशरथ नंदन, दैत्य निकंदन, दिव्य अलौकिक धाम प्रभो॥

ऋषिगण पूजित, मुनिगण अर्चित, सुरगण सेवित राम हरे।

हृदय स्पंदन, रघुकुलनंदन, निशिदिन वंदन राम हरे॥

 

हे दुख हर्ता, पालन कर्ता, दुष्चिन्तन कर नाश प्रभो।  

भव-भय हारक,जनमोद्धारक,कृपा सिंधु श्रीनाथ विभो॥  

हृदय वास कर,दिव्य प्रकाश भर,दीनबंधु सुखधाम हरे।

हृदय स्पंदन, रघुकुलनंदन, निशिदिन वंदन राम हरे॥

 

मुकुट मणि मण्डल,कर्णन कुंडल,माथे तिलक लगाए रहे।

शर धनु शोभित,आनन प्रमुदित,खल दल त्रास दिलाए रहे॥

दिव्य मनोहर, स्वर्गिक सुंदर, हरण पाप प्रभु नाम हरे।

हृदय स्पंदन, रघुकुलनंदन, निशिदिन वंदन राम हरे॥

-उमेश यादव

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भारत का सौभाग्य जगा है

 भारत का सौभाग्य जगा है

भारत का सौभाग्य जगा है, राम अवध फिर आए हैं।

सदियों से खोए गौरव को, पुनः आज हम पाए हैं॥

 

भरत राम सा प्रेम बंधु में, शबरी वाला राम आ रहे।

जन जन के उर राज करे जो,तुलसी के श्रीराम आ रहे॥

आस्था और विश्वास हमारा, रघुवर ने पुनः जगाए हैं।

भारत का सौभाग्य जगा है, राम अवध फिर आए हैं॥

 

स्वाभिमान भारत का जागा, हम सब धन्य हुए हैं।

कण-कण, जन-जन, हर मन, भारत के चैतन्य हुए हैं।।

पुनः उदय सौभाग्य सूर्य का, प्रभुजन मंगल गाये हैं।

भारत का सौभाग्य जगा है, राम अवध फिर आए हैं॥

 

राम राज्य फिर भूपर लाने, हमें राम सा बनना होगा।

तजकर सुख सुविधाओं को,संघर्ष राम सा करना होगा।

संगठित करें सज्जनों को हम, दुर्जन शीश झुकाए हैं।

भारत का सौभाग्य जगा है, राम अवध फिर आए हैं॥

 

राम और श्रीराम एक हैं, हम सबने यह जाना है।

युग परिवर्तक दोनों ही हैं, सारे जग ने माना है।।

युग निर्माण साकार करेंगे, युगऋषि से बल पाए हैं।

भारत का सौभाग्य जगा है, राम अवध फिर आए हैं॥

-उमेश यादव, 9258363333  

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